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Friday, 22 November, 2024
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1998 के बाद से अधिकांश लोकसभा चुनावों में BJP की महिला उम्मीदवारों ने पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन किया है

अब महिला आरक्षण विधेयक के पारित होने और चुनावी राजनीति में उनकी भागीदारी में वृद्धि के साथ, बीजेपी को महिला मतदाताओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने की संभावना है.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट द्वारा पिछले छह लोकसभा चुनावों (1998-2019) के विश्लेषण से पता चलता है कि जब जीतने की बात आती है तो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की महिला उम्मीदवार अपने पुरुष समकक्षों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं.

बीते चार लोकसभा चुनावों में उनकी सफलता दर पुरुषों की तुलना में बेहतर और दो में बराबर रही. इस विश्लेषण में सफलता दर की गणना उस लिंग के कुल उम्मीदवारों की तुलना में जीतने वाले लिंग के उम्मीदवारों की कुल संख्या को देखकर की गई है.

दिप्रिंट ने पिछले सप्ताह संसद द्वारा महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दिए जाने के बाद से अब तक हुए सभी आम चुनावों में महिला उम्मीदवारों के प्रदर्शन पर गौर किया है. यह विधेयक पहली बार 1996 में एच.डी. देवेगौड़ा सरकार द्वारा पेश किया गया था. हालांकि, इस गणना में उपचुनाव के नतीजों को ध्यान में नहीं रखा गया.

इन सालों में, विधेयक को कई बार संसद में लाया गया, लेकिन यह पारित होने में विफल रहा. जबकि बीजेपी ने कथित तौर पर विधेयक के पारित होने के साथ महिला सशक्तिकरण का चैंपियन होने का दावा किया है, कांग्रेस ने कहा है कि यह विधेयक उनका “चाइल्ड” है.

2014 और 2019 में हुए पिछले दो चुनावों में, जब नरेंद्र मोदी पार्टी का चेहरा बने, तो महिला उम्मीदवारों की सफलता दर में काफी सुधार हुआ – 2009 में 29 प्रतिशत से बढ़कर 2014 और 2019 में क्रमशः 79 प्रतिशत और 75 प्रतिशत हो गई.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 38 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 30 ने जीत हासिल की. 2019 में मैदान में उतरे 55 में से 41 जीते. 1999 के लोकसभा चुनाव में भी महिला उम्मीदवारों की सफलता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी का चेहरा थे. बीजेपी ने तब 26 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से 16 ने जीत हासिल की.

2019 के लोकसभा चुनाव में – जब बीजेपी ने 55 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जो कुल उम्मीदवारों की संख्या का 12.61 प्रतिशत थी – बीजेपी की चार में से हर तीन महिला उम्मीदवारों ने अपनी सीटें जीतीं. उनकी सफलता दर 75 प्रतिशत थी जबकि पुरुष उम्मीदवारों की सफलता दर 69 प्रतिशत थी.

2014 में यह और भी बेहतर था जब 79 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों ने अपनी सीट जीती, पुरुषों के लिए यह 65 प्रतिशत था.

ये आंकड़े इस बात का संकेत देते हैं कि बीजेपी नेता महिला आरक्षण बिल का प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं, जो लोकसभा में महिलाओं के लिए सीटों का एक तिहाई आरक्षण प्रदान करता है.

मध्यप्रदेश में बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक में PM मोदी ने विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा था, “पिछले नौ सालों में महिलाएं मजबूत हुई हैं. यह देखकर इन पार्टियों में इस बिल का विरोध करने की हिम्मत नहीं बची. केंद्र में बहुमत होने पर भी वे इस विधेयक को पारित क्यों नहीं कर सके?”

कांग्रेस में, पुरुषों ने अपनी सफलता दर के मामले में 2019 के चुनाव में महिलाओं से बेहतर प्रदर्शन किया. महिलाओं के लिए 11.11 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 12.53 प्रतिशत. 2014 में कांग्रेस के पुरुष उम्मीदवारों की सफलता दर 9.9 प्रतिशत थी, जबकि महिलाओं की सफलता दर 6.67 प्रतिशत थी. हालांकि, 2009 और 1998 को छोड़कर, पिछले 25 सालों में पार्टी ने हमेशा बीजेपी की तुलना में अधिक महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.

इन 25 सालों के दौरान, अपेक्षाकृत बेहतर सफलता दर के बावजूद, सभी लोकसभा सांसदों में, दोनों दलों की महिलाओं की संख्या लगभग 10 प्रतिशत थी.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (CSDS) के एक शोध कार्यक्रम, लोकनीति के सह-निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार के अनुसार, महिलाओं के बड़ी संख्या में संसद में नहीं आने का कारण यह है कि ज्यादातर राजनीतिक दल महिला अभ्यर्थियों को टिकट नहीं देते हैं.

1998 में कांग्रेस ने 39 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, अगले चार चुनाव में उनकी संख्या 52 (1999), 45 (2004), 43 (2009), 60 (2014) और 54 (2019) थी. बीजेपी के लिए, महिला उम्मीदवारों की संख्या 1998 में 32, 1999 में 26, 2004 में 32, 2009 में 45, 2014 में 38 और 2019 में 55 हो गई.

महिलाओं के कोटे से बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिलने के संभावित लाभ पर कुमार कहते हैं, “महिलाएं वोट बैंक के रूप में उभरी नहीं हैं. लेकिन बीजेपी को कुछ भी नुकसान नहीं होता. अगले 10-20 साल तक बीजेपी को फायदा होगा क्योंकि बिल पास कराने का श्रेय उन्हें मिलेगा. देखिए यह बिल सामाजिक रूप से कितना वांछनीय लगता है. दो को छोड़कर सभी सदस्यों ने इसके पक्ष में मतदान किया. इसलिए, वे कुछ भी नहीं खोते हैं.”

उन्होंने कहा, “फिलहाल, महिला वोट बैंक में कोई अंतर नहीं है. क्या महिलाएं इस बिल और बीजेपी से खुश होंगी? बिलकुल हां. इसलिए, अगर ऐसा कोई वोट बैंक उभरता है, तो यह बीजेपी के लिए अनुकूल होगा.”


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बीजेपी की महिलाओं तक पहुंच

जैसे-जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, बीजेपी और अन्य पार्टियों द्वारा महिला मतदाताओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने की उम्मीद है, यह देखते हुए कि 2019 के चुनावों में महिला मतदाताओं का मतदान पुरुषों की तुलना में थोड़ा अधिक था. जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है.

महिला आरक्षण बिल पेश होने से ठीक एक महीने पहले, मोदी सरकार ने अगस्त के अंत में घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में 200 रुपये की कटौती की थी. इस महीने की शुरुआत में, इसने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) का लाभ 75 लाख अतिरिक्त कनेक्शनों तक बढ़ा दिया, जिससे लाभार्थियों की कुल संख्या 10.35 करोड़ हो गई. 2016 में शुरू की गई यह योजना वंचित परिवारों को खाना पकाने के लिए मुफ्त गैस कनेक्शन प्रदान करती है, जो पहले लकड़ी की आग पर निर्भर थे.

मोदी सरकार ने एक प्रेस बयान में कहा, “PMUY योजना ने महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाया है.” उनका 15 अगस्त का भाषण भी महिलाओं पर केंद्रित था, जिसमें PM ने 2024 के आम चुनावों से पहले महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की वकालत की और महिला स्वयं सहायता समूहों (SHG) की सराहना की.

मोदी ने कहा कि 10 करोड़ महिलाएं SHG से जुड़ी हैं और उनका सपना गांवों में 2 करोड़ ‘लखपति दीदी’ बनाना है.

2014 में ही, प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले साल में, मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया था, जिसके तहत अब तक, 11 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया है. एक साल बाद 2015 में, उन्होंने “लड़कियों के हितों की रक्षा और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने” के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की. समान नागरिक संहिता (UCC) के लिए इसका समर्थन, तीन तलाक को अपराध घोषित करना और अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, सभी को बीजेपी ने किसी न किसी बिंदु पर महिलाओं को सशक्त बनाने के तरीकों के रूप में पेश किया है.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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