नई दिल्ली: मोदी सरकार ने जब इस हफ्ते घोषणा की कि 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार हिंदू धार्मिक ग्रंथों के विशेषज्ञ गोरखपुर के प्रकाशक गीता प्रेस को दिया जा रहा है, तो इसने एक राजनीतिक विवाद को जन्म दिया और प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए पात्रता मानदंड के बारे में सवाल उठाए.
महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर 1995 में स्थापित, गांधी शांति पुरस्कार का उद्देश्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की सुविधा देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को पहचानना और प्रोत्साहित करना है.
उद्घाटन पुरस्कार तंज़ानिया के पूर्व राष्ट्रपति जूलियस न्येरेरे को उनके देश की स्वतंत्रता के लिए उनके अहिंसक संघर्ष के लिए दिया गया था और बाद के पुरस्कार विजेताओं में दक्षिण अफ्रीका के नेल्सन मंडेला जैसे व्यक्तियों से लेकर बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक जैसे संगठन शामिल हैं.
पुरस्कार के तहत विजेता को एक करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक ‘‘उत्तम पारंपरिक हस्तकला / हथकरघा वस्तु’’ दी जाती हैं. हालांकि, 1923 में स्थापित गीता प्रेस ने यह कहते हुए नकद पुरस्कार को अस्वीकार कर दिया कि वह “दान” स्वीकार नहीं करने की अपनी परंपरा के प्रति अडिग रहना चाहता है.
विशेष रूप से गांधी शांति पुरस्कार एक वार्षिक पुरस्कार है. किन्हीं अज्ञात कारणों से 2015 से 2018 तक लगातार चार वर्षों तक इसकी घोषणा नहीं की गई थी. इन वर्षों के पुरस्कारों की घोषणा बाद में 2019 में की गई थी. तब से, किसी विशेष वर्ष के लिए पुरस्कार की घोषणा करने में देरी होती रही है.
इस खबर में इस पुरस्कार और इसके पिछले विजेताओं और वर्ष 2021 के विजेता के रूप में गीता प्रेस के चयन से जुड़े विवाद का अवलोकन किया गया है.
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गांधी शांति पुरस्कार के लिए पात्र कौन?
गांधी शांति पुरस्कार की वेबसाइट के अनुसार, व्यक्तियों, संघों या संगठनों को दिया जाता है, जिन्होंने “शांति, अहिंसा, न्याय और सद्भाव और समाज के कम-विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के मानव कष्टों के सुधार के लिए सामाजिक रूप से योगदान देने के लिए निस्वार्थ रूप से काम किया है.”
जब तक इन मापदंडों को पूरा माना जाता है, तब तक पुरस्कार राष्ट्रीयता, जाति, भाषा या लिंग जैसे कारकों पर विचार नहीं करता है.
वेबसाइट के मुताबिक, किसी व्यक्ति या संगठन को नामित करने के लिए पिछले दशक में उनके योगदान को माना जाता है. हालांकि, इसमें आगे कहा गया है कि पुराने योगदानों पर भी विचार किया जा सकता है.
विजेता का फैसला कौन करता है?
गांधी शांति पुरस्कार जूरी का नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता आमतौर पर पदेन सदस्य होते हैं. अन्य सदस्य भिन्न हो सकते हैं.
साल 2015, 2016, 2017 और 2018 के पुरस्कार विजेताओं का चयन जनवरी 2019 में एक जूरी द्वारा किया गया था जिसमें प्रधानमंत्री मोदी, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, सांसद एल.के. अडवाणी, लोकसभा विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे शामिल थे.
2021 में 2019 के लिए विजेता का फैसला करने वाली जूरी में पीएम मोदी और दो पदेन सदस्य, साथ ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और एनजीओ सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक शामिल थे. इसी जूरी ने मार्च 2021 में विचार-विमर्श के बाद वर्ष 2020 के विजेता का भी फैसला किया.
हालांकि, इस साल जूरी का खुलासा नहीं किया गया है, सिवाय इसके कि इसकी अध्यक्षता पीएम मोदी ने की थी.
सरकार द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, “प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने 18 जून, 2023 को विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से गीता प्रेस, गोरखपुर को वर्ष 2021 के लिए गांधी शांति पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में चुनने का फैसला किया, गांधी शांति पुरस्कार 2021 मानवता के सामूहिक उत्थान में योगदान देने के लिए गीता प्रेस के महत्वपूर्ण और अद्वितीय योगदान को मान्यता देता है, जो गांधीवादी जीवन को सही अर्थों में व्यक्त करता है.”
इस वर्ष विजेता की घोषणा करते हुए, सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि गीता प्रेस ने “विज्ञापन पर कभी भरोसा नहीं किया” और सभी की भलाई के लिए प्रयास करता रहा है.
बयान में कहा गया है, “1923 में स्थापित गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है, जिसने 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें 16.21 करोड़ श्रीमद भगवद गीता शामिल हैं. संस्था ने राजस्व सृजन के लिए कभी भी अपने प्रकाशनों में विज्ञापन पर भरोसा नहीं किया है. गीता प्रेस अपने संबद्ध संगठनों के साथ, जीवन की बेहतरी और सभी की भलाई के लिए प्रयास करता है.”
प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक ट्वीट में गीता प्रेस को बधाई दी और कहा कि इसने “लोगों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने की दिशा में पिछले 100 वर्षों में सराहनीय कार्य किया है”.
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पिछले विजेताओं में कौन शामिल हैं?
पिछले साल, बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान को 2020 के लिए विजेता घोषित किया गया था.
उन्हें “बांग्लादेश की मुक्ति को प्रेरित करने, भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ और भ्रातृत्व संबंधों की नींव रखने और भारतीय उपमहाद्वीप में शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने” में उनके अपार और अद्वितीय योगदान के लिए मान्यता दी गई थी.
2015 में आरएसएस के पूर्व प्रचारक एकनाथ रानाडे द्वारा स्थापित एक आध्यात्मिक सेवा संगठन, विवेकानंद केंद्र को सामाजिक सेवा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पुरस्कार मिला. क्रमशः 2016 और 2017 के लिए, यह पुरस्कार बाल कल्याण-केंद्रित गैर-लाभकारी संस्थाओं अक्षय पात्र फाउंडेशन और एकल अभियान को दिया गया. कुष्ठ मुक्त दुनिया सुनिश्चित करने की दिशा में अपने काम के लिए जाने जाने वाले जापान के योहेई ससाकावा को पुरस्कार के 2018 संस्करण से सम्मानित किया गया.
2019 के लिए, ओमान के सुल्तान कबूस बिन सईद अल सैद को उनकी “अद्वितीय दृष्टि और नेतृत्व…भारत और ओमान के बीच संबंधों को मजबूत करने और खाड़ी क्षेत्र में शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों” के लिए पुरस्कार दिया गया.
पुरस्कार के अन्य प्राप्तकर्ताओं में नेल्सन मंडेला, सामाजिक उद्यमी मुहम्मद यूनुस द्वारा स्थापित माइक्रोफाइनेंस संगठन ग्रामीण बैंक और मानवाधिकार आइकन डेसमंड टूटू शामिल हैं.
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गीता प्रेस पर विवाद क्यों?
इस वर्ष की घोषणा ने महत्वपूर्ण राजनीतिक ध्यान आकर्षित किया है, विशेष रूप से कांग्रेस से, जिसने कहा कि गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को पुरस्कार देने के बराबर है.
इस बीच, बीजेपी ने कांग्रेस की आपत्तियों पर सवाल उठाते हुए उसके “हिंदू विरोधी” एजेंडे के लिए हमला किया है. विवाद तब शुरू हुआ जब आलोचकों ने दावा किया कि गीता प्रेस ने साहित्य को स्थान दिया है जो गांधीवादी विचारों के विपरीत था.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने रविवार को एक ट्वीट में कहा, “यह फैसला वास्तव में उपहास है और सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है.” उन्होंने पत्रकार अक्षय मुकुल की किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि किताब में ‘‘महात्मा के साथ उतार-चढ़ाव वाले संबंधों और राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक एजेंडे पर उनके साथ चली लड़ाइयों का खुलासा किया है.’’
The Gandhi Peace Prize for 2021 has been conferred on the Gita Press at Gorakhpur which is celebrating its centenary this year. There is a very fine biography from 2015 of this organisation by Akshaya Mukul in which he unearths the stormy relations it had with the Mahatma and the… pic.twitter.com/PqoOXa90e6
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 18, 2023
अपनी किताब में मुकुल ने तर्क दिया कि “गीता प्रेस और उसके प्रकाशनों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों ने एक हिंदू राजनीतिक चेतना, वास्तव में एक हिंदू सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.”
हालांकि, संस्कृति राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस पर “एक समावेशी समाज के मूल मूल्यों” को नकारने का आरोप लगाया.
सोमवार को एक ट्वीट में, लेखी ने कहा कि गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार “अंग्रेज़ों द्वारा गिरफ्तार क्रांतिकारी” थे और गोविंद बल्लभ पंत ने बाद में उन्हें भारत रत्न देने की सिफारिश की थी.
The founder of Geeta press was Hanuman Prasad Poddar Ji, a revolutionary arrested by British. Govind Vallabh Pant recommended him for Bharat Ratna . It’s first journal Kalyan fought for Dalit entry in temples. Low cost publications helped people retain their faith & pride. By… https://t.co/7Q7Lcq1z7S
— Meenakashi Lekhi (@M_Lekhi) June 19, 2023
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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