नई दिल्ली: कावेरी जल विनियमन समिति द्वारा कर्नाटक सरकार को अगले 15 दिनों में तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिए जाने के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बुधवार को बुलाई सर्वदलीय बैठक में तमिल राज्य को पानी देने से ‘‘इनकार करने’’ का फैसला किया.
सीएम ने कहा, ‘‘हमने सर्वदलीय बैठक में फैसला लिया है कि हम कावेरी नदी नियामक समिति के समक्ष एक बार फिर आवेदन करेंगे और बताएंगे कि हमारे पास पानी नहीं है और कर्नाटक में जो वास्तविक स्थिति है, उसे समझाएंगे.’’
मंगलवार को भी सीएम सिद्धारमैया ने कावेरी जल बंटवारे मुद्दे पर कैबिनेट की आपात बैठक की अध्यक्षता की. वहीं, डिप्टी सीएम शिवकुमार बुधवार को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह से मुलाकात करने वाले हैं. उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, जो अतिरिक्त रूप से सिंचाई विभाग भी संभालते हैं, अन्य कैबिनेट सदस्यों और विपक्षी नेताओं के साथ बैठक में उपस्थित थे.
इससे पहले, मंगलवार को कावेरी जल विनियमन समिति (सीडब्ल्यूआरसी) ने सिफारिश की थी कि कर्नाटक सरकार पड़ोसी राज्य में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) सरकार की 12,500 क्यूसेक पानी की मांग के खिलाफ, बुधवार से शुरू होकर 15 दिनों के लिए तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी जारी करे.
सिद्धारमैया ने कहा कि उन्होंने सर्वदलीय बैठक में एक याचिका के साथ सुप्रीम कोर्ट जाने का भी फैसला किया है.
सीएम ने कहा, ‘‘हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और कावेरी जल विनियमन समिति के समक्ष भी याचिका दायर करेंगे…हम संसद के विशेष सत्र से पहले इस मुद्दे पर चर्चा के लिए अपने सांसदों को बुलाने की सोच रहे हैं.’’
उन्होंने सोमवार को केंद्र सरकार पर मेकेदातु परियोजना को मंजूरी देने में अपने पैर खींचने का आरोप लगाया और कहा कि तमिलनाडु के लोग कावेरी पर अनावश्यक विवाद पैदा कर रहे हैं. शिवकुमार ने भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (सेक्युलर) पर कावेरी जल बंटवारे मुद्दे पर ‘राजनीति करने’ का भी आरोप लगाया.
इससे पहले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बसवराज बोम्मई ने कहा कि राज्य सरकार को इस मुद्दे पर अपने रुख पर दृढ़ रहना होगा और तमिलनाडु के साथ कावेरी जल साझा करना बंद करना होगा.
तमिलनाडु सरकार ने कर्नाटक के जलाशयों से प्रतिदिन 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए कर्नाटक को निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. कर्नाटक सरकार ने भी तमिलनाडु की याचिका का विरोध करते हुए एक हलफनामा दायर किया जिसमें कहा गया कि उनकी याचिका इस साल सामान्य बारिश की धारणा पर आधारित है.
कावेरी जल बंटवारे को लेकर राज्यों के बीच दशकों से विवाद चल रहा है. नदी को दोनों राज्यों के लोगों के लिए सिंचाई और पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने सहित आजीविका के एक प्रमुख स्रोत के रूप में देखा जाता है.
केंद्र ने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुडुचेरी के बीच उनकी जल-बंटवारे क्षमताओं के संबंध में विवादों पर मध्यस्थता करने के लिए 2 जून, 1990 को कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) का गठन किया.
डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी नदी, निचले राज्य या क्षेत्रों को पानी देने से इनकार नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को हर जगह स्वीकार किया जाता है. हम पूरा पानी नहीं मांग रहे हैं…हम केवल समझौते के अनुसार पानी साझा करना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण का कर्तव्य है कि पानी की उपलब्धता के आधार पर पुदुचेरी, तमिलनाडु जैसे विभिन्न राज्यों के बीच पानी का वितरण किया जाए. उन्हें सहमत होना होगा कि वे इससे इनकार नहीं कर सकते…उनके पास ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है.’’
वहीं, तमिलनाडु के जल संसाधन मंत्री दुरई मुरुगन ने कहा, ‘‘कावेरी जल प्रबंधन समिति की बैठक कल हुई और अगले 15 दिनों के लिए 5000 क्यूसेक पानी छोड़ने का फैसला लिया गया, लेकिन हमें देखना होगा कि कर्नाटक सरकार क्या कहती है…हम निश्चित रूप से लेंगे यह सुनिश्चित करने के उपाय कि तमिलनाडु के किसान प्रभावित न हों…’’
इस बीच, कावेरी नदी का पानी तमिलनाडु को छोड़ने से रोकने की मांग को लेकर मांड्या के श्रीरंगपट्टन शहर में किसानों ने मुंह पर काले टेप बांध कर विरोध प्रदर्शन किया.
कृतिक आपदाओं पर विधायक और कर्नाटक के राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा की अध्यक्षता वाली कैबिनेट उपसमिति ने कर्नाटक में 195 तालुकाओं को सूखाग्रस्त घोषित करने की सिफारिश की है. हालांकि, सरकार जल्द ही अंतिम सूची जारी करेगी.
बीजेपी सांसद लहर सिंह सिरोया ने कहा, ‘‘मेरा रुख हमेशा कन्नड़ समर्थक रहा है. मैं तमिलनाडु सरकार से कहना चाहता हूं कि वो बेंगलुरु और आसपास के इलाकों में रहने वाले तमिलों के बारे में सोचें. उन्हें भी पीने के पानी की समस्या का सामना करना पड़ेगा.’’
कर्नाटक के डिप्टी सीएम और सिंचाई मंत्री डीके शिवकुमार ने बैठक से पहले कहा था,‘‘करीब 98 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फीट) पानी छोड़ा जाना चाहिए था, लेकिन हमारे पास सिर्फ 37 टीएमसी पानी है क्योंकि पानी ही नहीं है. बीते 130 वर्षों में इससे भयाहव स्थिति पैदा नहीं हुई है. यह एक बहुत ही गंभीर सूखा है जिसका हम पिछले 2 महीनों में सामना कर रहे हैं… पिछली बार हमारे पास जो था उससे चार गुना अधिक था…हम बैठक में हर चीज़ पर चर्चा करेंगे..’’
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