नई दिल्ली: नीति आयोग ने मल्टी डायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक) जारी किया है. जिसके अनुसार मध्यप्रदेश में 15.94 प्रतिशत अर्थात 1 करोड़ 36 लाख लोग गरीबी सीमा से बाहर आए हैं, यह मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.
मध्य प्रदेश में लोगों के पोषण, रहन-सहन, खान-पान के स्तर में लगातार सकारात्मक बदलाव आया है, जो केंद्र और राज्य सरकार के कार्यक्रमों और योजनाओं के परिणाम स्वरूप ही संभव हुआ है.
नीति आयोग के ‘राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांकः एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023’ के अनुसार वर्ष 2015-16 से 2019-21 की अवधि के दौरान रिकॉर्ड 13.5 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए. सुमन बेरी, उपाध्यक्ष, नीति आयोग ने नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के.पॉल, डॉ. अरविंद विरमानी और श्री बी.वी.आर. सुब्रमण्यम, सीईओ, नीति आयोग की उपस्थिति में रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बहुआयामी गरीबों की संख्या जो वर्ष 2015-16 में 24.85% थी गिरकर वर्ष 2019-2021 में 14.96% हो गई जिसमें 9.89% अंकों की उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है. इस अवधि के दौरान शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से गिरकर 5.27 प्रतिशत हो गई, इसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी तीव्रतम गति से 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई है.
उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए जो कि गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट है. 36 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों और 707 प्रशासनिक जिलों के लिए बहुआयामी गरीबी संबंधी अनुमान प्रदान करने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि बहुआयामी गरीबों के अनुपात में सबसे तीव्र कमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान राज्यों में हुई है.
एमपीआई मूल्य 0.117 से लगभग आधा होकर 0.066 हो गया है और वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच गरीबी की तीव्रता 47% से घटकर 44% हो गई है, जिसके फलस्वरूप भारत 2030 की निर्धारित समय सीमा से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा कम करने का लक्ष्य) को हासिल करने के पथ पर अग्रसर है. इससे सतत और सबका विकास सुनिश्चित करने और वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सरकार का रणनीतिक फोकस और एसडीजी के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का पालन परिलक्षित होता है.
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