scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतUNSC को लेकर अमेरिकी समर्थन के बारे में भारत को सोचना चाहिए, इसका मतलब है कि अब वही करना जो US चाहता है

UNSC को लेकर अमेरिकी समर्थन के बारे में भारत को सोचना चाहिए, इसका मतलब है कि अब वही करना जो US चाहता है

चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत वीटो पावर के साथ UNSC की स्थायी सदस्यता हासिल कर ले. क्या भारत व्हाइट हाउस को बीजिंग की धमकाने वाली रणनीति के खिलाफ खड़े होने के लिए मना सकता है?

Text Size:

पिछले हफ्ते नई दिल्ली में आयोजित सफल G20 शिखर सम्मेलन की कई उपलब्धियों में से सबसे उल्लेखनीय एक मजबूत अर्थव्यवस्था और विश्व मामलों में अग्रणी भूमिका निभाने में सक्षम एक स्थापित शक्ति के रूप में भारत का कद बढ़ना है. चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति, चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग, जो भारत की तकनीकी शक्ति का प्रतीक है और अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धियों ने नई दिल्ली के लिए वैश्विक व्यवस्था के बड़े क्षेत्रों के पदों का रास्ता साफ कर दिया है.

ऐसी ही एक स्थिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता है. जहां, यदि भारत को इसमें शामिल किया जाता है तो यह वर्तमान के पांच देश- अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और यूके के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलेगा. एक तरह से तो भारत कुछ P5 देशों से काफी ऊपर उठ चुका है और उनमें से किसी एक को प्रतिस्थापित करने या P6 बनने के लिए काफी योग्य है.

सफल G20 शिखर सम्मेलन, अपने प्रशंसनीय परिणामों, चतुराईपूर्ण बातचीत और शक्ति समीकरणों के संतुलन के साथ, वैश्विक मुद्दों से कुशलता से निपटने के लिए नई दिल्ली की क्षमताओं को पर्याप्त रूप से बढ़ाता है. यूक्रेन पर रूस का आक्रमण भारत के लिए मतभेदों को दूर करने और संघर्ष पर अत्यधिक रुख अपनाने वाले देशों के बीच आम सहमति बनाने की एक अग्निपरीक्षा थी. दिल्ली घोषणापत्र में विवादास्पद मुद्दों को टाल दिया गया और फिर भी भारत की चिंताओं को उजाागर किया गया, यह हमारे बातचीत कौशल का एक मजबूत प्रमाण है.

55 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले अफ्रीकी संघ (AU) को प्रतिष्ठित G20 के 21वें सदस्य के रूप में शामिल करना एक समावेशी विश्व व्यवस्था के निर्माण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने वाली भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है.


यह भी पढ़ें: BRICS का विस्तार हो चुका है, अब यह अमेरिका विरोधी गुट नहीं बन सकता. संतुलन बनाना भारत पर निर्भर है


भारत UNSC सीट का हकदार है

ठीक ही है, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा को औपचारिक रूप से अध्यक्षता सौंपने से पहले G20 शिखर सम्मेलन के ‘वन फ्यूचर’ सत्र में अपने भाषण के दौरान UNSC की सदस्यता के लिए भारत के दावे को दोहराया. भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) के संस्थापक सदस्यों में से एक के रूप में इसके लक्ष्यों और उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारत संयुक्त राष्ट्र को हर साल 40 मिलियन डॉलर से अधिक का सहायता देता है, जो संगठन के शांति अभियानों, मानवीय प्रयासों और मानवाधिकारों को बढ़ावा देने में सहायता करता है.

भारत उन 53 सदस्य देशों में से एक है जिन्होंने 30 दिन की नियत अवधि के भीतर अपने नियमित बजट आकलन का पूरा भुगतान कर दिया है. भारत ने लगभग 195,000 सैनिकों (किसी भी देश से सबसे बड़ा) का योगदान दिया है. साथ ही भारत ने 49 से अधिक मिशनों में भाग लिया है और 168 भारतीय शांति सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र मिशनों में सेवा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया है. संयुक्त राष्ट्र के 16 सक्रिय शांति मिशनों में से 10 में तैनात 7,676 कर्मियों के साथ भारत दूसरा सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्ता भी है, जिनमें से 760 पुलिस कर्मी हैं.

भारत ने जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने को प्रोत्साहित करने की मांग की गई थी. इसके बाद पांच नीति ढांचे (पंचामृत रणनीति, गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता बढ़ाना, नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग, कार्बन उत्सर्जन को कम करना और 2070 तक नेट जीरो हासिल करना) को अपनाया गया. G20 एजेंडा के हिस्से के रूप में, भारत ने दिल्ली डिक्लेरेशन में शामिल पर्यावरण आंदोलन (LiFE) के लिए अद्वितीय गेम-चेंजर लाइफस्टाइल का प्रस्ताव दिया था.

G20 शिखर सम्मेलन के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपनी पहली भारत यात्रा के दौरान, जो बाइडेन ने भारत की G20 अध्यक्षता के हिस्से के रूप में किए गए कार्य की जमकर सराहना की और एक स्थायी सदस्य के रूप में भारत के साथ UNSC में सुधार के लिए अपने समर्थन की पुष्टि की. यह समर्थन निस्संदेह UNSC में सुधार और स्थायी सदस्य के रूप में अपना उचित स्थान सुरक्षित करने के भारत के लगातार प्रयासों को मजबूत करता है.


यह भी पढ़ें: प्रिय उदयनिधि, सनातन धर्म कोई राजनीतिक पंथ नहीं है जिसे चुनाव में हराया जा सके


अब क्या चेतावनी है?

लेकिन नई दिल्ली को इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि व्हाइट हाउस अपने समर्थन को तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने में कितना गंभीर है. 2010 में, तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय संसद में बोलते हुए कहा था, “आने वाले सालों में मैं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में संशोधन की आशा करता हूं जिसमें भारत एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हो.” तत्कालीन व्हाइट हाउस के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बेन रोड्स ने ओबामा के भाषण की व्याख्या करते हुए भारत को आश्वासन दिया कि संशोधित UNSC में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए “यह उनका पूर्ण समर्थन था”.

लेकिन ये सभी आश्वासन मानक शर्तों के साथ आए थे कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मामलों में अधिक सक्रिय और जिम्मेदार भूमिका निभानी चाहिए, जिसका मतलब ईरान और म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की अमेरिकी नीतियों के साथ खुले तौर पर जुड़ना था. ओबामा ने यह भी चेतावनी दी कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मामलों में अधिक जिम्मेदार भूमिका निभानी होगी, जैसे कि म्यांमार पर लोकतंत्र अपनाने के लिए दबाव डालना आदि. उन्होंने कहा, “भारत अक्सर इनमें से कुछ मुद्दों से बचता रहा है. लेकिन उन लोगों के लिए बोलना जो अपने लिए ऐसा नहीं कर सकते, दूसरे देशों के मामलों में हस्तक्षेप करना नहीं है.” भारत पहले ही ईरान और म्यांमार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का समर्थन करके चीन के हाथों रणनीतिक और आर्थिक स्थान खोकर एक बड़ी कीमत अदा कर चुका है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि अभी का UNSC का ढ़ांचा आज की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद गठित P5 अब एक काफी पुराना विचार लगता है जिसकी नए युग के संघर्षों और व्यस्तताओं के लिए न तो प्रासंगिकता है और न ही उपयोगिता. वीटो अधिकार के साथ UNSC के स्थायी सदस्य के रूप में भारत की स्वीकृति में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक चीन है, जो कभी नहीं चाहेगा कि नई दिल्ली को यह दर्जा हासिल हो.

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का G20 शिखर सम्मेलन में शामिल न होने का निर्णय वैश्विक मामलों में चीन की स्थिति के सख्त होने का संकेत देता है, खासकर सुरक्षा और रणनीतिक मुद्दों में भारत-अमेरिका की निकटता के संदर्भ में. क्या भारत अभी या बाद में व्हाइट हाउस को संभवतः किसी अन्य अधिभोगी के साथ नई दिल्ली के खिलाफ बीजिंग की धमकाने वाली रणनीति के खिलाफ खड़े होने के लिए मना सकता है? यह अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र और विश्व समुदाय के सर्वोत्तम हित में होगा कि भारत को P6 के रूप में UNSC की उच्च तालिका में रखा जाए.

(शेषाद्रि चारी ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. उनका एक्स हैंडल @seshadrihari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: चीन के नए मैप का उद्देश्य G20 से पहले भारत को उकसाना है, नई दिल्ली को इसके झांसे में नहीं आना चाहिए


 

share & View comments