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Friday, 22 November, 2024
होमदेशनाइटलाइफ के लिए असुरक्षित? दिल्ली को 24/7 शहर बनाने की कोशिश धीमी शुरुआत क्यों साबित हो रही है?

नाइटलाइफ के लिए असुरक्षित? दिल्ली को 24/7 शहर बनाने की कोशिश धीमी शुरुआत क्यों साबित हो रही है?

अप्रैल में मोदी सरकार को सौंपी गई दिल्ली-2041 के लिए डीडीए की मास्टर प्लान का उद्देश्य शहर की रात की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है, लेकिन बाधाओं में सुरक्षा मुद्दे और एक ‘थकाऊ’ लाइसेंसिंग प्रणाली शामिल है.

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नई दिल्ली: बुधवार की रात के 10 बज रहे हैं और दिल्ली के प्रसिद्ध कनॉट प्लेस बाज़ार में भीड़ अब कम होने लगी है. पब, रेस्तरां और पान की छोटी-छोटी दुकानों को छोड़कर ज़्यादातर दुकानें बंद हो चुके हैं. कुछ जो अभी भी खुले हैं वे केवल ग्राहकों के बाहर निकालने का इंतज़ार कर रहे हैं.

दिन भर चहल-पहल वाले बाज़ार को आधी रात के समय एक राहगीर “मृत दृश्य” के रूप में वर्णित करता है—कुछ लोगों के कुछ सुस्त समूहों को छोड़कर, इसकी चौड़ी और बड़ी सड़कें लगभग खाली हैं.

दिल्ली के अन्य व्यावसायिक केंद्रों में भी इस तरह के दृश्य देखने को मिलते हैं—रात 11 बजे तक खान मार्केट में अधिकांश दुकानें बंद हो जाती हैं और इसकी पार्किंग लगभग खाली हो जाती है, जबकि हौज खास गांव के आसपास की सड़कों पर घर जाने वाले ग्राहकों की कतार लग जाती है.

इस हफ्ते की शुरुआत में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शहर की रात की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के वास्ते सरकार की लगातार कोशिशों के तहत 155 प्रतिष्ठानों को 24 घंटे खुले रहने की मंजूरी दी थी—यह उन 314 दुकानों से अलग है जिन्हें अक्टूबर 2022 में मंजूरी मिली थी.

केजरीवाल और उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना दोनों दिल्ली में एक मजबूत रात की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं. इस साल फरवरी में एलजी ने शहर के आतिथ्य उद्योग के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को आसान बनाने के लिए एक संशोधित एकीकृत पोर्टल की घोषणा की. खबरों के मुताबिक, दिल्ली में रात के समय खुली हवा में भोजन करने की व्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद के वास्ते लाइसेंसिंग आवश्यकताओं की समीक्षा के लिए एक पैनल स्थापित करने के दो महीने बाद ये फैसला आया.

और फिर भी इस तरह के प्रयास एक गैर स्टार्टर प्रतीत होते हैं. दिप्रिंट ने तीनों हब—कनॉट प्लेस, खान मार्केट और हौज़ खास विलेज में जिन लोगों से बात की, उनमें से अधिकांश ने इस बात पर मिले-जुले विचार दिए कि क्या शहर में नाइटलाइफ है या नहीं.

सीधे शब्दों में कहें, एक रात की अर्थव्यवस्था केवल देर रात तक पार्टी करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द नहीं है. यह एक व्यापक अवधारणा है जिसमें स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कार्यस्थलों और व्यावसायिक सुविधाओं के समय का विस्तार करना शामिल है. दूसरी ओर, नाइटलाइफ, एक नाइट इकोनॉमी का बाय-प्रोडक्ट है.

दिल्ली 2041 (एमपीडी-2041) के लिए अभी तक स्वीकृत नहीं हो सके मास्टर प्लान में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), आवास परियोजनाओं के लिए एक निकाय, जो आवास और शहरी विकास मंत्रालय के अंतर्गत आता है, ने रात की अर्थव्यवस्था के रूप में विचार करते हुए इसकी रूपरेखा तैयार की थी. इसमें उन क्षेत्रों की पहचान करना शामिल है जहां यह व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के काम के घंटे बढ़ाया जा सकता है.

लेकिन दिल्ली के निवासियों का मानना है कि इसके रास्ते में आने वाली सबसे बड़ी बाधा शहर की सुरक्षा के मुद्दे हैं.

कनॉट प्लेस में एक पान की दुकान के बाहर दिप्रिंट से बातचीत के दौरान श्रीकांत (जिन्होंने केवल अपना पहला नाम बताया) ने इनकार किया कि दिल्ली में नाइटलाइफ की कोई झलक भी है. 2008 में गुजरात से राष्ट्रीय राजधानी में आने के बाद, श्रीकांत ने कहा कि इसका एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि शहर को असुरक्षित माना जाता है.

A view of a deserted lane in Khan Market | Muneef Khan | ThePrint
खान मार्केट में एक सुनसान गली का नज़ारा | मुनीफ खान/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “गुजरात अपनी नाइटलाइफ के लिए नहीं जाना जाता है, लेकिन यह सोच गरबा उत्सव के दौरान बदल जाती है. उस समय नाइटलाइफ होती है और यह सुरक्षित है, खासकर महिलाओं के लिए, लेकिन दिल्ली का मामला इसके बिल्कुल विपरीत है.”

हालांकि, कानून-व्यवस्था दिल्ली की रात की अर्थव्यवस्था के लिए एकमात्र चुनौती नहीं है — शहर के व्यापारियों के अनुसार, जब लाइसेंसिंग प्रणाली की बात आती है तो नीतिगत समस्याएं दूसरी हैं. अलग-अलग अधिकार क्षेत्र वाली कई सरकारी एजेंसियां इन प्रतिष्ठानों को चलाने के लिए आवश्यक अनिवार्य लाइसेंस देने के लिए अलग-अलग नियम रखती हैं, जिससे नौकरशाहों के स्तर तक परेशानी झेलनी पड़ती है.

डीडीए के सदस्य (वित्त) विजय कुमार सिंह ने कहा कि रात की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में कई कारक शामिल हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “अकेले हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को बढ़ावा देने से कभी भी जीवंत नाइटलाइफ का लक्ष्य हासिल नहीं होगा.”

दिल्ली पुलिस प्रवक्ता सुमन नलवा ने शहर की पुलिस व्यवस्था में किसी तरह की खामी से इनकार किया. “अगर कोई नीति है जो प्रतिष्ठानों को विस्तारित घंटों तक खुले रहने की अनुमति देती है, तो वे (पुलिस) नीति के अनुसार कार्य करेंगे.”


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‘सुरक्षा के मुद्दे, अस्पष्ट नीति’

निशांत गुप्ता (32) का मानना है कि हालांकि, दिल्ली पूरी तरह से नाइटलाइफ से रहित नहीं है, बस यह मुंबई और पुणे जैसे शहरों के समान नहीं है, जहां “सुबह तक एन्जॉय किया जा सकता है”.

यह सिर्फ मुंबई जैसा बड़ा शहर नहीं है जो रात की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है—उदाहरण के लिए अहमदाबाद का लॉ गार्डन, कपड़े और आभूषणों का एक प्रमुख बाज़ार कम से कम 11 बजे तक लोगों से भरा रहता है, जबकि इंदौर का प्रसिद्ध स्ट्रीट फूड मार्केट, सराफा बाज़ार रात एक बजे तक खुला रहता है.

दिल्ली सरकार के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि शहर की रात की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए पहले भी कईं कोशिशें की गई हैं—उदाहरण के लिए 2000 के दशक की शुरुआत में शीला दीक्षित के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने रात की खरीदारी को बढ़ावा देने के लिए एक बाज़ार की घोषणा की थी—लेकिन ऐसी योजनाएं कभी भी अमल में नहीं आईं .

एक अर्बन डिज़ाइनर और एमिटी यूनिवर्सिटी के आरआईसीएस स्कूल ऑफ बिल्ट एनवायरनमेंट के पूर्व डीन के.टी. रवींद्रन ने कहा, दिल्ली की नाइटलाइफ के विफल होने के कई कारण थे—जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण शहर की संरचना है. उन्होंने कहा, दिल्ली बेंगलुरु की तरह रेडियल है.

रवींद्रन ने दिप्रिंट को बताया, “लेकिन बेंगलुरु का एक केंद्रीय क्षेत्र है जो मनोरंजन के स्थानों से केंद्रित है. दिल्ली में शहर के ढांचे और पुलिसिंग के तौर-तरीकों का नतीजा है कि अलग-अलग जगहों पर मनोरंजन के ठिकाने फैल गए हैं. यह नाइटलाइफ के लिए अनुकूल नहीं है.”

डॉक्टर प्राची सिंह (32) जब रात में बाहर निकलती हैं तो उनके दिमाग में भी सुरक्षा का मुद्दा होता है.

प्राची ने खान मार्केट में दिप्रिंट को बताया, “मेरे नजरिए से यह सिर्फ सुरक्षा का पहलू है. समस्या यह है कि ऐसे लोगों का एक वर्ग है जो एक दोस्ताना माहौल नहीं बनाते हैं. अगर इन्हें रोक कर रखा जा सकता है, तो शायद हम एक नाइटलाइफ जी सकते हैं.”

रेस्तरां और बाज़ार संघों ने दिल्ली सरकार के फैसलों का स्वागत किया है—न केवल नवीनतम का बल्कि एल-जी सक्सेना की फरवरी की घोषणा भी.

लेकिन व्यापारियों के अनुसार, ये परिवर्तन मुख्य रूप से नीति पर स्पष्टता की कमी के कारण ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं.

एक और चुनौती यह है कि ये निर्णय व्यावहारिक कार्यान्वयन में कैसे परिवर्तित होंगे. नई दिल्ली ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अतुल भार्गव ने नए साल की पूर्व संध्या—साल की सबसे व्यस्त रातों में से एक दिल्ली के सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक केंद्रों में से एक कनॉट प्लेस के आसपास यातायात प्रतिबंधों का उदाहरण दिया.

उदाहरण के लिए दिल्ली पुलिस ने पिछले साल दिसंबर में घोषणा की कि “भीड़भाड़” को रोकने के लिए नए साल के जश्न के मद्देनज़र क्षेत्र के आसपास यातायात प्रतिबंधित कर दिया जाएगा. भार्गव ने दावा किया कि इस फैसले से व्यवसायों को बड़ा नुकसान हुआ है.

भार्गव ने दिप्रिंट से बात करते हुए पूछा, “अब आप कल्पना कर सकते हैं. यदि नाइटलाइफ है और यदि बहुत से लोग हैं और पुलिस उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकती है, तो वे उन्हें प्रवेश करने से रोक देंगे. अगर शहर में 24×7 (जब वे उस एक दिन ऐसा नहीं कर सकते हैं) हो जाए तो पुलिस कैसे प्रबंधन करेगी?” उन्होंने कहा कि व्यापारी निकायों को इस तरह के फैसलों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए परामर्श प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए.

 A view of dwindling crowds at Hauz Khas | Muneef Khan | ThePrint
हौज़ खास में घटती भीड़ का एक नज़ारा | मुनीफ खान/दिप्रिंट

हौज खास में एक पब के मालिक और व्यवसायी महावीर मोहंती के जिनके गोवा में दो रेस्तरां हैं, ने कहा, शहर की लंबी लाइसेंसिंग प्रक्रिया दूसरी बड़ी चुनौती है. दिल्ली में एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान चलाने के लिए अलग-अलग अधिकार क्षेत्र वाली कई सरकारी एजेंसियों से अनुमति या लाइसेंस की आवश्यकता होती है.

मोहंती ने दिप्रिंट को बताया, “एक व्यक्ति को करीब 20 लाइसेंस की ज़रूरत होती है, जो एक समस्या है. एकीकृत (लाइसेंस) पोर्टल अभी के लिए ठीक है, यह देखते हुए कि इसका यह केवल पहला चरण है. घोषणाओं का ज़मीनी परिणाम आना अभी बाकी है, हम वहां 5 प्रतिशत हैं और 95 प्रतिशत अभी तक नहीं हैं.”


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दिल्ली की ‘खोई हुई’ नाइटलाइफ

दिलीप चेरियन, एक इमेज सलाहकार और दिल्ली स्थित जनसंपर्क कंपनी, परफेक्ट रिलेशंस के संस्थापक के अनुसार, दिल्ली हमेशा नाइटलाइफ से बहुत दूर नहीं रही है.

उन्होंने 80 के दशक के अंत और 90 के दशक की शुरुआत के बारे में दिप्रिंट से बात की, जब दिल्ली की नाइटलाइफ फल-फूल रही थी—न केवल शहर के “फाइव-स्टार कॉफी-शॉप-जाने वाले” अभिजात वर्ग के कारण बल्कि आबादी के उस वर्ग के लिए भी जो “सस्ते और खुशमिजाज नाइटलाइफ” की तलाश में थे जो अक्सर उन्हें दक्षिण दिल्ली के मूलचंद ले जाती थी, जहां कई ढाबे “रात भर खुले” रहते थे.

फिर 90 का दशक आया, जब “नाइटलाइफ में पीने के शौकीन” नाइटक्लब, या डिस्कोथेक में चले गए, जैसा कि उन्हें तब कहा जाता था—आईटीसी मौर्या में प्रतिष्ठित घुंघरू सहित, जो 2000 के दशक की शुरुआत में बंद हो गया था.

चेरियन ने कहा, “इन क्लबों के पास आकर्षण था, लेकिन अक्सर मामूली झगड़े और उपद्रवी व्यवहार भी इसके उदाहरण थे.”

आखिरकार, शहर के प्रशासन ने अपनी सुरक्षा को कड़ा कर दिया, धीरे-धीरे दिल्ली की नाइटलाइफ को बनाने वाली हर चीज़ को खत्म कर दिया.

लेकिन क्या यह चलन दोबारा शुरू हो सकता है? चेरियन ने संदिग्धता जताई. उनके अनुसार, एक नाइटलाइफ के तीन आवश्यक घटक हैं—अच्छी खाने-पीने की जगहें, सुरक्षा जो इस तरह की गतिविधियों में बाधा नहीं डालती है और स्थान जहां कोई ड्राइव कर सकता है. उन्होंने कहा, “दिल्ली में अंतिम दो घटक गायब हैं. दिल्ली में आप जो सबसे अच्छा कर सकते हैं वह कुतुब मीनार से आगे है”.

डीडीए मास्टर प्लान और ‘24×7 शहर’ का इसका विचार

शहर की खोई हुई नाइटलाइफ को पुनर्जीवित करने की दिल्ली सरकार की योजना की कुंजी दिल्ली-2041 के लिए इसका मास्टर प्लान है. डीडीए ने इस साल की शुरुआत में इसे आवास और शहरी विकास मंत्रालय को सौंप दिया था, लेकिन अभी तक इसे मंजूरी नहीं मिल पाई है.

प्रस्ताव के अनुसार, पहला कदम रात के समय के सर्किट की पहचान करना है जो पर्यटकों और स्थानीय लोगों को आकर्षित करेगा और फिर वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों जैसे होटल, रेस्तरां, सामाजिक-सांस्कृतिक स्थलों, खुदरा स्टोर,फुटफॉल खेल सुविधाओं के लिए समय को बढ़ाएगा.

इसके साथ ही, यह योजना एजेंसियों को कलाकारों, सांस्कृतिक समूहों और बाज़ार संघों के साथ इन सर्किटों में मौसमी त्योहारों, थीम-आधारित रात्रि सैर और रात्रि बाज़ारों के आयोजन के लिए प्रोत्साहित करती है.

हालांकि, डीडीए के सदस्य विजय कुमार सिंह ने पहले कहा था, उन्होंने कहा कि योजना पूरे शहर के बजाय कुछ क्षेत्रों तक सीमित होगी.

उन्होंने कहा, “यदि आप लोगों से बात करेंगे, तो वे आपको बताएंगे कि बुनियादी ढांचा नहीं है, सुरक्षा एक बड़ी चिंता है और गतिशीलता की कमी है. मास्टर प्लान एक दस्तावेज है जो भूमि उपयोग और विकास मानदंडों को परिभाषित करता है, लेकिन यह शहर किस और जाएगा इसके इरादे का बयान भी है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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