नई दिल्ली: एक संसदीय समिति ने शुक्रवार को राष्ट्रीय चुनावों में उम्मीदवारी की न्यूनतम आयु घटाकर 18 वर्ष करने की वकालत करते हुए कहा कि इससे युवाओं को लोकतंत्र में शामिल होने के समान अवसर मिलेंगे.
संसदीय समिति ने विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम आयु को कम करने का भी सुझाव दिया, उनका मानना है कि यह कदम नीतिगत विचार-विमर्श और परिणामों में व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा दे सकता है.
भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति ने भी निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए झूठी घोषणा/शपथपत्र देने वाले उम्मीदवारों के लिए सजा को मौजूदा छह महीने की जेल की सजा से बढ़ाकर दो साल करने पर जोर दिया.
उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम आयु की आवश्यकता को कम करने पर, संसदीय समिति, जिसने चुनाव प्रक्रिया और उनके सुधार के विशिष्ट पहलुओं पर गौर किया – ने कहा कि राष्ट्रीय चुनावों में उम्मीदवारी की न्यूनतम आयु घटाकर 18 वर्ष करने से पहले उन्होंने कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे विभिन्न देशों के नियमों की भी जांच की.
समिति ने शुक्रवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा, “इन देशों के उदाहरण दर्शाते हैं कि युवा विश्वसनीय और जिम्मेदार राजनीतिक भागीदार हो सकते हैं.”
वर्तमान कानूनी आदेश के अनुसार, लोकसभा या विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों की आयु कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उनमें आवश्यक परिपक्वता, अनुभव और अपनी जिम्मेदारियों की समझ है.
संविधान का अनुच्छेद 84 संसद सदस्यों के लिए योग्यताओं को रेखांकित करता है, जिसके अनुसार राज्यों की परिषद में सीट पाने के लिए व्यक्ति की आयु कम से कम 30 वर्ष और लोक सभा में सीट रखने के लिए कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए.
अधिकांश यूरोपीय देशों में यह अनिवार्य है कि राष्ट्रीय आम चुनावों के लिए उम्मीदवारों की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “…चुनावों में उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम आयु की आवश्यकता को कम करने से युवाओं को लोकतंत्र में शामिल होने के समान अवसर मिलेंगे. इस दृष्टिकोण को वैश्विक प्रथाओं, युवा लोगों के बीच बढ़ती राजनीतिक चेतना और युवा प्रतिनिधित्व के फायदों जैसे बड़ी मात्रा में सबूतों से बल मिलता है.”
संसदीय समिति ने पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसके मुताबिक 2019 में 47 फीसदी लोकसभा सांसद 55 साल से ज्यादा उम्र के हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, “यह प्रवृत्ति विशेष रूप से चिंताजनक है, यह देखते हुए कि भारत की औसत आयु केवल 27.9 वर्ष है. इसके अलावा, केवल 2.2 प्रतिशत लोकसभा सांसद 30 वर्ष से कम आयु के हैं, जबकि दुनिया भर में 1.7 प्रतिशत से भी कम सांसद इस आयु वर्ग में आते हैं.”
17वीं लोकसभा में वर्तमान में 34 मौजूदा सांसद 30 से 40 वर्ष की आयु के बीच हैं.
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झूठा हलफनामा दाखिल करने पर कड़ी सजा
झूठे हलफनामे दाखिल करने के लिए कठोर सजा की वकालत करते हुए, संसदीय समिति ने कहा है कि निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने और अनुच्छेद 19 (1) (ए) के अनुसार नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 ए के तहत सजा दी जाएगी. इसे बढ़ाकर अधिकतम दो साल की कैद और जुर्माना किया जाना चाहिए.
हालांकि, यह जुर्माना केवल असाधारण मामलों में ही लागू किया जाना चाहिए, न कि छोटी त्रुटियों या अनजाने में हुई गलतियों के लिए. नए प्रावधान के तहत, झूठा हलफनामा जमा करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन माना जाना चाहिए, और अधिनियम की धारा 100 की उप-धारा 1 (डी) (iv) के तहत चुनाव को अमान्य किया जा सकता है.
फिलहाल धारा 125ए के तहत सिर्फ छह महीने की सजा है.
समिति का कहना है कि यह ‘अपर्याप्त’ है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “सजा की गंभीरता अपराध की गंभीरता पर आधारित होनी चाहिए. समिति का सुझाव है कि यदि कोई गलत हलफनामा दायर करता है, तो समिति को उनके अपराध के स्तर को ध्यान में रखना चाहिए और धारा 8(1) के तहत उन अपराधों की सूची में जोड़ा जा सकता है जो अयोग्यता का कारण बनते हैं.”
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम सार्वजनिक पद के लिए खड़े उम्मीदवारों के लिए योग्यता और अयोग्यताएं निर्धारित करता है और एक संरचित ढांचा प्रदान करता है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बढ़ावा देता है. चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को चुनाव संचालन नियम, 1961 के तहत फॉर्म 26 में एक हलफनामा दाखिल करना होगा.
यह हलफनामा विभिन्न विवरणों का खुलासा करता है, जैसे कि उनकी संपत्ति, देनदारियां और शैक्षणिक योग्यताएं. उम्मीदवारों के लिए सच्ची जानकारी प्रदान करना अनिवार्य है, ऐसा न करने पर कानून का उल्लंघन माना जाएगा और अधिनियम की धारा 125 ए के तहत जेल हो सकती है.
समिति यह भी सिफारिश करता है कि यदि कोई उम्मीदवार समिति द्वारा प्रस्तावित अद्यतन/नए प्रावधान के तहत गलत जानकारी प्रदान करता हुआ पाया जाता है, तो उन्हें ऐसे चुनाव के परिणामस्वरूप होने वाले किसी भी लाभ के लिए अयोग्य माना जाना चाहिए. इस उपाय का उद्देश्य सभी उम्मीदवारों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना और चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखना है.
इसमें प्रस्तावित किया गया कि जानबूझकर अन्य आवश्यकताओं की उपेक्षा करना, जैसे कि आरपी अधिनियम, 1951 की धारा 33ए में उल्लिखित जानकारी प्रस्तुत करना, जैसा कि धारा 125ए में सूचीबद्ध है, चुनाव याचिका दायर करने में आसानी के लिए आरपी अधिनियम की धारा 123 के तहत इसे ‘भ्रष्ट आचरण’ माना जाना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्यों में से, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में कुछ झूठी घोषणाएं थीं और उत्तर प्रदेश में इसकी संख्या सबसे अधिक 54 थी.
अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, दादर नगर हवेली और दमन और दीव में कोई झूठी घोषणा नहीं थी.
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(संपादन: अलमिना खातून)
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