नई दिल्ली: आईएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की हत्या के मामले में पिछले 15 सालों से जेल में बंद पूर्व सांसद और बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह आज सुबह 4 बजे जेल से रिहा हो गए. जेल से बाहर भारी संख्या में समर्थकों ने उनका स्वागत किया.
बता दें कि आनंद मोहन सहित 27 कैदियों की रिहाई के लिए बिहार सरकार ने बीते सोमवार को एक अधिसूचना जारी की थी, जिसके बाद से ही आनंद मोहन सिंह का छूटना तय माना जा रहा था. हालांकि बिहार सरकार के इस फैसले पर दलित नेताओं, आईएएस एसोसिएशन और मारे गए आईएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी ने कड़ी आपत्ति जताई थी.
रोड-शो, दिखाया जाएगा शक्ति प्रदर्शन
आनंद मोहन की रिहाई के बाद सहरसा से लेकर पंचगछिया तक रोड शो का कार्यक्रम है जिसमें भारी संख्या में उनके समर्थक शामिल होंगे. पंचगछिया आनंद मोहन का पैतृक गांव है. यहां के बाबा राम ठाकुर मैदान में दिन के 2 बजे उनका नागरिक अभिनंदन समारोह रखा गया है. सूत्रों के मुताबिक इसमें महागठबंधन के बड़े नेता और इलाके के अधिकतर विधायकों के पहुंचने की संभावना है. साथ ही जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी इस समारोह में पहुंच सकते हैं.
आईएएस अधिकारी जी. कृष्णय्या की हत्या
बता दें कि आनंद मोहन साल 2008 से ही बिहार के सहरसा जेल में बंद थे. 5 दिसंबर 1994 को मुजफ्फरपुर में गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णय्या की हत्या कर दी गई थी जिसमें आनंद मोहन सहित कई लोगों को दोषी पाया गया था. बाद में सबूतों के अभाव में कई लोगों को बरी कर दिया गया. आनंद मोहन इस हत्याकांड में सजा काट रहे अंतिम व्यक्ति थे.
जी. कृष्णय्या की हत्या उस वक्त हुई थी, जब वह पटना से वापस गोपालगंज जा रहे थे. दरअसल, उससे एक दिन पहले आनंद मोहन के करीबी और गैंगस्टर छोटन शुक्ला की हत्या हो गई थी. 5 दिसंबर 1994 को उसकी शवयात्रा निकाली जा रही थी, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए थे. उसी वक्त डीएम वहां से गुजर रहे थे कि शवयात्रा में शामिल भीड़ ने उन्हें सरकारी गाड़ी से खींचकर बाहर निकाला और पीट-पीट कर हत्या कर दी.
इस हत्याकांड में पूर्व सांसद आनंद मोहन, अरुण कुमार और अखलाक अहमद को निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि उनकी पत्नी लवली आनंद और छोटन शुक्ला के भाई मुन्ना शुक्ला को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, साल 2008 में पटना हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. लवली आनंद और मुन्ना शुक्ला को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया. इसके बाद आनंद मोहन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए उन्हें उम्र कैद की सजा सुनाई.
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