2024 में आम चुनाव से पहले इस साल के अंत में पांच राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं.
तो, इन राज्यों की वित्तीय स्थिति कैसी है? क्या वे पिछले वर्ष के अपने बजट में किए गए वादे को पूरा करने में सक्षम थे? क्या उनके प्रतिबद्ध व्यय उनके राजस्व के एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं? क्या उनके पास अतिरिक्त खर्च करने के लिए राजकोषीय स्थिति ठीक है? कर्ज चुकाने के विभिन्न संकेतकों पर ये राज्य कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं?
हम चार बड़े मतदान वाले राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए इनमें से कुछ मेट्रिक्स पर नजर डाल रहे हैं.
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मध्य प्रदेश- कैपेक्स और राजस्व अधिशेष पर प्राथमिकता
पूंजीगत व्यय का विकास पर अधिक प्रभाव देखा जाता है. राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने और मुद्रास्फीति के दबावों को नियंत्रित करने के लिए उच्च पूंजी परिव्यय महत्वपूर्ण है. राज्यों के व्यय की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए एक प्रमुख अनुपात कुल व्यय में पूंजीगत व्यय का हिस्सा है.
इस मीट्रिक पर मध्य प्रदेश ने 2022-23 के लिए भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा जारी अनंतिम वास्तविक आंकड़ों के अनुसार, पूंजीगत व्यय के साथ एक प्रभावशाली प्रदर्शन दिखाया है, जो कुल व्यय का 18 प्रतिशत है.
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए, बजट में 45,685.98 करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय का अनुमान लगाया गया था. राज्य बजटीय पूंजीगत व्यय का 97 प्रतिशत से अधिक खर्च करने में सफल रहा है. चालू वित्त वर्ष के लिए भी, राज्य ने पूंजीगत व्यय और संपत्ति निर्माण को बढ़ावा देने के लिए कुल व्यय का 19 प्रतिशत से अधिक का बजट रखा है.
राज्य के राजकोषीय ढांचे की एक और सकारात्मक विशेषता यह है कि यह अपने राजस्व खाते में अधिशेष (सरप्लस) प्राप्त करने में सक्षम रहा है. 2022-23 के बजट में 3,736 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे का अनुमान लगाया गया था, संशोधित अनुमानों में 1,499 करोड़ रुपये के राजस्व अधिशेष का अनुमान लगाया गया था. अनंतिम वास्तविक बताते हैं कि मध्य प्रदेश ने बेहतर प्रदर्शन किया है और अपने राजस्व खाते में 1,829 करोड़ रुपये का अधिशेष हासिल करने में कामयाब रहा है.
राजस्व अधिशेष (सरप्लस) के साथ, राजकोषीय घाटा भी पिछले वित्तीय वर्ष के बजट में अनुमानित तुलना में कम हो गया है. वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में 52,511 करोड़ रुपये के राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया गया था. संशोधित अनुमानों के अनुसार, राजकोषीय घाटा कम होकर 47,339 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था. अनंतिम (प्रोविजनल) आंकड़े बताते हैं कि राज्य का वास्तविक राजकोषीय घाटा 43,425 करोड़ रुपये है.
पंद्रहवें वित्त आयोग ने केंद्र और राज्य सरकारों के राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए एक ग्लाइड पथ का प्रस्ताव दिया है. राज्यों के लिए, उसने 2021-22 में 4 प्रतिशत, 2022-23 में 3.5 प्रतिशत और 2023-26 के दौरान 3 प्रतिशत के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटे की सीमा की सिफारिश की. सरकार ने बिजली क्षेत्र में सुधार करने पर जीएसडीपी के 0.5 प्रतिशत के अतिरिक्त राजकोषीय घाटे की अनुमति दी है.
मध्य प्रदेश का राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 3.6 प्रतिशत पर 2022-23 में 3.5 प्रतिशत कैप के करीब था, लेकिन चालू वर्ष के लिए, राज्य ने राजकोषीय घाटे को जीएसडीपी के 4 प्रतिशत पर अनुमानित किया है. राज्य की राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन कानून के हिस्से के रूप में जारी बयानों से पता चलता है कि 4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में कैपेक्स के लिए केंद्र सरकार से ऋण के रूप में अनुमानित 9,500 करोड़ रुपये शामिल हैं.
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राजस्थान- पूंजीगत व्यय में कटौती और राजकोषीय घाटे में वृद्धि
राजस्थान द्वारा पूंजीगत व्यय 2022-23 के अनंतिम (प्रोविजनल) आंकड़ों के अनुसार कुल व्यय का केवल 8 प्रतिशत था.
इसके अलावा, 19,794 करोड़ रुपये का वास्तविक पूंजीगत व्यय 39,299 करोड़ रुपये के बजटीय पूंजीगत व्यय का सिर्फ आधा था. राज्य ने 2022-23 के बजट अनुमानों की तुलना में अपने राजस्व व्यय में भी कटौती की है. अनंतिम आंकड़ों के अनुसार वास्तविक राजस्व व्यय बजटीय राजस्व व्यय का 87 प्रतिशत है.
राजस्व व्यय में मध्यम कटौती और पूंजीगत व्यय में तेज कटौती के परिणामस्वरूप, राज्य अपने राजकोषीय घाटे को बजट अनुमानों के अनुसार 78,850 करोड़ रुपये से कम करके अनंतिम वास्तविक के रूप में 49,182 करोड़ रुपये करने में सक्षम रहा है.
मध्य प्रदेश की तरह, राजस्थान ने भी चालू वर्ष के लिए जीएसडीपी के 4 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया है. यहां तक कि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान इसका राजकोषीय घाटा जीएसडीपी के 4.3 प्रतिशत पर बढ़ा था. जीएसडीपी अनुपात और राजस्व घाटे के लिए ऋण जैसे अन्य संकेतकों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के राज्यों के वित्त के विश्लेषण के अनुसार राजस्थान अत्यधिक तनावग्रस्त राज्यों में से एक है.
छत्तीसगढ़- राजकोषीय घाटा लक्ष्य के भीतर
सभी चार बड़े चुनावी राज्यों में से छत्तीसगढ़ के लिए पूंजीगत व्यय का आवंटन सबसे कम है. पिछले वित्तीय वर्ष के लिए, राज्य ने पूंजीगत व्यय के लिए 17,894.91 करोड़ रुपये का बजट रखा था लेकिन बजट राशि का 77 प्रतिशत खर्च करने में सफल रहा.
वास्तविक पूंजीगत व्यय कुल व्यय के अनंतिम (प्रोविजनल) वास्तविक आंकड़े का लगभग 14 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश के समान, छत्तीसगढ़ ने भी अपने राजस्व खाते में 8,000 करोड़ रुपये का अधिशेष (सरप्लस) दर्ज किया, जिसका अर्थ है कि अनंतिम वास्तविक राजस्व प्राप्तियां राजस्व व्यय से अधिक हो गईं. चालू वित्त वर्ष के लिए भी राज्य ने राजस्व अधिशेष हासिल करने का लक्ष्य रखा है.
राजकोषीय स्थिति पर जोर इसके राजकोषीय घाटे से जीएसडीपी अनुपात से स्पष्ट है. राज्य ने पिछले वित्तीय वर्ष के लिए अपने राजकोषीय घाटे को जीएसडीपी अनुपात में 3.17 प्रतिशत पर आंका है. चालू वित्त वर्ष के लिए भी, राज्य ने जीएसडीपी के 3 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया है. राज्य की मध्यम अवधि की राजकोषीय नीतिगत बयान अगले दो वर्षों के लिए भी जीएसडीपी के 3 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का पालन करने का सुझाव देती है.
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तेलंगाना- बहुत सीमित रास्ते
तेलंगाना को पूंजीगत व्यय में पिछड़ता हुआ देखा गया है. अनंतिम आंकड़ों के अनुसार, राज्य पूंजीगत व्यय के लिए अपने बजटीय आवंटन का केवल 60 प्रतिशत ही खर्च कर पाया है. 2022-23 में इसका पूंजीगत व्यय इसके कुल व्यय का महज 10 फीसदी है.
शेष 90 प्रतिशत राजस्व व्यय के हिसाब से है. राजस्व व्यय के भीतर, प्रतिबद्ध व्यय जिसमें आम तौर पर वेतन, पेंशन और ब्याज के भुगतान पर व्यय शामिल होता है, एक बड़ा हिस्सा है. वेतन, पेंशन और ब्याज पर व्यय पिछले वित्तीय वर्ष के बजटीय व्यय से अधिक है.
बाकी तीन चुनावी राज्यों ने मोटे तौर पर पिछले वित्तीय वर्ष में बजटीय आवंटन की तुलना में प्रतिबद्ध मदों पर अपने खर्च को सीमित करने में कामयाबी हासिल की है. विशेष रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए ब्याज भुगतान पर खर्च बजटीय राशि से कम है.
राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में प्रतिबद्ध व्यय: राज्यों की स्थिति?
पूर्ण स्तरों को देखने के अलावा, राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में प्रतिबद्ध व्यय की हिस्सेदारी का आकलन करना महत्वपूर्ण है.
चार राज्यों में से राजस्व प्राप्तियों में प्रतिबद्ध व्यय का सर्वाधिक हिस्सा राजस्थान का है. 2022-23 में, अनंतिम अनुमान बताते हैं कि राजस्व प्राप्तियों का 59 प्रतिशत वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च किया गया था. राजस्व प्राप्तियों में प्रतिबद्ध व्यय का उच्च हिस्सा उत्पादक व्यय में वृद्धि की बहुत कम गुंजाइश छोड़ता है.
अनंतिम अनुमानों के अनुसार तेलंगाना में भी हिस्सेदारी 33 प्रतिशत (बजट अनुमान) से बढ़कर 45.2 प्रतिशत हो गई.
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बकाया देनदारियों में बढोतरी
ऋण स्थिरता के दृष्टिकोण से, राज्यों की कुल बकाया देनदारियों का संचय विचार करने योग्य है. राज्यों की बकाया देनदारियों में राज्य विकास ऋण (एसडीएल), राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) से उधार, उदय योजना के तहत उधार, वित्तीय संस्थानों और केंद्र सरकार से उधार शामिल हैं.
बकाया देनदारियों के मामले में चारों राज्यों की स्थिति अलग है.
राजस्थान ने 2014-15 से बकाया देनदारियों को निरंतर बढ़ते देखा है. 2014-15 में बकाया देनदारियां 1.48 लाख करोड़ रुपये थीं, जो वित्त वर्ष 2021-22 तक बढ़कर 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गईं.
तेलंगाना ने 2016-17 में तेज उछाल देखा और तब से एक समान गति है. छत्तीसगढ़ में बकाया देनदारियों के संचयन की गति सबसे धीमी है. मध्य प्रदेश की बकाया देनदारियों में केवल कोविड के बाद की अवधि में वृद्धि दिखाई देती है.
देनदारियों के संचय के परिणामस्वरूप ब्याज भुगतान के लिए आवंटित राजस्व प्राप्तियों का एक उच्च हिस्सा होता है. चौदहवां वित्त आयोग 10 प्रतिशत की सीमा को सहनीय मानता है.
राजस्थान के लिए, राजस्व प्राप्तियों के लिए ब्याज भुगतान (आईपी-आरआर) अनुपात, राज्यों के राजस्व पर ऋण सेवा बोझ का एक उपाय, लगभग 14-15 प्रतिशत रहा है.
अनंतिम (प्रोविजनल) अनुमानों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 2022-23 के लिए सबसे उत्साहजनक अनुपात 6 प्रतिशत है.
(राधिका पांडे एसोसिएट प्रोफेसर हैं और रचना शर्मा नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफपी) में फेलो हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(संपादन: कृष्ण मुरारी)
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