scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमदेश‘संसद करेगी फैसला’ — समलैंगिक संबंधों को वैध करने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव से SC का इनकार

‘संसद करेगी फैसला’ — समलैंगिक संबंधों को वैध करने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव से SC का इनकार

SC ने कहा कि शादी का अधिकार 'मौलिक अधिकार नहीं' है और सरकार को समलैंगिक जोड़ों की चिंताओं को दूर करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त पैनल गठित करने की सलाह दी है.

Text Size:

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के लिए विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) में बदलाव करने से इनकार कर दिया. इसने गैर-विषमलैंगिक जोड़े को कानून के तहत शादी करने की अनुमति देने के लिए कानून की धारा-4 को रद्द करने से भी इनकार कर दिया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ केंद्र के इस विचार से सहमत थी कि कानून के साथ छेड़छाड़ करने से अन्य कानूनों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है. पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति एस.के. कौल, रवीन्द्र भट्ट, हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा थे.

पीठ ने चार राय दीं, जबकि सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस कौल और नरसिम्हा ने अपने व्यक्तिगत विचार लिखे, जस्टिस भट्ट ने अपने और जस्टिस कोहली के लिए राय दी.

भारत में समलैंगिक विवाहों की अनुमति देने के लिए स्पेशल मैरिज एक्ट में संशोधन न करने या इसे न पढ़ने पर पीठ अपने फैसले में एकमत थी. हालांकि, न्यायाधीश इस बात पर असहमत थे कि क्या एसएमए केवल विषमलैंगिक विवाहों के एकमात्र उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था.

सीजेआई और जस्टिस कौल ने कहा कि ऐसा नहीं है, लेकिन जस्टिस भट, कोहली और नरसिम्हा ने इस राय से असहमति जताई और कहा कि स्पेशल मैरिड एक्ट की लिंग-तटस्थ व्याख्या कभी-कभी न्यायसंगत नहीं हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप महिलाओं को अनपेक्षित तरीके से कमज़ोंरियों का सामना करना पड़ सकता है.

बहुमत की राय में कहा गया है, “अगर धारा-4 को लिंग-तटस्थ तरीके से पढ़ा जाए, तो अन्य प्रावधानों की परस्पर क्रिया से असामान्य परिणाम सामने आएंगे, जिससे विशेष विवाह अधिनियम अव्यवहारिक हो जाएगा.”

लेकिन साथ ही, न्यायाधीश इस बात पर सहमत हुए कि शादी करने का कोई अयोग्य अधिकार नहीं हो सकता है, जिसे मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए. हालांकि, वह इस बात पर सहमत थे कि पार्टनर चुनने और साथ रहने का अधिकार है.

3:2 के फैसले से पीठ ने याचिकाकर्ताओं के नागरिक संघ के दावे को खारिज कर दिया. सीजेआई और जस्टिस कौल दोनों ने नागरिक संघ बनाने का अधिकार संविधान के भाग 3 से प्राप्त किया. हालांकि, बहुमत का दृष्टिकोण अन्यथा यह था कि ऐसा संघ केवल एक कानून के माध्यम से ही किया जा सकता है.

सभी न्यायाधीशों ने केंद्र सरकार को अपने प्रस्ताव के अनुसार कार्य करने और राशन कार्ड, पेंशन, ग्रेच्युटी और उत्तराधिकार सहित समान-लिंग वाले जोड़ों की चिंताओं को दूर करने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति गठित करने की सलाह दी.

मौजूदा कानून के तहत ट्रांसजेंडरों के विवाह के अधिकार पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया गया.

गोद लेने के नियमों के संबंध में जो चुनौती के अधीन थे, सीजेआई और न्यायमूर्ति कौल ने जोड़ों द्वारा गोद लेने की अनुमति देने के लिए इसे रद्द कर दिया. जस्टिस भट, कोहली और नरसिम्हा की राय इस मुद्दे पर अलग-अलग थी, लेकिन उन्होंने कहा कि उनके फैसले की यह व्याख्या नहीं की जानी चाहिए कि समलैंगिक जोड़े माता-पिता बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं.

मंगलवार का फैसला न्यायमूर्ति भट्ट की रिटायरमेंट से 4 दिन पहले और संविधान पीठ द्वारा समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखने के पांच महीने बाद आया है.

याचिकाओं पर सुनवाई 11 मई को समाप्त होने से पहले 10 दिनों तक चली और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.


यह भी पढ़ें: विवाह मौलिक अधिकार नहीं, समान सेक्स मैरिज पर फैसला अदालत के कमरे में नहीं, संसद में हो


पिछले तर्क

दोनों पक्षों की ओर से व्यापक दलीलें दी गईं — याचिकाकर्ताओं ने समान-लिंग वाले जोड़ों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग की और सरकार ने याचिका का यह तर्क देते हुए विरोध किया कि देश की विधायी नीति ने “जानबूझकर एक जैविक पुरुष और महिला के बीच संबंध को मान्य किया है”.

जबकि याचिकाकर्ताओं ने समलैंगिक विवाहों की कानूनी मान्यता के लिए LGBTQIA+ के समानता के अधिकार पर जोर दिया, सरकार ने अधिकार क्षेत्र के आधार पर याचिकाओं को चुनौती दी.

केंद्र सरकार ने कहा है कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक संबंधों को कानूनी वैधता देने के याचिकाकर्ताओं के अनुरोध पर केवल संसद ही विचार कर सकती है और विवाह करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है.

सुनवाई के दौरान, यह कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक अंतर-मंत्रालयी समिति गठित करने पर सहमत हुई थी, जो समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए कुछ लाभ सुनिश्चित करने के लिए उठाए जा सकने वाले “प्रशासनिक कदमों” की जांच करेगी.

ये लाभ उनकी शादी की कानूनी मान्यता के अभाव में भी बने रहेंगे, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायाधीशों से कोई भी घोषणा जारी करने से परहेज़ करने का आग्रह करते हुए पीठ को आश्वासन दिया था.

मेहता ने चेतावनी दी थी कि न्यायिक घोषणा के अनियंत्रित और अप्रत्याशित परिणाम होंगे. इसलिए, उन्होंने पीठ से किसी भी अधिकार की घोषणा करने के लिए विवेक का उपयोग नहीं करने का आग्रह किया.

उन्होंने तर्क दिया था, “जैसा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा सुझाव दिया गया था, स्पेशल मैरिज एक्ट में शब्दों का कोई भी परिवर्तन या प्रतिस्थापन, व्यक्तिगत कानूनों को प्रभावित करने के अलावा, अन्य कानूनों में कई प्रावधानों को प्रभावित करेगा.”

हालांकि, पीठ ने व्यक्तिगत कानूनों के पहलुओं पर गहराई से विचार करने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया था, लेकिन मेहता ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव का असर व्यक्तिगत कानून पर भी पड़ेगा.

10-दिवसीय सुनवाई में अदालत द्वारा जारी किए जा सकने वाले संभावित निर्देशों पर चर्चा की गई, जैसे कि कुछ शब्दों में बदलाव करके विशेष विवाह अधिनियम को लिंग-तटस्थ बनाना, समान-लिंग संघों की पुष्टि के लिए एक घोषणा जारी करना.

जब सुनवाई चल रही थी, केंद्र सरकार ने इस विषय पर राज्यों की राय मांगी. इसकी रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान, असम और आंध्र प्रदेश ने ऐसे संघों का विरोध करते हुए कहा कि धार्मिक आस्थाओं के आधार पर जनता की राय के आधार पर कानून बनाना विधायिका के अधिकार क्षेत्र में है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर और सिक्किम ने अपने विचार रखने के लिए और समय मांगा है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: आधे से ज़्यादा भारतीय समलैंगिक विवाह का करते हैं समर्थन : Pew सर्वे


 

share & View comments