नई दिल्ली: पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) ने प्रत्येक पर्वतीय क्षेत्र की सटीक वहन क्षमता का निर्धारण करते समय हिल-स्टेशन की क्षमताएं और जरूरी पहलुओं की पहचान करने की आवश्यकता पर जोर दिया है.
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक संक्षिप्त हलफनामे में, मंत्रालय ने बताया कि 13 हिमालयी राज्यों को उनमें से प्रत्येक की वहन क्षमता का आकलन करने के लिए समयबद्ध तरीके से एक एक्शन प्लान बनानी होगी.
मंत्रालय ने कहा कि एमओईएफ के तत्वावधान में काम करने वाले संस्थान जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट हिमालयन एनवायरमेंट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देशों का मूल्यांकन करते समय पालन किया जाना चाहिए.
यह हलफनामा ग्रेटर नोएडा निवासी अशोक कुमार राघव द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में आया है, जिन्होंने कोर्ट को कहा कि पर्यटकों की भारी संख्या के चलते पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में स्थित हिल स्टेशनों का कोई मास्टर प्लान या क्षेत्र के विकास के लिए कोई और प्लान नहीं बनाया गया.
याचिका उस समय दायर की गई थी जब भारी मानसूनी बारिश ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में काफी तबाही मचाई थी. इसके चलते भूस्खलन, सड़कों को काफी नुकसान पहुंचा था और कई इमारत गिरने से 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
याचिकाकर्ता ने पीने के पानी, सीवरेज, बुनियादी ढांचे, पार्किंग, स्वास्थ्य और आपातकालीन सेवाओं की उपलब्धता के मूल्यांकन के लिए भी एक वहन क्षमता निर्धारित करने पर जोर दिया.
हालांकि उन्होंने पूर्वोत्तर सहित बाकी हिल स्टेशनों का भी उल्लेख किया, लेकिन 22 अगस्त को सुनवाई की आखिरी तारीख पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी याचिका केवल हिमालयी राज्यों तक ही सीमित रखने का सुझाव दिया.
याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी.वाई. की अगुवाई वाली बेंच ने ये फैसला लिया. चंद्रचूड़ ने पर्वतीय क्षेत्रों की वहन क्षमता की स्टडी करने के लिए एक पैनल गठित करने की बात कहीं.
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट्टी ने तब पीठ को बताया था कि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के लिए मौजूदा भूमि उपयोग के पैटर्न, जनसंख्या, नागरिक सुविधाओं, पार्किंग, पीने के पानी और अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन जैसी अन्य ढांचागत जरूरतों के बारे में जानकारी देने के लिए एक टेम्पलेट तैयार किया है.
यह भी पढ़ें: अकाल तख्त की आलोचना के कुछ दिनों बाद, हरियाणा गुरुद्वारा पैनल के अध्यक्ष और महासचिव ने दिया इस्तीफा
क्या कहता है हलफनामा
एमओईएफ के हलफनामे में 13 हिमालयी राज्यों में से प्रत्येक में एक समिति के गठन की मांग की गई है, जिसमें कहा गया है कि इसकी अध्यक्षता संबंधित राज्य के मुख्य सचिव को करनी चाहिए.
इस पैनल को जी.बी. पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट द्वारा तैयार दिशानिर्देशों के अनुसार इस पर सभी विषयों को देखते हुए स्टडी की जानी चाहिए.
हलफनामे में कहा गया है कि ये दिशानिर्देश जनवरी 2020 में सभी 13 हिमालयी राज्यों को भेज दिए गए थे. मई 2023 में दोबारा राज्यों को याद दिलाने के लिए इसे भेजा गया, जिसमें राज्यों को इसके कार्यान्वयन की निगरानी करने के लिए कहा गया था.
जी.बी. पंत संस्थान के अनुभव और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए, एमओईएफ प्रत्येक हिमालयी राज्य द्वारा किए गए वहन क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए इस संस्थान के निदेशक की अध्यक्षता में एक तकनीकी समिति बनाना चाहता है.
हलफनामे में कहा गया है कि संस्थान मसूरी, मनाली और मैक्लोडगंज के लिए वहन क्षमता का अध्ययन करने में शामिल रहा है.
केंद्रीय मंत्रालय के सुझावों के अनुसार, तकनीकी समिति में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, भारत रिमोट सेंसिंग संस्थान, राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, वानिकी अनुसंधान और शिक्षा, भारतीय वन्यजीव संस्थान और योजना और वास्तुकला स्कूल के प्रमुखों को शामिल किया जाना चाहिए.
हलफनामे में की गई सिफारिशों में कहा गया है कि इसमें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ-साथ केंद्रीय भूजल बोर्ड के सदस्य सचिव को भी शामिल किया जाना चाहिए.
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: असम में पार्टी नेताओं ने CM की कार्यशैली पर उठाए सवाल तो BJP नेतृत्व ने हिमंत से कहा: अपना घर संभालिए