इंफाल: आगजनी, हत्या, बलात्कार, अपहरण- ये दिल दहला देने वाले अपराधों की श्रेणी में आते हैं. लेकिन, मणिपुर में यह समान्य हो चुका है. 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद से मणिपुर में इससे जुड़ी 6,496 FIR दर्ज की गई है. पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि लेकिन केवल 280 गिरफ्तारियां हुई हैं और कानून-व्यवस्था की ‘खराब’ स्थिति के कारण अधिकतर मामलों में जांच भी शुरू नहीं हुई है.
पुलिस रिकॉर्ड 3 मई के बाद से मणिपुर के हालात की एक झलक दिखाते हैं: 74 हत्याएं, 24 अपहरण, 27 लापता व्यक्ति, हथियार लूटने की 30 घटनाएं, महिलाओं और बच्चों पर 11 हमले, जिनमें तीन यौन हमले शामिल हैं, दर्ज की गई है. 5,107 मामलों के साथ आगजनी सबसे आगे है, जो विनाश की एक बड़ी तस्वीर पेश करते हैं. जले हुए घरों से लेकर क्षतिग्रस्त संपत्तियों और जमींदोज संरचनाओं इसके सबूत हैं.
हालांकि, ये दर्ज मामले बहुसंख्यक मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच संघर्ष शुरू होने के तीन महीने बाद भी, मणिपुर में फैली हिंसा की पूरी सीमा को पकड़ने में विफल रहे हैं.
मणिपुर के सभी 16 जिलों में हजारों जीरो FIR दर्जी की गई हैं, जिनमें हत्याओं, गुमशुदगी और कई अन्य दस्तावेज शामिल हैं, जिन पर अभी भी कार्रवाई होनी बाकी है. ये FIR वास्तविक अपराध स्थलों से दूर के क्षेत्राधिकारों में दर्ज की गई थीं, जो मैतेई-प्रभुत्व वाली इम्फाल घाटी से आदिवासी कुकियों और कुकी-प्रभुत्व वाले पहाड़ी जिलों से मैतेई लोगों के बड़े पैमाने पर प्रवास के परिणामस्वरूप दर्ज की गई थीं.
अब, ऐसी FIR पर ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि स्थानीय लोगों द्वारा सड़क वाधित करने और पुलिस का विरोध करने के चलते उसे अब तक उससे जुड़े पुलिस स्टेशन में ट्रांसफर नहीं किया जा सका है.
पहाड़ी जिले चुराचांदपुर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से बात करते हुए पूछा, “FIR निर्दिष्ट पुलिस स्टेशनों तक पहुंचने के बाद जांच शुरू हो जाएगी. अगर वह बंद हो जाएगा तो कोई काम कैसे शुरू होगा?”
इस मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जातीय हिंसा से संबंधित मामलों की जांच की “सुस्त” गति के लिए मणिपुर पुलिस को जमकर फटकार लगाई. अदालत ने मणिपुर में कानून-व्यवस्था और संवैधानिक तंत्र के ‘पूरी तरह से ध्वस्त’ होने की निंदा की और राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को 7 अगस्त को अगली सुनवाई के लिए तलब किया.
हालांकि, दिप्रिंट से बात करने वाले पुलिस अधिकारियों ने कई समस्याओं पर बात की. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक स्थानीय लोग उनके काम में विघ्न डालने की कोशिश करते हैं. इसके अलावा रोजाना कहीं न कहीं संघर्ष हो जाता है, FIR में काफी अस्पष्टता है और जांच में जातीय पूर्वाग्रहों भी मुश्किल पैदा कर रहे हैं.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बीच एक बार-बार यह बात आती रहती है कि कानून और व्यवस्था का पता लगाए बिना पुलिस अधिकारी जांच के लिए आवश्यक आधार तैयार नहीं करते हैं.
इंफाल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “जब तक कानून-व्यवस्था की स्थिति स्थिर नहीं हो जाती, तब तक व्यापक जांच एक दूर का लक्ष्य बनी रहेगी. हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं कि सभी FIR पर गौर किया जाए, लेकिन मामलों की संख्या बहुत अधिक है.”
हजारों ‘फंसे’ FIR
मणिपुर में पुलिस का दावा है कि उन्हें इंफाल में अपने मुख्यालय और कुकी-प्रभुत्व वाले पहाड़ी जिलों के बीच FIR सहित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को स्थानांतरित करने में कई कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
अधिकारियों का कहना है कि मीरा पेबिस के नाम से जानी जाने वाली मैतेई महिलाओं ने जांच में बाधा डालने में प्रमुख भूमिका निभाई है. इन महिलाओं ने इंफाल-चुरचांदपुर राजमार्ग पर पुलिस वाहनों की जांच करने और कुछ दस्तावेजों को नष्ट कर दिया था.
चूड़ाचांदपुर के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “अगर मीरा पैबिस को ‘चुराचांदपुर’ लिखी पुलिस फाइलें मिलती हैं, तो वे उन्हें जला देती हैं, यही वजह है कि अब हम इन फाइलों को ले जाने के लिए अलग-अलग तरीकों का सहारा ले रहे हैं.”
इम्फाल पूर्व के एक दूसरे पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें इम्फाल पूर्व से पहाड़ियों में कुकी-प्रभुत्व वाले मोरेह में एक FIR भेजने में एक महीने से अधिक का समय लगा क्योंकि स्थानीय लोग फाइलों को भेजने की “अनुमति” नहीं दे रहे थे.
अधिकारी ने कहा, अकेले इम्फाल पूर्व के पुलिस स्टेशनों में 2,000 से अधिक जीरो FIR फंसी हुई हैं.
अधिकारी ने कहा, “ज़रा सोचिए, अगर कुछ FIR को निर्धारित स्थान पर पहुंचने में एक महीना लग रहा है, तो इन हजारों FIR को कितना समय लगेगा? और जांच कब शुरू होगी?”
उन्होंने कहा, “स्थानीय लोग पुलिस वाहनों को रोकते हैं और उनकी जांच करते हैं. अगर ट्रांसफर के दौरान इन FIR की फाइलें नष्ट हो गईं, जल गईं तो कोई रिकॉर्ड नहीं बचेगा. यह पुलिस के लिए भी बहुत चुनौतीपूर्ण स्थिति है.”
पुलिस द्वारा नियोजित एक स्टॉपगैप समाधान FIR तक पहुंचने के लिए “मानव कोरियर” का उपयोग करना है.
चूड़ाचांदपुर अधिकारी ने कहा, आमतौर पर फाइलें पार कराने के लिए एक मुस्लिम पुलिसकर्मी या ड्राइवर को भेजा जाता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि यह एक “जोखिम भरा प्रस्ताव” था क्योंकि तटस्थ समुदाय के एक “कूरियर” पर भी हमला होने का जोखिम था, अगर वह स्थानीय लोगों द्वारा आपत्तिजनक समझी गई फ़ाइलों को ले जाते हुए पकड़ा गया.
एक तीसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि चूंकि मणिपुर में हिंसा अभी तक कम नहीं हुई है, इसलिए अधिकांश बल “कानून और व्यवस्था” ठीक करने में लगे हुए हैं.
उन्होंने कहा, “हमें लोगों से उनके घरों के बाहर किसी भी भीड़ की थोड़ी सी भी हलचल पर कॉलें आती हैं. कई जगहें अभी भी हॉटस्पॉट हैं जहां रोजाना गोलीबारी की घटनाएं सामने आ रही हैं. हमें पहले उनपर ध्यान देना होता है.”
पकड़ो और छोड़ दो?
पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, मई की शुरुआत से 25 जुलाई के बीच गिरफ्तार किए गए 280 लोगों में से केवल 84 को न्यायिक हिरासत में भेजा गया, जबकि बाकी को जमानत दे दी गई है.
इसी अवधि में, पुलिस ने 14,898 सामान्य गिरफ़्तारियां भी दर्ज कीं, जिन्हें “निवारक हिरासत” के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन सभी व्यक्तियों को 24 घंटों के भीतर रिहा कर दिया गया.
पुलिस सूत्रों ने कहा कि जब संदिग्धों को गिरफ्तार करने और अदालत में पेश करने की बात आती है तो मणिपुर में कठिनाइयां बहुत होती हैं.
घाटी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में, समुदाय के नेतृत्व वाली सशस्त्र भीड़ अक्सर गिरफ्तारी के दौरान हस्तक्षेप करती है, जिससे पुलिस को बंदियों को रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. पुलिस सूत्रों ने कहा कि कुछ मामलों में, ये भीड़ आरोपियों की पेशी के दौरान अदालत कक्ष या न्यायाधीशों के आवास के बाहर भी दिखाई देती है.
इस स्थिति के कारण, पुलिस को सुनवाई के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी है, जिसमें कई बार मजिस्ट्रेटों को पुलिस स्टेशनों का दौरा करना पड़ता है.
इंफाल के एक दूसरे अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “अगर हम कोई गिरफ्तारी करते हैं, तो उस व्यक्ति के समुदाय के लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है और हमें घेर लेती है, जिससे हमें आरोपी को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है. वे हिंसक हो जाते हैं और हमें काम नहीं करने देते. अपराधियों को गिरफ्तार करना बेहद मुश्किल है.”
पहाड़ी जिलों को एक और समस्या का सामना करना पड़ता है: जेल के बुनियादी ढांचे की कमी. अगर गिरफ्तारियां हो भी जाती हैं, तो आरोपियों को हिरासत में लेने के लिए कोई उपयुक्त जगह नहीं है, क्योंकि एकमात्र जेल, जो काम कर रहा है, मैतेई-प्रभुत्व वाली इंफाल घाटी में स्थित है.
चूड़ाचांदपुर के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को पहाड़ियों से घाटी तक ले जाने के दौरान हिंसा की संभावना और काफी जोखिम रहता है.
नतीजतन, न्यायाधीशों को अक्सर गिरफ्तारी के दिन ही आरोपी को जमानत देने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
अधिकारी ने कहा, “इंफाल में केवल एक जेल है. हम पहाड़ियों से लोगों को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं और उन्हें घाटी में ले जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं. उन्हें बीच में ही रोक दिया जाएगा और संभवतः मैतेई द्वारा पीट-पीट कर मार डाला जाएगा. यही कारण है कि मजिस्ट्रेट भी गिरफ्तारी के उसी दिन उन्हें जमानत देने के लिए मजबूर हैं.”
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‘निष्पक्ष जांच के लिए कोई जगह नहीं’
मणिपुर में जातीय विभाजन पुलिस बल के अंदर भी देखने को मिल रहा है, जिसके कारण निष्पक्ष जांच करने में काफी बाधा उत्पन्न हो रही है.
सूत्रों ने कहा कि मई की शुरुआत में, 1,500 से अधिक मैतेई और कुकी पुलिसकर्मी ड्यूटी से ‘गायब’ हो गए, कुछ दिन बाद अपने घरों के नजदीकी पुलिस स्टेशनों में फिर से दिखाई दिए.
मैतेई-प्रभुत्व वाली इंफाल घाटी को सौंपे गए कुकी अधिकारी पहाड़ियों पर पीछे हट गए, जबकि कुकी क्षेत्रों में तैनात मैतेई अधिकारियों ने लौटने से इनकार कर दिया, जिससे पुलिसबलों में विभाजन और बढ़ गया. कुछ अधिकारी छुट्टी पर चले गए. कुछ बलों को घर के नजदीक ही दोबारा तैनात कर दिया गया और 50 लापता हैं.
जातीय विभाजन ने हिंसा से संबंधित मामलों को संभालने के तरीके को भी प्रभावित किया है.
कथित तौर पर घाटी में अपने तबाह हुए गांवों के बारे में कुकियों की शिकायतें इंफाल में दर्ज नहीं की गईं, क्योंकि वहां मैतेई लोगों का पुलिस स्टेशनों में दबदबा है. इसके विपरीत, कुकी-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में नुकसान को लेकर मैतेई द्वारा दर्ज करवाई गई शिकायत को अनसुलझा छोड़ दिया गया.
इस दरार के कारण यह आरोप भी है कि पुलिस अपने ही समुदाय के उपद्रवियों के साथ मिली हुई है.
सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “विभाजन इतना गहरा है कि निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना असंभव है. यदि कुकी अधिकारी को मैतई शिकायतकर्ता का मामला दिया जाता है, तो उसका पूर्वाग्रह उसे उचित जांच करने से रोक देगा. यह कोई आरोप नहीं बल्कि वास्तविक जमीनी हकीकत है.”
सूत्र ने कहा, “एक स्वतंत्र निकाय, एक विशेष जांच इकाई की जरूरत है, जो इन मामलों को देख सके.”
बिना नाम के भीड़ का पता लगाना
मणिपुर में हिंसा के संबंध में दर्ज की गई अधिकांश FIR “अज्ञात हमलावरों” के खिलाफ हैं जो बड़ी भीड़ का हिस्सा थे.
इस संघर्ष में अब तक 155 से अधिक लोग मारे गए हैं और कम से कम 670 लोग घायल हुए हैं, और लगभग सभी सशस्त्र भीड़ के शिकार थे.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्र ने कहा, “पूरे मणिपुर में ऐसे कई मामले दर्ज हैं जहां हमलावर अज्ञात हैं, और कोई प्रत्यक्षदर्शी या सीसीटीवी फुटेज भी उपलब्ध नहीं है.”
उन्होंने कहा, “तीन महीने से अधिक समय बीत चुका है और इन मामलों की जांच कहीं नहीं पहुंची है. पुलिस के लिए मामले दर मामले इन्हें उठाना और जांच शुरू करना, गिरफ्तारियां करना एक बड़ा काम होने जा रहा है.”
हालांकि, पुलिस ने कहा कि वे जांच शुरू करने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं. हालांकि, इम्फाल के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि यह एक बड़ी समस्या है क्योंकि स्थानीय लोगों का कोई समर्थन पुलिस को नहीं मिल रहा है.
उन्होंने कहा, “हमने संबंधित मामलों को देखने के लिए छोटी टीमें बनाई हैं. लोगों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है, लेकिन यह एक चुनौती है. जनता हमारी मदद करने आगे नहीं आ रही है. हमने कई जगहों से सीसीटीवी फुटेज बरामद किए हैं और लोगों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह एक बोझिल काम है.”
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि मणिपुर में पुलिस की स्वीकृत संख्या 25,080 है, जबकि वास्तविक संख्या 28,894 है. उनमें से, 15,200 नागरिक पुलिस में, 6,236 सशस्त्र पुलिस की विभिन्न इकाइयों में और 7,458 केंद्रीय वित्त पोषित भारतीय रिजर्व बटालियन (आईआरबी) में सेवारत हैं.
प्रति 108.98 नागरिकों पर एक पुलिस अधिकारी है, जो नागालैंड और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बाद देश में तीसरा सबसे बड़ा अनुपात है.
फिर भी, अधिकांश राज्यों की तरह, पुलिस को आवंटित बजट अपेक्षाकृत मामूली बना हुआ है. 2021 में, मणिपुर के कुल 20,222 करोड़ रुपये के बजट में से इसका हिस्सा 1,901 करोड़ रुपये था.
(संपादनः ऋषभ राज)
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