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Sunday, 3 November, 2024
होमदेश'PM मोदी ने मुस्लिम बहनों के लिए वो किया जो नेहरू चाहते थे, पर नहीं कर सके': तीन तलाक पर केरल के राज्यपाल

‘PM मोदी ने मुस्लिम बहनों के लिए वो किया जो नेहरू चाहते थे, पर नहीं कर सके’: तीन तलाक पर केरल के राज्यपाल

कुलपति की नियुक्ति और प्रमुख विधेयकों में 'देरी' जैसे मुद्दों को लेकर आरिफ मोहम्मद खान का केरल में पिनाराई विजयन सरकार के साथ लगातार टकराव रहा है. दिप्रिंट के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के अंश.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट के साथ एक विशेष साक्षात्कार में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने गुरुवार को कहा कि 2019 में तीन तलाक कानून लाकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम बहनों के लिए वह किया जो पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू चाहते थे, लेकिन नहीं कर सके- उनके कुछ अधिकारों को बहाल किया. 

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार 2019 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम लेकर आई, जिसने एक बार में तीन तलाक़ की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे एक दंडात्मक अपराध की श्रेणी में ला दिया.

उन्होंने नेहरू के बारे में बात करते हुए खान ने एक साक्षात्कार का उल्लेख किया जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री ने कथित तौर पर 50 के दशक के उत्तरार्ध में दिया था, जहां उन्होंने कहा था कि जबकि उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि वे कुछ अधिकारों को बहाल कर सकते थे जिन्हें वंचित कर दिया गया था. जो काम उन्होंने हिंदू महिलाओं के लिए किया, उनके जीवन को एक नया अध्याय मिला, लेकिन वे वही काम अपनी मुस्लिम बहनों के लिए नहीं कर सके. इस बात की मलाल उन्हें जीवन भर रहा.

केरल के राज्यपाल ने कहा, ‘मुस्लिम बहनों के लिए यह किसने किया? पीएम नरेंद्र मोदी ने. क्या पंडित जवाहरलाल नेहरू अगर जीवित होते तो पीएम नरेंद्र मोदी से खुश होते या उनके ऐसा करने से नाराज होते? दुर्भाग्य से, जो लोग पंडित नेहरू की विरासत का दावा करते हैं, वे नहीं समझते हैं. यहां तक कि सीपीआई और सीपीआई-एम के दिग्गज और केरल के पहले मुख्यमंत्री नंबूदरीपाद के विरासत का दावा करते हैं वह भी इसके प्रति सच्चे नहीं हैं.

खान ने कहा कि 1986 में जब उन्होंने राजीव गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार के शाहबानो मामले पर स्टैंड को लेकर केंद्र सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दिया था, तो दो पार्टियों ने उन्हें पूरा समर्थन दिया था, जिसमें एक थी भाजपा. हालांकि उस समय संसद में बीजेपी के अधिक सदस्य नहीं थे. और समर्थन करने वाले दूसरे दल थे- वामपंथी दल- सीपीआई और सीपीआई (एम).

1985 में एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो के अपने पति से रखरखाव का दावा करने के अधिकार को बरकरार रखा था, जिसने उसे तलाक दे दिया था. बानो के पति ने यह कहते हुए उनके दावे का विरोध किया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के लिए उन्हें केवल कुछ अवधि तक के लिए प्रदान करने की आवश्यकता है, या प्रतीक्षा अवधि जिसे एक महिला को तलाक के बाद किसी अन्य पुरुष से शादी करने से पहले पालन करना चाहिए.

हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र की कांग्रेस सरकार ने 1986 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया और मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण अधिनियम) पारित किया.

खान ने कहा, ‘ई.एम.एस. नंबूदरीपाद जी ने मेरे समर्थन में बहुत कुछ किया. और, आज यह कैसी खेदजनक स्थिति है कि नंबूदरीपाद पर आश्रित केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन इस कानून में दोष ढूंढ रहे हैं और तीन तलाक का समर्थन कर रहे हैं. यह क्या राक्षसी है. ‘

केरल के राज्यपाल ने कहा, ‘यह कानून 13वीं शताब्दी के मध्य में लागू किया गया था, जिसका अर्थ है कि इसे समाप्त करने में 800 से अधिक वर्ष लग गए. हो सकता है, आज राजनीतिक कारणों से नहीं, लेकिन भविष्य में मुस्लिम महिलाओं की आने वाली पीढ़ियां भारत के पीएम श्री नरेंद्र मोदी को बड़ी कृतज्ञता के साथ याद करेंगी.

राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों (वीसी) की नियुक्ति, मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत एक अधिकारी के जीवनसाथी की नियुक्ति सहित कई मुद्दों को लेकर खान की केरल की वर्तमान पिनाराई विजयन सरकार के साथ लगातार अनबन चलती रही है. राज्यपाल ने कन्नूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और अन्य के बीच प्रमुख बिलों में देरी करने का आरोप लगाया.

हालांकि, खान ने कहा कि रन-इन केवल एक मुद्दे पर था, जो विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को लेकर है. उन्होंने कहा, ‘विश्वविद्यालयों में कोई कार्यकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि सरकार द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए.’

राज्यपाल राज्य के विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति होता है.

केरल के राज्यपाल ने कहा कि हस्तक्षेप का इससे बड़ा कोई सबूत नहीं हो सकता है कि यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि खान के कार्यकाल से पहले केरल में वीसी की 13 में से 11 नियुक्तियां पहले दिन से ही शून्य थीं.

उन्होंने कहा, ‘क्यों? क्योंकि सरकार चयन समिति में मुख्य सचिवों को शामिल करने पर जोर दे रही थी और माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि चयन पैनल में एक गैर-शैक्षणिक की उपस्थिति पूरी प्रक्रिया को खराब कर देगी.’

उन्होंने कहा कि यूजीसी के नियमों के अनुसार, चयन समिति सिर्फ एक नाम की सिफारिश नहीं कर सकती है क्योंकि जब आप एक नाम की सिफारिश करते हैं तो आप उस व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए चांसलर के हाथ बांध देते हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह अनिवार्य रूप से तीन नामों का एक पैनल होना चाहिए. 11 में से करीब नौ या दस में एक ही नाम की सिफारिश थी. तो, क्या हस्तक्षेप का इससे बड़ा सबूत हो सकता है?’

खान ने कहा कि उन्होंने उनकी (सरकार की) पसंद को अपना उम्मीदवार बनाने से इनकार कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘जब उन्होंने जोर दिया और एक स्थिति पैदा की, तो मैंने तुरंत उन्हें कुछ वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए लिखा. मैंने कहा कि आप चांसलर का पद संभालें, लेकिन मुझे उन चीजों को करने के लिए मजबूर न करें, जो मेरी राय में उचित नहीं हैं, कानूनी नहीं हैं और वे न केवल कानून के प्रावधानों बल्कि भावना का भी उल्लंघन करते हैं.’

दिसंबर 2021 में, खान ने सीएम पिनाराई विजयन को पत्र लिखकर कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकार के कथित हस्तक्षेप तथा विश्वविद्यालयों के कुलपति के पद से हटाने की इच्छा व्यक्त की थी.

केरल के राज्यपाल विजयन के नेतृत्व वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार के पार्टी कार्यकर्ताओं को मंत्रियों के निजी कर्मचारी के रूप में नियुक्त करने और उन्हें दो साल बाद आजीवन पेंशन के हकदार बनाने के फैसले के भी आलोचक थे.

उन्होंने कहा, ‘इसलिए, एक कार्यकाल में एक मंत्री 50 पूर्णकालिक पार्टी कार्यकर्ता पैदा करता है, जिन्हें सरकार द्वारा वेतन दिया जाता है. क्या यह नैतिक है? क्या यह ठीक है? खासकर ऐसे समय में जब केरल भारी वित्तीय कर्ज में डूबा हुआ है. लेकिन क्योंकि दुर्भाग्य से यहां हर राजनीतिक दल, जो भी सत्ता में रहा है और जिसकी भी सरकार रही है, उन सभी को लाभ मिल रहा है. इसलिए कोई आवाज नहीं उठाता. यह जनता के धन के दुरूपयोग की पराकाष्ठा है. जहां एक व्यक्ति, जिसे को-टर्मिनस के आधार पर पूरे देश में नियुक्त किया जाता है. आप उस व्यक्ति को आजीवन पेंशन का हकदार बना रहे हैं.’

रन-इन के बाद, खान को बीजेपी का एजेंट कहा गया है और केरल में सीपीआई (एम) ने राज्यपाल के पद को समाप्त करने का आह्वान किया है.

खान ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि लोकतंत्र में लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार है.

उन्होंने कहा, ‘यह पहली बार नहीं है. इससे पहले भी कई बार इस तरह की मांग की जा चुकी है. इस पर विचार करना संसद का काम है और हमें उन कारणों और तर्कों पर भी विचार करना होगा, जिन्होंने संविधान सभा को मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था बनाने के लिए बाध्य किया होगा.’

राज्यपाल ने कहा कि केरल में प्रोटोकॉल और बुनियादी शिष्टाचार का उल्लंघन हुआ है.

खान ने कहा, ‘कभी-कभी उन्होंने (केरल के सीएम) मेरे पत्रों का जवाब भी नहीं दिया था. मैंने ऑन रिकॉर्ड कहा है कि यदि आप एक भी उदाहरण दिखाते हैं जहां मैंने आपके अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने की कोशिश की है, तो मैं उसी दिन अपना इस्तीफा दे दूंगा. वे दिखाने में सक्षम नहीं हैं और मैं बहुत सी चीजें दिखा सकता हूं जहां वे विश्वविद्यालय में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जो नियमित रूप से कुलाधिपति का डोमेन है [राज्य के राज्यपाल को एक पद].’

लोकायुक्त विधेयक जैसे महत्वपूर्ण कानूनों में देरी के लिए भी खान को दोषी ठहराया गया है. केरल के राज्यपाल ने दिप्रिंट को बताया कि बिल में कई बुनियादी मुद्दे हैं, इसलिए उन्होंने उन्हें मंजूरी नहीं दी है.

उन्होंने कहा, ‘न्यायशास्त्र का मूल सिद्धांत यह है कि आप अपने मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकते. लोकायुक्त विधेयक को इस तरह से बनाया गया है कि जिनके खिलाफ शिकायत की गई है, वे शिकायत के भाग्य का फैसला करेंगे. आप इसकी इजाजत कैसे दे सकते हैं?’


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समान नागरिक संहिता ‘न्याय की एकरूपता’ के बारे में है

1986 में कांग्रेस छोड़ने के बाद, खान भाजपा में शामिल होने से पहले जनता दल और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ रह चुके हैं. उन्होंने 2007 में उस वर्ष के विधानसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में पार्टी के टिकट वितरण के विरोध में भाजपा छोड़ दी थी. लेकिन 2019 में तीन तलाक पर रोक लगाने वाले मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम के पारित होने के बाद मोदी सरकार के समर्थन में आ गए.

खान मुट्ठी भर प्रमुख मुस्लिम आवाजों में से एक हैं, जो समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर बहुत मुखर रहे हैं, जिस पर भाजपा जोर दे रही है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग इसका (यूसीसी) इस्तेमाल सिर्फ गलतफहमी पैदा करने के लिए कर रहे हैं. और जब गलतफहमी पैदा करने वाली ताकतें काम कर रही हों तो हमें भी उन गलतफहमियों को दूर करने के लिए पहल करने की जरूरत है और वहां मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है.

केरल के राज्यपाल ने कहा, ‘यूसीसी एकरूपता लाने के बारे में नहीं है. यह देश विविधता को प्यार करता है. जिस दिन UCC एक वास्तविकता बन जाएगी, इसका मतलब यह नहीं है कि हर कोई एक ही तरह से शादी करने के लिए मजबूर हो जाएगा. नहीं, हिंदुओं में भी, जहां हिंदू कोड लागू है और जैन, सिख और बौद्धों पर भी लागू है, क्या हम एकरूपता हासिल कर पाए हैं? ऐसा कोई कानून नहीं है जिसका इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा सके. UCC न्याय की एकरूपता बनाने के लिए है.’

खान ने केरल में भाजपा की ईसाइयों तक पहुंच के सवाल को भी खारिज कर दिया.

उन्होंने कहा, ‘ऐसी कोई चीज नहीं है. पीएम मोदी अपने कार्यकाल के पहले दिन से ही ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की बात कर रहे हैं. क्या पूरे देश में एक भी शिकायत है कि उन्होंने जितनी भी कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं- चाहे वह भोजन वितरण की बात हो, गैस कनेक्शन की बात हो या बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की-जहां आरोप लगाया गया है कि उनके साथ धर्म का आधार पर कुछ भेदभाव किया जा रहा है?’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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