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Wednesday, 20 November, 2024
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भारत के तीन पूर्व सेवा प्रमुखों ने ताइवान में बंद कमरे में बैठक की, यह है इनसाइड स्टोरी

राकेश कुमार सिंह भदौरिया (आईएएफ), करमबीर सिंह (नौसेना), और मनोज मुकुंद नरवणे (सेना) को ताइवान के विदेश मंत्रालय द्वारा केटागलन फोरम में आमंत्रित किया गया था.

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भारत के तीन पूर्व सेवा प्रमुखों की ताइवान यात्रा की अंदरूनी कहानी. सरकारी संस्थान ताइवान आकस्मिकता के लिए एक सिनैरियो प्लानिंग कर रहे हैं. बीजिंग की इकोनॉमिक डिफ्लेशन का संकट गहरा गया है. बाइडेन प्रशासन ने निवेश प्रतिबंध लगाया. चाइनास्कोप आपके लिए तीन पूर्व प्रमुखों की ताइवान यात्रा के पीछे की विशेष कहानी लेकर आया है.

सप्ताह भर में चीन

ताइपे में तीन पूर्व भारतीय सेवा प्रमुखों के होने की संभावनाएं इतनी रात में आसान नहीं होने वाली थीं. राकेश कुमार सिंह भदौरिया (आईएएफ), करमबीर सिंह (नौसेना), और मनोज मुकुंद नरवणे (सेना) को ताइवान के विदेश मंत्रालय द्वारा केटागलन फोरम में आमंत्रित किया गया था. उनके साथ सेना और नौसेना के दो अन्य पूर्व सैन्य अधिकारी भी थे, जिनमें से एक के पास राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज और आर्मी वॉर कॉलेज के लिए सिनैरियो सिमुलेशन और योजना पर काम करने का इतिहास है.

लेखक केटागलन फोरम में थे और उन्होंने यात्रा के संदर्भ की पुष्टि के लिए कई स्रोतों से बात की, जो निश्चित रूप से ‘निजी’ नहीं थी.

यह मंच ताइवान पक्ष के साथ अधिक गहन सिनैरियो प्लानिंग और अन्य चर्चाएं करने के लिए एक मिसाल था. पूर्व प्रमुखों में से केवल एक, एडमिरल करमबीर सिंह ने मंच पर एक पैनल पर आधिकारिक तौर पर बात की, और ताइवान में दूसरों की उपस्थिति पर सवाल उठाए. एडमिरल सिंह की टिप्पणी को आयोजकों द्वारा यूट्यूब पर साझा किया गया था.

पांच सदस्यों के दौरे वाले प्रतिनिधिमंडल ने ताइवान के रक्षा मंत्रालय के प्राइमरी थिंक टैंक, राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा अनुसंधान संस्थान के साथ बंद कमरे में बातचीत की, जहां दौरे पर आए प्रतिनिधिमंडल के सभी सदस्यों ने ताइवानी पक्ष से बात की. पूर्व भारतीय सेवा प्रमुखों और ताइवानी अधिकारियों के बीच इस तरह की बैठक से दोनों सेनाओं के बीच एक संचार चैनल स्थापित करने में मदद मिलेगी, ताइवानी पक्ष ऐसा होते देखना चाहता था.

कई आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, जिनसे लेखक ने नाम न छापने की शर्त पर बात की, दौरे पर आए प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि उनकी यात्रा ‘निजी’ थी, लेकिन उनकी यात्रा को लेकर जिस तरह की बातें की जा रही हैं वह कुछ और ही संकेत देता है.

एक सूत्र के मुताबिक, विदेश मंत्रालय भविष्य के ताइवान को लेकर किसी आकस्मिकता के लिए जैसे चीन द्वारा उस पर फुल-स्केल आक्रमण की परिस्थिति का सिनैरियो मैपिंग कर रहा है. सिनैरियो प्लानिंग से जुड़े करीबी सूत्रों ने पुष्टि की है कि संभावित ताइवान आकस्मिकता के प्रभाव का आकलन करने के लिए विभिन्न सरकारी संगठनों में समान अभ्यास किए जा रहे हैं.

चीन की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया से बचने के लिए तीनों प्रमुखों की यात्रा के बारे में स्पष्टीकरण आधिकारिक तौर पर मीडिया और अन्य चैनलों के साथ साझा किया गया.

एक अन्य सूत्र के अनुसार, कुछ सरकारी संस्थान बीजिंग के प्रति तुष्टीकरण की संस्कृति से पीड़ित हैं – एक अंतर्निहित और कठोर रवैया – लेकिन अन्य अब उस दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

तीन पूर्व भारतीय सेवा प्रमुखों की यात्रा ने चीनी सोशल मीडिया पर धूम मचा दी.

3.88 मिलियन फॉलोवर वाले बीजिंग के एक मिलिट्री ब्लॉगर ने कहा, “…उन तीनों ने अभी 2021 से 2022 के बीच कार्यालय छोड़ा है, और ताइवान की उनकी समूह यात्रा स्पष्ट रूप से केवल पर्यटन के लिए नहीं है. ताइवान और भारत के बीच सूचना सहयोग अब कोई खबर नहीं है, और निजी सैन्य आदान-प्रदान भी स्पष्ट रूप से चल रहा है.”

एक सैन्य ब्लॉगर वू टोंग ने तीन पूर्व प्रमुखों की यात्रा के संदर्भ को समझाते हुए एक वीडियो बनाया और दावा किया कि भारत ताइवान जलडमरूमध्य में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है.

वीचैट पर एक सैन्य कॉमेन्टेटर शाओ योंगलिंग ने लिखा, “हालांकि, भारतीय मीडिया ने दावा किया कि तीन पूर्व भारतीय सेना प्रमुख भारत की आधिकारिक स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, यह खुद इस बात का प्रमाण है कि भारत क्या योजना बना रहा है.”

नई दिल्ली में चिंता वर्तमान संदर्भ में चीन को नाराज न करने की कोशिश करते हुए भविष्य में ताइवान आकस्मिकता के लिए तैयारी करने की ज़रूरत की बढ़ती मान्यता से उपजी है. लेखक ने जिन कई स्रोतों से बात की, वे तीन प्रमुखों की यात्रा पर चिंता की पुष्टि करते हैं, यही कारण है कि ‘निजी दौरे’ की व्याख्या की पेशकश की गई थी.

ताइवान के संबंध में भारत की स्थिति स्पष्ट नहीं है और एक नया अध्याय शुरू हो सकता है.

इस बीच, एक नए प्यू सर्वेक्षण से पता चलता है कि 43 प्रतिशत भारतीय ताइवान को प्रतिकूल रूप से और 37 प्रतिशत अनुकूल रूप से देखते हैं. जबकि कई लोग रिज़ल्ट से हैरत में थे, लेकिन लेखक इसलिए नहीं थे क्योंकि ताइवान ने हाल के वर्षों में भारतीय जनता की चेतना को जागृत किया है – वह भी चीन के साथ तनाव से जुड़ा हुआ है. जिन देशों को अनुकूल दृष्टि से देखा जाता है उनके पास फुटबॉल टीम या संगीत बैंड जैसी सांस्कृतिक पूंजी होती है – जो उन्हें वांछनीय बनाती है और सोच बदलने में मदद करती है.

भू-राजनीति से परे, ताइवान को अभी भी भारतीयों के मन में ऐसी सांस्कृतिक राजधानी दर्ज कराना बाकी है. लेकिन भारत में ताइपे के प्रति 37 प्रतिशत का अनुकूल दृष्टिकोण अभी भी महत्वपूर्ण है.

पिछले सप्ताह, चाइनास्कोप ने आपको बीजिंग के सिर पर मंडराते डिफ्लेशन के जोखिम के बारे में बताया था. पिछले सप्ताह जारी नवीनतम आर्थिक आंकड़ों से पता चलता है कि चीनी अर्थव्यवस्था डिफ्लेशन के जाल में फंस गई है.

उपभोक्ताओं की कम मांग के कारण बीजिंग के निवासी 3-युआन (34 रुपये) के बुफे नाश्ते का सौदा कर रहे हैं. बुफे में तीन प्रकार के चावल दलिया, खट्टा, मसालेदार सूप और दूध शामिल है – जो सस्ते दाम पर सामान खरीदने वालों के लिए एक आनंददायक बात है. लेकिन जादुई रूप से कम कीमतें डिफ्लेशन कारकों के कारण हैं जो कीमतों को एक नए निचले स्तर पर ले जा रही हैं.

बड़े बिज़नेस ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए भारी छूट की पेशकश करते हैं क्योंकि प्रमुख शहरों में खर्च कमजोर रहता है.

चीनी जनता को कुछ उच्च आय वाले देशों की तरह प्रत्यक्ष समर्थन नहीं मिला. पिछले साल के अंत में चीनी अर्थव्यवस्था के खुलने के बावजूद, कई लोगों ने जिस उपभोक्ता फिजूलखर्ची की उम्मीद की थी, उसमें कोई खास उछाल देखने को नहीं मिला.

चीनी अर्थव्यवस्था को ‘जापान के रास्ते’ पर जाने से बचाने की कोशिश कर रहे अर्थशास्त्रियों के बीच प्रोत्साहन पैकेज के माध्यम से सीधे नकदी डालने की मांग बढ़ गई है. आर्थिक विकास दर में गिरावट के कारण टोक्यो दशकों तक डिफ्लेशन से जूझता रहा. बीजिंग भी कुछ इसी तरह से जूझता नजर आ रहा है.

यूटा में एक राजनीतिक फंड इकट्ठा करने में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, “चीन एक चलता-फिरता टाइम बम है…चीन संकट में है. चीन विकास को बनाए रखने के लिए प्रति वर्ष 8% की दर से बढ़ रहा था. जो कि अब 2 प्रतिशत प्रति वर्ष लगभग 2% के करीब है.“


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विश्व समाचार में चीन

राष्ट्रपति बाइडेन ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी फर्मों सहित अमेरिकी कंपनियों को सेमी-कंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में चीन की उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी कंपनियों में निवेश करने से प्रतिबंधित किया गया है.

जनरल अटलांटिक, वॉरबर्ग पिंकस और कार्लाइल ग्रुप जैसे निजी इक्विटी समूहों ने अमेरिकी कांग्रेस की जांच को दरकिनार करते हुए चीन में निवेश करना जारी रखा है. अपने पिछले कॉलम में, मैंने बताया था कि चीन के संप्रभु धन कोष (Sovereign Wealth Funds) के अमेरिका और ब्रिटेन में निजी इक्विटी फर्मों के साथ कैसे संबंध हैं – अमेरिका द्वारा प्रतिबंध अपेक्षित था.

नवीनतम कार्यकारी आदेश – अमेरिकी ट्रेजरी विभाग द्वारा कार्यान्वित – चीन में निवेश करने वाली अमेरिकी कंपनियों के युग को समाप्त कर देगा. बीजिंग बाइडेन के नवीनतम कार्यकारी आदेश को इस बात के सबूत के रूप में देखेगा कि वाशिंगटन विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लक्षित करके चीन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है. बीजिंग केवल अमेरिका के साथ प्रतिस्पर्धा करने के प्रयासों को दोगुना कर देगा – और संभावित रूप से प्रतिशोध के रूप में अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाएगा.

इस सप्ताह अवश्य पढ़ें

चायना हैज़ फॉलेन इनटू साइको-पोलिटिकल फंक – जेम्स किंज

एक्स-सोल्डर स्वीप इन केव फॉर 22 ईयर्स टू प्रोटेक्ट सॉन्ग ट्रेज़र- युवान रॉन्गसन

गाने के खजाने की रक्षा के लिए पूर्व सैनिक 22 साल तक गुफा में सोया – युआन रोंगसन

(लेखक एक स्तंभकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीन मीडिया पत्रकार थे. वह वर्तमान में ताइपे में स्थित MOFA ताइवान फेलो हैं और @aadilbrar ट्वीट करते हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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