scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमदेशक्या पारंपरिक और आधुनिक इलाज का मिश्रण कैंसर के इलाज में मदद कर सकता है? सरकार कर रही पता लगाने की कोशिश

क्या पारंपरिक और आधुनिक इलाज का मिश्रण कैंसर के इलाज में मदद कर सकता है? सरकार कर रही पता लगाने की कोशिश

आईसीएमआर और आयुष मंत्रालय ने कैंसर और मल्टीपल स्केलेरोसिस सहित लगभग 30 'प्राथमिकता' वाली बीमारियों की पहचान की है. लेकिन विशेषज्ञों का मत 'एकीकृत स्वास्थ्य सेवा' की प्रभावकारिता पर अलग-अलग हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: क्या डेंगू, लीवर डिसऑर्डर, मल्टीपल स्केलेरोसिस और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए दवाओं के आधुनिक और पारंपरिक रूपों को एक साथ जोड़ा जा सकता है? भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और केंद्रीय आयुष मंत्रालय यही पता लगाना चाहते हैं.

10 अक्टूबर को जारी एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार, आईसीएमआर – बायोमेडिकल अनुसंधान के निर्माण, समन्वय और प्रचार के लिए भारत का शीर्ष निकाय और आयुष मंत्रालय ने लगभग 30 “प्राथमिकता” वाली बीमारियों की पहचान की है, जिनके लिए वे चिकित्सा की दो प्रणालियों को एकीकृत करके उपचारात्मक और निवारक समाधान खोजना चाहते हैं.

दस्तावेज़ में इस अभ्यास के लिए अनुसंधान प्रस्तावों की मांग की गई है, जो प्रस्तावित आयुष-आईसीएमआर एडवांस्ड सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव हेल्थ रिसर्च (AI-ACIHR) द्वारा किया जाएगा. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में स्थापित किए जाने वाले इन केंद्रों का उद्देश्य “आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके स्वास्थ्य के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में साक्ष्य उत्पन्न करके एकीकृत स्वास्थ्य पर उच्च प्रभाव अनुसंधान को बढ़ावा देना” है.

चिकित्सा के पारंपरिक रूपों में आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और सिद्ध शामिल हैं.

दिप्रिंट ने कॉल और टेक्स्ट संदेशों के जरिए आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल से संपर्क किया, लेकिन प्रकाशन के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

हालांकि, इस परियोजना को मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिली हैं. दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान में ट्रांसलेशनल रिसर्च एंड बायोस्टैटिक डिवीजन की निदेशक और हेड तनुजा नेसारी जैसे कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एकीकृत चिकित्सा “स्वास्थ्य देखभाल का भविष्य” है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “अगर हम आधुनिक विज्ञान के उपकरणों का उपयोग करके पारंपरिक चिकित्सा की दक्षता को साबित करने में सफल होते हैं, तो पारंपरिक चिकित्सा को जनता, आधुनिक डॉक्टरों के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी बेहतर स्वीकृति मिलेगी.”

लेकिन अन्य लोग इस कदम को लेकर अधिक संदेह में हैं.

केरल के एक हेपेटोलॉजिस्ट और नैदानिक ​​शोधकर्ता डॉ. सिरिएक एबी फिलिप्स, जो सोशल मीडिया पर आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा के अन्य रूपों के बारे में अपने आलोचनात्मक विचारों के लिए जाने जाते हैं, का मानना है कि एकीकृत चिकित्सा “यह एक खेदजनक बहाना है जब सभी स्वास्थ्य सेवाओं का यथार्थवादी, वैज्ञानिक रूप से मान्य अधिकार सरकार द्वारा नागरिकों को प्रदान नहीं किया जा सकता है.”

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “ऐसी बेकार योजनाओं में करोड़ों रुपये बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं, जो वैज्ञानिक परियोजनाओं के साथ छद्म वैज्ञानिक सिद्धांत से मिलती है.”

“एकीकृत हेल्थकेयर तर्कसंगत परिकल्पना पर भरोसा नहीं करती है, इसमें अप्राप्य क्षेत्रों के साथ हस्तक्षेप किया जाता है, और पहले से ही सीमित संसाधन और रोगी आबादी पर अधिक वित्तीय बोझ पैदा करने के अलावा संचारी या गैर-संचारी रोगों में तार्किक समाधान की पहचान करने की कोई संभावना नहीं है.”


यह भी पढ़ें: ICMR ने वैज्ञानिकों से टाइफाइड का पता लगाने वाले सटीक परीक्षणों के विकास का किया आग्रह


परियोजना का दायरा और प्राथमिकता वाली बीमारियां

आईसीएमआर द्वारा जारी दस्तावेज़ में कहा गया है कि परियोजना का व्यापक दायरा पारंपरिक जैव-चिकित्सा के साथ आयुष प्रणाली और बेहतर रोगी परिणामों के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से एकीकृत स्वास्थ्य अनुसंधान विकसित करना है.

दस्तावेज़ में 29 फरवरी 2024 तक सबमिशन का आह्वान किया गया है.

इसमें कहा गया है कि इसका उद्देश्य चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों के बीच आपसी समझ और अनुसंधान के माहौल का उपयोग करना है, जिससे एकीकृत स्वास्थ्य अनुसंधान हो सके, ज्ञान और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अंतराल की पहचान की जा सके जहां दृष्टिकोण की संभावना हो सकती है, और मजबूत सबूत तैयार करना है.

दस्तावेज़ में आईसीएमआर के एक्स्ट्रामुरल रिसर्च प्रोग्राम के तहत एआई-एसीआईएचआर स्थापित करने का प्रस्ताव है, जिसके तहत संस्था चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्रों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिकों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

इसमें कहा गया है कि ”एक एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की आवश्यकता है जो भविष्य में स्वास्थ्य नीतियों और कार्यक्रमों का मार्गदर्शन कर सके.” इसमें कहा गया है कि ”वैश्विक रुचि के इस पुनरुत्थान में इसे एक फायदा है क्योंकि इसके पास एक मजबूत बुनियादी ढांचे और समकालीन चिकित्सा में कुशल कार्यबल के साथ-साथ स्वदेशी चिकित्सा ज्ञान की समृद्ध विरासत है.”

बता दें कि इस साल की शुरुआत में आयुष मंत्रालय और आईसीएमआर के बीच अंतर-मंत्रालयी स्तर पर एक समझौता ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके अनुसार “आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके स्वास्थ्य देखभाल में राष्ट्रीय महत्व के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए एकीकृत स्वास्थ्य पर उच्च प्रभाव वाले अनुसंधान को बढ़ावा देना है.”

दस्तावेज़ के अनुसार, इसका उद्देश्य “दृष्टिकोण को समझाने के लिए यंत्रवत अध्ययन करने के अलावा उत्पन्न साक्ष्य के आधार पर पहचानी गई बीमारियों के लिए पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा दोनों के इनपुट के साथ” एकीकृत प्रबंधन प्रोटोकॉल विकसित करना है.

इसमें कहा गया है कि “व्यापक स्वीकृति के लिए साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए आशाजनक एकीकृत उपचारों के साथ राष्ट्रीय महत्व के पहचाने गए क्षेत्रों/रोग स्थितियों पर उच्च गुणवत्ता वाले नैदानिक परीक्षण करने के लिए संयुक्त प्रयास किए जाएंगे.”

प्राथमिकता वाली बीमारियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है – संचारी और गैर-संचारी, प्रजनन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य और पोषण, और ऑटोइम्यून रोग.

परियोजना के तहत जिन बीमारियों को कवर किया जाएगा उनमें ट्यूबरक्लोसिस, वेक्टर जनित रोग, पुरानी सांस की बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे, कुपोषण, बौनापन, कमजोरी और मोटापा, संधिशोथ, सोरायसिस, कैंसर और मल्टीपल स्केलेरोसिस शामिल हैं.

एकीकृत स्वास्थ्य सेवा समाधान नहीं है

पहले उद्धृत किए गए डॉ. सिरिएक एबी फिलिप्स का मानना है कि कोई भी वैज्ञानिक रूप से प्रगतिशील समाज या राष्ट्र “संचारी या गैर-संचारी रोगों से निपटने के लिए एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल समाधानों को बढ़ावा देने और साकार करने के लिए सार्वजनिक धन का समर्थन या खर्च नहीं करेगा”.

उन्होंने कहा, “एकीकृत स्वास्थ्य सेवा समाधान नहीं है, यह भविष्य में एक समस्या बन जाएगी.”

“आगे बढ़ने का सही तरीका वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को वित्तपोषित करना और उन निधियों को बुनियादी और नैदानिक ​​अनुसंधान बुनियादी ढांचे में सुधार करने, बुनियादी और नैदानिक ​​वैज्ञानिकों के लिए पर्याप्त पारिश्रमिक प्रदान करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके अनुसंधान आउटपुट में सुधार करना है.”

उनका मानना है कि बच्चों और वयस्कों के कैंसर में नए लक्ष्यों की पहचान करने और उन्हें संशोधित करने और जीनोमिक और माइक्रोबायोम अध्ययनों को वित्तपोषित करने में अत्याधुनिक अनुसंधान समय की मांग है, जो सफलताओं की पहचान करने और नैदानिक चिकित्सा पद्धति को बदलने में मदद करेगा.

उनके अनुसार, अपने वास्तविक रूप में, एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल “क्या काम करता है और क्या काम नहीं करता है, उसका एक मेल है और जो काम नहीं करता है उसे अयोग्य श्रेय प्रदान करता है”.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ”अगर हम एप्पल जूस में पेशाब मिलाते हैं, तो पेशाब बेहतर नहीं हो जाता है, लेकिन एप्पल जूस खराब जरूर हो जाता है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: सरकार ने त्वचा, बाल और कॉस्मेटोलॉजी क्लीनिकों के लिए मिनिमम स्टैंडर्ड लाने के लिए बनाई योजना


 

share & View comments