पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवार काकड़ की आधी दुनिया की महंगी और निरर्थक यात्रा ने सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे लोग इस तरह के खर्च के पीछे के तर्क पर सवाल उठा रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) सत्र में काकड़ ने वह भाषण दिया जो विदेश मंत्री दे सकते थे. ब्रिटेन में प्रधानमंत्री के लिए कोई सार्थक बैठक आयोजित नहीं की गई, जहां मुख्य आकर्षण हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक संबोधन या ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दो निरर्थक कार्यक्रम थे. काकड़ की रियाध यात्रा उनके निजी मनोरंजन के लिए थी. क्यों अस्थाई रूप से किसी पद पर तैनात व्यक्ति को पेरिस, न्यूयॉर्क, लंदन और फिर रियाध तक निजी जेट का उपयोग करने की अनुमति क्यों दी गई, खासकर उस समय जब पाकिस्तान में पैसे की समस्या है और राज्य हाथ में भीख का कटोरा लेकर घूम रहा है?
यह निश्चित रूप से किसी उच्च पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का कोई साधारण मामला नहीं है. पाकिस्तान की सेना अर्थव्यवस्था पर गहरी नजर रख रही है और सिविलियन फाइनेंशियल बर्बादी को लेकर वह तब तक पसंद नहीं करेगी जब तक कि वे इसे अनुकूल परिणामों की उम्मीद के साथ दीर्घकालिक निवेश के रूप में न देखें. जिन कुछ स्रोतों से मैंने बात की, उनका मानना है कि उन्हें विलासिता की अनुमति दी गई थी क्योंकि सैन्य नेतृत्व चाहता था कि वे उस नए देश में दीर्घकालिक भूमिका निभाएं जिसे वे इस समय डिजाइन कर रहे हैं.
वह कुछ उन नए चेहरों में से एक होंगे, जिनका उपयोग दुनिया को इंगेज करने के लिए और घरेलू स्तर पर भूमिका निभाने के लिए किया जाएगा. सीनेट के अध्यक्ष का जो पद खाली होने वाला है, वह उन कई स्थानों में से एक है जहां काकड़ को पद सौंपा जा सकता है. वह निश्चित रूप से सैन्य-संचालित प्रणाली के लिए पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण दिखते हैं, जिन्हें एक निजी विश्वविद्यालय में रखा गया है और मुख्य रूप से भारत के साथ ट्रैक-2 वार्ता के लिए उपयोग किया जाता है.
भर्ती का नया मॉडल
काकड़ की यात्रा इस बात की याद दिलाती है कि कैसे पाकिस्तान की सत्ता उन नागरिकों का चयन करती है जो राजनीतिक व्यवस्था से परे काम करते हैं, उन्हें रिश्वतखोरी के चक्र में फंसाकर अपने प्रति वफादारी सुनिश्चित करते हैं. संभवतः, इतिहास से प्रेरणा लेते हुए, सत्ता ने अपने नए सदस्यों में से एक ऐसे व्यक्ति की तलाश की है जो ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की तरह सत्ता की रक्षा कर सके, लेकिन उसके पास कोई राजनीतिक आत्मा न हो. पिछले कुछ वर्षों में, भर्ती के मानदंडों में विकास हुआ है.
संभवतः ऐसा हो सकता है कि इमरान खान के नवीनतम प्रयोग से थककर जनरल ‘टेक्नोक्रेटिक’ राजनेताओं पर दांव लगाना चाहते हों, जिनके राजनीतिक से अधिक नौकरशाही होने की संभावनाएं हैं. जबकि नवाज शरीफ और आसिफ ज़रदारी को बर्दाश्त किया जाएगा, लेकिन भविष्य में दांव अनवार काकड़ , मोईद यूसुफ, शाहिद खाकन अब्बासी जैसे लोगों पर लगाने की संभावना है. अब तलाश ऐसे व्यक्ति की है जो सत्ता के प्रति वफादार हो, अंग्रेजी भाषा में बोलने में सक्षम हो, दुनिया के अन्य देशों के लोगों से बात करने में सक्षम हो, अच्छी तरह से तैयार हो और जिसकी कोई राजनीतिक पकड़ न हो. लक्ष्य एक ऐसा नेतृत्व तैयार करना है जो जीएचक्यू को चुनौती दिए बिना प्रोजेक्ट पाकिस्तान को विफल न होने दे.
सत्ता का नियंत्रण करने वाले छिपे हुए लोगों के साथ अंतरिम प्रधानमंत्री की बातचीत संभवतः 1996/1997 की है, जब क्वेटा में तैनात मेरे एक सिविल सेवा सहयोगी ने उनसे मेरा परिचय कराया था. दूसरी शादी के ज़रिए काकड़ से संबंधित और पैसा बनाने व सत्ता की ओर अत्यधिक झुकाव रखने वाले, इस अधिकारी की कुछ संस्थागत सहयोगियों के साथ काकड़ के हाथ मिलाने की सुविधा प्रदान करने में भूमिका थी. उन्होंने क्वेटा के किसी भी जाने-माने विज़िटर से काकड़ का परिचय कराने की भी आदत बना ली थी, जो लोगों के साथ जुड़ने, विचारों और अलग-अलग अच्छे शब्दों को सीखने की उनकी ट्रेनिंग का हिस्सा हो सकता था, जिसका उपयोग वह बाद में लोगों को प्रभावित करने और खुद को बुद्धिजीवी के रूप में पेश करने के लिए कर सकते थे.
सूत्रों के अनुसार, चूंकि काकड़ उपयोगी साबित हुए – विशेष रूप से कुछ प्रमुख बलूच राष्ट्रवादियों को मोड़ने में – उन्हें 2008 का चुनाव लड़ने के लिए पाकिस्तान मुस्लिम लीग – नवाज (पीएमएलएन) का टिकट दिया गया था, जिसे वह समर्थन की कमी के कारण नहीं जीत सके. जनरल अशफाक परवेज़ कयानी, जिन्होंने हाल ही में सेना प्रमुख का पदभार संभाला था और नागरिक मामलों और चुनावों में हस्तक्षेप न करने का वादा किया था, ने काकड़ की सफलता में बाधा डाली.
हालांकि, काकड़ की राज्य संस्थानों की निरंतर खोज का फल तब मिला जब उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय (एनडीयू) में नेशनल सिक्युरिटी वर्कशॉप (एनएसडब्ल्यू) में दाखिला लिया. 2015 में उन्हें बलूचिस्तान सरकार का प्रवक्ता बनाया गया, बाद में उन्हें सीनेटर और फिर पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया. काकड़ ने संभवतः मानवाधिकार और विदेशी मामलों पर सीनेट की स्थायी समिति के सदस्य के रूप में अधिक ध्यान आकर्षित किया.
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एक नौकरशाही राजव्यवस्था
काकड़ सहित नए चुने गए लोगों को सत्ता की विचारधारा में विश्वास करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. मुझे 2012 के आसपास उनकी एक कॉल याद है जब उन्होंने मुझे सिविल-मिलिट्री के नए नियम सिखाने की कोशिश की थी.
शायद, काकड़ के इर्द-गिर्द दिखावे का जो मंज़र रचा गया था वह इसलिए था ताकि यह दिखाया जा सके कि वह सफल है. इस इमेज का उपयोग उन लोगों को इस्टैबलिशमेंट की तरफ मोड़ना था जो कि संभावित रूप से राजनीति का रुख कर सकते थे. इस संबंध में, काकड़ भर्ती के एक नए मॉडल की ओर भी इशारा करते हैं – यह उन व्यक्तियों के बारे में नहीं होगा जो राजनीतिक पार्टी से संबद्धता के अत्यधिक बोझ से दबे हुए हैं और जिन्हें पार्टी के नियमों के मुताबिक बातचीत करनी पड़ती है, बल्कि यह उन लोगों के बारे में है जो स्वतंत्र रूप से खड़े हो सकते हैं.
जैसा कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने हाल ही में कहा था, पाकिस्तान की इस्टैबलिशमेंट का मानना है कि राज्य को उन राजनेताओं के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है जो अविश्वसनीय और निष्ठाहीन हैं. फॉर्मूला यह भी बताता है कि कैसे राज्य अधिक गंभीरता से एक नौकरशाही राजनीति में बदल गया है, जैसा कि पोलिटिकल साइंटिस्ट मोहम्मद वसीम और सईद शफकत हमेशा तर्क देते थे. काकड़ की लक्जरी यात्रा का विज्ञापन महिलाओं की तुलना में पुरुषों के लिए अधिक है क्योंकि सत्ता में बैठे लोग महिलाओं के प्रति द्वेषपूर्ण भावना रखने वाले लोग हैं.
कल्पना की कमी
नए चेहरों को खोजने की चाहत समझ में आती है क्योंकि जिन लोगों को वर्तमान में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने का काम सौंपा गया है, वे थके हुए लगते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक दलों से लेकर डीप स्टेट तक, उन लोगों में विदेश नीति चलाने में कल्पनाशीलता की कमी है जो वैश्विक भू-राजनीति के बदलते स्वरूप से मुकाबला करने में असमर्थ हैं.
अंतरिम विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी ने इस बात की संभावना से सीधे तौर पर इनकार कर दिया कि पाकिस्तान इज़रायल को मान्यता देगा, भले ही अन्य मध्य पूर्वी राज्यों ने भी ऐसा किया हो, लेकिन इससे नई सरकार से जगह नहीं छीनी जाएगी, लेकिन यह निश्चित विचारधारा से परे सोचने में असमर्थता का भी संकेत देता है. वॉशिंगटन और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाले भी अलग नहीं हैं.
तथ्य यह है कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत मुनीर अकरम ने हाल ही में देश पर हमला करने वाले तालिबान का बचाव किया, यह आत्मनिरीक्षण करने में असमर्थता को दर्शाता है. एक स्पष्ट विचारधारा वाले पत्रकार मित्र, जिनसे मैंने बात की, उन्हें लोभ के कारण महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थता के कारण ‘दि ओल्ड डर्टी मेन’ कहते हैं.
दोष किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि नौकरशाही का है, जो सुस्त, भ्रष्टाचार पैदा करने वाली और मध्यमपने को बढ़ावा देने वाली है. डीप स्टेट अपने तर्क पर सवाल उठाने और दुनिया को नए सिरे से देखने के लिए तैयार नहीं है. इस अहसास के बिना कि पाकिस्तान को नई नीति की जरूरत है, नए चेहरों की नहीं, भविष्य संकटपूर्ण बना हुआ है.
(आयशा सिद्दीका किंग्स कॉलेज, लंदन में वॉर स्टडीज़ विभाग में वरिष्ठ फेलो हैं. वह मिलिट्री इंक की लेखिका हैं. उनका एक्स हैंडल @iamthedrifter है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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