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Sunday, 24 November, 2024
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चांद की सतह के नीचे दबा है यह कैसा रहस्य, साइंटिस्ट भी जानकर हैरान हैं

पहली बार चांद पर कदम रखने के बाद से मानव जाति ने चंद्रमा के बारे में काफी कुछ खोज लिया है लेकिन अभी भी ऐसे तमाम रहस्य छिपे हुए हैं जिसके बारे में हमें नहीं पता है.

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नई दिल्लीः चांद ने हमेशा से मानव जाति का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. इसका एक बड़ा कारण शायद यह रहा है कि चंद्रमा हमेशा रहस्यों से भरा रहा है.

रात के आसमान में इसकी चमक और उस पर दिखने वाली चरखा कातती हुई बूढ़ी दादी के चित्र भी बच्चों के लिए हमेशा से रहस्य से भरे रहे हैं.

हालांकि, करीब 50 साल पहले, पहली बार चांद पर कदम रखने के बाद से मानव जाति ने चंद्रमा के बारे में काफी कुछ खोज लिया है लेकिन अभी भी ऐसे तमाम रहस्य छिपे हुए हैं जिसके बारे में हमें नहीं पता है.

ऐसा ही एक रहस्य है चांद के सतह के नीचे दबा एक भारी भरकम रहस्यमयी द्रव्यमान (Mysterious Mass on Moon) जिसके बारे में रिसर्चर्स भी अचरज से भरे हुए हैं.

दरअसल, चंद्रयान-3 मिशन चांद के साउथ पोल पर 23 अगस्त को उतरने वाला है. लेकिन साउथ पोल-ऐटकिन बेसिन के नीचे की सतह के अंदर साइंटिस्ट्स ने पता लगाया है कि एक काफी बड़ा द्रव्यमान या मास दबा हुआ है.

इसका मास 4.8 क्विटलियन पाउंड यानी कि 4,800,000,000,000,000,000 पाउंड है. यह कुछ ऐसा ही है कि जैसे कि अमेरिका के हवाई द्वीप से पांच गुना ज़्यादा मेटल या धातु लेकर चंद्रमा की सतह के नीचे दबा दिया जाए.

Artistic image of the interior of the Moon. A wedge of a globe is cut out to reveal - from the center of the globe moving out - a bright white inner core, a yellow outer core, a very thick mottled brown mantle and a thin layer of light gray crust.
ट्विटर । @NASAMoon

कैसे हुआ इसका निर्माण

हालांकि, रिसर्रचर्स को इसके बारे में अभी सटीक तरीके से कुछ भी पता नहीं है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि लगभग 4 बिलियन साल पहले एक एस्टेरॉयड के टकराने की वजह से इसका निर्माण हुआ.

इसके घनत्व को देखते हुए ऐसा माना जा रहा है कि यह एक तरह का मेटल है जो कि सतह से नीचे दबा हुआ है.

कंप्यूटर सिमुलेशन के आधार पर ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि आयरन-निकिल के कोर वाला एक एस्टेरॉयड चांद की सतह से टकराया होगा जिसकी वजह से साउथ पोल-ऐटकिन बेसिन में यह पूरा का पूरा मास चांद में समा गया होगा.


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कैसे लगा पता

साल 2011 में ग्रेल मिशन (GRAIL Mission) के दो स्पेसक्राफ्ट एब एंड फ्लो (Ebb and Flow) ने लगभग एक साल तक चांद का चक्कर लगाया. इस दौरान चंद्रमा के साउथ पोल के पास इसे ग्रैविटेशनल फील्ड में कुछ वैरिएशन नज़र आया.

इस डेटा का उपयोग करते हुए ग्रेल टीम ने उच्च रिज़ोल्य़ूशन वाला ग्रैविटी मैप बनाया. इस डेटा का विश्लेषण करके पता लगा कि वहां पर काफी ज्यादा द्रव्यमान या मास इकट्ठा है. क्योंकि जहां पर द्रव्यमान ज़्यादा होता है वहां पर ग्रैविटी या गुरुत्व भी ज़्यादा होती है.

 चांद पर मौजूद अन्य बड़े क्रेटर्स में मैसकॉन्स (मास कन्सन्ट्रेशन) पाए जाते हैं. मैसकॉन्स में बैल की आंख की तरह से ग्रैविटी मैप दिखता है यानी की मज़बूत ग्रैविटी का क्षेत्र जो कि हाई डेन्सिटी के द्रव्यमान से घिरा हुआ होता है और उसके चारों ओर कम ग्रैविटी का क्षेत्र होता है जो कि मेंटल की वजह से होता है.

लेकिन साउथ पोल-एटकिन बेसिन के ग्रैविटी मैप में इस तरह का पैटर्न नहीं दिखाता है. इससे वैज्ञानिकों ने एक मॉडल से कुछ गणनाएं करने की कोशिश की और इसका विश्लेषण करने से पता लगा कि इस जगह पर एक काफी बड़े एरिया में उच्च घनत्व वाला मटीरियल मौजूद है.

इस पदार्थ को लेकर एक दूसरी थियरी भी है जो कहती है कि संभवतः शुरुआत में जब चांद पर मैग्मा का समुद्र जब धीरे-धीरे ठंडा होकर ठोस हो रहा था तब घने ऑक्साइड एक जगह ठोस होकर इकट्ठा हो गए. हालांकि, एस्टेरॉयड के टकराने की थियरी को ज़्यादा मान्यता है.

लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यह रहस्य चांद को और ज़्यादा से ज़्यादा जानने के लिए उत्सुकता पैदा करता है. हालांकि, कई तरह के सिद्धांतों के बावजूद भी वैज्ञानिक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके हैं और वे लगातार नए नए रिसर्च और विश्लेषण करके सच्चाई को पता लगाने में जुटे हुए हैं.


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