scorecardresearch
Monday, 25 November, 2024
होममत-विमतबिहार सरकार की जेल से छोड़ने की नीति अनियंत्रित नहीं होगी, अधिकतर जनसेवक एकजुट हैं

बिहार सरकार की जेल से छोड़ने की नीति अनियंत्रित नहीं होगी, अधिकतर जनसेवक एकजुट हैं

IAS हत्याकांड में दोषी आनंद मोहन सिंह को रिहा करने का नीतीश कुमार का फैसला एक संकीर्ण राजनीतिक लाभ को दिखाता है. राज्य सरकारों को विवेक के आधार पर काम करने की चर्चा को यह दोबारा छेड़ सकता है.

Text Size:

जी कृष्णैया मामले में भारत भर के लोक सेवकों की एकजुटता और समर्थन का प्रदर्शन अभूतपूर्व है. सेंट्रल इंडियन सिविल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स एसोसिएशन, 27 राज्य आईएएस एसोसिएशन, आईपीएस, आईआरएस (आईटी), आईआरएस (सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क), वन, आयुध कारखानों और सीएसएस एसोसिएशन सहित कई एसोसिएशन ने बिहार सरकार से अपने 10 अप्रैल 2023 के फैसले पर पुनर्विचार करने आग्रह किया है. नीतीश कुमार सरकार ने बिहार जेल मैनुअल 2012 में संशोधन किया, जिसका उद्देश्य दोषी आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकालना था, जिसने गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट जी कृष्णय्या को लिंचिंग करने वाली भीड़ को उकसाया था.

जी कृष्णय्या, जो उस समय केवल 34 वर्ष के थे और एक युवा और लोकप्रिय अधिकारी थे. लेकिन 5 दिसंबर 1994 को हाजीपुर से लौटते समय उनकी भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गई. जी कृष्णय्या एक आधिकारिक बैठक में शामिल होने के बाद वापस लौट रहे थे तभी भीड़ ने उनकी सरकारी कार को घेर लिया गया था. आनंद मोहन के उकसाने पर उनपर पथराव किया गया और बाद में उन्हें गोली मार दी गई. जिससे उनकी असामयिक मृत्यु हो गई. इन संघों ने बिहार सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है कि इस देश के जनसेवक इस फैसले को बिना चुनौती दिए नहीं जाने देंगे. यह घटना अपने संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए जेल मैनुअल में हेरफेर करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा अपने विवेक के कम इस्तेमाल को दिखाता है और यह एक बड़ी चर्चा छेड़ सकता है. यह विडम्बना है कि उच्च न्यायालय/सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गई सजा नीतियों द्वारा काफी कम कर दी जाती है, जिन पर राज्य विधानसभा में चर्चा तक नहीं की जाती है.

इस विशेष मामले में, एक प्रशासनिक निर्णय ने 2007 में एक जिला अदालत द्वारा धारा 302, 307 और 147 के तहत लगाए गए ‘मौत की सजा’ को कम कर दिया है. आनंद मोहन की सजा को सुरक्षित करने में तेरह साल लग गए. बाद में हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था. हालांकि, जैसा कि हाल के एक कॉलम (बार एंड बेंच) में हाइलाइट किया गया है, नितेश राणा ने दिखाया है कि 2008 के स्वामी श्रद्धानंद मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह विचार किया कि जब मौत की सजा के स्थान पर उम्रकैद की सजा दी जाती है, तो दोषी को पूरी उम्र जेल में ही रहना चाहिए. इसलिए, यहां तक कि प्रथम दृष्टया एक बड़ा सवाल उठता है कि क्या इस मामले में कोई छूट नीति लागू है.


यह भी पढ़ें: आनंद मोहन की रिहाई पर सहयोगी CPI(ML) ने नीतीश सरकार को घेरा, BJP हमलावर, दूसरे कैदी को भी छोड़ने की मांग


छूट से संबंधित नीति

यह हमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के साथ-साथ आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 के अध्याय XXXII के अंतर्गत आने वाली छूट से संबंधित नीति के बारे में बताता है. भारत के राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के तहत और राज्यपाल को अनुच्छेद 162 के तहत किसी भी अपराध के दोषी व्यक्ति की सजा को माफ करने, निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति है. हालांकि, CrPC की धारा 433A राष्ट्रपति और राज्यपाल की मौत की सजा को 14 साल से कम उम्र के कारावास में बदलने की शक्ति को प्रतिबंधित करती है. हालांकि, यह खंड स्पष्ट रूप से नहीं बताता है कि क्या यह उन मामलों पर लागू होता है जहां मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया है.

अगर कुछ देर के लिए भी यह तर्क दिया भी जाता है कि दोषी आनंद मोहन ने चौदह साल की कैद काट ली है, तो भी यह स्पष्ट है कि बिहार जेल मैनुअल 2012 के प्रावधानों में मनमाने बदलाव के बिना उसकी रिहाई नहीं हो सकती थी. ये संशोधित प्रावधान हैं. इस मामले में यह लागू नहीं होता, क्योंकि आनंद मोहन को उसकी सजा के समय मौजूदा नियमों के तहत कवर किया जाना चाहिए. इस मामले में लागू मैनुअल बिहार जेल मैनुअल 2002 था, जो स्पष्ट रूप से सजा में छूट की श्रेणियों को अलग करता था, जिसके तहत छूट नहीं दी जा सकती थी. इन श्रेणियों में यौन उत्पीड़न और लोक सेवक की हत्या जैसे जघन्य अपराध शामिल थे.

इसके अलावा, यह माना जाता है कि छूट केवल उन दोषियों को दी जाती है जिन्होंने जेल में रहने के दौरान अच्छा व्यवहार किया हो. इस मामले में, दोषी आनंद मोहन मोबाइल फोन रखने की कई घटनाओं में शामिल रहा है. उसके खिलाफ सबसे नवीनतम प्राथमिकी दिसंबर 2021 में दर्ज की गई थी. इसके अलावा एक अदालत में पेशी के लिए जाने के दौरान रास्ते में खगड़िया सर्किट हाउस में अनाधिकृत रूप से रहने और जबरन प्रवेश करने का आरोप उसके ऊपर है. जो स्पष्ट रूप से कानून के लिए घोर अवहेलना को दिखाता है. इन सब के बावजूद, राज्य सरकार ने उन्हें छूट की पेशकश की. जल्दबाजी में निर्णय लेने की प्रक्रिया और रिहाई को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयानों से यह स्पष्ट होता है कि आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में परिणाम को प्रभावित करने की उनकी क्षमता को लेकर लिया गया निर्णय है.

हालांकि, दोषी को जेल से छोड़ने का यह खेदजनक उदाहरण छूट नीति पर व्यापक चर्चा और बहस छेड़ सकता है. सजा में छूट देने का नियम और धारणा वास्तव में उन दोषियों को मौका देना है जिन्होंने सच में पश्चाताप किया है और अपने आप में सुधार किया है. साथ ही वह कानून का पालन करने वाले व्यक्तियों के रूप में समाज में फिर से शामिल होने के लिए तैयार हैं. हालांकि, जघन्य अपराधों में शामिल दोषियों, आपराधिक संगठनों से जुड़े लोगों और राजनीतिक या जाति से जुड़े डॉन/माफियाओं की समय से पहले रिहाई न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करती है. इसके अलावा, यह पीड़ित और उनके परिवारों के साथ घोर अन्याय है, क्योंकि वे उनके द्वारा किए गए अपराधों का खामियाजा भुगत रहे हैं. सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह दोषियों को रिहा करने के अपने विवेकाधिकार पर सीमाएं लगाए, विशेष रूप से जघन्य अपराध में दोषी पाए गए लोगों के लिए.

चिंता का एक अन्य विषय पैरोल प्रणाली है, जिसका अक्सर हाई-प्रोफाइल कैदियों द्वारा गलत इस्तेमाल किया जाता है. इसका दुरुपयोग खासकर राजनीतिक और वित्तीय प्रभाव वाले अधिक करते हैं. आनंद मोहन अपने बेटे की शादी के लिए पहले से ही पैरोल पर थे, जब बिहार सरकार ने जेल नियमावली में संशोधन किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें जेल वापस नहीं जाना पड़े. सर्वोच्च न्यायालय और गृह मंत्रालय दोनों के लिए इस अत्यधिक राजनीतिक और आसानी से दोषियों को छोड़ने की नीति पर ध्यान देने के लिए यह सही समय है. क्योंकि यह प्रभावी रूप से न्यायिक प्रणाली को कमजोर करती है. साथ ही यह भविष्य के लिए गंभीर चिंता पैदा करती है.

(संजीव चोपड़ा पूर्व आईएएस अधिकारी और वैली ऑफ वड्र्स के फेस्टिवल डायरेक्टर हैं. हाल तक वे लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के डारेक्टर थे. उनका ट्विटर हैंडल @ChopraSanjeev. है. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भीड़ ने IAS अधिकारी की पीट-पीटकर हत्या की, 30 साल बाद हत्यारे के साथ मुस्कुरा रहे हैं मुख्यमंत्री नीतीश


 

share & View comments