बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 224 सीटों में से 135 सीटें जीतकर कर्नाटक के अधिकांश मंडलों में महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की है. अपने पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्रों से आगे बढ़ते हुए, कांग्रेस ने कित्तूर-कर्नाटक, केंद्रीय जिलों और पुराने मैसूरु क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (सेक्युलर) या जेडी(एस) दोनों के वोटों में सेंध लगाते हुए महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की.
भाजपा और जेडी(एस) के लिए कई उतार-चढ़ाव थे, जबकि कांग्रेस के बड़े, छोटे और अपेक्षाकृत अज्ञात नेता भी कांग्रेस की लहर की सवारी करते हुए विजयी हुए.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने अपने पद से इस्तीफा देने से कुछ घंटे पहले कहा, “हमारे प्रधानमंत्री से लेकर कार्यकर्ताओं तक हम सभी के द्वारा किए गए बहुत सारे प्रयासों के बावजूद हम सभी अपनी छाप छोड़ने में सक्षम नहीं हुए.”
1985 के बाद से, कर्नाटक में किसी भी सरकार को दूसरे कार्यकाल के लिए फिर से नहीं चुना गया है, और राजनीतिक विश्लेषक अक्सर इसके प्रमुख कारणों के रूप में जनसांख्यिकीय विविधता और मतदान में क्षेत्रीय विविधताओं का हवाला देते हैं.
दिप्रिंट ने इस बात पर एक नज़र डाली है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में विभिन्न क्षेत्रों ने कैसे मतदान किया.
कल्याण-कर्नाटक
कभी हैदराबाद-कर्नाटक कहा जाने वाला यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से हैदराबाद राज्य का हिस्सा था, जिस पर निज़ामों का शासन था. आज, इस क्षेत्र में छह जिले शामिल हैं – बीदर, कालबुर्गी, यादगीर, रायचूर, कोप्पल और बल्लारी.
भारत के कुछ सबसे पिछड़े जिलों वाले इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), कुरुबा, लिंगायत और मुसलमानों की उच्च आबादी है.
इस चुनाव में, कांग्रेस ने क्षेत्र की 41 सीटों में से 26 सीटें हासिल कीं, जो 2018 में 20 और 2013 में 24 थी. भाजपा ने पिछली बार 17 और 2013 में पांच सीटों की तुलना में सिर्फ 10 सीटें जीतीं, जबकि जेडी (एस) ने तीन सीटें जीतीं, जबकि 2018 में इसने चार और 2013 में पांच सीटें जीती थीं.
अवैध खनन घोटाले के कथित सरगना गली जनार्दन रेड्डी कोप्पल में गंगावती से निर्दलीय जीते, हालांकि उनकी पत्नी बेल्लारी शहर में हार गईं. एक अन्य निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व उपमुख्यमंत्री एमपी प्रकाश की बेटी लता मल्लिकार्जुन, हरपनहल्ली से जीतीं.
घटनाक्रम से वाकिफ लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि क्षेत्र की बड़ी दलित और आदिवासी उपस्थिति ने यह सुनिश्चित किया है कि एससी (लेफ्ट) और एससी (राइट) के बीच विभाजन के बावजूद कांग्रेस को इसका लाभ मिले.
इस क्षेत्र को एक विशेष संवैधानिक दर्जा भी प्राप्त है – अनुच्छेद 371 (जे) राज्यपाल को हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड स्थापित करने की अनुमति देता है.
राजनीतिक एक्सपर्ट जेम्स मैनर के अनुसार – यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज में कॉमनवेल्थ स्टडीज के एमेरिटस प्रोफेसर और कर्नाटक की राजनीति के जानकार – यह क्षेत्र वर्गों के आधार पर विभाजित है. मैनर ने दिप्रिंट को बताया कि गरीब, चाहे वे किसी भी समुदाय के हों, कांग्रेस का पक्ष लेते हैं, जबकि अधिक समृद्ध लोग भाजपा का पक्ष लेते हैं.
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कित्तूर-कर्नाटक
कभी मुंबई-कर्नाटक के रूप में जाना जाने वाला कित्तूर-कर्नाटक क्षेत्र राज्य का सबसे उत्तरी भाग है और महाराष्ट्र के साथ सीमा साझा करता है.
छह जिलों – बेलगावी, हुबली-धारवाड़, बागलकोट, विजयपुरा, गडग और हावेरी – से बना यह क्षेत्र कई उल्लेखनीय लिंगायत नेताओं का घर है, जिनमें मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और पूर्व सीएम बी.एस. येदियुरप्पा के पास कुल 30 सीटें हैं.
इस क्षेत्र में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली जाति लिंगायत कर्नाटक की राजनीति में महत्वपूर्ण खिलाड़ी है. अनौपचारिक अनुमानों के अनुसार, वे राज्य की आबादी का 17 प्रतिशत हैं, और कर्नाटक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 इस समुदाय से रहे हैं.
हालांकि मुख्य रूप से लिंगायत उपस्थिति के कारण यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता है. पार्टी ने इस चुनाव में इस क्षेत्र से कुल 16 सीटें जीती हैं जो कि 2018 में जीती गई 30 सीटों की तुलना में काफी कम है. दूसरी ओर, 2018 में 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार यहां से 33 सीटें जीती हैं. जेडी (एस) को 2018 की तुलना में इस बार यहां आधी सीटें मिलीं और विजयपुरा में केवल एक सीट से ही उसे संतोष करना पड़ा.
हालांकि, लिंगायतों ने 90 के दशक से बड़े पैमाने पर भाजपा का समर्थन किया है, पार्टी की विचारधाराओं की परवाह किए बिना समुदाय ने हमेशा इस क्षेत्र के व्यक्तिगत नेताओं का पक्ष लिया है.
2018 में, सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने लिंगायतों को लुभाने के प्रयास में, समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा दिया. जबकि लिंगायत समूहों ने इस कदम की सराहना की, फिर भी जब पार्टी ने लिंगायतों के मजबूत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया, तो उन्होंने अपना समर्थन वापस भाजपा को दे दिया.
येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाना, जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी को टिकट न देना, आरक्षण से जुड़ी मांगों को पूरा न करने की आशंका समेत अन्य बातें बीजेपी के खिलाफ जाती दिख रही हैं.
दक्षिण कर्नाटक
चित्रदुर्ग के दक्षिण के सभी जिलों को दक्षिण कर्नाटक का हिस्सा माना जाता है, हालांकि इसमें ओल्ड मैसूरु और मलनाड जैसी अन्य उपश्रेणियां शामिल हैं. बेंगलुरू शहर भी दक्षिण में है, लेकिन इसे अपने आप में एक विभाजन के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
दक्षिण कर्नाटक, अपने 11 जिलों – शिवमोग्गा, चिक्कमंगलुरु, तुमकुरु, हासन, मांड्या, मैसूरु, कोडागु, रामनगर, चामराजनगर, चिकबल्लापुरा और कोलार – में कुल 73 सीटें हैं.
इनमें से अधिकांश, या कम से कम दो-तिहाई से अधिक पर वोक्कालिगा का प्रभुत्व है, और उन्हें जेडी (एस) का गढ़ माना जाता है.
पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली जेडी (एस) दक्षिणी कर्नाटक के 11 जिलों में कुल 73 में से सिर्फ 15 सीटें जीतने में कामयाब रही, जो कि वोक्कालिगा समर्थन आधार पर पार्टी की पकड़ कमजोर होने और अल्पसंख्यक वोट हासिल करने में उसकी विफलता का संकेत है.
ऐसा माना जाता है कि डीके शिवकुमार के वोक्कालिगा समुदाय से संबंधित होने के कारण जेडी (एस) को होने वाले नुकसान का लाभ कांग्रेस को मिला. राज्य के दक्षिणी क्षेत्र में, जिसे कभी ‘गौड़ा भूमि’ कहा जाता था, कांग्रेस ने 73 में से 44 सीटें जीतीं.
2018 में जीती 29 सीटों की तुलना में जेडी (एस) इस बार सिर्फ 15 सीटें ही जीतीं. भाजपा ने 10 सीटें जीतीं, जो कि 2018 में 21 थी और कांग्रेस ने 39 सीटें जीतीं जिनकी संख्या 2018 में 21 थी.
इसके अलावा, 2013 में 6 के मुकाबले 2018 में 2 निर्दलीय जीते थे.
मध्य कर्नाटक
मध्य कर्नाटक क्षेत्र में दो जिले दावणगेरे और चित्रदुर्ग शामिल हैं. दावणगेरे को राज्य के उत्तरी और दक्षिणी जिलों और चित्रदुर्ग के बीच मध्य बिंदु माना जाता है.
कित्तूर-कर्नाटक की तरह, कुल 13 सीटों वाले इस क्षेत्र में भी लिंगायत काफी संख्या में हैं.
2023 में, भाजपा ने 2018 में जीती 10 सीटों में से दो सीटें हासिल कीं. दूसरी ओर, कांग्रेस ने 11 सीटों पर जीत हासिल की, जो पिछले चुनाव में जीती गई तीन सीटों से अधिक थी. इस बीच, जेडी (एस) को कोई फायदा नहीं हुआ.
कांग्रेस इस क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रही थी क्योंकि 91 वर्षीय लिंगायत नेता शमनूर शिवशंकरप्पा दावणगेरे से हैं. अखिल भारतीय वीरशैव महासभा के अध्यक्ष शिवशंकरप्पा ने लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक माने जाने वाले येदियुरप्पा का ‘अपमान’ करने के लिए खुले तौर पर भाजपा की हार का आह्वान किया.
तटीय कर्नाटक
अक्सर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील माने जाने वाले दक्षिण कन्नड़, उडुपी और उत्तर कन्नड़ के तटीय जिलों ने पिछले दो चुनावों में अपने मतदान पैटर्न को बदल दिया है.
इसे अक्सर राज्य के एकमात्र क्षेत्र के रूप में देखा जाता है जहां जातिगत विचार के बजाय हिंदुत्व एक चुनावी मुद्दा है.
2018 में, भाजपा को इस क्षेत्र में कुल 19 सीटों में से 16 सीटें मिलीं जो कि 2013 की तुलना में 13 अधिक थी, जबकि कांग्रेस 2013 में 13 से घटकर सिर्फ तीन तक सिमट गई.
इस चुनाव में, विश्व हिंदू परिषद की युवा शाखा बजरंग दल, और पहले से ही प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के कांग्रेस के घोषणापत्र ‘वादे’ के कारण इन हिस्सों में अधिक ध्रुवीकरण हुआ.
इसने बजरंग दल को भी चुनावी मैदान में कूदने के लिए प्रेरित किया जो कि तब तक शांत था.
बीजेपी अभी भी इस क्षेत्र की अधिकांश सीटों को बरकरार रखने में कामयाब रही है जहां हिंदुत्व एक मुद्दे के रूप में काम करता है. श्री राम सेने के विवादास्पद नेता प्रमोद मुथालिक को भाजपा के वी. सुनील कुमार के 77,028 वोटों के मुकाबले सिर्फ 4,508 वोट मिले. सुनील कुमार ऊर्जा, कन्नड़ और संस्कृति राज्य मंत्री और मौजूदा विधायक भी हैं.
मुतालिक ने दावा किया कि पार्टी ने हिदुत्व के नाम पर वोट बटोरने के अलावा इसके लिए पर्याप्त काम नहीं किया है.
इसके अलावा कांग्रेस उम्मीदवार मुनियाल उदय कुमार शेट्टी भी मैदान में थे, जिन्हें 72,426 वोट मिले थे.
दक्षिण कन्नड़ के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील पुत्तूर में हिंदुत्व के लिए त्रिपक्षीय लड़ाई थी. बीजेपी के पूर्व उम्मीदवार अनिल कुमार पुथिला ने अपने मूल संगठन के वोटों को विभाजित कर दिया क्योंकि उन्हें 62,458 वोट मिले थे. एक अन्य पूर्व भाजपा नेता अशोक कुमार राय, जो कि टिकट न मिलने पर कांग्रेस में शामिल हो गए थे, उन्होंने 66,607 मतों से जीत हासिल की, जबकि दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष, भाजपा की आशा थिमप्पा को सिर्फ 37,558 मत मिले.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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