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Tuesday, 17 December, 2024
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देश में सबसे ज्यादा लोग कहां से गायब होते हैं? बंगाल और MP से, लापता लोगों का पता लगाने में केरल शीर्ष पर

NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 के अंत तक 3.42 लाख लोग लापता थे और अभी भी लापता हैं. इसमें लगभग 87 प्रतिशत या 2.98 लाख वयस्क थे जबकि बच्चों का हिस्सा केवल 13 प्रतिशत था.

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नई दिल्ली: फिल्म द केरला स्टोरी को लेकर हुए विवाद के कारण लापता लोगों का मुद्दा सुर्खियों में आ गया है. भारत के लापता लोगों की सही कहानी क्या है, इसका पता लगाने के लिए दिप्रिंट ने मौजूद आंकड़ों का अध्ययन किया है.

आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे अधिक लोग पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली में लापता हुए हैं. दूसरी तरफ केरल अपने लापता लोगों का पता लगाने में सबसे सफल राज्य है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB), भारत की सर्वोच्च एजेंसी है जो अपराध को लेकर डेटा एकत्र करती है. इसमें पुलिस थानों में गुमशुदा व्यक्तियों की दर्ज रिपोर्ट के आधार पर आंकड़ा दिया जाता है. 

NCRB के अनुसार, 2021 के अंत तक (नवीनतम अवधि जिसके लिए डेटा उपलब्ध है), भारत में लगभग 3.42 लाख लोग कथित तौर पर लापता थे और अभी भी लापता हैं. पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में इन लापता व्यक्तियों में से 50 प्रतिशत से अधिक का अभी तक पता नहीं चल पाया है.

लापता होने वालो में अधिकांश वयस्क और महिलाएं

NCRB के आंकड़े बताते हैं कि 3.42 लाख लोग अभी भी लापता हैं जिसमें लगभग 87 फीसदी या 2.98 लाख वयस्क थे जबकि बच्चों का हिस्सा केवल 13 फीसदी था.

वास्तव में, 2016 के बाद से लापता लापता लोगों में बच्चों की हिस्सेदारी में 4 प्रतिशत की कमी आई है. 2016 में, लगभग 55,000 लापता बच्चों में कुल लापता लोगों में उनका हिस्सा 17 प्रतिशत था, जो 2017 में घटकर 16 प्रतिशत और 2018 और 2019 में 14 प्रतिशत हो गया.

Credit: ThePrint Team
चित्रण: दिप्रिंट टीम

2020 तक, यह कुल लापता लोगों का 13 प्रतिशत हो गया और 2021 में भी ऐसा ही रहा.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में लापता होने वालों की संख्या में लापता महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है. 2021 में, सभी लापता होने वालों में लगभग दो-तिहाई महिलाएं थीं (3.4 लाख में से 2 लाख).

2016 में, लापता होने वालो की संख्या में महिलाओं की संख्या लगभग 55 प्रतिशत थी. 2021 तक, गुमशुदा व्यक्तियों में उनकी संख्या बढ़कर लगभग 60 प्रतिशत पर पहुंच गई. कुल 60 ट्रांसजेंडरों के भी लापता होने की सूचना मिली थी और 2021 तक उनका पता नहीं चला था.


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लापता लोग, जो मिल गए

NCRB यह भी बताता है कि कितने लापता हुए लोग जो बाद में मिल गए. 

जिन राज्यों में गुमशुदा व्यक्तियों की रिपोर्ट करने या उनका पता लगाने का सबसे अच्छा रिकॉर्ड था, उनमें केरल शीर्ष पर था. 2021 तक लापता होने वाले लगभग 11,000 में से, राज्य ने उनमें से लगभग 9,452 यानि लगभग 86 प्रतिशत का पता लगा लिया था.

केरल के बाद तेलंगाना का नंबर आता है जहां लापता लोगों में से 85.3 प्रतिशत का पता लगा लिया गया था. असम, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु में लगभग दो-तिहाई गुमशुदा व्यक्तियों का पता लगा लिया गया था.

आंकड़ों से पता चलता है कि 1,000 से अधिक लापता व्यक्तियों वाले राज्यों में पंजाब का रिकवरी रेट सबसे कम है. 2021 में, पंजाब में 15,642 व्यक्ति लापता हुए थे लेकिन केवल 2,601 ही बरामद किए गए थे. इसलिए, कुल गुमशुदा व्यक्तियों में से, पंजाब ने 16 प्रतिशत लोगों का ही पता लगा पाया, क्योंकि उस वर्ष के अंत तक 13,041 लोग अभी भी नहीं मिले थे.

Credit: Manisha Yadav | ThePrint
चित्रण: दिप्रिंट टीम

पंजाब में गुमशुदा लोगों की संख्या का पता नहीं लगने की वजह ज्यादातर गुमशुदा व्यक्तियों को खोजने की धीमी गति को माना जा सकता है. 2021 में, 15,642 लापता व्यक्तियों में से लगभग 12,000 पिछले साल गुम हुए लोग थे. 2016 में, यह बैकलॉग 5,761 था, जो एक संकेत है कि पंजाब में एक लापता व्यक्ति के मिलने की संभावना काफी कम है.

राज में हर साल लगभग 3,000 लोग लापता हो जाते हैं और उनमें से केवल 70 प्रतिशत का ही पता लगाया जा पाता है (औसतन 2016-21). शेष 30 प्रतिशत अगले साल के लापता होने वालों की लिस्ट में जुड़ जाते हैं. इस प्रकार पंजाब में हर साल लिस्ट बढ़ती जाती है. 

पंजाब के पुलिस सूत्रों ने कहा कि पंजाब में गुमशुदा व्यक्तियों का पता लगाने की कम दर के लिए युवा वयस्कों को प्यार के चक्कर में घर से भाग जाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब उनके माता-पिता उन्हें उनकी प्रेमी-प्रेमिका से विवाह करने के लिए सहमत नहीं होते हैं.

नाम न छापने की शर्त पर पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “ज्यादातर,  युगल अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध शादी करना चाहते हैं, और फिर घर से भाग जाते हैं, तो उनके माता-पिता प्राथमिकी दर्ज करवाते हैं और एक गुमशुदगी का मामला दर्ज किया जाता है. हालांकि, यह महसूस करने पर कि उनकी शादी हो चुकी है और वापस नहीं आए हैं, उनकी प्राथमिकी आमतौर पर रद्द कर दी जाती है. इसके अलावा, मुझे नहीं लगता कि लापता लोगों की गिनती बढ़ाने वाले कुछ और भी बड़े कारक हैं.”

पंजाब के बाद दिल्ली का नंबर आता है, जहां 2021 तक 34,000 से अधिक लापता लोगों का पता नहीं चल पाया था और रिकवरी रेट सिर्फ 33.5 प्रतिशत थी. दिल्ली लापता लोगों में से केवल 33.5 प्रतिशत का पता लगाने में सक्षम थी.

अन्य राज्य जो अपने आधे से अधिक लापता व्यक्तियों का पता लगाने में सक्षम नहीं हैं, उनमें जम्मू और कश्मीर में 38.9 प्रतिशत की रिकवरी रेट, उत्तर प्रदेश में 39.5 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 42.9 प्रतिशत, बिहार में 43.9 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 44.5 प्रतिशत और ओडिशा में 49.2 प्रतिशत शामिल है.

आंकड़ा समझ में आया?

NCRB के आंकड़े उन मामलों पर आधारित हैं जिन्हें आधिकारिक तौर पर रिपोर्ट किया गया है. दिल्ली पुलिस के पूर्व महानिदेशक और बेघर तथा गुमशुदा बच्चों के लिए काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता आमोद कंठ के मुताबिक, लापता पुरुषों के आंकड़े आमतौर पर कम बताए जाते हैं.

कंठ ने दिप्रिंट को बताया, “जब कोई महिला लापता हो जाती है, तो उसके माता-पिता इसे गंभीरता से लेते हैं. महिलाओं को घर की इज्जत माना जाता है, इसलिए जब वह लापता हो जाती हैं, तो मामला दर्ज करवाया जाता है और यह फिर डेटा में आ जाता है.”

Credit: Prajna Ghosh | ThePrint
चित्रण: प्रज्ञा घोष | दिप्रिंट

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन यह मामला सैकड़ों हजारों वयस्क पुरुषों पर लागू नहीं होता है, जो आर्थिक अवसरों की तलाश में बस अपने घर से भाग जाते हैं. मैंने अपनी ड्यूटी के दौरान जयपुर के आसपास के क्षेत्र में मजदूरी में शामिल 4,000 बच्चों की खोज की, जिन्हें बाहर से लाया गया था. उत्तर प्रदेश और बिहार के इतने सारे जिलों में, वयस्क पुरुष बस अपने गांवों से शहरों में जाते हैं, और बेघर के रूप में रहते हैं. जब तक जनगणना नहीं हो जाती, तब तक कोई डेटा एकत्र नहीं किया जाता है.”

कंठ ने यह भी कहा कि पुलिस ने 2013 से लापता बच्चों के मामलों को और गंभीरता से लेना शुरू किया है, जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो दिनों से अधिक समय तक लापता बच्चों को अपहरण माना जाएगा.

कांत ने कहा, “पुलिस शायद ही कभी लापता बच्चों के मामलों को गंभीरता से लेती थी, लेकिन जब अदालत ने इसे संज्ञेय अपराध बना दिया, तो उन्हें जांच करने के लिए मजबूर होना पड़ा और इससे दिल्ली में 70 फीसदी तक रिकवरी हुई.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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