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Friday, 15 November, 2024
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कौन हैं SDM निशा बांगरे, जिनके लिए MP में कांग्रेस ने एकमात्र सीट पर उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है

छतरपुर की SDM निशा बांगरे ने राज्य सरकार द्वारा एक सर्व-धर्म कार्यक्रम में शामिल होने की अनुमति नहीं दिए जाने के बाद जून में इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने सरकार द्वारा इस्तीफा स्वीकार नहीं करने के खिलाफ अदालत का रुख किया है.

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भोपाल: ऐसा लगता है कि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) निशा बांगरे का इस्तीफा स्वीकार करने में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार की देरी के कारण अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित आमला विधानसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार की घोषणा में बाधा आ रही है.

पार्टी ने पहले ही राज्य की कुल 230 सीटों में से 229 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.

2017 बैच की राज्य सिविल सेवा अधिकारी बांगरे ने कथित तौर पर सरकार द्वारा एक कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय सर्व धर्म शांति सम्मेलन में भाग लेने की अनुमति नहीं दिए जाने के बाद जून में इस्तीफा दे दिया था.

उन्होंने अब अदालत का रुख किया है और सरकार को उनका इस्तीफा स्वीकार करने का निर्देश देने के लिए हस्तक्षेप की मांग की है.

दिप्रिंट से बात करते हुए बांगरे ने कहा, “मैं (कांग्रेस नेताओं) कमल नाथ और दिग्विजय सिंह से कई बार मिल चुकी हूं और उन्होंने मुझे आश्वासन दिया गया है कि मेरा इस्तीफा स्वीकार होने के तुरंत बाद मुझे टिकट दे दिया जाएगा.”

कांग्रेस नेताओं ने भी दिप्रिंट से इसकी पुष्टि की. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम सिर्फ अदालत के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. अगर बांगरे का इस्तीफा स्वीकार हो जाता है तो उन्हें आमला से टिकट दिया जाएगा. अगर नामांकन की आखिरी तारीख तक बात नहीं बनती है, तो हम मनोज मालवे को टिकट दे सकते हैं, जो 2018 में यहां से चुनाव हार गए थे.”

बैतूल जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं. इनमें से आमला को छोड़कर चार पर कांग्रेस का कब्जा है.

हालांकि, बैतूल में पार्टी का स्थानीय नेतृत्व आमला में विधायक उम्मीदवार के रूप में बांगरे के नाम को लेकर आशंकित है. बैतूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष विक्रम उइके ने कहा, “अगर आलाकमान निशा को टिकट देना चाहता है, तो हमें उनके पीछे अपना पूरा जोर लगाना होगा. लेकिन अगर उनके इस्तीफे की पुष्टि नहीं हुई है, तो मनोज मालवे को टिकट दिया जाना चाहिए क्योंकि इस बार उनके जीतने की काफी संभावना है.”

2018 में बीजेपी के डॉ. योगेश पंडाग्रे ने आमला में कांग्रेस के मालवे को 19,197 वोटों के अंतर से हराकर 73,481 वोट हासिल किए थे, जबकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के राकेश महाले को 15,827 वोट मिले थे.

जीजीपी के जिला अध्यक्ष उइके इस साल मार्च में 25 अन्य लोगों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. उइके ने कहा, “जिले में ‘बदलाव’ (परिवर्तन) की एक सामान्य भावना है और जीजीपी के विभाजित आदिवासी वोट मालवे के पक्ष में एकजुट होंगे.”

हालांकि, बांगरे के बारे में कहा जाता है कि उनकी आमला में अच्छी छवि है – जहां उन्होंने 2018 में डिप्टी कलेक्टर के रूप में सेवा दी थी – क्योंकि उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान वहां काम किया था.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “2018 के विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव के दौरान आंवला में रिटर्निंग ऑफिसर होने के नाते, मैंने सभी राजनीतिक दलों के साथ बातचीत की. हालांकि, राजनीतिक दबाव में सरकार द्वारा मेरे साथ बुरा व्यवहार करने के बाद, कांग्रेस की ओर मेरा बढ़ना स्वाभाविक लगा.”

आमला में तीन साल के बाद, बांगरे को अक्टूबर 2021 में भोपाल और फिर नवंबर 2022 में छतरपुर में उप-विभागीय मजिस्ट्रेट के रूप में ट्रांसफर कर दिया गया.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में बांगरे का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील वरुण तन्खा ने कहा: “सरकार इस तथ्य के बारे में लंबित विभागीय जांच का हवाला देते हुए उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रही है कि निशा ने बच्चे की देखभाल की छुट्टी पर रहते हुए एक सर्व-धर्म कार्यक्रम में शामिल होने की अनुमति मांगी थी. उनके घर पर कार्यक्रम ने राज्य के अधिकारियों को नियंत्रित करने वाली आचार संहिता का उल्लंघन किया. लेकिन हमारी सरल दलील यह है कि ‘हम आरोप स्वीकार करते हैं; आप इस्तीफा स्वीकार करें’. हालांकि, सरकार इस प्रक्रिया में देरी करने के लिए विभागीय जांच लंबित होने का हवाला दे रही है.”

उन्होंने कहा, “अदालत ने राज्य सरकार को 23 अक्टूबर या उससे पहले उनके इस्तीफे पर फैसला करने का निर्देश दिया है क्योंकि उसके एक हफ्ते बाद मामले की सुनवाई होगी.”

राज्य चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 30 अक्टूबर है और मतदान 17 नवंबर को होना तय है.

दिप्रिंट टिप्पणी के लिए सामान्य प्रशासन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के पास पहुंचा और उसे प्रमुख सचिव दीप्ति गौड़ मुखर्जी के पास भेज दिया गया. दिप्रिंट कॉल के ज़रिए उन तक पहुंचा. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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कौन हैं निशा बांगरे

मूल रूप से बालाघाट जिले की रहने वाली बांगरे ने 2014 में सम्राट अशोक इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, विदिशा से अपनी इंजीनियरिंग पूरी की.

हालांकि, कॉर्पोरेट जगत में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बाद उन्होंने 2017 में राज्य सेवाओं के लिए चुने जाने के बाद मध्य प्रदेश लौटने का फैसला किया.

बालाघाट में एक शिक्षक के घर जन्मीं बांगरे अपने भीतर राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने और धर्मनिरपेक्ष मानसिकता के साथ सभी के कल्याण के लिए काम करने के दृढ़ संकल्प का श्रेय अपने माता-पिता को देती हैं.

छतरपुर में SDM के रूप में काम करते हुए, बांगरे ने मई में बच्चों के देखभाल के लिए छुट्टी पर रहते हुए, 25 जून को आमला में अपने निर्माणाधीन घर में गृह प्रवेश समारोह के रूप में आयोजित किए जा रहे ‘अंतर्राष्ट्रीय सर्व धर्म शांति सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी.

एक बौद्ध समुदाय से ताल्लुक रखने वाली बांगरे का दावा है कि वह इस कार्यक्रम के लिए श्रीलंका से डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की अस्थियां लेकर आई थीं और 11 विभिन्न देशों के विभिन्न धार्मिक नेताओं को आमंत्रित किया था.

बांगरे ने कहा, “जब मुझे शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई, तो मैंने 22 जून को ही इस्तीफा दे दिया और निर्धारित कार्यक्रम के साथ आगे बढ़ गई. मैं धर्मनिरपेक्षता और सभी धर्मों के साथ काम करने की बात ऐसे समय में कर रहा था जब सत्तारूढ़ बीजेपी चाहती है कि केवल एक ही विचारधारा कायम रहे, जिसके कारण मुझे परेशान किया जा रहा है.”

उन्होंने कहा, “मैं कम से कम चार सरकारी अधिकारियों को जानती हूं जिनके इस्तीफे एक दिन के भीतर स्वीकार कर लिए गए और वे उसी दिन सत्तारूढ़ पार्टी (बीजेपी) में शामिल हो गए, लेकिन यहां मैं अभी भी संघर्ष कर रही हूं. मेरे पास निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार करने का समय नहीं है और इस बार चुनाव लड़ने में मुझे थोड़ी देर हो सकती है.”

बांगरे ने आगे कहा कि हालांकि, इससे समाज के लिए काम करने की मेरी प्रतिबद्धता कमजोर नहीं होगी. उन्होंने कहा कि वह तब भी ऐसा करती रही हैं जब वह गुरुग्राम में एक कॉर्पोरेट कर्मचारी थीं.

इस साल अक्टूबर में – अपने परिवार के सदस्यों सहित मुट्ठी भर लोगों के साथ और हाथ में भारतीय संविधान की पुस्तक हाथ लिए बांगरे ने छतरपुर से भोपाल में मुख्यमंत्री कार्यालय तक लगभग 335 किमी की यात्रा की थी जिन्हें उन्होंने ‘न्याय पद यात्रा’ का नाम दिया था. उनकी मांग है कि उनका इस्तीफा जल्द से जल्द स्वीकार किया जाए.

भोपाल में रोके जाने पर वह अपना इस्तीफा मंजूर कराने की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गईं, लेकिन उन्हें रैली की अनुमति नहीं लेने और यातायात बाधित करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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