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Friday, 22 November, 2024
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‘देवता का अधिकार, पूजा को मंजूरी’ – वाराणसी की अदालत ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी के 8 मामलों को जोड़ा

वाराणसी के जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने सोमवार को आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया था कि मामले समान प्रकृति के थे और उन्हें मिलाने से विरोधाभासी आदेशों से बचने में मदद मिलेगी.

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लखनऊ: वाराणसी की एक जिला अदालत ने सोमवार को निर्देश दिया कि शहर के दो अलग-अलग न्यायालयों में लंबित आदि विश्वेश्वर मंदिर – एक ध्वस्त प्राचीन मंदिर जो वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर के पास खड़ा है – से संबंधित सभी सात वादों को समेकित किया जाए.

अदालत, पहले से ही श्रृंगार गौरी मामले की सुनवाई कर रही है जो इसी कड़ी में आठवां संबंधित मामला है सभी को जोड़कर इन मामलों की संयुक्त रूप से सुनवाई करेगी.

श्रृंगार गौरी मामला जिसपर हिंदू याचिकाकर्ताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद की एक दीवार के पास सालों भर प्रार्थना करने का अधिकार मांगा है, जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटा हुआ है. इसके लिए कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर विश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था. अब ये प्रमुख मामला बनाया गया है.

आदेश जिला न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत द्वारा जारी किया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मामले की प्रकृति एक समान है और उन सभी को एक साथ रखने से विरोधाभासी आदेशों से बचने में मदद मिलेगी.

पिछले साल दिसंबर में, श्रृंगार गौरी मामले में पांच मूल याचिकाकर्ताओं में से चार ने एक आवेदन दायर किया था, जिसमें मांग की गई थी कि सभी सात मामलों को एक समान प्रकृति के आधार पर जिला न्यायाधीश की अदालत में स्थानांतरित कर दिया जाए.

न्यायाधीश विश्वेश सोमवार को पांचवें याचिकाकर्ता द्वारा स्थानांतरण आवेदन के खिलाफ दायर एक आपत्ति पर सुनवाई कर रहे थे.

जिसमें सात में से छह मामले सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में लंबित थे, जबकि एक फास्ट-ट्रैक अदालत में लंबित था.इनके सूट/वाद नंबर 925/2022, 350/2021, 712/2022, 839/2021, 358/2021, 245/2021 और 840/2021 हैं. प्रमुख मामला सिविल सूट संख्या 693/2021 ज़िला जज की कोर्ट में पहले से ही सुना जा रहा है.

न्यायाधीश ने कहा, “इन सभी मामलों में, विषय वस्तु और निर्धारण के लिए उठाए गए बिंदु लगभग समान हैं.” अदालत ने आगे कहा, “इन सभी मामलों में आवेदकों द्वारा मांगी गई राहत भी प्रकृति में समान है. इस अदालत ने 17 अप्रैल 2023 के आदेश में यह भी देखा कि अगर ये सभी मामले अलग-अलग अदालतों में लंबित रहते हैं, तो संभावना है कि इन सभी मामलों में विरोधाभासी आदेश पारित किए जाएं… ”

दिप्रिंट से बात करते हुए, सुधीर त्रिपाठी, जो अधिवक्ता विष्णु जैन और सुभाष चतुर्वेदी के साथ स्थानांतरण की मांग करने वाली चार श्रृंगार गौरी याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने कहा कि दो मुकदमों में याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने उनके आवेदन पर आपत्ति जताई थी.

उन्होंने कहा, “सिविल सूट संख्या 925/2022 और 712/2021 में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने स्थानांतरण आवेदन पर इस आधार पर आपत्ति जताई कि यह मूल आवेदकों द्वारा दायर नहीं की गई थी, लेकिन अदालत ने हमारे पक्ष में फैसला किया और निर्देश दिया कि सूटों को जोड़ा जाए क्योंकि वे सभी संबंधित हैं और सभी का मुद्दा एक है . .”

इन मामलों की पहली संयुक्त सुनवाई 7 जुलाई को होगी.

काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी परिसर के आस-पास का मुकदमा – जिसमें 18वीं सदी का काशी विश्वनाथ मंदिर और 17वीं सदी की मस्जिद शामिल है – बड़े पैमाने पर “बस्ती भूखंड संख्या 9130” पर केंद्रित है, जहां भक्तों का मानना है कि एक शिव ‘लिंग’ प्रकट हुआ था [एक प्रकरण पर आधारित सदियों पुराने लिंग पुराण में दर्ज].

कुछ याचिकाकर्ताओं का कहना है कि भूखंड में वह स्थान शामिल है जहां भगवान आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयं प्रकट हुए थे.

ज्ञानवापी मस्जिद 20 फुट ऊंचे बैरिकेड्स के भीतर खड़ी है, जिसमें इसके पश्चिम में एक प्राचीन मंदिर की दीवार शामिल है.

1780 में अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित वर्तमान विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में नेपाल के राणा द्वारा उपहार में दिए गए “नंदी” की प्रसिद्ध फुट-ऊंची पत्थर की मूर्ति के पास ज्ञानवापी कुआं या “कूप” है.


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वो आठ मामले जिन्हें जोड़ा जा रहा है

सिविल सूट 693/2021

पांच महिला याचिकाकर्ता जिसमें राखी सिंह, सीता साहू, मंजू व्यास, लक्ष्मी सिंह और रेखा पाठक द्वारा अगस्त 2021 में सिविल सूट दायर किया गया. यह अदालत से यह घोषित करने का अनुरोध करता है कि याचिकाकर्ता “पुराने मंदिर परिसर” में बस्ती प्लॉट नंबर 9130 पर, मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश और हनुमान – और “अन्य दृश्यमान और अदृश्य देवताओं” की पूजा के लिए दर्शन, पूजा और अन्य अनुष्ठान करने के हकदार हैं.

यह प्रतिवादियों – यूपी राज्य, वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति (ज्ञानवापी प्रबंधन), और काशी विश्वनाथ मंदिर के न्यासी बोर्ड को रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की भी मांग करता है -जो पूजा और रस्म के दौरान किसी तरह का कोई प्रतिबंध लगाने या कोई बाधा उत्पन्न न कर सकें.

सिविल सूट 245/2021

लखनऊ निवासी सत्यम त्रिपाठी व आशीष शुक्ला व वाराणसी निवासी पवन पाठक की ओर से दायर किया गया है. यह बताना चाहते हैं कि मां श्रृंगार गौरी, मां गंगा, भगवान गणेश, हनुमान, और नंदीजी के साथ ही भगवान आदि विश्वेश्वर के उपासक उनके बस्ती भूखंड संख्या 9130 के क्षेत्र में दर्शन और पूजा के हकदार हैं. वे संपूर्ण “अविमुक्तेश्वर क्षेत्र” चाहते हैं. याचिकाकर्ताओं के अनुसार – वह क्षेत्र जहां एक पुराना अविमुक्तेश्वर मंदिर खड़ा था, भगवान आदि विश्वेश्वर से संबंधित घोषित किया जाना चाहिए.

सिविल सूट 350/2021

देवी श्रृंगार गौरी की ओर से दायर, ” वाद मित्र (जो अदालत में किसी का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए वे स्वयं नहीं कर सकते)” के माध्यम से. इस मामले में वाद मित्र लखनऊ की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री हैं, जबकि अन्य याचिकाकर्ताओं में भगवान आदि विश्वेश्वर स्थान, लखनऊ स्थित जन उद्घोष सेवा संस्थान, और छह अन्य शामिल हैं. सूट 245/2021 में की गई अधिकांश मांगों को दोहराता है.

यह प्रतिवादियों – यूपी राज्य, वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति (ज्ञानवापी प्रबंधन), और काशी विश्वनाथ मंदिर के न्यासी बोर्ड को रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की भी मांग करता है जिससे किसी भी प्रकार का कोई भी प्रतिबंध लगाने या कोई बाधा उत्पन्न करने पर रोक लगायी जाए.

सिविल सूट 358/2021

मां गंगा की ओर से अर्जी सुदर्शन न्यूज के विवादित प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके और लखनऊ निवासी उमाकांत गुप्ता, आनंद साहू, मनीष निगम और रूपेश मिश्रा के माध्यम से दायर की गई है. उपरोक्त दो मामलों में मांगों के अलावा, यह यूपी सरकार और काशी विश्वनाथ मंदिर के न्यासियों के बोर्ड को भगवान आदि विश्वेश्वर से संबंधित अनुष्ठानों को बहाल करने के लिए निषेधाज्ञा जारी करना चाहता है, जिसमें नए सिरे से ज्योतिर्लिंग का गंगाजल से जलाभिषेक की रस्म की बहाली की मांग भी करता है.

सिविल सूट 839/2021

काशी के स्वयंभू भगवान आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की ओर से अपने वाद मित्र शिव प्रसाद पांडेय, वाराणसी निवासी संतोष कुमार सिंह और हरियाणा के महेंद्रगढ़ के सूबे सिंह यादव के माध्यम से दायर किया गया. यह देवता को बंदोबस्त भूखंड संख्या 9130 का मालिक घोषित करने का आह्वान करता है, यह कहते हुए कि “संपत्ति मानव की स्मृति से परे सत युग के बहुत पहले से ही देवता के पास थी. ”

वह यह भी दावा करता है कि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंताज़ामिया मस्जिद कमेटी – और उनके कार्यकर्ताओं और समर्थकों को किसी भी तरह से उपरोक्त भूमि और संपत्ति में प्रवेश करने या उपयोग करने या परिसर में देवता की नियमित पूजा में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.

यह भी तर्क दिया गया है कि यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा की गई भूमि के पंजीकरण को कानून की मंजूरी नहीं है.

सिविल सूट 840/2021

आदि विश्वेश्वर मंदिर परिसर के प्रांगण में विराजमान देवता नंदीजी महाराज की ओर से वाद मित्र सितेंद्र चौधरी, वाराणसी के विनोद यादव और रविशंकर द्विवेदी तथा बिहार निवासी अखिलेश दुबे के माध्यम से दायर किया गया.

जो यह वादा चाहते हैं कि अदालत यह घोषित करे कि नंदीजी को प्लॉट 9130 पर स्थित भगवान आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन का अधिकार है और वे भगवान शिव के भक्तों द्वारा पूजा किए जाने के हकदार हैं.

सूट में प्रतिवादियों – यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंतज़ामिया मस्जिद कमेटी – को आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के ऊपर बने “सुपर स्ट्रक्चर (मस्जिद)” को हटाने के लिए निषेधाज्ञा की भी मांग की गई है, जिसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर के न्यासी बोर्ड को दर्शन की व्यवस्था करनी चाहिए. और भक्तों द्वारा पूजा और कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखना भी शामिल है.

सिविल सूट 925/2022

काशी के महंत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और प्रयागराज के ज्योतिषी राम संजीवन शुक्ल द्वारा फाइल की गई है. याचिका में मांग की गई है कि ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में पिछले साल मई में एक अदालत के आदेश वाले सर्वेक्षण के दौरान पाए गए एक विवादित ढांचे की हिंदू पक्ष द्वारा ‘शिवलिंग’ के रूप में पहचान की गई थी, जिसे सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि हिंदू परंपरा के अनुसार यह देवता अन्न-जल का हकदार हैं.

अविमुक्तेश्वरानंद का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट चंद्र शेखर सेठ ने दिप्रिंट को बताया कि मई 2022 में ढांचे को सील करने का निर्देश देते हुए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत ने इसे ‘शिवलिंग’ करार दिया था.

“अदालत ने शिवलिंग के लिए” तथाकथित “की तरह किसी भी उपसर्ग या प्रत्यय का उपयोग नहीं किया था और इसे जैसा है वैसा ही करार दिया. हमारा तर्क था कि जब तक कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं आता है, तब तक वह आदेश सभी आदेशों पर हावी रहेगा कि यह एक शिवलिंग है. उन्होंने कहा कि “और, हिंदू कानून के अनुसार, एक देवता की स्थिति एक नाबालिग की है और इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है और इसे अन्न-जल प्रदान किया जाना चाहिए, और सभी अनुष्ठान किए जाने चाहिए.”

मुकदमे में प्रतिवादी यूपी सरकार, वाराणसी के पुलिस आयुक्त और अंजुमन इंतज़ामिया मस्जिद समिति हैं.

सिविल सूट 712/2021

विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र विशेन की पत्नी, अपनी मित्र किरण सिंह के माध्यम से भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान द्वारा दायर, एक संगठन जिसने पांच महिलाओं द्वारा दायर मुख्य याचिका का समर्थन किया, लेकिन बाद में उनमें से चार बाहर हो गईं.

अन्य याचिकाकर्ताओं में स्थान आदि विशेश्वर, देवता का स्थल और वाराणसी निवासी विकास शाह और विद्याचंद्र शामिल हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, विशन ने कहा कि टाइटल सूट में घोषणा की मांग की गई है कि पूरा परिसर देवता का है, और इस स्थान पर थोपी गई संरचना मस्जिद ” को हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह यह भी चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय का उस स्थान पर प्रवेश वर्जित किया जाए.

मामले में प्रतिवादी उत्तर प्रदेश सरकार, वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त, काशी विश्वनाथ मंदिर के न्यासी बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति हैं. फास्ट ट्रैक कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें)


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