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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशसाउथ पोल ही क्यों, तमाम मुश्किलों के बावजूद भी भारत क्यों उसी एरिया में भेज रहा चंद्रयान-3

साउथ पोल ही क्यों, तमाम मुश्किलों के बावजूद भी भारत क्यों उसी एरिया में भेज रहा चंद्रयान-3

चंद्रमा के साउथ पोल पर मिशन भेजना काफी कठिन है, फिर इसरो वहीं पर रोवर को लैंड कराना चाहता है तो इसके पीछे कुछ खास वजह है.

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नई दिल्लीः 14 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 चांद पर जाने के लिए भारत की धरती से रवाना हो जाएगा. ऐसा नहीं है कि भारत पहला देश है जो चंद्रमा पर अपना मिशन भेजने वाला है. इससे पहले सोवियत रूस, अमेरिका और चीन जैसे देश सफल मिशन, चंद्रमा की सतह पर भेज चुके हैं. लेकिन इनमें से किसी भी देश ने चंद्रमा के साउथ पोल पर अपना मिशन आज तक नहीं भेजा है. तो अगर सब कुछ ठीक रहता है तो यह पहली बार होगा जब कोई देश चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरेगा.

चंद्रमा का साउथ पोल का कुछ एरिया लगातार अंधेरे की आगोश में रहता है, क्योंकि वहां सूरज की रोशनी बिल्कुल ही नहीं पहुंचती. इसलिए वहां पर तापमान शून्य से 235 डिग्री तक नीचे रहता है. इतने कम तापमान में न सिर्फ किसी मशीन का काम करना भी काफी मुश्किल होता है बल्कि चंद्रमा के साउथ पोल पर तमाम क्रेटर्स के होने की वजह से भी लैंडिंग करना काफी मुश्किल है.

अब तक जो भी मिशन चांद पर गए हैं वे खासतौर पर इक्वेटर या विषुवत रेखा (चंद्रमा के बीचों-बीच से गुज़रने वाली और उसे उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव में बांटने वाली आभासी रेखा) पर या उसके आस-पास के एरिया में पहुंचे हैं. अब तक इक्वेटर से सर्वाधिक दक्षिण में 40 डिग्री अक्षांश तक नासा द्वारा सर्वेयर-7 को भेजा गया है.

चीन का चांग-4 भी 45 डिग्री अक्षांश पर चंद्रमा के फार रीजन (जो पृथ्वी से कभी नहीं दिखता) में उतरा था. नासा सहित तमाम स्पेस एजेंसीज़ चंद्रमा के साउथ पोल पर लैंड करना चाह रही हैं फिर भी वे अभी तक वहां लैंड नहीं कर पाई हैं. इन सब कठिनाइयों के बावजूद भारत साउथ पोल पर ही क्यों लैंड करना चाह रहा है तो इसके कुछ खास कारण हैं-

पानी की मौजूदगी की संभावना

चांद का साउथ पोल अपने आप में एक रहस्य है और न जाने कितने राज़ अपने सीने में दबाए हुए है. वैज्ञानिकों को लगता है कि चंद्रमा के दोनों ध्रुवों पर वॉटर आइस या बर्फ मौजूद है. इससे पहले चंद्रयान-1 की जानबूझकर चंद्रमा के साउथ पोल पर क्रैश लैंडिंग कराई गई थी जिससे वहां पानी की मौजूदगी के कुछ प्रमाण मिले थे. नासा ने भी अपने पोलर ऑर्बिट के ज़रिए इस तरह के साक्ष्य प्राप्त किए हैं.

Far side of the Moon. A circle of mottled gray covered in circular depressions of varying sizes.
फोटो क्रेडिटः ट्विटर । @NASAMoon

अब चंद्रयान-3 के ज़रिए चंद्रमा पर पानी मौजूद होने के प्रत्यक्ष प्रमाण जुटाए जा सकेंगे. चूंकि, साउथ पोल का तापमान काफी कम रहता है इसलिए यहां पर मौजूद पानी वॉटर आइस (Water Ice) के रूप में होगा. अगर चंद्रमा पर मौजूद पानी का हम उपयोग कर पाते हैं तो वहां बेस कैंप बनाने और मनुष्यों के रिहायश की काफी बड़ी संभावना पैदा होगी.


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सौरमंडल की स्टडी में सहायक

चूंकि चंद्रमा के साउथ पोल का तापमान काफी कम है इसलिए अरबों सालों से यहां की मिट्टी या पत्थरों के बीच जो कुछ भी मौजूद होगा वह वैसा का वैसा ही होगा, उसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया होगा. चूंकि सौर मंडल में मौजूद सभी पिंडों यानी कि ग्रहों और उपग्रहों का निर्माण एक ही प्रक्रिया से और एक साथ ही हुआ था इसलिए अगर यहां की मिट्टी का हम अध्ययन करते हैं तो हमें सौर मंडल की उत्पत्ति के बारे में पता लग सकता है.

यह सुविधा हमें पृथ्वी या मंगल इत्यादि के अध्ययन से नहीं मिलती क्योंकि वहां पर मौजूद वातारण के कारण अपरदन या इरोज़न की प्रक्रिया होती है जिससे उत्पत्ति के बाद से इनकी सतह में न जाने कितने परिवर्तन हो चुके हैं. उदाहरण के लिए पृथ्वी के साउथ पोल पर मौजूद बर्फ का अध्ययन करके वैज्ञानिकों ने यहां के वातावरण में समय के साथ बदलाव का पता लगाया गया है. चूंकि चंद्रमा पर ज्वालामुखी वगैरह भी नहीं आते इसलिए भी यहां की सतह में किसी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ है.

साउथ पोल-ऐटकेन बेसिन

एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि साउथ पोल-ऐटकेन बेसिन चांद पर मौजूद काफी बड़ा क्रेटर है, जिसकी व्यास करीब 2500 किलोमीटर है. इस क्रेटर में मेंटल की ऊपरी सतह या क्रस्ट की निचली सतह के सैंपल को काफी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. इससे चंद्रमा की आंतरिक सतह के स्ट्रक्चर के बारे में और उसके आधार पर अन्य ग्रहों की आंतरिक संरचना के बारे में स्टडी किया जा सकता है.

साउथ पोल पर मानव मिशन भेजेगा अमेरिका

भारत के साउथ पोल की महत्ता इससे भी समझ आती है कि चंद्रयान-3 के बाद 2025 में अमेरिका आर्टेमिस-3 भेजेगा जिसके ज़रिए वह चांद के साउथ पोल पर मानव को उतारने की योजना बना रहा है. इसके लिए नासा ने स्पेस-एक्स से टाई-अप भी किया है जो कि मनुष्य को वहां लैंड कराने के लिए ह्यूमन लैंडिंग सिस्टम (एचएलएस) बनाएगा.

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फोटो क्रेडिटः ट्विटर । @isro

आर्टेमिस-3 के तहत नासा ओरिऑन स्पेसक्रॉफ्ट से चार एस्ट्रोनॉट्स को चंद्रमा की ऑर्बिट में भेजेगा. यहां चंद्रमा की ऑर्बिट से दो एस्ट्रोनॉट्स को एचएलएस यानी ह्यूमन लैंडिंग सिस्टम पर ट्रांसफर किया जाएगा. योजना के मुताबिक इन दो एस्ट्रोनॉट्स में एक महिला को रखा जाना है. करीब एक हफ्ते ये दोनों एस्ट्रोनॉट्स चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी करेंगे और कुछ फोटोज़ वगैरह कलेक्ट करेंगे. इसके बाद वे पृथ्वी पर वापस हो लौट आएंगे.

नॉर्थ पोल क्यों नहीं

हालांकि, चंद्रमा के नॉर्थ और साउथ पोल की परिस्थियों या संरचना में बहुत ज़्यादा कुछ अंतर नहीं है फिर भी 1990 के बाद से चंद्रमा के साउथ पोल को तुलनात्मक रूप से थोड़ी ज़्यादा तवज्जो दी जाने लगी, क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि साउथ पोल की जितनी चाहिए उतनी बेहतरीन इमेजिंग या मैपिंग नहीं हो पाई है. इसीलिए दुनिया में लगभग हर स्पेस एजेंसी की नज़रें चंद्रमा के साउथ पोल पर लगी हुई हैं.

क्या हैं चुनौतियां

गड्ढे और गैर-समतल वाली सतह की वजह से साउथ पोल पर एक्स्प्लोर करना काफी कठिन है. इसके अलावा साउथ पोल का कुछ हिस्सा लगातार अंधेरे में रहता है जिसकी वजह से सूर्य की रोशनी आधारित ऑपरेशन करने में मुश्किल होती है. इसके अलावा चूंकि तापमान 230 डिग्री तक गिर जाता है इसलिए तमाम इक्विपमेंट्स भी ठीक ढंग से काम नहीं कर पाते हैं.

कुछ सेंटीमीटर्स से लेकर सैकड़ों किलोमीटर तक के क्रेटर्स के होने की वजह से लैंड करना और ऑपरेट करना काफी असुरक्षित होता है. चंद्रयान-2 के वक्त इसरो के पूर्व प्रमुख के सिवन ने इस तरह की चिंता ज़ाहिर की थी.


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