शांगपुंग: मेघालय के पश्चिमी जैंतिया हिल्स जिले की टेढ़ी-मेढ़ी सड़कों से जब आप गांवों में प्रवेश करते हैं तो आपको हल्दी का खेत आपका घ्यान अपनी ओर खींचेगा. यह न सिर्फ भारतीय ब्लकि विदेश के व्यापारियों को भी आकर्षित कर रहा है. धुंध और बादलों से परे, जिससे अक्सर इन दूरदराज के गांवों को जाना जाता है, अब हल्दी को लेकर काफी चर्चा में रह रहा है. लोग पीढ़ियों से लाकाडोंग- जिसे दुनिया में हल्दी की सबसे अच्छी किस्म माना जाता है- उगा रहे हैं. अब, मेघालय की लाकाडोंग हल्दी को ताजगी मिल गई है. और अब तो एक और कारण इसे पॉपुलर बना रहा है वह है- करक्यूमिन. यह हल्दी में पाया जानेवाला एक सक्रिय घटक जिसका उपयोग फार्मास्युटिकल कामों के लिए किया जाता है. यह इसे एक प्रीमियम कीमत दिलावाता है.
मेघालय द्वारा मिशन लाकाडोंग की स्थापना के पांच साल बाद, स्थानीय हल्दी ने जिले को आर्थिक गतिविधि, व्यापार, खेती में बदलाव और इसे निर्यात के लिए तैयार करने में मदद की है. अब मेघालय की हल्दी यूनाइटेड किंगडम और नीदरलैंड जैसे देशों में जा रही है. लेकिन राज्य को सबसे अधिक प्रतिस्पर्धा तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से है.
हल्दी की उत्पादन की अगर बात करे तो कई दूसरे राज्य मेघालय को पीछे छोड़ देते हैं, लेकिन जब गुणवत्ता की बात आती है तो आंकड़ा बिल्कुल उलट जाता है. पश्चिमी जैंतिया हिल जिले में हल्दी की तीन किस्में उगाई जाती हैं- लाचेन, लासेइन और लाकाडोंग. जबकि पहली दो किस्मों में केवल चार से पांच प्रतिशत करक्यूमिन होता है लेकिन लाकाडोंग में औसतन सात प्रतिशत तक करक्यूमिन पाया जाता है. और यह केवल इस छोटे से जिले के मूल निवासी करते हैं, जिसकी सीमा दक्षिण में बांग्लादेश और उत्तर में असम से लगती है. इस हल्दी को कहीं और उगाने के प्रयासों के चलते इसके करक्यूमिन स्तर में भारी गिरावट देखी है.
मास्टर्स ऑन मिशन
दो लोगों का यह विचार राज्य के लिए काफी फायदेमंद हुआ. उन्होंने इनकी खेती से लेकर इनकी विक्री तक का तरीका बदल दिया. उन्होंने किसानों को ब्रांडिंग और बेचने के बाजार खोजने का नया तरीका दिखाया. मेघालय सरकार ने प्रकृति से मिले इनाम का फायदा उठाया और 2018 में ‘मिशन लाकाडोंग’ शुरू किया. इसने पश्चिम जैंतिया हिल्स जिले के डेमनसन लिंगदोह को मिशन के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया. मेघालय के हल्दी के सपने को आगे बढ़ाने के लिए पद्म श्री पुरस्कार विजेता ट्रिनिटी साइओ और लाइफ स्पाइस प्रोसेसिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी जैसे समूहों को भी शामिल किया गया था.
आज, लिंगदोह मेघालय के बागवानी विभाग में हल्दी, विशेषकर लाकाडोंग जैसी चीजों के लिए सबसे पसंदीदा व्यक्ति हैं. शिलांग और जोवाई स्थित अपने कार्यालय के बीच अक्सर यात्रा करते रहने वाले लिंगदोह अपने साथ लाकाडोंग से जुड़ी किंवदंतियों को लेकर चलते हैं और जिले का हर हल्दी उत्पादक उनसे परिचित है.
वह उनसे उनकी भाषा पनार में बात करते हैं और उन्हें रोपण की गुणवत्ता में सुधार, कटाई के बाद कटाई और प्रसंस्करण में सुधार के बारे में बताते हैं. मिशन के परियोजना अधिकारी ने यह देखा कि मसाला ग्रामीण विकास के लिए एक मील का पत्थर बन रहा है और ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त कर रहा है.
लिंगदोह के अनुसार, अप्रैल में नया शैक्षणिक वर्ष शुरू होने से ठीक एक महीने पहले, जिले की महिलाएं कटी और सूखी हल्दी बेचकर अपने बच्चों की शिक्षा का भुगतान करने और उनके स्कूल की किताबें खरीदने में सक्षम थीं. ये जमीनी स्तर के बदलाव ही हैं जो उन्हें समुदाय के लिए और अधिक करने के लिए प्रेरित करते हैं.
उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूं कि ग्रामीण जितना संभव हो सके सीखें और सुधार करें.” हालांकि, उन्हें इस बात का डर है कि सरकारें आती-जाती हैं और उनकी प्राथमिकताएं कभी भी बदल सकती हैं.
जबकि राज्य सरकार हल्दी की खेती और उत्पादकता के क्षेत्र का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो लोग लंबे समय से लाकाडोंग की व्यावसायिक खेती में लगे हुए हैं, वे ऑनलाइन मार्केटिंग की ओर बढ़ रहे हैं.
जिले के मुलिह गांव में एक स्कूल शिक्षक और छह बच्चों की मां सैयू को लाकाडोंग संस्करण उगाने के लिए किसानों को प्रेरित करने के लिए साल 2020 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था.
उन्होंने 2003 में लाकाडोंग हल्दी उगाना शुरू किया था और केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक एजेंसी, स्पाइसेस बोर्ड ने उन्हें मसाले की जैविक खेती को लोकप्रिय बनाने में मदद की. उन्होंने कहा, “यह किसानों को अन्य किस्मों की तुलना में उनकी आय को तीन गुना करने में मदद कर सकता है.”
वह अपना अनुभव शेयर करने के लिए मिशन लाकाडोंग पर काम कर रही हैं. 2018 से वह इसके प्रचार-प्रसार में भी शामिल रही है. सैयू गर्व के साथ बताती है कि कैसे मेघालय ने देश के 10 राज्यों और यहां तक कि अमेरिका को लाकाडोंग का निर्यात किया.
उन्होंने कहा, “हम ऑनलाइन कारोबार कर रहे हैं. मेरा उद्देश्य अभी भी गुणवत्ता बनाए रखना है क्योंकि हम वेबसाइट और सोशल मीडिया के माध्यम से विज्ञापन देने का प्रयास करते हैं.”
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प्रगतिशील किसान बनाना
ज़मीनी स्तर पर, जिले का लगभग हर घर अलग-अलग मात्रा में हल्दी उगा रहा था. यही कारण है कि नोडल अधिकारी लिंगदोह ने कहा कि सरकार ने किसानों की आजीविका बढ़ाने के लिए इसे बढ़ाने के बारे में सोचा. अब, मिशन मोड में छोटे और सीमांत किसानों को प्रगतिशील किसानों में अपग्रेड करना शामिल है.
इसके लिए बुनियादी बातों पर वापस जाने की आवश्यकता है.
लिंगदोह ने कहा, “हमने सीखा है कि जब दरें बहुत अधिक होती हैं, तो बाज़ार में बेचना मुश्किल होता है. जब किसानों को बहुत कम उपज मिलती है तो उन्हें ऊंचे दाम पर बेचना पड़ता है. इसलिए, अब, हमें उनकी उत्पादकता बढ़ाने के लिए काम करना होगा, ताकि इनपुट कीमत थोड़ी कम हो सके.”
लिंगदोह ने आगे कहा, “अगला चरण अधिक से अधिक लाभ को सुनिश्चित करना है, जिसे लाकाडोंग हल्दी के मामले में मसाले के प्रसंस्करण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. कच्चा माल मात्र 30-35 रुपये प्रति किलोग्राम पर बिकता है जबकि सूखे टुकड़े 160-180 रुपये तक बिकते हैं. लेकिन एक दिक्कत है- एक किलोग्राम सूखा उत्पाद बनाने के लिए 5-6 किलोग्राम ताजी हल्दी की आवश्यकता होती है. ड्राई स्लाइस वह चरण है जहां लोगों को ज्यादा लाभ नहीं मिलता है.”
लेकिन अगर उत्पादक लाकाडोंग हल्दी को पाउडर के रूप में बेचते हैं तो उनका लाभ आसमान छू जाता है. वे इसे 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच सकते हैं.
सामूहिक मार्केटिंग केन्द्रों पर जोर
यह सुनिश्चित करने के लिए कि हल्दी उत्पादकों के पास अपनी उपज बेचने के लिए एक मजबूत चैनल हो, सरकार ने जिले में 17 सामूहिक मार्केटिंग केंद्र (सीएमसी) बनाए. ग्रामीण सीएमसी में बुनियादी मशीनरी का उपयोग करके कटी हुई फसल को धो सकते हैं, सुखा सकते हैं और काट सकते हैं.
गांवों के निर्वाचित सदस्यों द्वारा संचालित, यह इकाई सूखी और पिसी हुई हल्दी का भंडारण भी करती है. खरीदार और व्यापारी तुरंत इन इकाइयों पर उत्पाद की जांच कर सकते हैं और इसे थोक में खरीद सकते हैं.
लिंगदोह ने गर्व से कहा कि सीएमसी एक अगस्त में यूरोप से खरीदार की उम्मीद कर रही है.
उन्होंने कहा, “पहले हमें खरीदारों के लिए उपज एकत्र करने में परेशानी होती थी. पहले वे 10,000 या 20,000 टन तक खरीदना चाहते थे, लेकिन अब नहीं.”
मेघालय सरकार अदरक परिवार से संबंधित मसालों में से एक हल्दी के दाम को मजबूत करने के लिए सहकारी समितियों के साथ भी काम कर रही है.
लाइफ स्पाइस प्रोसेसिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी, जो 2010 में शुरू हुई थी, हल्दी की खेती के विस्तार के लिए मिशन लाकाडोंग परियोजनाओं में सक्रिय रूप से भाग ले रही है.
सहकारी समिति के साथ 15 सीएमसी काम कर रही हैं, जो उनसे कच्ची हल्दी खरीदती हैं. यह एक अनुसंधान केंद्र भी चलाता है जहां यह कच्चे माल को संसाधित करने के साथ-साथ हल्दी से करक्यूमिन सहित विभिन्न घटकों को निकालने के लिए विभिन्न मशीनों के साथ प्रयोग करता है.
बीते एक दशक में, हल्दी की आर्थिक सफलता ने सहकारी समितियों को अपनी जमीन खरीदने की अनुमति दी. शुरुआत में इसमें 100 परिवारों को जोड़ा गया था जिसका अब विस्तार 1,000 परिवारों तक हो गया है.
सहकारी समिति के सचिव, 38 वर्षीय टेइमोंगलांग शायला ने लाकाडोंग के सामाजिक परिवर्तन को करीब से देखा है.
उसने कहा, “पहले, उनके [हल्दी उत्पादक] बच्चे स्कूल नहीं जाते थे. वे आमतौर पर प्राइमरी स्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देते थे. लेकिन अब वे अपने बच्चों को हाई स्कूल और कुछ को कॉलेज तक में पढ़ा रहे हैं.”
सहकारी समितियों और सीएमसी की उपस्थिति ने उन बिचौलियों को खत्म करने में मदद की है जो “बाजार के बारे में नहीं जानने वाले” भोले-भाले ग्रामीणों का शोषण करते थे. मिशन लाकाडोंग के साथ, समूह ग्रामीणों को खेती में विस्तार करने के लिए बीज तक देकर मदद कर रहा है.
शायला ने बताया कि कैसे स्वदेशी संसाधनों ने महिलाओं को सशक्त बनाया है और उनके रोजमर्रा के जीवन को बदल दिया है.
शांगपुंग गांव में, चार महिलाएं सीएमसी में इकट्ठा होकर केंद्र के अंदर रखे सूखे हल्दी के 20 से अधिक पैकेटों को गर्व से दिखाती हैं. फिर वे एक महिला के छोटे से खेत में जाते हैं जहां मक्के की फसल के साथ हल्दी भी लगाई जाती है. जल्द ही वे मक्के की कटाई करेंगे और सुनहरे मसाले के लिए सारा खेत छोड़ देंगे. महिलाएं घड़ी की सुइयों की तरह आगे बढ़ती हैं, अब घरेलू कामकाज तक ही सीमित नहीं हैं. उनके पास उद्देश्य की भावना है – मेघालय के हल्दी को पूरी दुनिया में फैलाना.
(संपादन: ऋषभ राज)
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