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Monday, 25 November, 2024
होमदेशअर्थजगतG20 सम्मेलन के बीच भारत-अमेरिका ने 2012 से लंबित पोल्ट्री आयात पर अंतिम व्यापार विवाद को सुलझा लिया

G20 सम्मेलन के बीच भारत-अमेरिका ने 2012 से लंबित पोल्ट्री आयात पर अंतिम व्यापार विवाद को सुलझा लिया

मुद्दा यह था कि क्या भारत ने एवियन इन्फ्लूएंजा के डर से अमेरिका से पोल्ट्री के आयात पर प्रतिबंध लगाते समय डब्ल्यूटीओ के नियमों का पालन किया था. यह छह अन्य मुद्दों के तहत है जिन्हें जून में सुलझाया गया था.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में चल रहे G20 शिखर सम्मेलन के बीच भारत और अमेरिका विश्व व्यापार संगठन में दर्ज दोनों देशों के बीच अंतिम बकाया व्यापार विवाद को हल करने पर सहमत हुए हैं, जो भारत द्वारा प्रभावित देशों से पोल्ट्री के आयात पर लगाए गए प्रतिबंधों से संबंधित है. यूएस ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव कैथरीन ताई ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की.

ताई ने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच समझौते के हिस्से के रूप में, भारत कुछ अमेरिकी उत्पादों जैसे फ्रोजन टर्की, फ्रोजन बत्तख, ताजा ब्लूबेरी, क्रैनबेरी, फ्रोजन ब्लूबेरी, सूखे ब्लूबेरी आदि पर आयात शुल्क कम करने पर भी सहमत हुआ है.

इस विवाद का समाधान इस साल जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान छह अन्य विवादों के समाधान के बाद हुआ.

इस विवाद का सार यह था कि अमेरिका का मानना था कि पोल्ट्री पर भारत का आयात प्रतिबंध डब्ल्यूटीओ समझौते के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है. और इसपर मध्यस्थता के लिए साल 2012 में डब्ल्यूटीओ से संपर्क किया गया था.

इन प्रावधानों का संबंध इस तथ्य से था कि ऐसे उपाय किसी भी प्रकार के मूल्यांकन के बाद किए जाने चाहिए और साथ ही इसके लिए उचित वैज्ञानिक साक्ष्य पर भी होना चाहिए. साथ ही इसमें अन्य पहलुओं के अलावा किसी विशेष देश के खिलाफ भेदभाव नहीं होने देने का भी प्रावधान है.

संक्षेप में अगर कहे तो अमेरिका ने शिकायत की कि एवियन फ्लू से खुद को बचाने के लिए अमेरिका से पोल्ट्री के आयात पर प्रतिबंध लगाने के भारत का फैसला किसी भी प्रकार के और वैज्ञानिक सबूतों पर आधारित नहीं थे. साथ ही यह बड़ा व्यापार प्रतिबंध था जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं था. इसमें कहा गया कि यह अमेरिका के खिलाफ भेदभावपूर्ण था और भारत का फैसला पारदर्शी नहीं था.

ताई ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा, “यह फैसला डब्ल्यूटीओ विवाद को हल करना और अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में एक महत्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है. इस फैसले के बाद कुछ अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करने से अमेरिकी कृषि उत्पादकों के लिए महत्वपूर्ण बाजार पहुंच बढ़ जाती है.”

उन्होंने कहा, “ये घोषणाएं, जून में प्रधानमंत्री मोदी की राजकीय यात्रा और इस सप्ताह राष्ट्रपति बाइडेन की नई दिल्ली यात्रा के साथ मिलकर, हमारी द्विपक्षीय साझेदारी की ताकत को दिखाती है.”

हालांकि, भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने अभी तक अमेरिका के साथ विवाद के समाधान को लेकर कोई बयान जारी नहीं किया है. दिप्रिंट ने इसकी जानकारी के लिए टेक्स्ट और फ़ोन के ज़रिए मंत्रालय के प्रवक्ता से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला.

कैसे शुरू हुआ विवाद?

लगभग 2001 से एवियन इन्फ्लूएंजा के मद्देनजर पोल्ट्री के आयात को प्रतिबंधित करने के लिए समय-समय पर कदम उठाया जाता रहा है. यह भारत पशुधन आयात अधिनियम, 1898 के तहत आता है, जिसे 2001 में संशोधित किया गया था.

इन फैसलों में से एक नवीनतम की घोषणा जुलाई 2011 में की गई थी, जिसके बाद मार्च 2012 में अमेरिका ने “एवियन से संबंधित चिंताओं के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका से विभिन्न कृषि उत्पादों के आयात पर भारत द्वारा लगाए गए प्रतिबंध” के मुद्दे पर भारत के साथ बातचीत का अनुरोध किया था.

हालांकि, बात नहीं बनी तो अमेरिका ने उसी साल मई में अमेरिका ने इस मामले को देखने के लिए एक विवाद समाधान पैनल बनाने के लिए डब्ल्यूटीओ से अनुरोध किया था. जून 2012 में, WTO के विवाद निपटान बोर्ड की स्थापना की और फरवरी 2013 में पैनल को अंतिम रूप दिया गया.

अगस्त 2013 में पैनल ने कहा कि वह जून 2014 तक अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी करेगा. रिपोर्ट अंततः अक्टूबर 2014 में डब्ल्यूटीओ सदस्यों के बीच प्रसारित की गई.

भारत के कदम से अमेरिका को क्या दिक्कत थी?

अमेरिका का तर्क यह था कि भारत द्वारा की गई कार्रवाई एसपीएस समझौते में कम से कम 11 अनुच्छेदों के खिलाफ थी. साथ ही इसमें टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (जीएटीटी), 1994 का भी उल्लेख नहीं किया गया था. इनमें एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 2.2, 2.3, 3.1, 5.1, 5.2, 5.5, 5.6, 5.7, 6.1, 6.2, और 7 और जीएटीटी के अनुच्छेद I और IX शामिल हैं, लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं हैं.

एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 2.2 और 2.3 और 3.1 उन प्रावधानों से संबंधित हैं कि डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वच्छता और स्वच्छता मानकों को बनाए रखने के लिए वे जो भी कदम उठाते हैं, वे केवल मानव, पशु या पौधों के जीवन या स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक सीमा तक लागू होते हैं. वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है, और इसे “पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण” के बिना बनाए नहीं रखा जा सकता है.

लेख यह भी कहते हैं कि सदस्य देशों को ऐसी कार्रवाइयों को सुनिश्चित करना चाहिए कि “सदस्यों के बीच मनमाने ढंग से या अनुचित तरीके से भेदभाव न हो, जहां एकसमान स्थितियां मौजूद हों” और यह कि उपाय अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित हों.

अनुच्छेद 5 के प्रावधान जोखिम के आकलन और स्वच्छता और पादप स्वच्छता स्थितियों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उपायों के स्तर से संबंधित हैं. इनमें मूल रूप से दोहराया गया है कि उठाए गए कदम मनुष्यों, जानवरों या पौधों के लिए जोखिम के आकलन पर आधारित होने चाहिए, वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित होने चाहिए और अत्यधिक व्यापार-प्रतिबंधात्मक नहीं होने चाहिए.

एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 6 और 7 में कहा गया है कि देशों को मूल देश में प्रदूषण के क्षेत्रीय प्रसार को पहचानना चाहिए. यानी, व्यापार उपायों में इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि संक्रमण किसी देश के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित हो सकता है, पूरे देश में नहीं. उन्होंने कहा कि देशों को अपने फैसलों के बारे में पारदर्शी होना चाहिए.


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भारत ने क्या दिया तर्क?

भारत का मुख्य तर्क यह था कि उसके एवियन इन्फ्लूएंजा उपाय एक अंतरराष्ट्रीय मानक हिसाब से उठाया है- ऑफिस इंटरनेशनल डेस एपिज़ूटीज़ (ओआईई) द्वारा निर्धारित टेरेस्ट्रियल कोड, जिसे अब विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूओएएच) कहा जाता है. भारत ने तर्क दिया कि उसके कार्य टेरेस्ट्रियल कोड के अध्याय 10.4 के प्रावधानों के अनुरूप थे, जो ‘उच्च रोगजनकता वाले एवियन इन्फ्लूएंजा वायरस से संक्रमण’ से संबंधित था.

भारत ने अपनी बात रखते हुए तर्क दिया कि यह एसपीएस समझौते के अन्य प्रावधानों के अनुपालन में भी था, जिसमें वैज्ञानिक आधार और जीएटीटी 1994 की आवश्यकता भी शामिल थी.

इसके अलावा, भारत ने तर्क दिया कि पैनल को उसके द्वारा किए गए वैज्ञानिक जोखिम मूल्यांकन प्रदान करने का कोई दायित्व नहीं था और उसके उपाय एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 2.2 के अनुसार वैज्ञानिक सिद्धांतों और साक्ष्यों पर आधारित थे.

WTO पैनल ने क्या पाया?

अपनी रिपोर्ट में, डब्ल्यूटीओ विवाद समाधान पैनल ने पाया कि भारत के एवियन इन्फ्लूएंजा उपाय एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 3.1 और अनुच्छेद 3.2 के साथ असंगत थे क्योंकि वे ओआईई टेरेस्ट्रियल कोड के अध्याय 10.4 पर आधारित नहीं थे, जो भारत ने तर्क दिया था.

इसके अलावा, पैनल ने कहा कि भारत के उपाय भी एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 5.1, 5.2 और 2.2 के अनुरूप नहीं हैं क्योंकि वे वैज्ञानिक जोखिम मूल्यांकन पर आधारित नहीं थे और साथ ही उन्हें अनुच्छेद 2.3 के उल्लंघन में भी पाया क्योंकि वे “मनमाने ढंग से और अनुचित तरीके से” “सदस्यों के बीच भेदभाव किया गया और इसे इस तरह से लागू किया गया कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लग गया.

फिर, पैनल ने यह भी पाया कि भारत का फैसला आवश्यकता से अधिक व्यापार-प्रतिबंधात्मक था. उन्हें एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 5.6 और 2.2 के उल्लंघन में रखा गया था. इसने यह भी कहा कि उपाय एसपीएस समझौते के अनुच्छेद 6.2 और 6.1 के साथ असंगत थे क्योंकि वे रोग मुक्त क्षेत्रों और कम रोग प्रसार वाले क्षेत्रों को मान्यता नहीं देते थे.

अंत में, पैनल ने पाया कि भारत ने पारदर्शिता आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है क्योंकि यह कई अधिसूचना और अन्य चीजों का पालन करने में विफल रहा है.

संक्षेप में कहे तो डब्ल्यूटीओ के मध्यस्थता पैनल ने पाया कि भारत के द्वारा लाए गए उपाय अंतरराष्ट्रीय मानकों पर आधारित नहीं थे. वह वैज्ञानिक जोखिम मूल्यांकन पर आधारित नहीं थे, मनमाने, अनुचित और भेदभावपूर्ण थे और अन्य सदस्य देशों को चेतावनी देने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए बिना किए गए थे.

भारत ने पैनल के कई निष्कर्षों को चुनौती देते हुए जनवरी 2015 में फैसले के खिलाफ अपील की. हालांकि, WTO की अपीलीय संस्था ने जून 2015 में फैसला सुनाया कि पैनल ने सही फैसला सुनाया था.

जुलाई 2015 में, भारत ने कहा कि वह पैनल के निष्कर्षों के आधार पर डब्ल्यूटीओ विवाद समाधान निकाय द्वारा अनुशंसित परिवर्तनों को लागू करने का इरादा रखता है, लेकिन ऐसा करने के लिए उसे “उचित समय अवधि” की आवश्यकता होगी. उस वर्ष दिसंबर में, अमेरिका और भारत इस बात पर सहमत हुए कि कार्यान्वयन की समय सीमा 19 जून 2016 होगी.

मामला जारी रहा

समय सीमा बीतने के बाद, अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ डीएसबी से भारत को रियायतें निलंबित करने का अनुरोध किया क्योंकि भारत उसकी सिफारिशों को लागू करने में विफल रहा था. भारत ने रियायतों के निलंबन के स्तर पर आपत्ति जताई और कहा कि उसने जुलाई और सितंबर 2016 में न केवल सिफारिशों का अनुपालन किया, बल्कि अमेरिका को और अधिक संतुष्ट करने के लिए उनमें संशोधन भी किया. इस प्रकार इसने मामले पर मध्यस्थता का आह्वान किया.

मध्यस्थ ने कहा कि वह मार्च 2018 तक अपना निर्णय प्रसारित करेगा. हालांकि, हाल ही में फरवरी 2023 में, उसने कहा कि उसने अपने निर्णय को जारी करने को स्थगित करने के लिए पार्टियों के संयुक्त अनुरोध को स्वीकार कर लिया है, जिसे मई 2023 में जारी करने की उम्मीद है.

वह समय सीमा भी बीत गयी. मामला अब सुलझ गया है क्योंकि दोनों देश-भारत और अमेरिका-एक समझौते पर पहुंच गए हैं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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