(अमित कुमार दास)
नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर (भाषा) पीठ दर्द के बावजूद अपना पहला कांस्य पदक पक्का करने के बाद भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी एचएस प्रणय आंसू नहीं रोक पाए और वह अपने कोच पुलेला गोपीचंद से लिपट गए जो हांगझोउ एशियाई खेलों का सबसे भावनात्मक पल था।
इस 31 वर्षीय खिलाड़ी में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद टीम स्पर्धा का रजत पदक जीतने में अहम भूमिका निभाई और पुरुष एकल में कांस्य पदक जीतकर पिछले 41 वर्ष से चला आ रहा इंतजार खत्म किया।
प्रणय ने पीटीआई से कहा,‘‘कई बार लोग यह नहीं जानते कि परिदृश्य में क्या होता है। वे नहीं जानते कि केवल खेलने के लिए हमें किस तरह के संघर्ष से गुजरना पड़ता है। गोपी भैया पिछले 15 सालों से मुझे जानते हैं। वह मेरे संघर्ष और उन मुश्किल हालात के बारे में जानते हैं जिनसे मैं गुजरा हूं।’’
उन्होंने कहा,‘‘वह जानते थे कि परिस्थितियों और विरोधी खिलाड़ी (ली जी जिया) को देखते हुए मेरे लिए उस मैच (क्वार्टर फाइनल) में खेलना कितना मुश्किल था। शटल धीमी थी और ऐसे में हमें लंबी रैलियां खेलनी पड़ रही थी। इसलिए दर्द सहन करना मानसिक रूप से भी मुश्किल था।’’
प्रणय अपनी पीठ के निचले हिस्से में बेल्ट बांधकर खेल थे। इसके बावजूद उन्होंने शानदार प्रदर्शन करके अपने लिए पदक पक्का किया था। उन्हें सीधे गेम में जीत दर्ज करनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने दो मैच पॉइंट गंवा दिए थे।
प्रणय ने कहा,‘‘जब मैंने दूसरा गेम गंवाया तो मैं उनके (गोपीचंद) चेहरे की निराशा साफ देख सकता था क्योंकि वह जानते थे कि अब इस स्थिति से जीतना मेरे लिए मुश्किल होगा। वह जानते थे कि मैंने पदक के लिए कितना संघर्ष किया। इसलिए यह उन सब भावनाओं का उबाल था।’’
उन्होंने कहा,‘‘एशियाई खेलों में पदक जीतना आसान नहीं है। सच्चाई यह है कि पिछले 41 वर्षों में कोई भारतीय खिलाड़ी पदक नहीं जीत पाया था। इससे यह पता चलता है कि यह प्रतियोगिता कितनी कड़ी है। इसलिए जब मैंने पदक पक्का किया तो यह मेरे लिए और उनके लिए भावनात्मक पल था, क्योंकि हम इस पदक का महत्व जानते थे।’’
पूर्व में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझने वाले प्रणय ने कहा,‘‘यह पिछले 6-7 वर्षों में सबसे कड़ी प्रतियोगिता थी। मैं कभी अपनी जिंदगी में इतने अधिक दर्द के साथ नहीं खेला। मैं अपने प्रदर्शन को लेकर आशंकित था क्योंकि मैंने पीठ दर्द के कारण अभ्यास नहीं किया था।’’
भाषा पंत सुधीर
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