लखनऊ: उत्तरप्रदेश (UP) स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने यूपी मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) के साथ काम करने का दावा करके व्यापारियों, ठेकेदारों और लोक सेवकों को कथित तौर पर धोखा देने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया है.
STF द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, आरोपियों में से एक, जिसकी पहचान रामशंकर गुप्ता के रूप में हुई है, खुद को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सुरक्षा अधिकारी और विशेष सचिव (निवेश) के रूप में कार्यरत भारतीय प्रशासनिक सेवा/प्रांतीय सिविल सेवा अधिकारी होने का दावा करता था.
उसने कथित तौर पर झूठा नाम “आशीष गुप्ता” का इस्तेमाल किया और खुद को “दिल्ली के सुकरात सोशल रिसर्च यूनिवर्सिटी (SSRU) के कुलपति” के रूप में लोगों को बताया था.
बयान में कहा गया है कि अन्य आरोपी, जिसकी पहचान अरविंद त्रिपाठी उर्फ ”योग गुरुजी” के रूप में हुई है, गुप्ता की ठेकेदारों और प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ बैठकें कराता था. उसने अपने फेसबुक अकाउंट पर कई तस्वीरें पोस्ट की हैं जिनमें वह गोवा के सीएम प्रमोद सावंत और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जैसे राजनेताओं के साथ नजर आ रहा है.
STF के बयान में कहा गया है कि आरोपियों ने बड़ी कंपनियों के मालिकों, ठेकेदारों और प्रशासनिक/पुलिस अधिकारियों से क्रमशः टेंडर और ट्रांसफर/पोस्टिंग दिलाने में मदद करने के बहाने पैसे की मांग की.
इसमें कहा गया है कि वे (आरोपी) ज्यादातर नकद या “आशीष गुप्ता” नाम से खोले गए खाते में पैसा लेते थे.
आरोपियों के पास से पांच मोबाइल फोन और 14 पहचान पत्र – जिनमें “यूपी सीएम के प्रोटोकॉल अधिकारी”, सुकरात विश्वविद्यालय के “कुलपति” और “दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन” के सदस्य के नाम शामिल हैं – और दो लेटर पैड बरामद किए गए हैं. बयान में कहा गया है कि यूपी सरकार में विशेष सचिव (निवेश) और सुकरात विश्वविद्यालय के वीसी के अलावा सुकरात विश्वविद्यालय के 18 फर्जी विजिटिंग कार्ड भी बरामद किए गए है.
गिरफ्तारी के बाद आरोपी रामशंकर ने बताया कि वह किसी सरकारी विभाग में कार्यरत नहीं है और न ही सुकरात विश्वविद्यालय का वीसी है. बयान में कहा गया है कि उसने दो अलग-अलग नामों से फर्जी आधार कार्ड बनवाए हैं और धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए झूठा नाम ‘आशीष गुप्ता’ का इस्तेमाल कर रहा था.
STF के मुताबिक, गुप्ता और त्रिपाठी को रविवार को लखनऊ के विपुल खंड इलाके में बांस मंडी रोड से गिरफ्तार किया गया.
दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 170 (लोक सेवक के रूप में एक विशेष पद पर रहने का दिखावा करना), 419 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी), 420 (धोखाधड़ी), 467 (मूल्यवान सुरक्षा, वसीयत आदि की जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करना) और 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है.
इस विषय पर अपनी बात रखने के लिए दिप्रिंट ने सुकरात विश्वविद्यालय से संपर्क किया लेकिन उन्होंने दावा किया कि वह एक एनजीओ है और उन्होंने गुप्ता से दूरी बनाने की कोशिश की. गुप्ता अपने झूठे नाम के साथ सुकरात विश्वविद्यालय के वेबसाइट पर “उपाध्यक्ष” के रूप में सूचीबद्ध है.
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उन्होंने ‘लोगों को कैसे धोखा दिया’
दिप्रिंट से बात करते हुए, एक STF अधिकारी ने कहा कि टीम पहले आरोपी को “आशीष गुप्ता” के रूप में ट्रैक कर रही थी, लेकिन गिरफ्तारी के बाद ही उसकी असली पहचान सामने आई.
अधिकारी ने कहा, “लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए कि वह सच में एक सरकारी अधिकारी है, वह प्रांतीय रक्षक दल की वर्दी पहने एक युवा को अपनी कार की अगली सीट पर बैठाता था. उन्होंने कार पर यूपी सरकार का लोगो भी चिपकाया था.”
STF के बयान के अनुसार, त्रिपाठी के “बड़े राजनेताओं और अधिकारियों के साथ संपर्क हैं और वह योग से संबंधित शिविर आयोजित करता है जहां बड़े ठेकेदार और राजनेता उपस्थित होते हैं”.
STF के बयान में कहा गया, “त्रिपाठी अपने योग शिक्षण से उन्हें प्रभावित करते थे और उन्हें यूपी सरकार से बड़े टेंडर दिलाने में मदद करने की पेशकश करते थे, जिससे ठेकेदार उनसे टेंडर प्रक्रिया में मदद करने का अनुरोध करते थे, (तब) वह उन्हें रामशंकर से मिलवाने की बात करता था.”
STF के अनुसार, त्रिपाठी ने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है, लेकिन वह अक्सर खुद को “दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील” के रूप में पेश करता था.
हाई-प्रोफाइल राजनेताओं के साथ त्रिपाठी की सोशल मीडिया तस्वीरों के बारे में पूछे जाने पर, यूपी STF के पुलिस उपाधीक्षक विशाल विक्रम सिंह ने कहा कि आरोपी राजनेताओं और नौकरशाहों के साथ संबंधों का दिखावा करते थे.
उन्होंने कहा, “वे लगभग पांच सालों से सक्रिय हैं. मनी ट्रेल का पता लगाया जा रहा है. अब तक हमने आरोपियों द्वारा संचालित किए जा रहे तीन-चार बैंक खातों का पता लगाया है.”
STF का कहना है कि दोनों के अन्य सहयोगी भी थे जिसका परिचय वह “प्रधानमंत्री कार्यालय में सचिव” के रूप में करवाते थे और वे सभी पैसे आपस में बांट लेते थे.
STF के अनुसार, गुप्ता ने दावा किया कि “उसने सुकरात सोशल रिसर्च यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष के साथ मिलकर कई लोगों को फर्जी पीएचडी (मानद पीएचडी) डिग्री प्राप्त दिलाने में मदद की थी”.
बयान में कहा गया, “अब तक उसने लगभग 100 छात्रों को हिंदुस्तान स्काउट्स एंड गाइड्स एसोसिएशन के साथ प्रशिक्षण प्राप्त करने की सुविधा देने के बहाने [उनमें से प्रत्येक से 7,500 रुपये लिए] ठगा है और उन्हें नौकरी दिलाने में मदद करने का दावा करके फंसाया है.”
SSRU की वेबसाइट के मुताबिक यह एक शैक्षणिक संस्थान और विश्वविद्यालय है, लेकिन इसकी “कल्याण समिति” के सदस्य सुरेश कैन ने दिप्रिंट को बताया कि यह एक विश्वविद्यालय नहीं है बल्कि एक गैर सरकारी संगठन है जो “दिल्ली सरकार और नीति आयोग के साथ पंजीकृत” है.
जब इस रिपोर्टर ने SSRU के अध्यक्ष योगेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की, तो कैन ने कहा कि वह अस्पताल में भर्ती हैं और दावा किया कि उन्हें ही संगठन के लिए बोलने के लिए उनके द्वारा अधिकृत किया गया है.
उन्होंने कहा, “SSRU केवल उन व्यक्तियों को मानद उपाधि देता है जिन्होंने समाज में 20 वर्षों तक सेवा की है. UGC को मानद डॉक्टरेट देने वाले संगठनों पर कोई आपत्ति नहीं है और मानद डिग्री सौंपने के लिए कोई नियम नहीं हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “जब से यह मामला सामने आया है, हमने अपनी वेबसाइट से उपाध्यक्ष के रूप में आशीष गुप्ता का नाम हटा दिया है. हमारी कानूनी टीम इस मामले को देख रही है और हम जल्द ही समाचार पत्रों में एक विज्ञापन प्रकाशित करवा रहे हैं जिसमें कहा जाएगा कि उनका हमारे संगठन से कोई संबंध नहीं है.”
कैन ने कहा कि गुप्ता ने “SSRU द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग लिया था, जहां उन्होंने खुद को एक आईएएस अधिकारी और यूपी सीएम के प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में बताया था और कहा था कि सरकार से जुड़े किसी भी काम के लिए उनसे संपर्क किया जा सकता है”.
कैन ने कहा, “उन्होंने कहा था कि वह अपने साथ आईएएस अधिकारियों को लाएंगे.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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