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Friday, 22 November, 2024
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कांग्रेस ने CWC में सुधार किया है लेकिन उनमें से 1/4 ने कभी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं जीता

चुनाव आयोग के आंकड़ों पर दिप्रिंट के किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा गठित सीडब्ल्यूसी में आधे लोग पिछला चुनाव हार गए थे, जो उन्होंने राज्य या लोकसभा स्तर पर लड़ा था.

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नई दिल्ली: नवगठित कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के 84 सदस्यों और आमंत्रित सदस्यों में से एक चौथाई से अधिक ने या तो कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है या कभी नहीं जीता है.

इसके अलावा, सीडब्ल्यूसी के लगभग आधे लोग पिछला चुनाव हार गए थे, जो उन्होंने राज्य या लोकसभा स्तर पर लड़ा था, चुनाव आयोग (ईसी) और अशोक विश्वविद्यालय के लोक ढाबा – भारतीय चुनाव परिणामों के डेटा को दिप्रिंट ने विश्लेषण कर पता लगाया है.

उदाहरण के लिए, पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री और सीडब्ल्यूसी के स्थायी सदस्य ए.के. एंटनी को लीजिए उन्होंने अपना आखिरी चुनाव 2001 में, केरल विधानसभा चुनाव में जीता था. तब से, उन्हें 2005 और 2022 के बीच कई बार राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया. उन्होंने कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा.

एक अन्य पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीडब्ल्यूसी के स्थायी सदस्य, आनंद शर्मा ने अपने जीवन में 1982 का हिमाचल प्रदेश चुनाव,, वो भी वह भाजपा के दौलत राम से हार गए थे. सिर्फ एक ही चुनाव लड़ा है. उन्होंने कभी भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है और उन्हें कई बार राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया है.

खराब चुनावी रिकॉर्ड वाले तीसरे पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीडब्ल्यूसी के स्थायी आमंत्रित सदस्य टी. सुब्बारामी रेड्डी हैं. आंध्र प्रदेश के व्यवसायी ने अपना आखिरी चुनाव 1998 में जीता था, जब वह विशाखापत्तनम से लोकसभा के लिए चुने गए थे. 1999 के लोकसभा चुनाव में वह हार गए, लेकिन उसके बाद तीन बार उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया.

दूसरा मामला अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के झारखंड के प्रभारी महासचिव और सीडब्ल्यूसी के स्थायी सदस्य अविनाश पांडे का है, जिन्होंने आखिरी बार 1985 के महाराष्ट्र चुनावों के दौरान चुनावी जीत हासिल की थी.

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों की पार्टी प्रभारी रजनी पाटिल ने आखिरी बार 1996 में चुनाव जीता था, और वह भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर, जब वह बीड से लोकसभा के लिए चुनी गईं थीं.

कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस महीने की शुरुआत में पार्टी की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था सीडब्ल्यूसी का पुनर्गठन किया. 84 लोगों में 39 स्थायी सदस्य, 18 स्थायी आमंत्रित सदस्य, 14 राज्य और चार संगठनात्मक प्रभारी और नौ विशेष आमंत्रित सदस्य हैं.

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विपक्षी दल पर कटाक्ष किया है और दावा किया है कि सीडब्ल्यूसी के कई सदस्यों और आमंत्रितों का खराब मतदान रिकॉर्ड इस तथ्य का प्रतिबिंब है कि कांग्रेस के पास पर्याप्त निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं.

लेकिन सीडब्ल्यूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य अलका लांबा के अनुसार, कांग्रेस की शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था एक समावेशी संस्था है, जिसमें सभी समुदायों और उम्र के लोगों का प्रतिनिधित्व है, जहां चुनाव में प्रदर्शन शामिल करने के लिए आवश्यक मानदंड नहीं है.

लांबा ने कहा, “2019 [पिछले लोकसभा चुनाव] के बाद से, जो लोग विभिन्न राज्यों में लड़ रहे हैं, उन्हें लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए चुना गया है. इस पूरे समय एक प्रकार का परीक्षण चल रहा था. उदाहरण के लिए, मुझे पंजाब संचार प्रमुख और फिर गोवा संचार प्रमुख बनाया गया. तब मैं तीन महीने तक हिमाचल में थी. हमें असाइनमेंट दिए गए थे. ”

कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि सीडब्ल्यूसी केवल उन लोगों से नहीं बनी है जो चुनाव लड़ते हैं – इसमें उन लोगों की भी जरूरत है जो दूसरों को चुनाव लड़वा सकें.

“जब आप चुनाव लड़ते हैं, तो कोई प्रचार अभियान देखेगा, कोई घोषणापत्र देखेगा, कोई लॉजिस्टिक्स देखेगा और कोई वित्त का ध्यान रखेगा. कुछ लोग हैं जो लड़ेंगे और फिर कुछ ऐसे भी हैं जो उन्हें लड़वाएंगे.”

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि यह कोई मुद्दा होना चाहिए अगर किसी ने चुनाव नहीं लड़ा और (फिर भी) सीडब्ल्यूसी तक पहुंच गया. जो बात मायने रखती है वह है समाज के लिए योगदान की मात्रा और पार्टी के प्रति वफादारी.”

दिप्रिंट ने फोन पर टिप्पणी के लिए कांग्रेस प्रवक्ता और पार्टी संचार प्रभारी जयराम रमेश से भी संपर्क किया. प्रतिक्रिया मिलते ही लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.

इस बीच, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने आरोप लगाया कि कांग्रेस की ”मशीनरी के पास चुनाव जीतने की गुंजाइश नहीं है” और यह सीडब्ल्यूसी में इतने सारे नेताओं की मौजूदगी से पता चलता है, जिन्होंने या तो अपने राजनीतिक जीवन में कभी चुनाव नहीं लड़ा या जीता है.

“उनके पास ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो चुनाव हार गए हैं. तो फिर उन्हें चुनाव जीतने वाले लोग कहां से मिलेंगे? इसलिए उनके पास केवल वही लोग हैं जो चुनाव हार गए हैं (कार्यसमिति में).”

उन्होंने कहा: “उनके पास अपनी समिति में रखने के लिए पर्याप्त निर्वाचित लोग नहीं हैं और यह कुछ समय तक जारी रहेगा. जिस तरह की उनकी नीतियां हैं, उनके लिए चुनाव जीतना संभव नहीं है.”

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कार्यसमिति में उन लोगों की मौजूदगी कांग्रेस के लिए चिंता का कारण नहीं होनी चाहिए, जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा या अच्छा प्रदर्शन नहीं किया .

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के संजय कुमार ने कहा, “कार्य समिति कांग्रेस की सर्वोच्च संस्था है जो कई चीजों पर विचार करने के लिए है, न कि केवल यह तय करने के लिए कि चुनाव कैसे जीता जाए. इसे पार्टी फंड, पार्टी संगठन, पार्टी संरचना और अन्य चीजों को देखना होगा. ”

उन्होंने कहा कि समिति की संरचना को राज्य प्रतिनिधित्व, जाति प्रतिनिधित्व और पार्टी सदस्यों के अनुभव के संदर्भ में सीनियर और जूनिक के संतुलन के नजरिए से भी देखा जाना चाहिए.

कांग्रेस में कार्य समिति और भाजपा में संसदीय बोर्ड जैसे शीर्ष निर्णय लेने वाले निकायों की प्रासंगिकता पर बोलते हुए, कुमार ने कहा, “(वे) केवल इस हद तक प्रासंगिक हैं कि पार्टी लोकतांत्रिक तरीके से काम कर रही है. मुझे यकीन नहीं है कि जब भी भाजपा का संसदीय बोर्ड या कांग्रेस कार्य समिति की बैठक होती है तो ऐसी बैठकों में कितना लोकतांत्रिक निर्णय लिया जाता है.

पॉलिटिकल साइंटिस्ट ने आगे कहा: “ऐसी समितियां काफी हद तक काल्पनिक हैं, हालांकि कभी-कभी वे निर्णय लेने में मदद करती हैं.”


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जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा

दिप्रिंट ने सभी 84 सीडब्ल्यूसी सदस्यों और आमंत्रितों के चुनाव इतिहास के लिए ईसी और अशोक विश्वविद्यालय लोक ढाबा डेटा को देखा और पाया कि 84 में से 22 जो सीडब्ल्यूसी का हिस्सा हैं, उन्होंने कभी भी आम या विधानसभा चुनाव नहीं जीता है. जबकि इन 22 में से 15 ने कभी भी विधानसभा या आम चुनाव नहीं लड़ा, अन्य सात ने जो भी चुनाव लड़ा उनमें से कोई भी नहीं जीता.

Graphic: Prajna Ghosh | ThePrint

उन लोगों में से जिन्होंने कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है, उनमें प्रियंका गांधी वाड्रा भी शामिल हैं, जिन्होंने पहली बार 2019 में उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव के रूप में सीडब्ल्यूसी में प्रवेश किया था. वह सीडब्ल्यूसी की स्थायी सदस्य हैं.

चार अन्य स्थायी सदस्य जिन्होंने कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा, उनमें तीन मौजूदा राज्यसभा सांसद शामिल हैं – पार्टी महासचिव संचार प्रभारी जयराम रमेश, मुख्य सचेतक सैयद नसीर हुसैन और सांसद अभिषेक मनु सिंघवी.

रमेश और सिंघवी पार्टी के लिए बौद्धिक संपदा रहे हैं, कथित तौर पर सिंघवी 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की सत्ता में वापसी का श्रेय देने वाले मुख्य रणनीतिकारों में से एक थे.

पार्टी सूत्रों के अनुसार, खरगे के करीबी माने जाने वाले हुसैन पिछले साल खरगे के पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद से कांग्रेस में प्रमुखता से उभरे हैं.

चौथे हैं हरियाणा और दिल्ली के प्रभारी दीपक बाबरिया, जो स्थायी सदस्य हैं और प्रभारी नहीं रहने पर भी इस पद पर बने रहेंगे.

सीडब्ल्यूसी के अन्य सदस्य जिन्होंने कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है, उनमें के. राजू, “राहुल गांधी के करीबी सहयोगी”, दलित नेता और सीडब्ल्यूसी के स्थायी आमंत्रित सदस्य, कांग्रेस का मीडिया एवं प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा, एक विशेष आमंत्रित सदस्य हैं भी इसमें शामिल हैं.

विभिन्न राज्यों और निकायों के चौदह कांग्रेस प्रभारियों में से चार, जो उस क्षमता में सीडब्ल्यूसी के सदस्य हैं, ने भी कोई लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है.

भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बी.वी., भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) के अध्यक्ष नीरज कुंदन, महिला कांग्रेस प्रमुख नेट्टा डिसूजा और कांग्रेस सेवा दल के अध्यक्ष लालजी देसाई, अपने पदों के आधार पर सीडब्ल्यूसी का हिस्सा हैं. चारों में से किसी ने भी कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा.


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जिन्होंने चुनाव तो लड़ा, लेकिन कभी जीत नहीं पाए

इस सूची में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल हैं. उन्होंने 1999 में दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा में प्रवेश करने का प्रयास किया लेकिन भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा से 30,000 वोटों से हार गए. वह सीडब्ल्यूसी के स्थायी सदस्य हैं.

आनंद शर्मा, जिनका उल्लेख ऊपर किया गया है, एक और उदाहरण हैं.

इसके बाद सीडब्ल्यूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य और प्रमुख कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत हैं, जिन्होंने 2019 में अपना पहला चुनाव यूपी की महाराजगंज लोकसभा सीट से लड़ा, लेकिन भाजपा के पंकज चौधरी से हार गईं.

इसी तरह 36 वर्षीय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के टिकट पर बेगुसराय से चुनावी शुरुआत की, लेकिन भाजपा के गिरिराज सिंह से हार गए. वह 2021 में कांग्रेस में शामिल हुए और एनएसयूआई प्रभारी के रूप में सीडब्ल्यूसी का हिस्सा हैं.

इस श्रेणी में अन्य तीन में केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार में पूर्व मंत्री और गांधी परिवार की करीबी सहयोगी अंबिका सोनी शामिल हैं, जिन्होंने 2014 में आनंदपुर साहिब सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार प्रेम सिंह चंदूमाजरा से हार गए थे. . वह सीडब्ल्यूसी की स्थायी सदस्य हैं.

सीडब्ल्यूसी के स्थायी आमंत्रित सदस्य बी.के. हरिप्रसाद और गिरीश राया चोडनकर ने 2019 के लोकसभा के दौरान चुनावी शुरुआत की – हरिप्रसाद बेंगलुरु (दक्षिण) से और चोडनकर उत्तरी गोवा से, लेकिन क्रमशः भाजपा के तेजस्वी सूर्या और श्रीपाद येसो नाइक से हार गए.

जिनकी एकमात्र चुनावी जीत दूसरी पार्टी में रहते हुए हुई

सीडब्ल्यूसी के सदस्यों और आमंत्रितों में से पांच, उनकी एकमात्र लोकसभा या विधानसभा चुनाव जीत किसी अन्य पार्टी के टिकट पर और मैदान में तत्कालीन कांग्रेस उम्मीदवार की कीमत पर हुई थी.

तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों सिक्किम, त्रिपुरा और नागालैंड के एआईसीसी प्रभारी अजॉय कुमार ने 2011 के उपचुनाव में झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जमशेदपुर लोकसभा सीट जीती. चुनाव मैदान में उतरे कांग्रेस उम्मीदवार बन्ना गुप्ता पांचवें स्थान पर रहे.

कुमार 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद ही कांग्रेस में शामिल हुए और 2019 में उन्हें मैदान में नहीं उतारा गया. 2020 में कांग्रेस में लौटने से पहले, उन्होंने एक साल के लिए आम आदमी पार्टी (आप) में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी थी.

छात्र जीवन से ही कांग्रेस से जुड़ी अलका लांबा 2013 और 2019 के बीच कुछ समय के लिए आप में शामिल हुईं. उन्होंने एकमात्र चुनाव 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप के टिकट पर जीता था, जिसमें उन्होंने कांग्रेस के प्रह्लाद सिंह साहनी को हराया था.

लांबा कांग्रेस के टिकट पर राष्ट्रीय राजधानी में 2020 का चुनाव हार गईं.

इसी तरह, सीडब्ल्यूसी के स्थायी आमंत्रित सदस्य तारिक हमीद कर्रा ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री और तत्कालीन कांग्रेस सहयोगी फारूक अब्दुल्ला को हराकर श्रीनगर से 2014 का लोकसभा चुनाव जीता था.

मोहन प्रकाश ने 1977, 1980 और 1990 में चार अलग-अलग पार्टियों से राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 1985 का चुनाव लोकदल के टिकट पर जीते. वह एकमात्र मौका था जब उन्होंने लोकसभा या विधानसभा चुनाव जीता था.

उन्होंने गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कांग्रेस प्रभारी के रूप में कार्य किया है, लेकिन पार्टी उनके प्रभार वाले राज्यों में सभी चुनाव हार गई.

वह वर्तमान में पार्टी प्रवक्ता और सीडब्ल्यूसी में स्थायी आमंत्रित सदस्य हैं.

सीडब्ल्यूसी का लगभग एक चौथाई हिस्सा 2019 का चुनाव हार गया

कांग्रेस अध्यक्ष खरगे उन 24 सीडब्ल्यूसी सदस्यों और आमंत्रित सदस्यों की सूची में सबसे आगे हैं जो 2019 का लोकसभा चुनाव लड़े और हार गए.

पिछला आम चुनाव खरगे के उत्कृष्ट चुनावी रिकॉर्ड में एकमात्र हार थी. वह 1972 से 2014 के बीच 11 विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह पहली हार थी.

खरगे 2019 का लोकसभा चुनाव गुलबर्गा (कर्नाटक) से हार गए. यह सीट भाजपा के उमेश जी. जाधव ने जीती थी.

Graphic: Prajna Ghosh | ThePrint

खरगे के अलावा, 84 सीडब्ल्यूसी सदस्यों और आमंत्रित सदस्यों में से 23 अन्य हैं जो 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए. इनमें से आठ पिछले 2014 के लोकसभा चुनाव में हार भी गए थे.

दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, अशोक चव्हाण, कुमारी शैलजा, जगदीश ठाकोर और गुलाम अहमद मीर कुछ स्थायी सदस्य हैं जो 2019 में हार गए

स्थायी आमंत्रित सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली और हरीश रावत भी 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बी.एन. से हार गए. कर्नाटक के चिक्काबल्लापुर में बाचे गौड़ा और नैनीताल-उधमसिंह नगर में भाजपा के अजय भट्ट क्रमश: इसमें शामिल हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव हारने वाले अन्य स्थायी आमंत्रित सदस्यों में दीपेंद्र सिंह हुडा, गिरीश राया चोडनकर और चंद्रकांत हंडोरे शामिल हैं.

पिछले आम चुनाव में हारने वाले दो राज्य/कांग्रेस निकाय प्रभारी में माणिकराव ठाकरे और कन्हैया कुमार शामिल हैं. विशेष आमंत्रित सदस्यों में सुप्रिया श्रीनेत और वामशी चंद रेड्डी 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए.

सीडब्ल्यूसी के पांच स्थायी सदस्य 2019 और 2014 में पिछले दो आम चुनाव हार गए. इसमें मीरा कुमार, अजय माकन, जितेंद्र सिंह, सलमान खुर्शीद और दीपा दास मुंशी शामिल हैं.

स्थायी आमंत्रित सदस्य मीनाक्षी नटराजन, भक्त चरण दास और पवन कुमार बंसल भी 2014 और 2019 दोनों में हार गए.

हालांकि, सीडब्ल्यूसी केवल ख़राब चुनावी रिकॉर्ड वाले लोगों से नहीं बनी है. इसके 84 सदस्यों और आमंत्रितों में पार्टी के 51 लोकसभा सांसदों में से 10 शामिल हैं, जो 2019 के लोकसभा चुनावों में विजयी होकर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की लोकप्रियता का रुख मोड़ने में कामयाब रहे थे.

इनमें सोनिया और राहुल गांधी, अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, गौरव गोगोई, प्रतिभा सिंह, मनीष तिवारी, कोडिकुन्निल सुरेश, ए चेल्लाकुमार और मनिकम टैगोर शामिल हैं.

(अनुवाद: पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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