लखनऊ/गोंडा: “मेरे जीवन में मेरे हाथ से एक हत्या हुई है. लोग कुछ भी कहें, मैंने एक हत्या की है. बीजेपी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने यह बातें 2022 उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान लल्लनटॉप न्यूज पोर्टल को दिए एक इंटरव्यू में कहीं थीं.
कैसरगंज के सांसद जिस व्यक्ति का जिक्र कर रहे थे, वह रंजीत सिंह था, उसने दावा किया कि उसने 1991 में दिवंगत समाजवादी पार्टी के मंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह के बड़े भाई रविंदर सिंह की हत्या कर दी थी.
बचपन के दोस्त पंडित सिंह और बृजभूषण कभी एक साथ सरकारी ठेके के काम में लगे थे, लेकिन बाद में ये दोस्ती व्यापार और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में बदल गई. सिंह की 2021 में कोविड की वजह से मृत्यु हो गई.
हालांकि भाजपा सांसद को इस साहसिक घोषणा के बाद अदालत में तो पेश किया गया, लेकिन उन्हें कभी भी हत्या का दोषी नहीं ठहराया गया.
छह बार के सांसद, बृज भूषण पर कई बार चोरी, दंगा, हत्या, आपराधिक धमकी, हत्या का प्रयास, अपहरण आदि सहित विभिन्न आरोपों के तहत 38 मामले दर्ज हैं. ये सभी 1974 और 2007 के बीच दर्ज किए गए थे. पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, यूपी गुंडा अधिनियम के तहत एक मामला और उस अवधि में कड़े गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम के तहत तीन अन्य मामले भी दर्ज हैं.
उनके सहयोगियों की मानें तो इन सभी मामलों में भाजपा के कद्दावर नेता को बरी कर दिया गया था. कैसरगंज सांसद के प्रतिनिधि संजीव सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि बृजभूषण को सभी 38 मामलों में बरी कर दिया गया था, जबकि एक मामले में ट्रायल कोर्ट से बरी होने के खिलाफ अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है.
अब, रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (WFI) के प्रमुख पर कई महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. बृजभूषण के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की सूची वाला एक पोस्टर दिल्ली के जंतर मंतर में विरोध स्थल पर लटका हुआ है, जहां ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया सहित शीर्ष पहलवान उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. गोंडा पुलिस के सूत्रों ने मामलों की सूची के वास्तविक होने की पुष्टि की है.
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए दायर बृजभूषण के चुनावी हलफनामे में कहा गया है कि उस समय उनके खिलाफ केवल चार मामले लंबित थे और उन्हें दो में बरी कर दिया गया था. दो लंबित मामले आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित हैं.
बृज भूषण के सहयोगी ने दिप्रिंट को बताया, “आप जिन 38 मामलों का उल्लेख कर रहे हैं, उनमें से प्रत्येक में बरी होने के बाद समाप्त हो गया है. 2019 में हलफनामे में जिन चार मामलों का जिक्र था उनमें से दो का निपटारा भी हो गया है. दो अन्य (आदर्श आचार संहिता उल्लंघन) चुनाव से संबंधित हैं.”
हालांकि, गोंडा के नवाबगंज थाने के रिकॉर्ड में – जिसे बृजभूषण की ‘जागीर’ माना जाता है – वह एक हिस्ट्रीशीटर बना हुआ है. नवाबगंज स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) करुणाकर पांडे ने दिप्रिंट से इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि हिस्ट्रीशीट 1980 के दशक में खोली गई थी. इस थाने में बीजेपी सांसद के खिलाफ नवाबगंज, गोंडा, अयोध्या और दिल्ली में दर्ज सभी मामलों का रिकॉर्ड है.
पांडे ने कहा, “वह एक हिस्ट्रीशीटर बना हुआ है, लेकिन हम अब उसे (अन्य अपराधियों की तरह) जांच के अधीन नहीं कर रहे हैं. हमारे स्तर पर, हमारे पास एक अपराधी की हिस्ट्रीशीट खोलने की शक्ति है, लेकिन केवल अदालत या पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के पास इसे बंद करने की शक्ति है. ”
एसएचओ ने कहा, “सांसद बनने के बाद से वह पुलिस जांच के दायरे में नहीं रहे हैं. हमारा पुलिस बल उनकी सुरक्षा का एक हिस्सा है.”
दिप्रिंट कॉल और संदेशों के माध्यम से बृजभूषण तक पहुंचा, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. दिप्रिंट ने 2 मई को उनके गोंडा स्थित आवास का भी दौरा किया, लेकिन उनके सहयोगियों ने कहा कि वह इंटरव्यू नहीं देंगे.
रविंदर सिंह के बेटे सूरज सिंह के अनुसार, “गवाहों का मुकर जाना” कई मामलों में उनके बरी होने का कारण था.
उन्होंने कहा, ‘वह सौभाग्य और अपने प्रभाव के कारण चुनाव जीत रहे हैं. उनके पास न केवल पैसा है बल्कि जनशक्ति भी है, जो चुनाव में स्पष्ट था कि उनके बेटे ने मेरे खिलाफ लड़ाई लड़ी,” सूरज ने पिछले साल के विधानसभा चुनावों का जिक्र करते हुए दिप्रिंट को बताया, जिसमें उन्होंने गोंडा में बृजभूषण के बेटे प्रतीक भूषण सिंह के खिलाफ मैदान में थे.
चुनाव से पहले की घटनाओं को याद करते हुए, सूरज ने कहा, “देश भर से सैकड़ों पहलवान आए थे. वह 30 से अधिक शिक्षण संस्थानों के मालिक हैं, जो उनकी बाहुबल का स्रोत हैं.
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आर्म्स एक्ट, बाबरी और हत्या का प्रयास
बृज भूषण के खिलाफ पहले दर्ज किए गए मामलों में से एक आर्म्स एक्ट के तहत गोंडा के नवाबगंज पुलिस स्टेशन में 1993 में दर्ज किया गया था, और उसी साल हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था, जहां उन पर अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह जो समाजवादी पार्टी के पूर्व मंत्री और गोंडा से तीन बार के विधायक भी रहे हैं पर गोली चलाने का आरोप लगाया गया था.
2009 के लोकसभा चुनावों में, बृजभूषण ने अपने हलफनामे में खुलासा किया कि उनके खिलाफ दो मामले दर्ज हैं. उनमें से एक 1992 में कारसेवकों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147 (दंगा), 153 (दंगा भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसाना), 153ए (दुश्मनी को बढ़ावा देना), 332 (सरकारी नौकर को ड्यूटी के दौरान स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) , 338 (दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालकर गंभीर चोट पहुंचाना), 295 (पूजा स्थल को नुकसान पहुंचाना या अपवित्र करना), 297 (कब्रिस्तान आदि पर अत्याचार), 395 (डकैती) और 397 (डकैती या डकैती के दौरान मौत या गंभीर चोट पहुंचाने की कोशिश के साथ), के तहत दर्ज की गई एफआईआर थी.
दूसरा पंडित सिंह पर गोली चलाने का मामला था, जिसके लिए उन पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था.
2014 से 2019 के लोकसभा चुनाव के बीच बृजभूषण के खिलाफ दो और मुकदमे दर्ज हुए थे. पहला 2014 के चुनावों के दौरान आईपीसी की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश देने की अवज्ञा) और 171 एच (चुनाव के संबंध में अवैध भुगतान) के तहत था, जब बृज भूषण पर अयोध्या के अशर्फी भवन में छात्रों और जनता के बीच पैसे बांटने का आरोप लगाया गया था. उनके समर्थकों पर नारे लगाने, हथियार दिखाने और सड़कों पर शराब की बोतलें फेंकने का आरोप लगाया गया था.
उसी वर्ष, 2019 के चुनावी हलफनामे के अनुसार, बृज भूषण के खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए आईपीसी की धारा 188 (एक चुनाव के संबंध में अवैध भुगतान) और 341 (गलत अवरोध) के तहत एक और मामला दर्ज किया गया था.
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‘द वन मर्डर’
लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में, बृज भूषण कहते हैं कि उन्होंने रंजीत सिंह की हत्या कर दी, उन्होंने 1991 में एक पंचायत बैठक के दौरान अन्य लोगों के साथ कथित रूप से गोलियां चलायी थीं.
इंटरव्यू में घटनाओं के क्रम का वर्णन करते हुए, वे कहते हैं कि रविंदर सिंह, जो उनके एक बिजनेस में भी भागीदार थे, उनके मना किए जाने के बाद बी उस पंचायत की मीटिंग में मौजूद थे.
बृज भूषण बताते हैं कि जब वह पंचायत में एक व्यक्ति से बातचीत कर रहे थे, तभी रंजीत सिंह ने हवा में गोलियां चलाईं, जिनमें से एक गोली रविंदर सिंह को लगी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई. इसके बाद, बृजभूषण इंटरव्यू में कहते हैं, कि उन्होंने रणजीत सिंह को गोली मार दी और इसके बाद दोनों ओर से भारी गोलीबारी हुई. वह कहते हैं, यह एक हत्या थी जो उसने अपने जीवन में की थी.
लेकिन, रविंदर सिंह के बेटे सूरज, जिसका ज़िक्र पहले किया जा चुका है, ने घटना के दिन घटी घटनाओं का एक अलग क्रम बताया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मेरे पिता के मारे जाने के समय मैं मेरी मां के गर्भ में था. लेकिन मैंने अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से जो सुना है कि किंकर सिंह ने पहले विपरीत दिशा से हवा में फायरिंग की थी. मेरे पिता सहित दोनों तरफ से दो लोग मारे गए थे.’
सूरज ने कहा, “रंजीत सिंह मेरे पिता के साथ गए समूह से गोलीबारी में मारा गया था,” यह स्वीकार करने से इनकार करते हुए कि बृज भूषण ने वास्तव में उसके पिता के हत्यारे को मार डाला था.
1993 में, पंडित सिंह पर फायरिंग की एक घटना – जिसमें पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार बृजभूषण एक आरोपी थे – ने दोनों परिवारों के समीकरण हमेशा के लिए बदल दिए.
हमलावरों के एक समूह ने कथित तौर पर पंडित सिंह पर गोलियों की बौछार की थी, जब वह अपने बल्लीपुर आवास पर थे. पंडित सिंह को कई गोलियां लगीं और मुलायम सिंह सरकार द्वारा लखनऊ के एक अस्पताल में ले जाया गया, जिसमें वे चमत्कारिक ढंग से मौत के मुंह से बच गए.
लेकिन मामला 30 साल तक लटका रहा. अंदरूनी सूत्रों ने पंडित सिंह और बृजभूषण के परिवारों के बीच समझ का संकेत दिया.
गोंडा के एक सपा नेता ने दिप्रिंट को बताया, “2008 में बृजभूषण के समाजवादी पार्टी में शामिल होने के बाद, दिवंगत पूर्व सीएम मुलायम सिंह ने दोनों परिवारों के बीच समझौता कराया. यहां तक कि मुकदमे के दौरान पंडित सिंह के परिवार का कोई भी सदस्य गवाही नहीं दे सका.
नेता ने कहा, “पंडित सिंह की मई 2021 में कोविड से मृत्यु हो गई, लेकिन तब तक उन्होंने खुद इस मामले में गवाही नहीं दी थी.”
दिप्रिंट से बात करते हुए, सूरज ने दावा किया कि पंडित की मृत्यु के बाद, उनके दूसरे चाचा नरेंद्र सिंह ने सितंबर 2021 में बृज भूषण के खिलाफ अदालत में गवाही दी, जिसमें कहा गया था कि उन्होंने ही पंडित सिंह पर गोली चलाई थी.
उन्होंने कहा कि नरेंद्र ने यह भी दावा किया था कि उन्हें अदालत में बृजभूषण से जान का खतरा था. दिसंबर 2022 में, हालांकि, बृज भूषण और दो अन्य को मामले में बरी कर दिया गया था. कई साक्षात्कारों में, बृजभूषण ने दावा किया है कि उन्हें राजनीतिक प्रतिशोध के कारण फंसाया गया था.
इस बीच, सूरज ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने गोंडा के एमपी/एमएलए कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया और उन्हें हाई कोर्ट से न्याय मिलने की उम्मीद है.
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घनश्याम शुक्ला केस
बृज भूषण पर सबसे सनसनीखेज मामले में उनकी भूमिका होने का आरोप लगाया गया था, लेकिन अनिर्णायक रहा, अप्रैल 2004 में भाजपा के पूर्व विधायक घनश्याम शुक्ला की संदिग्ध मौत थी. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने बृज भूषण को फोन किया था और दावा किया था , “मरवा दिया.”
शुक्ला ने 2004 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में बृजभूषण की जगह ली थी.
जबकि शुक्ला की पत्नी नंदिता शुक्ला ने साजिश का आरोप लगाया और पति की मौत को एक हत्या करार दिया था. उसके बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अंतिम रिपोर्ट दायर की-जो मामले में क्लोजर रिपोर्ट के लिए एक प्रणेता थीं.
सपा की पूर्व विधायक नंदिता ने दिप्रिंट को बताया कि मामला बेनतीजा रहा. उसने आगे बात करने से इनकार करते हुए कहा, “हमें कुछ साल पहले अदालत से एक नोटिस मिला था और जिसका रिजल्ट जीरो रहा था.”
‘भूमाफिया लिंक’
इस साल जनवरी में बृजभूषण के प्रतिनिधि संजीव सिंह और उनके भतीजे सुमित भूषण के बीच विवाद हो गया था, जिसके बाद गोंडा के कोतवाली थाने में सुमित के खिलाफ सरकारी जमीन पर जबरन कब्जा करने की कथित भूमिका को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
31 जनवरी को देवीपाटन मंडल के संयुक्त अधिवक्ता महासंघ ने उसके अध्यक्ष वकील रवि प्रकाश पांडे के नेतृत्व में बृजभूषण और उनके सहयोगियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. मंडल ने प्रधान मंत्री, यूपी के मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष को संबोधित एक ज्ञापन भी जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि बृजभूषण के प्रतिनिधि संजीव सिंह के संरक्षण में भू-माफिया खुलेआम काम कर रहे थे.
मेमोरेंडम जिसे दिप्रिंट ने देखा है में लिखा है,, “भूमाफिया के नेता खलील टायरवाला, जो कभी वाहनों की मरम्मत करते थे, नजूल, वक्फ भूमि, तालाबों और नालों पर जबरन कब्जा कर रहे हैं और यहां भूखंडों की बिक्री का सहारा ले रहे हैं. उन्हें कैसरगंज सांसद के प्रतिनिधि संजीव सिंह का संरक्षण प्राप्त है.”
कुछ दिनों बाद, 3 फरवरी को, प्रशासन के बुलडोजरों ने गोंडा जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय से 100 मीटर की दूरी पर, नजूल भूमि पर 8 फुट ऊंची दीवारों को गिरा दिया.
अगले दिन, बृज भूषण के भतीजे सुमित भूषण और सात अन्य लोगों के खिलाफ नजूल भूमि निरीक्षक द्वारा एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जिसमें कहा गया था कि “भूमि कुछ व्यक्तियों द्वारा सुमित भूषण की अध्यक्षता वाले दक्षिआइनी एंटरप्राइजेज के नाम पर ‘बिना उचित अधिकार के’ दर्ज की गई थी और वही ‘कानून के खिलाफ’ था.
दिप्रिंट द्वारा देखी गई प्राथमिकी कोतवाली पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धाराओं के तहत प्रतिरूपण, धोखाधड़ी, जालसाजी आदि के लिए दर्ज की गई थी.
वकील पांडे ने कहा, “सरकार ने जिला वकीलों की मिलीभगत से पिछले कई वर्षों में गोंडा में हुए फर्जी जमीन सौदों और प्लॉटिंग की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया था. वह पूछताछ अभी भी जारी है. ”
गोंडा में सेवा दे चुके एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस सिलसिले में चार वकील इस समय जेल में हैं जबकि एक फरार है. अधिकारी ने कहा, “जांच अभी भी राज्य एसआईटी के पास लंबित है.”
संजीव सिंह और सुमित भूषण पर लगे आरोपों के बारे में पूछे जाने पर बृजभूषण के सहयोगी सुभाष सिंह ने कहा कि इन दोनों से संबंधित किसी भी प्राथमिकी में सांसद का नाम नहीं है.
जब दिप्रिंट ने संजीव सिंह से भूमि माफिया के साथ उनके कथित संबंधों पर टिप्पणी के लिए संपर्क किया, तो उन्होंने कहा कि नजूल भूमि से संबंधित मामला ट्रायल कोर्ट में लंबित है.
उन्होंने दावा किया कि कोई धोखाधड़ी नहीं हुई है, “जमीन का सौदा स्टांप शुल्क के भुगतान के बाद और विक्रेताओं पर किसी भी दबाव के बिना किया गया है. कुछ आरोपियों को अग्रिम जमानत मिली है और अन्य की गिरफ्तारी पर रोक लगी है. ”
हालांकि सरकार ने जमीन पर यह बोर्ड लगा दिया है कि यह प्लॉट नजूल की जमीन है और सरकार की है और इस पर कब्जा लेना दंडनीय अपराध है.
(संपादन- पूजा मेहरोत्रा)
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