scorecardresearch
Tuesday, 30 April, 2024
होमराजनीतिमहाराष्ट्र की सदियों पुरानी बावड़ियों को दिया जाएगा नया रूप, जल स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है

महाराष्ट्र की सदियों पुरानी बावड़ियों को दिया जाएगा नया रूप, जल स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है

महाराष्ट्र संस्कृति विभाग ने राज्य भर में प्राचीन जल संरचनाओं और बावड़ियों के संरक्षण और दस्तावेजीकरण के लिए समिति बनाई. आजादी के 75वें वर्ष में राज्य की 75 बावड़ियों को सबसे पहले रिवाइव किए जाने पर ध्यान केंद्रित करने की योजना है.

Text Size:

मुंबई: महाराष्ट्र सरकार राज्य के ऐतिहासिक बावड़ियों का कायाकल्प करने की योजना पर काम कर रही है. इनमें से कुछ बावड़ियां दो हजार साल या उससे भी पुरानी हैं. उनका कायाकल्प ऐसे किया जा रहा है कि उसमें फिर से पानी उपलब्ध हो सके. स्वतंत्रता के 75वें वर्ष पर राज्य सरकार कम से कम 75 बावड़ियों को चिन्हित कर इसकी कायाकल्प करने की योजना बना रही है.

बावड़ियों को कायाकल्प करने की योजना राज्य के संस्कृति विभाग की पहल पर किया जा रहा है. एक विस्तृत योजना तैयार करने के लिए 22 सदस्यों की एक समिति का गठन किया है. विभाग ने पिछले सप्ताह इस आशय का शासनादेश भी जारी किया था.

विभाग के एक अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया, “महाराष्ट्र में, बावड़ी सातवाहन काल (तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की उत्पत्ति मानी जाती है, तीसरी शताब्दी सीई में समाप्त हुई) और चालुक्य वंश (छठी-बारहवीं शताब्दी)के दौरान बनाई गईं हैं. तब से महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में लगभग 20,000 ऐसी बावड़ियां बनी होंगी.”

अधिकारी ने कहा कि ये बावड़ी जीर्ण-शीर्ण स्थिति में हैं, उनमें से कई अब बंद हो गई हैं और उनमें पानी के स्रोत के रूप में इस्तेमाल होने की कोई गुंजाइश नहीं है.

बावड़ी, कुएं या तालाब होते हैं जिनमें जल स्तर तक कुछ सीढ़ियां उतर कर पहुंचा जाता है. ये संरचनाएं महत्वपूर्ण सजावटी और स्थापत्य सुविधाओं के साथ बहुमंजिला भी हो सकती हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

अधिकारी ने कहा, “इन बावड़ियों के ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व को देखते हुए, हमने उन्हें एकबार फिर पुर्नजीवित करने और वापस लाने का फैसला किया है और इसके लिए एक समिति गठित की है.”

राज्य संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव सौरभ विजय, जो 22 सदस्यीय समिति का भी हिस्सा हैं, ने दिप्रिंट के कॉल और टेक्स्ट संदेश का जवाब नहीं दिया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.

राज्य सरकार के प्रस्ताव के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, 22 सदस्यीय समिति को बावड़ी के संरक्षण के लिए एक विस्तृत योजना तैयार करने का काम सौंपा गया है.

पैनल को भारतीय स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को चिह्नित करने के लिए 75 बावड़ियों का तुरंत कायाकल्प करने की योजना पर काम करने और बावड़ियों पर एक गजेटियर तैयार करने में मदद करने का भी काम सौंपा गया है.


यह भी पढ़ें: विपक्ष के वोटों में बंटवारे से BJP को UP मेयर चुनाव में कैसे मदद मिली. निकाय चुनाव में BSP की सबसे बड़ी हार


वह आदमी जिसने बातचीत शुरू की

बावड़ी के संरक्षण का प्रस्ताव मुंबई निवासी रोहन काले से आया, जो ‘महाराष्ट्र बरव मोहिम (महाराष्ट्र बावड़ी अभियान)’ के प्रमुख हैं, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक बावड़ियों का दस्तावेजीकरण और संरक्षण करने का प्रयास करना है.

मार्च 2022 में बावड़ियों पर अपने काम के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात रेडियो प्रसारण में विशेष उल्लेख पाने वाले काले ने राज्य के बावड़ियों पर एक विस्तृत डेटा बैंक तैयार करने के लिए पूरे महाराष्ट्र में व्यापक रूप से यात्रा की है, और विभिन्न वास्तुशिल्प कॉलेजों के साथ गठजोड़ किया है. उन्हें बचाने का तरीका निकाला.

दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमने इस साल जनवरी में महाराष्ट्र सरकार से छह विशिष्ट सुझावों के साथ इन बावड़ियों को फिर से जीवंत करने के लिए एक सरकार के रूप में प्रयास करने के लिखित प्रस्ताव के साथ संपर्क किया था.”

उन्होंने कहा, हमारे छह सुझाव थे बावड़ियों का मानचित्रण और प्रलेखन, प्रलेखन के लिए आर्किटेक्चरल महाविद्यालयों के साथ समन्वय, बावड़ियों पर स्वच्छता अभियान चलाना, बावड़ियों को सजाकर दीपोत्सव करना और उन्हें पारंपरिक दीयों से रोशन करना, बावड़ियों का संरक्षण और पर्यटन स्थलों के रूप में उनका विकास करना.

सरकार ने पिछले सप्ताह काले को मुख्य समन्वयक के रूप में नामित करते हुए समिति का गठन किया था. हालांकि, समिति के गठन पर राज्य के संस्कृति विभाग से असहमति के कारण उन्होंने अभी पद छोड़ दिया है.

वर्तमान में, समिति के सदस्यों में राज्य संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) और सरकार के भूजल सर्वेक्षण और विकास विंग के प्रतिनिधि शामिल हैं.

इसके अलावा, इसमें इस विषय पर गैर-सरकारी विशेषज्ञ, शिक्षाविद और जल और संरक्षण के विशेषज्ञ होंगे.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन- पूजा मेहरोत्रा)


यह भी पढ़ें: अंबाला में ट्रक पर सवार राहुल गांधी ने सुनी ड्राइवर्स की ‘मन की बात’, गुरुद्वारे पर भी टेका माथा


 

share & View comments