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Thursday, 21 November, 2024
होमदेशउत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा मामले में अदालत ने आरोपी को किया बरी, कहा- नहीं हुए आरोप साबित

उत्तर पूर्वी दिल्ली हिंसा मामले में अदालत ने आरोपी को किया बरी, कहा- नहीं हुए आरोप साबित

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष एक पुराने वीडियो के आधार पर यह आरोप नहीं लगा सकता कि आरोपी बाद की सभी दंगाओं का हिस्सा था.

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नई दिल्ली: दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने बुधवार को उत्तरी दिल्ली दंगों के दौरान करावल नगर में दंगा, तोड़फोड़ और आग लगाकर संपत्ति को नष्ट करने के मामले में एक आरोपी को बरी कर दिया.

कोर्ट ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष दंगाई भीड़ में आरोपी की मौजूदगी साबित करने में नाकाम रहा है.

अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष एक पुराने वीडियो के आधार पर यह आरोप नहीं लगा सकता कि आरोपी बाद की सभी घटनाओं में दंगाई भीड़ का हिस्सा था.”

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) पुलस्त्य प्रमाचला ने दलीलों, तथ्यों और सबूतों पर विचार करने के बाद, आरोपी प्रवीण गिरी को अभियोजन पक्ष द्वारा उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी कर दिया.

एएसजे प्रमाचला ने 27 सितंबर को पारित फैसले में कहा, “मेरी पहले की चर्चा और टिप्पणियों ने मुझे यह मानने के लिए प्रेरित किया है कि अभियोजन पक्ष ने हालांकि दंगा, बर्बरता और आगजनी की घटना को स्थापित किया है, लेकिन यह ऐसी घटनाओं में अभियुक्तों की उपस्थिति को साबित करने में विफल रहा.”

अदालत ने कहा, “मेरी पिछली चर्चाओं, टिप्पणियों और निष्कर्षों के मद्देनजर, आरोपी प्रवीण गिरी को इस मामले में उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी किया जाता है.”

अदालत ने कहा कि इस मामले में जिस वीडियो पर भरोसा किया गया, वह इस मामले में जांच की गई किसी भी घटना से संबंधित नहीं है.

यह तर्क कि वीडियो 25.02.2020 की रात से 26.02.2020 तक दंगे में आरोपी की संलिप्तता की निरंतरता दिखाता है और ये भ्रामक है, क्योंकि यह किसी भी सबूत पर आधारित नहीं है.

न्यायाधीश ने आगे कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि 02.07.2020 को उसकी गिरफ्तारी के बाद अभियोजन गवाह (पीडब्ल्यू) अफसार द्वारा आरोपी की पहचान के अभियोजन का रुख पूर्ण प्रमाण नहीं है.

न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “इस तरह का रुख बाद में तैयार किया गया होगा. पीडब्लू अफसर ने शायद घटना के दौरान आरोपी को नहीं देखा था, और बाद में उसकी तस्वीर दिखाने के आधार पर उसे उसकी पहचान के बारे में सिखाया गया होगा.”

न्यायाधीश ने कहा कि विवादास्पद सवाल यह है कि क्या यहां आरोपी उपरोक्त दोनों घटनाओं के लिए जिम्मेदार भीड़ का हिस्सा था?

एक बार फिर पीडब्लू अफसर इस आरोप को साबित करने वाले अभियोजन पक्ष के एकमात्र गवाह हैं. अदालत ने कहा, इस गवाह ने गवाही दी कि उसने पुलिस के सामने आरोपी की पहचान दंगाइयों में से एक व्यक्ति के रूप में की थी, जिन्होंने उसके घर में तोड़फोड़ की थी.

न्यायाधीश ने कहा, “हालांकि, ध्यान देने वाली बात यह है कि इस गवाह ने अपनी शिकायत खुद ही तैयार की थी, लेकिन उस शिकायत में उसने दंगाइयों की भीड़ में किसी को नहीं देखा था.”

इसके अलावा, उन्होंने बताया कि उन्होंने आरोपी को 01.03.2020 को पुलिस स्टेशन में देखा था, हालांकि अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी को 02.07.2020 को गिरफ्तार किया गया था और पीडब्लू अफसर उस दिन पुलिस स्टेशन गए थे.

न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि दिलचस्प बात यह है कि पीडब्लू अफसर के मुख्य परीक्षण के दौरान, अभियोजक ने पुलिस के समक्ष आरोपी की पहचान करने की तारीख नहीं पूछी.

अदालत ने यह भी कहा कि पीडब्लू अफसर ने अपनी जिरह में 01.03.2020 की तारीख का उल्लेख किया, जब उन्होंने पुलिस स्टेशन का दौरा किया और आरोपी की पहचान की. उन्होंने बाद में पुलिस द्वारा उन्हें आरोपी की फोटो दिखाए जाने का भी जिक्र किया.

अदालत ने आगे कहा कि विद्वान अभियोजक ने पुलिस स्टेशन में आरोपी की पहचान करने की तारीख या उसे फोटो दिखाए जाने के पहलू पर उससे जिरह नहीं की.

इस मामले में आरोपी की पैरवी अधिवक्ता शैलेन्द्र सिंह ने की. उन्होंने तर्क दिया कि मामले में लगाए गए एक वीडियो के आधार पर आरोपी को इस मामले में झूठा फंसाया गया था. वीडियो का उपयोग पहचान के लिए किया गया था और यह घटना से संबंधित नहीं है.

दूसरी ओर, एसपीपी ने तर्क दिया कि वीडियो साबित करता है कि दंगा 25.02.2020 को सुबह 12 बजे हुआ था और यह अपराध जारी रहने को भी साबित करता है. इससे यह भी पता चलता है कि आरोपी दंगे में हिस्सा ले रहे थे. आगे तर्क दिया गया कि 26.02.2020 को आरोपी को पीडब्लू अफसर ने देखा था.


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