चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी मंगोलिया की यात्रा के दौरान सीमा सुरक्षा को मजबूत करने का आह्वान किया. चीनी राष्ट्रपति ने गलवान हिंसा की वर्षगांठ से पहले लीक वीडियो को लेकर भारतीय सेना पर भी निशाना साधा. शी ने इसे एक नए दुष्प्रचार अभियान का हिस्सा बता दिया. व्हाइट हाउस ने 2019 से क्यूबा में बीजिंग के जासूसी अड्डे के अस्तित्व की पुष्टि की है. अमेरिकी सीनेटर का कहना है कि बीजिंग के रक्षा बजट को बहुत कम करके आंका गया है. इस हफ्ते के चायनास्कोप में पढ़िए चीन और दुनिया की अनकही कहानियां.
सप्ताह भर में चीन
शी ने एक बार फिर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से चीन की सीमाओं की रक्षा करने और इनर मंगोलिया की अपनी यात्रा के दौरान “स्टील की महान दीवार” बनाने के अपने प्रण को दोहराया. उन्होंने उत्तरी चीन के आंतरिक मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र में सीमा प्रबंधन और नियंत्रण और सीमा सैनिकों के विकास पर की गई एक रिपोर्ट के बाद यह टिप्पणी की.
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, “शी जिनपिंग ने जोर देकर कहा कि देश पर शासन करने के लिए, सीमाओं पर मजबूत होना जरूरी है. सीमाओं की रक्षा देश में बेहतर शासन के लिए बहुत जरूरी है. यह राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा है. साथ ही यह विकास, स्थिरता, विदेशी मामलों की समग्र स्थिति से और एक मजबूत देश के निर्माण से संबंधित है. राष्ट्रीय कायाकल्प के लिए यह अत्यंत आवश्यक है.”
ताइवान पर चर्चा करते समय चीन ने अक्सर सीमाओं की रक्षा करने और ‘राष्ट्रीय कायाकल्प’ की मांग की है. भारत, रूस, या मंगोलिया के साथ चीन की सीमाओं को लेकर चीन संवेदनशील रहा है.
लेकिन सीमा की रक्षा के बारे में इन बार-बार के दावों का क्या मतलब है? 2015 से, चीन ने पीएलए में गैर-कमीशन अधिकारियों (एनसीओ) को शामिल करने और बढ़ावा देने की कोशिश की है. ये अधिकारी अब चीन के सीमावर्ती इलाकों में तैनात ब्रिगेड सिस्टम का हिस्सा हैं. पीएलए के हिस्से के रूप में कार्य करने के लिए अधिकारियों को लगातार प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है, जो नियमित प्रचार सामग्री और अध्ययन सत्रों के माध्यम से किया जाता है.
शी के हस्ताक्षर अब रक्षा बलों में गहराई से घुस गए हैं जो आंतरिक मंगोलिया से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) तक विशाल सीमाओं की रक्षा करते हैं.
चीन का विशाल भूगोल एक विस्तृत रेगिस्तान के साथ कई अन्य तरह की चुनौतियों का सामना भी करता है.
शी की इनर मंगोलिया की यात्रा सीमावर्ती क्षेत्रों की रक्षा करने से कहीं अधिक थी. उन्होंने ‘थ्री-नॉर्थ शेल्टरबेल्ट फॉरेस्ट प्रोग्राम’ या ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ नामक वन संरक्षण अभियान के माध्यम से क्षेत्र में जंगल और खेत की रक्षा करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया. चीन गोबी रेगिस्तान का दायरा लगातार बढ़ने के कारण गंभीर समस्या का सामना कर रहा है, जिसके कारण पिछले कुछ वर्षों में खेतों की उत्पादक ऊपरी मिट्टी नष्ट हो रही है. इसके कारण रेगिस्तान के सतह क्षेत्र का विस्तार हुआ. बीजिंग ने वन अतिक्रमण को रोकने के लिए पवनरोधी वन पट्टियों की एक श्रृंखला बनाने के लिए एक परियोजना तैयार की है.
हालांकि ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ परियोजना 2009 के आसपास शुरू की गई थी लेकिन रेगिस्तान के विकास को रोकने में इसकी प्रभावशीलता के मिश्रित परिणाम सामने आए हैं.
गलवान घाटी संघर्ष की 15 जून को वर्षगांठ है. इससे पहले ही कुछ नकली ट्विटर हैंडल जो संभवतः बीजिंग या इस्लामाबाद से जुड़े हुए हैं– ने भारत-चीन सीमा शत्रुता को लक्षित कर दोबारा टारगेट करना शुरू कर दिया है.
ट्विटर पर एक लंबे थ्रेड में झड़प के बाद पीएलए और भारतीय सैनिकों की ग्राफिक तस्वीरें और वीडियो 10 जून को साझा किए गए थे. उनमें से कुछ में भारतीय सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भी दिखाई दे रहे हैं.
लीक हुई पुरानी एक तस्वीर में एक भारतीय सेना के जवान की रेजीमेंट के नाम और सर्विस नंबर के साथ पहचान की गई है.
इससे पहले पीएलए सैनिकों द्वारा रिकॉर्ड किए गए झड़प के वीडियो पहले चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर लीक हुए थे और बाद में वे ट्विटर पर सामने आए थे. लेकिन इस बार नकली अकाउंट ने भारतीय सेना को कमजोर स्थिति में दिखाने के लिए वीडियो को सीधे ट्विटर पर शेयर किया.
भारतीय सेना को निशाना बनाने वाला यह वीडियो चीन के डिजिटल वार का एक हिस्सा है. हालांकि चौंकाने वाली बात यह है कि लीक से पता चलता है कि गलवान से पहले की यथास्थिति पहले की तरह ही गंभीर स्तर पर बनी हुई है.
यह भी पढ़ें: इंडिया गेट बासमती राइस दिल्ली के नया बाज़ार से शुरू हुआ था, यह आज भी सबसे आगे बना हुआ है
विश्व समाचार में चीन
हाल के वर्षों में, चीन के सैन्य बजट खर्च के बारे में संदेह सामने आया है क्योंकि कई लोगों का मानना है कि आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट की गई संख्या को बहुत कम करके आंका गया है.
अमेरिकी सीनेटर डेन सुलिवान के मुताबिक, चीन रक्षा पर करीब 700 अरब डॉलर खर्च करता है.
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “सुलिवन ने सीनेट में कहा है कि अमेरिकी खुफिया अधिकारियों ने हाल ही में एक ब्रीफिंग में उन्हें बताया कि सही आंकड़ा $700 बिलियन के करीब है.”
सुलिवन ने 1 जून को सीनेट में इसके बारे में बताया जिसके बाद से प्रस्तावित सैन्य बजट में कटौती को लेकर बहस शुरू हो गई है. बीजिंग अपनी सेना पर आधिकारिक तौर पर घोषित राशि से कहीं अधिक खर्च करता है लेकिन हमें नहीं पता कि 700 अरब डॉलर का आंकड़ा कितना सही है.
यदि यह सच है, तो चीन और अमेरिकी सैन्य बजट ($840 बिलियन) के बीच का अंतर उतना बड़ा नहीं होगा जितना कि बीजिंग दुनिया को बताता है.
क्यूबा में एक चीनी जासूस अड्डे के बारे में अफवाहों के बीच चीन के सैन्य बजट को लेकर तेज बहस शुरू हो गई है.
8 जून को, वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया कि क्यूबा बीजिंग के साथ एक खुफिया पोस्ट बनाने को लेकर सहमत हो गया, ताकि निकटवर्ती अमेरिकी मुख्य भूमि से सिग्नल संचार पर कब्जा किया जा सके.
पेंटागन ने शुरू में रिपोर्ट को गलत बताते हुए रिपोर्ट का खंडन किया.
रविवार को, व्हाइट हाउस ने पुष्टि की कि चीन ने 2019 से सिग्नल संग्रह के लिए क्यूबा में एक बेस का इस्तेमाल किया था, लेकिन इस बेस को ‘नया’ कहने वाली डब्ल्यूएसजे की रिपोर्ट गलत थी.
इस सप्ताह अवश्य पढ़ें
डिकोडिंग चाइनीज पॉलिटिक्स- एशिया सोसाइटी
कोंग यिजी: द मीम्स डेट ले बेयर चाइनीज यूथ डिसल्यूसमेंट – ग्रेस त्सोई
मोदी के महत्वाकांक्षीद रोड टू मोदीज एंबीस्नस मेक इन इंडिया गोयल रन्स थ्रू चाइना – वृष्टि बेनीवाल और रुचि भाटिया
क्या चीन और भारत एक और घातक सीमा संघर्ष के लिए बाध्य हैं? – जॉन पोलक और डेमियन साइमन
(लेखक स्तंभकार और फ्रीलांस पत्रकार हैं, फिलहाल लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज (एसआऐएस), से चीन पर फोकस वाली अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एमएससी कर रहे हैं. वे पहले बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में चीन के मीडिया पत्रकार थे. उनका ट्विटर हैंडल @aadilbrar है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ओडिशा ट्रेन दुर्घटना ने चीन में सुर्खियां बटोरी क्योंकि भारत के साथ पीछे हटने का मुद्दा दबा रह गया