नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति के समुचित कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए शुक्रवार को आदेश पारित किया जाएगा, जिसे हिंसा प्रभावित मणिपुर के राहत कार्यों, पुनर्वास, मुआवजे और इलाज की निगरानी के लिए स्थापित किया गया था.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि समिति ने शीर्ष अदालत के समक्ष तीन रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं.
मणिपुर हिंसा मामलों की सुनवाई कर रही पीठ ने कहा कि प्रशासनिक सहायता, समिति के वित्तीय खर्चों को पूरा करने आदि के लिए कुछ प्रक्रियात्मक निर्देश जारी करने की ज़रूरत है. इसमें कहा गया कि मामले में समिति की ओर से दाखिल तीन रिपोर्ट अधिवक्ताओं को दी जाएं.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मणिपुर में जातीय हिंसा के पीड़ितों ने हिंसा के दौरान अपने दस्तावेज़ खो दिए हैं और उन्हें फिर से जारी करना होगा. इसमें आगे बताया गया है कि मणिपुर पीड़ित मुआवजा योजना को अपडेट किया जा सकता है और डोमेन विशेषज्ञों की नियुक्ति के लिए समिति का प्रस्ताव रखा जा सकता है.
रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद, पीठ ने यह भी पाया कि समिति ने मुआवजे, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल, राहत शिविर, डेटा रिपोर्टिंग और निगरानी आदि जैसे कई प्रमुखों के तहत मामलों को विभाजित किया था. पीठ ने मामले को निर्देश के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध किया.
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों के पूर्व न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति की स्थापना की थी – इसमें जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल, बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति शालिनी फंसलकर जोशी और दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आशा मेनन शामिल हैं.
गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
राज्य में मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे अधिकतर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.
इस बीच, मणिपुर में मंत्रिमंडल के राज्यपाल अनुसुइया उइके से 21 अगस्त से विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश करने के बावजूद सोमवार को सदन की बैठक नहीं हुई, क्योंकि राज भवन की तरफ से इस संबंध में अभी तक ‘कोई अधिसूचना’ जारी नहीं किए जाने के कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है.
अधिकारियों ने बताया कि घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है, जब पूर्वोत्तर राज्य में जारी हिंसा के बीच विभिन्न दलों से जुड़े कुकी समुदाय के 10 विधायकों ने विधानसभा सत्र में शामिल होने में असमर्थता जताई है.
एक अधिकारी ने कहा, “एक सामान्य विधानसभा सत्र के लिए, सत्र की शुरुआत से 15 दिन पहले अधिसूचना जारी किए जाने की जरूरत पड़ती है. राज्यपाल के कार्यालय की तरफ से फिलहाल ऐसी कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई है.”
राज्य सरकार ने इस महीने की शुरुआत में हुई मंत्रिमंडल की बैठक के बाद राज्यपाल से विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश की थी.
15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि “देश मणिपुर के साथ” है.
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