मुंबई: शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के दो फाड़ होने के बीच महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष तेज हो गया है क्योंकि वे जैसे को तैसा दिखाना चाहते हैं और ‘शक्ति प्रदर्शन’ के लिए बैठकों की योजना बन रही है.
यह स्थिति एक साल पहले हुई सेना बनाम सेना की लड़ाई की याद दिलाती है, जब वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विद्रोहियों का एक समूह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ आ गया था.
एनसीपी में दरार रविवार को तब सामने आई जब अजित पवार ने आठ अन्य एनसीपी विधायकों के साथ एकनाथ शिंदे-देवेंद्र फड़णवीस सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अजित पवार के साथ पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल और सांसद सुनील तटकरे समेत अन्य लोग मौजूद थे.
एनसीपी अब दो गुटों में बंट गई है और दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है- जैसे अयोग्यता याचिकाएं दायर करना, नए पदाधिकारियों की नियुक्ति करना और विधायकों और पार्टी कार्यकर्ताओं की अलग-अलग बैठकें बुलाना.
एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने नौ विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका शुरू की और शरद पवार गुट में जितेंद्र अवहाद को पार्टी का मुख्य सचेतक नियुक्त किया.
इस बीच, अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट ने जयंत पाटिल की जगह सुनील तटकरे को नया राज्य प्रमुख नियुक्त किया.
हालांकि, संकट के बीच, अजित पवार खेमे ने कहा कि एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार हैं- ठीक उसी तरह जैसे शिंदे और उनके खेमे के नेताओं ने शुरू में अपने विद्रोह के दौरान कहा था कि उद्धव ठाकरे उनके नेता हैं.
प्रत्येक गुट का समर्थन करने वाले विधायकों की सटीक संख्या स्पष्ट नहीं है.
दोनों गुटों ने शक्ति प्रदर्शन के लिए 5 जुलाई को दो अलग-अलग स्थानों पर विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की बैठकें बुलाई हैं. शरद पवार ने वाईबी चव्हाण केंद्र में एक बैठक की योजना बनाई है, जबकि अजित पवार बांद्रा में एमईटी केंद्र में बैठक करेंगे.
मंगलवार को अजित गुट मंत्रालय के सामने नये पार्टी कार्यालय का उद्घाटन करेगा.
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश अकोलकर ने दिप्रिंट को बताया, “उम्र और स्वास्थ्य शरद पवार के पक्ष में नहीं हैं, जबकि अजित पवार और छगन भुजबल जैसे लोग, जो पवार के करिश्मे पर आगे बढ़े, अब उनके साथ पवार नहीं हैं.”
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बर्खास्त करने की होड़
रविवार को मीडिया को दिए अपने संबोधन में शरद पवार ने कहा कि वह इस लड़ाई को सीधे जनता तक ले जाएंगे. फिर भी बाद में उस रात, जयंत पाटिल ने नौ बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को एक याचिका भेजी.
सोमवार को पार्टी ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने वाले पदाधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई शुरू की और उन्हें निष्कासित कर दिया.
शरद पवार ने “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए सुनील तटकरे और प्रफुल्ल पटेल को भी एनसीपी के सदस्य पद से हटा दिया.
जवाबी कार्रवाई में, अजित पवार गुट ने भी अध्यक्ष को एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया कि वे “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के लिए जयंत पाटिल और जितेंद्र अवहाद को अयोग्य घोषित कर रहे हैं.
अजित गुट का दावा है कि ज्यादातर विधायक उनके साथ हैं. इसके आधार पर उन्होंने अजित पवार को समूह का नेता नियुक्त किया लेकिन उन्होंने संख्या का खुलासा नहीं किया.
प्रफुल्ल पटेल ने सोमवार को मीडिया से कहा, “अगर हमारे पास विधायक नहीं होते तो हम राज्यपाल के पास नहीं जाते. हम एक पार्टी हैं, हमें संख्या बताने की जरूरत नहीं है.”
इस बीच, शरद पवार गुट ने विधायकों की वापसी के लिए अभी भी खिड़की खुली रखी है. हालांकि विधायकों के बीच असमंजस की स्थिति थी लेकिन सोमवार को अधिक से अधिक विधायकों ने सोशल मीडिया पर शरद पवार के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया.
पिछले साल से ही शिवसेना में दरार चल रही है, जब एकनाथ शिंदे और 40 अन्य विधायक महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार छोड़कर भाजपा के साथ शामिल हो गए थे. उन्होंने पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर दावा किया और लड़ाई ईसीआई और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक चली गई.
हालांकि चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह आवंटित किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी एमवीए सरकार को बहाल नहीं किया. अदालत ने मुख्य सचेतक की नियुक्ति और शपथ ग्रहण के लिए शिंदे गुट को आमंत्रित करने में राज्यपाल की भूमिका की भी आलोचना की.
उद्धव ठाकरे के गुट द्वारा दायर 16 शिवसेना विधायकों की अयोग्यता का मामला अभी भी स्पीकर के पास है, जिन्होंने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है.
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एनसीपी गुटों के लिए आगे क्या?
शरद पवार ने सोमवार को कराड में महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री और उनके आदर्श यशवंतराव चव्हाण के स्मारक पर जाकर अपना जवाबी हमला शुरू किया. वहां कई एनसीपी कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया.
उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह राज्य का दौरा करेंगे और इस लड़ाई को लोगों तक ले जायेंगे.
राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, “शरद पवार का ज़मीनी कार्यकर्ताओं के साथ एक मजबूत जुड़ाव है, जो कि उद्धव ठाकरे के पास नहीं है.” “उनकी पहुंच और लोकप्रियता केवल कुछ इलाकों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अजित पवार और उनके साथ मौजूद विधायकों के विपरीत, पश्चिमी महाराष्ट्र, उत्तरी महाराष्ट्र, मराठवाड़ा और विदर्भ तक है.”
शरद पवार ने खुद कहा था कि 1980 के दशक में जब उनकी पार्टी के विधायक टूट गए थे और उनके पास 58 में से सिर्फ छह विधायक बचे थे, तब भी वे अगले चुनाव में 50 से ज्यादा विधायक लाने में कामयाब रहे.
अकोलकर ने कहा, “हालांकि यह सच है, यह चार दशक पहले की बात है जब पवार छोटे थे और उन्हें कैंसर नहीं था. अब, उनमें जोश तो है लेकिन उम्र का कारक वास्तव में उनके पक्ष में नहीं है.”
उन्होंने कहा कि यह वास्तव में अजित के गुट के लिए एक परीक्षा है, जिसमें पवार का साथ नहीं है.
विश्लेषकों का यह भी कहना है कि जब पवार ने 1999 में पार्टी का पुनर्निर्माण किया, तो उनके साथ भुजबल, आर.आर. पाटिल, दिलीप वाल्से पाटिल और विजयसिंह मोहिते पाटिल जैसे कद्दावर नेताओं की एक टीम थी. अब वे उनके पास नहीं हैं. इसलिए यह एनसीपी प्रमुख के लिए एक परीक्षा है.
देसाई ने कहा कि जहां तक शिंदे की बगावत से तुलना की बात है तो जब शिंदे ने बगावत की थी तो अलग होने के लिए उन्होंने बाल ठाकरे और उनकी विचारधारा का सहारा लिया था. लेकिन अजित के गुट के लिए, चूंकि शरद पवार जीवित हैं और उनके पक्ष में नहीं हैं, इसलिए उनका नाम लेना मुश्किल होगा.
विश्लेषकों का कहना है कि सहानुभूति कारक शरद पवार के लिए उसी तरह काम करेगा, जिस तरह से यह उद्धव ठाकरे के लिए काम किया था लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सटीक आंकड़ों पर स्पष्टता मिलने के बाद ही तस्वीर साफ होगी कि फायदा किस तरफ है.
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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