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Monday, 6 May, 2024
होममत-विमतजैक डॉर्सी, ट्विटर और किसान आंदोलन: सोशल मीडिया युग में विचारों की स्वतंत्रता की सीमा और राष्ट्र सत्ता

जैक डॉर्सी, ट्विटर और किसान आंदोलन: सोशल मीडिया युग में विचारों की स्वतंत्रता की सीमा और राष्ट्र सत्ता

भारत सरकार और सत्ताधारी बीजेपी ने इन आरोपों को गलत बताया है और इन्हें राजनीति से प्रेरित कहा है. सरकार का पक्ष ये है कि ट्विटर भारतीय कानूनों को मानने से मना कर रहा था और जो भी कार्रवाई हुई है, वह इसी संदर्भ में है.

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सोशल मीडिया ने दुनिया में बातचीत, संवाद और विचार–विमर्श का तरीका हमेशा के लिए बदल दिया है. इसका असर राजनीतिक संवाद, आंदोलनों के प्रचार और विचार तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सब पर पड़ा है. लोकतंत्र और सोशल मीडिया का आपसी संबंध भी अब बहस का विषय है. खासकर इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया कंपनियां विचार और अभिव्यक्ति की आजादी के सिद्धांत के आधार पर खुद को राष्ट्र और राष्ट्रीय संप्रभुता से ऊपर मान रही हैं. ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डॉर्सी ने किसान आंदोलन के दौरान ट्विटर को कंट्रोल करने की भारत सरकार की कोशिशों को लेकर हाल में जो बयान दिया है, उससे ये विवाद तेज हो गया है.

एक इंटरव्यू में जैक डॉर्सी ने ट्विटर सीईओ के अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए दावा किया कि किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार ने किस तरह ट्विटर को अनुशासित करने की कोशिश की और इस क्रम में ट्विटर का भारत का ऑफिस बंद करने की धमकी दी गई और ट्विटर के कर्मचारियों के घरों पर छापे डाले गए.

भारत सरकार और सत्ताधारी बीजेपी ने इन आरोपों को गलत बताया है और इन्हें राजनीति से प्रेरित कहा है. सरकार का पक्ष ये है कि ट्विटर भारतीय कानूनों को मानने से मना कर रहा था और जो भी कार्रवाई हुई है, वह इसी संदर्भ में है. भारत के सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इस “खुलासे” को आने वाले लोकसभा चुनावों से जोड़ते हुए कहा है कि “जब भी चुनाव आते हैं, कई विदेशी शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं.”

ये पूरा घटनाक्रम राष्ट्रीय सरकारों और ग्लोबल सोशल मीडिया कंपनियों के पेचीदा संबंधों और उनके आपसी टकराव को सामने लाती है. सवाल ये है कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या बेलगाम हो सकती है और क्या इस स्वतंत्रता को राष्ट्रीय सत्ता और राष्ट्र हित से ऊपर माना जाना चाहिए. जब विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राष्ट्रीय हितों, जिसकी व्याख्या कोई सरकार ही कर सकती है, से टकराए तो सरकार को क्या करना चाहिए?

किसान कानूनों की ही बात करें तो भारत की संसद के दोनों सदनों ने तीन कानून पास किए. भारतीय संविधान के मुताबिक, संसद ऐसा करने में सक्षम है और संसद को ये अधिकार जनता ने दिया है. इसके लिए देश में चुनाव होते हैं. इन कानूनों के पास होने के बाद दिल्ली के आसपास के राज्यों में किसान, आंदोलन के पर उतर आए और उन्होंने दिल्ली पहुंचने के तीन हाईवे जाम कर दिए.

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इस आंदोलन की व्यापक चर्चा सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर पर हुई और कई नामचीन विदेशी शख्सियतों और संस्थाओं को समर्थन इस आंदोलन को मिला. इस आंदोलन की चर्चा को फैलाने में सोशल मीडिया ने भूमिका निभाई. जैक डॉर्सी सरकार पर जो आरोप लगा रहे हैं, उसका संदर्भ यही है. बहरहाल दबाव में आकर सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए.

सवाल ये है कि क्या संसद में पास कानून को पलटने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों को माहौल बनाने दिया जा सकता है? कोई कह सकता है कि इस मामले में लोकतंत्र और जनता की जीत हुई है, लेकिन यहां जनता कौन है? क्या सरकार ने भूमिहीन खेत मजदूरों से बात करके उनकी राय ली.


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क्या व्यापारियों से लेकर अनाज के ग्राहकों से पूछा गया कि उनकी राय क्या है? क्या अन्य राज्यों, खासकर पूर्वी और दक्षिणी भारत के राज्यों से पूछा गया कि पश्चिमी और उत्तर भारत में एमएसपी पर कृषि उपज की जो व्यापक खरीदारी होती है, उस पर उनकी क्या राय है? इन कानूनों को लाने के लिए सरकार के जो तर्क थे, और जो फायदे गिनाए गए, उनका क्या हुआ? क्या दिल्ली बॉर्डर पर पांच हजार टैक्टर खड़े कर देने से कानून बनते और बिगड़ते हैं? क्या सोशल मीडिया कंपनियां ये तय करेंगी कि भारत में कौन सा कानून बनेगा और कौन सा नहीं?

विदेशी सोशल मीडिया कंपनियों की अपनी विचारधारा हो सकती है, जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो सकती हैं. साथ ही उनके कमर्शियल हित भी होते हैं क्योंकि उनको भी अपने शेयरहोल्डर्स को मुनाफा कमा कर देना होता है. इसलिए ये संभव है कि मुनाफे के लिए कोई सोशल मीडिया कंपनी किसी राष्ट्र के हितों के खिलाफ काम करे. क्या ऐसी स्थिति में राष्ट्रों के पास ये कानूनी अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे इन कंपनियों को नियंत्रित कर सकें?

वैसे भी ट्विटर में मालिकाना बदलने और एलन मस्क द्वारा ट्विटर का कंट्रोल हाथ में लेने के बाद, ट्विटर ने भारत में काम करने का तरीका बदल लिया है और भारतीय कानूनों के दायरे में रहना स्वीकार कर लिया है. एलन मस्क ने कहा है कि “भारत में सोशल मीडिया संबंधी कानून और नियम बेहद सख्त हैं और ट्विटर इन कानूनों से ऊपर नहीं है.” स्पष्ट है कि ट्विटर के नए मालिक ने जैक डॉर्सी का तरह टकराव का रास्ता नहीं चुना.

मेरा मानना है कि सोशल मीडिया कंपनियों को राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करना चाहिए और ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे किसी देश में बलवा या उत्पात हो. इन कंपनियों को सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि टकराव की स्थिति न आए. दूसरी तरफ ये भी जरूरी है कि सरकारें सोशल मीडिया पर मनमाने तरीके से लगाम न कसे और राष्ट्रीय हित के नाम पर वाजिब असंतोष और सवालों को न दबाए.

इसका सही तरीका है कि सरकार अपने संविधान के हिसाब से सोशल मीडिया संबंधी कानून और नियम बनाए और सभी सोशल मीडिया संस्थान उस देश में उन्हीं कानूनों के तहत चलें. इस संबंध में कोई मॉडल अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क भी बनाया जा सकता है. विभिन्न राष्ट्र उसे आधार बनाकर, अपने देश की विशिष्ट परिस्थिति के हिसाब से कानून बना सकते हैं. मिसाल के तौर पर, भारत में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान में ही निहित है, पर यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है. वाजिब कारणों से, जिसका जिक्र संविधान में है, विचार और अभिव्यक्ति पर पाबंदियां लगाई जा सकती हैं.

जैक डॉर्सी को ये बात समझनी चाहिए. डॉर्सी बेशक लोकतंत्र की बात कर रहे हैं. पर डॉर्सी के समय ट्विटर बेहद अलोकतांत्रिक था. ट्विटर उस समय मनमाने तरीके से चुनिंदा लोगों को वेरिफिकेशन यानी ब्लू टिक देकर उनको विचार और ज्ञान के नेता के पद पर बिठा रहा था, जिससे विचार और अभिव्यक्ति के मामले में असमानता आ रही थी. इस समस्या को एलन मस्क ने काफी हद तक दूर किया है.

इस बात को भी समझना चाहिए कि डिजिटल दौर में सोशल मीडिया की विचार निर्माण में बहुत बड़ी भूमिका हो चुकी है. वह सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक तौर पर भी हस्तक्षेप करने लगा है. सोशल मीडिया चुनावों को प्रभावित कर रहा है. यही कारण है कि हर दल अपनी सोशल मीडिया टीम बनाते हैं या किसी कंपनी से ये काम करवाते हैं. सोशल मीडिया पर आरोप लग चुका है कि उसने अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की. म्यांमार में फेसबुक पर दंगा कराने का आरोप लगा है.

(दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व प्रबंध संपादक हैं, और उन्होंने मीडिया और समाजशास्त्र पर किताबें लिखी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Profdilipmandal है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः आशा शाह)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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