नई दिल्ली: भारत के शीर्ष बाल अधिकार निकाय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने राज्यों से संयुक्त राष्ट्र बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) के साथ काम नहीं करने को कहा है. निकाय ने यह दावा किया है कि अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी अपने दायरे से बाहर की गतिविधियों में शामिल है. इसकी जानकारी दिप्रिंट को मिली है.
7 दिसंबर, 2022 को सभी राज्यों के महिला और बाल विकास विभागों के प्रमुख सचिवों को लिखे एक पत्र में एनसीपीसीआर की चेयरपर्सन प्रियंक कानूनगो ने कहा कि ‘कई शिकायतें आयोग को की गई हैं जिनमें कहा गया है कि भारत में यूनिसेफ विभिन्न सहयोगों और गतिविधियों में शामिल हैं जिन्हें कभी-कभी इसके दायरे से बाहर देखा गया है’. दिप्रिंट के पास पत्र की एक प्रति है.
पत्र में आगे कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय एजेंसी को केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डब्ल्यूसीडी) की सहमति और इजाजत मिलने के बाद भारत में काम करने और गतिविधियां करने का अधिकार है. बाल कल्याण निकाय ने 2017 में मंत्रालय के साथ जिस पंचवर्षीय कंट्री प्रोग्राम एक्शन प्लान (CPAP) पर हस्ताक्षर किए थे, उसे भी नवीनीकृत करने की आवश्यकता है.
यूनिसेफ की वेबसाइट पर उपलब्ध एक दस्तावेज के मुताबिक, आखिरी सीपीएपी पर 2018 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह जनवरी 2022 तक काम कर रहा था.
जब दिप्रिंट ने उनसे फोन पर संपर्क किया तो एनसीपीसीआर के अध्यक्ष कानूनगो ने कहा कि उन्होंने राज्यों को जो लिखा है, उसके अलावा उनके पास कहने के लिए कुछ और नहीं है.
ईमेल और फोन कॉल के जरिए दिप्रिंट भारत में यूनिसेफ की प्रवक्ता सोनिया सरकार और अलका गुप्ता से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला. उत्तर मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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‘पार्टी, पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक गतिविधियां’
कानूनगो के पत्र में दावा किया गया है कि यूनिसेफ के प्रतिनिधि और कर्मचारी देश में ‘पार्टी, पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक गतिविधियों’ में शामिल हैं.
एनसीपीसीआर के सूत्रों ने कहा कि बाल अधिकार निकाय ने भारत में केंद्र सरकार, राज्यों और अन्य प्राधिकरणों के साथ यूनिसेफ द्वारा किए जा रहे सभी कार्यों के बारे में जानकारी मांगी थी.
नाम न छापने की शर्त पर एनसीपीसीआर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने अंतरराष्ट्रीय संस्था से पिछले पांच वर्षों में उनके साथ किए गए सभी कार्यों की रिपोर्ट और उनके पार्टनर एनजीओ की एक सूची देने के लिए भी कहा था, लेकिन यूनिसेफ ने अभी तक इसे उपलब्ध नहीं कराया है.’
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि यूनिसेफ द्वारा विवरण देने में विफल रहने के कारण सीपीएपी को एक साल की देरी के बावजूद अभी तक नवीनीकृत नहीं किया गया था.
पत्र में एनसीपीसीआर ने यह भी कहा कि उन्हें ऐसे उदाहरणों से अवगत कराया गया है जहां राज्य सरकारें विभिन्न कार्यों और गतिविधियों के लिए यूनिसेफ-इंडिया के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर कर रही हैं, हालांकि सीपीएपी का नवीनीकरण अभी बाकी है.
यूनिसेफ-इंडिया और एनसीपीसीआर के बीच पहले भी अनबन हो चुकी है. 2021 में, देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बाद, आयोग ने आपत्ति जताई थी जब कुछ राज्यों ने यूनिसेफ के साथ महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों से संबंधित डेटा साझा किया था.
उसी वर्ष, आयोग ने पश्चिम बंगाल के स्कूलों में नाबालिग छात्रों को समान-सेक्स संबंधों को दर्शाने वाली शार्ट फिल्म को दिखाने के लिए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के साथ इस संयुक्त राष्ट्र एजेंसी को भी नोटिस जारी किया था.
(संपादन: ऋषभ राज)
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