नई दिल्ली: खोजी पत्रकारिता के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) ने डिटेल्स के साथ एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें बताया गया है कि अडानी परिवार के साथ ‘निकट रूप से जुड़े’ व्यक्ति स्टॉक मूल्य के हेरफेर में शामिल थे, जो किसी कंपनी के प्रमोटर्स द्वारा भारत में स्टॉक होल्डिंग के नियमों का उल्लंघन है. यह चल रही अडानी-हिंडनबर्ग कहानी में एक महत्वपूर्ण डेवलेपमेंट है.
हालांकि, अडाणी समूह ने एक बयान में कहा है कि वह “इन रिपोर्ट्स को पूरी तरह से खारिज करता है” और उन्हें “फिर से गढ़ा गया आरोप” कहा है जो कि यह इस साल फरवरी में अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा जारी रिपोर्ट के संदर्भ में था. इस रिपोर्ट में अडाणी समूह के ऊपर “स्टॉक में हेरफेर और अकाउंटिंग की धोखाधड़ी” का आरोप लगाया गया था.
गौरतलब है कि जबकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडाणी कंपनियों के उन निवेशकों का नाम नहीं था, जिन्होंने नियमों के कथित उल्लंघन में सहायता की हो, गुरुवार को प्रकाशित ओसीसीआरपी रिपोर्ट में कम से कम दो ऐसे निवेशकों का विवरण दिया गया है, जिनके बारे में दावा किया गया था कि वे अडानी समूह से संबंधित थे और कथित तौर पर अडाणी ग्रुप में निवेश किया था.
यदि यह सच है, तो इन निवेशकों के अडाणी कंपनियों के प्रमोटरों के साथ जुड़ाव का मतलब यह होगा कि अडाणी ग्रुप ने स्टॉक मूल्य के हेरफेर और न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों के संबंध में भारत के बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा निर्धारित नियमों को तोड़ दिया है.
सोरोस – और उनकी ‘भारत विरोधी गतिविधियों’ के बारे में आक्षेपों से भर गया. यहां तक कि अदाणी समूह ने अपने बयान में ओसीसीआरपी के दावों को “बेबुनियाद हिंडनबर्ग रिपोर्ट को पुनर्जीवित करने” के लिए “सोरोस-फंडेड हितों द्वारा एक और ठोस प्रयास” करार दिया.
ओसीसीआरपी के सह-संस्थापक ड्र्यू सुलिवन ने इन धारणाओं को दूर करने के प्रयास में एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा कि ओसीसीआरपी यह सुनिश्चित करने के लिए सभी डोनर्स के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करे कि उसके एडिटर्स के पास “टोटल एडिटोरियल कंट्रोल” है.
यह ध्यान देने योग्य है कि इस साल मई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने पाया कि अडाणी समूह की कंपनियों ने अतीत में कुछ संबंधित-पार्टी लेनदेन के संबंध में कोई कानून या नियम नहीं तोड़ा था, जैसा कि उस समय के कानून ने उन्हें अवैध नहीं माना था.
सेबी भी अडाणी ग्रुप में अपनी जांच कर रही है, और कथित तौर पर 25 अगस्त को शीर्ष अदालत को बताया कि उसने अदानी कंपनियों से जुड़े 24 लेन-देन की जांच की है, जिनमें से ’22 अंतिम प्रकृति के हैं’, और वह जांच के नतीजे के आधार पर ‘उचित कार्रवाई’ करेगी.
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‘अज्ञात निवेशक’ और फ्री-फ़्लोटिंग शेयर
OCCRP ने कहा कि उसे “कई टैक्स हेवन्स से फ़ाइलें, बैंक रिकॉर्ड और इंटरनल अडाणी ग्रुप ईमेल” सहित विशेष दस्तावेज़ प्राप्त हुए हैं, जिसे उसने द गार्डियन और फाइनेंशियल टाइम्स के साथ साझा किया है – दोनों ने इस मामले पर अलग-अलग रिपोर्ट भी प्रकाशित की हैं.
ओसीसीआरपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “ये दस्तावेज़, जिन्हें कई देशों के अडाणी ग्रुप के व्यवसाय और सार्वजनिक रिकॉर्ड के प्रत्यक्ष ज्ञान वाले लोगों द्वारा पुष्टि की गई है, दिखाते हैं कि कैसे मॉरीशस के द्वीप राष्ट्र में स्थित अपारदर्शी इन्वेस्मेंट फंड के माध्यम से सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाले अडाणी स्टॉक में करोड़ों डॉलर का निवेश किया गया था.”
रिपोर्ट में कहा गया है, “कम से कम दो मामलों में – अडाणी स्टॉक होल्डिंग्स का प्रतिनिधित्व करते हुए, जो एक समय में $430 मिलियन तक पहुंच गया था – रहस्यमय या अज्ञात निवेशकों ने समूह के बहुसंख्यक शेयरधारकों अडाणी फैमिली के साथ व्यापक रूप से संबंध बताए हैं.”
रिपोर्ट में नामित दो इन्वेस्टर संयुक्त अरब अमीरात से नासिर अली शाबान अहली और ताइवान से चांग चुंग-लिंग हैं. ओसीसीआरपी का कहना है कि इन दोनों व्यवसायियों के “(अडानी) परिवार के साथ लंबे समय से व्यापारिक संबंध हैं” और उन्होंने अडाणी ग्रुप की कंपनियों और समूह के अध्यक्ष गौतम अडाणी के बड़े भाई विनोद अडाणी से जुड़ी कंपनियों में निदेशक और शेयरधारक के रूप में भी काम किया है.
ओसीसीआरपी रिपोर्ट में कहा गया है कि अडाणी कंपनियों में निवेश, लिंगो इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह में), चांग के स्वामित्व में, गल्फ एरिज ट्रेडिंग एफजेडई (यूएई में), अहली के स्वामित्व में, मिड ईस्ट ओशन ट्रेड (मॉरीशस में) द्वारा किया गया था, जिसमें अहली लाभकारी मालिक या बेनिफिशियल ओनर था, और गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह में), का अहली “नियंत्रक व्यक्ति” था.
कहा गया कि जनता के लिए उपलब्ध शेयरों की खरीद के रूप में निवेश 2013 और 2018 के बीच चार अडाणी कंपनियों में हुआ था.
रिपोर्ट में कहा गया है, “उनके बीच, जून 2016 में अपने इन्वेस्टमेंट के चरम पर, दोनों फंड्स के पास अडाणी समूह की चार कंपनियों के फ्री-फ्लोटिंग शेयर 8 से लेकर लगभग 14 प्रतिशत तक थे: अडाणी पावर, अडाणी एंटरप्राइजेज, अडाणी पोर्ट्स और अडाणी ट्रांसमिशन.”
समूह की प्रमुख कंपनी अडाणी एंटरप्राइजेज के शेयर मूल्य में गुरुवार के ट्रेडिंग के वक्त के अंत तक 3.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई – जो ओसीसीआरपी रिपोर्ट में नामित चार कंपनियों में सबसे बड़ी गिरावट है. इसके बाद अडाणी पोर्ट्स एंड एसईजेड (-3.54 प्रतिशत), अडाणी पावर (-3.18 प्रतिशत), और अडाणी ट्रांसमिशन (इस साल जुलाई में बदला हुआ अडाणी एनर्जी सॉल्यूशंस) का स्थान रहा, जिसके शेयर की कीमत में 3.15 प्रतिशत की गिरावट देखी गई.
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अडाणी परिवार से ‘लिंक’, ‘गलत काम’ का आधार
केवल यह सिद्ध करना कि ये निवेश हुआ था, किसी भी गलत काम को निश्चित रूप से साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन ओसीसीआरपी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चांग और अहली दोनों अडाणी परिवार के साथ निकटता से जुड़े हुए थे, जो सेबी के नियमों का संभावित उल्लंघन हो सकता है.
सेबी के न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियम कहते हैं कि सूचीबद्ध रहने के लिए पात्र होने के लिए सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी के पास कम से कम 25 प्रतिशत शेयर जनता के पास होने चाहिए – न कि कंपनी के प्रमोटर के पास. यानी अगर किसी लिस्टेड कंपनी के प्रमोटर्स के पास उस कंपनी के 75 फीसदी से ज्यादा स्टॉक हैं तो कंपनी को डीलिस्ट कर दिया जाएगा.
यदि ओसीसीआरपी के आरोप – कि चांग और अहली अडाणी परिवार के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे – सच साबित होते हैं, तो इसका मतलब यह होगा कि ‘अंदरूनी सूत्र’ – प्रमोटर या उनके सहयोगी – अडाणी पावर, अडाणी एंटरप्राइजेज, अडाणी पोर्ट्स और अदानी ट्रांसमिशन के 75 प्रतिशत से अधिक के मालिक हैं.
इसके अलावा, उपलब्ध स्टॉक की आपूर्ति को अवैध रूप से नियंत्रित करने से, इस तरह के हेरफेर से स्टॉक की कृत्रिम कमी के कारण कंपनियों के स्टॉक की कीमतों में भी वृद्धि होगी.
OCCRP का कहना है कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध ऐसी बहुत सी जानकारी है जो दोनों व्यवसायियों को अडाणी समूह से जोड़ती है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “चांग और अहली के अडाणी परिवार से संबंध पिछले कुछ वर्षों में व्यापक रूप से सामने आए हैं.” इसमें कहा गया है, “अडाणी समूह द्वारा कथित गलत कामों की दो अलग-अलग सरकारी जांचों में इन लोगों को परिवार से जोड़ा गया था. अंततः दोनों मामले खारिज कर दिए गए,”
पहला मामला 2007 में राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) द्वारा कथित तौर पर अवैध हीरा व्यापार योजना की जांच से संबंधित था. ओसीसीआरपी के अनुसार, एक डीआरआई रिपोर्ट में चांग को कथित योजना में शामिल तीन अडाणी कंपनियों के निदेशक के रूप में नामित किया गया था, जबकि अहली ने कथित तौर पर “एक ट्रेडिंग फर्म का प्रतिनिधित्व किया था जो इसमें शामिल थी”.
ओसीसीआरपी ने कहा, “मामले के एक पार्ट के रूप में, यह पता चला कि चांग ने अडाणी समूह के अध्यक्ष गौतम अडाणी के लो-प्रोफाइल बड़े भाई विनोद अडाणी के साथ सिंगापुर का आवासीय पता साझा किया था.”
दूसरा मामला कथित ओवर-इनवॉइसिंग घोटाले से संबंधित था जो 2014 में एक अलग डीआरआई जांच के माध्यम से सामने आया था.
OCCRP के अनुसार, DRI ने उस समय दावा किया था कि अडाणी कंपनियां “आयातित बिजली उत्पादन उपकरणों के लिए अपनी विदेशी सहायक कंपनी को 1 बिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान करके अवैध रूप से भारत से पैसा निकाल रही थीं”.
ओसीसीआरपी ने कहा, “यहां भी, चांग और अहली के नाम सामने आए,” उन्होंने कहा, अलग-अलग समय पर, “दोनों व्यक्ति दो कंपनियों – एक यूएई में और एक मॉरीशस में – जो कि स्कीम से मिली आय को संभालती थी, उसके निदेशक थे, और जो बाद में विनोद अडाणी के स्वामित्व में थी”
जबकि OCCRP का कहना है कि उसके पास यह स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि चांग और अहली द्वारा अपने अडाणी समूह के निवेश के लिए कथित तौर पर इस्तेमाल किया गया धन अडाणी परिवार से आया था – चूंकि धन का स्रोत अज्ञात है – पर इसने दावा किया कि उसके पास ऐसे दस्तावेज़ हैं जो दिखाते हैं कि विनोद अडाणी ने “अपने इन्वेस्टमेंट के लिए उसी मॉरीशस फंड का उपयोग किया था.”
‘समय संदिग्ध और दुर्भावनापूर्ण’: अडाणी समूह
हालांकि, अडाणी समूह ने कहा कि ये पिछले मामले जांच एजेंसियों द्वारा बंद कर दिए गए थे. इसमें कहा गया है कि एक स्वतंत्र निर्णायक प्राधिकारी और एक अपीलीय न्यायाधिकरण दोनों ने पुष्टि की थी कि कोई ओवर-वैल्यूएशन नहीं था और लेन-देन लागू कानून के अनुसार थे.
अडाणी समूह द्वारा गुरुवार को दिए गए बयान में कहा गया, “मामले को मार्च 2023 में अंतिम रूप मिला जब भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया.”
इसमें कहा गया है, “स्पष्ट रूप से, चूंकि कोई ओवर-वैल्यूएशन नहीं था, इसलिए धन के हस्तांतरण पर इन आरोपों की कोई प्रासंगिकता या आधार नहीं है.”
प्रतिक्रिया में यह भी उल्लेख किया गया है कि सेबी इस मामले की जांच कर रही है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति को न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों के उल्लंघन या स्टॉक मूल्य में हेरफेर का कोई सबूत नहीं मिला है.
बयान में कहा गया है, “इन प्रयासों का उद्देश्य अन्य बातों के साथ-साथ हमारे स्टॉक की कीमतों को कम करके मुनाफा कमाना है और इन शॉर्ट सेलर्स की जांच विभिन्न अधिकारियों द्वारा की जा रही है.” इसमें कहा गया है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट और सेबी इस मामले की निगरानी कर रहे हैं, इसलिए चल रही नियामक प्रक्रिया का सम्मान करना महत्वपूर्ण है.
इसमें कहा गया है, “इन तथ्यों के आलोक में, इन समाचार रिपोर्टों का समय संदिग्ध, शरारतपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण है – और हम इन रिपोर्टों को पूरी तरह से खारिज करते हैं.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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