नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, जो पहली बार 2017 में सत्ता में आई थी, ने दावा किया है कि उन्होंने राज्य में संगठित अपराध को खत्म करने के लिए कमर कस ली है.
लेकिन दिप्रिंट द्वारा सरकारी आंकड़ों के किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि यूपी में बंदूक से संबंधित हिंसा 2017 से लगातार बढ़ी है, और अब यह भारत में उच्चतम स्तर पर है.
हाल ही में प्रयागराज में गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अज़ीम उर्फ अशरफ जब पूरी तरह से पुलिस से घिरे हुए थे तब उनकी हत्या कर दी गई. तीन लोगों ने विदेश में बनी बंदूकों से इन दोनों को मार डाला.
हत्या के बाद अपने पहले भाषण में, सीएम आदित्यनाथ ने कहा, “यहां अब दंगे नहीं होते (यहां यूपी में) और कोई माफिया किसी को डरा नहीं सकता. उचित कानून और व्यवस्था है ”.
हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के डेटा, देश में अपराध के आंकड़ों को गणना करने के लिए जिम्मेदार शीर्ष एजेंसी, एक कॉम्पलेक्स तस्वीर दिखाती है.
आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश ने 2021 में आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत 36,363 मामले दर्ज किए – वह कानून जो अवैध हथियारों की आपूर्ति और उससे होने वाली हिंसा को नियंत्रित करता है.
जनसंख्या के हिसाब से समायोजित करने पर भी, जब बंदूक हिंसा की बात आती है तो उत्तर प्रदेश का स्थान सबसे ऊपर है.
23 करोड़ की आबादी (एनसीआरबी द्वारा अनुमानित) के साथ, उत्तर प्रदेश में शस्त्र अधिनियम के तहत पंजीकृत मामलों की संख्या लगभग 15.7 प्रति लाख है – 2021 में राष्ट्रीय औसत 5.4 से तीन गुना अधिक.
यह संख्या अपराध दर है, जिसकी गणना प्रति एक लाख जनसंख्या पर की जाती है.
2021 में उत्तर प्रदेश के बराबर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश था, जहां बंदूक हिंसा के तहत क्राइम रेट 15.6 की दर से दर्ज है, जो यूपी के बमुश्किल एक पायदान नीचे थी.
2021 से पहले, आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज मामलों में मध्य प्रदेश शीर्ष पर था.
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में बंदूक हिंसा 2017 से ऊपर की ओर बढ़ रही है. जबकि 2016 में, यूपी में हथियार से होने वाले अपराध की दर लगभग 12 थी, यह 2018 में बढ़कर 13 हो गई, फिर 2019 में लगभग 14 हो गई, जो 2021 तक लगभग 16 तक पहुंच गई. .
जिन अन्य राज्यों में बंदूक हिंसा की अपराध दर राष्ट्रीय औसत से अधिक दर्ज की गई है, वे हैं हरियाणा और राजस्थान.
इन नंबरों को पढ़ते समय सावधानी का एक नोट: एनसीआरबी के आंकड़े रिपोर्ट किए गए अपराधों पर आधारित होते हैं, इसलिए एक अपराध जो किया गया था लेकिन अधिकारियों को रिपोर्ट नहीं किया वह इन आंकड़ों में जगह नहीं पाता है.
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उत्तर प्रदेश में जिलेवार बंदूक हिंसा
वर्ष 2021 के जिलेवार आंकड़े बताते हैं कि जब बंदूक हिंसा में पश्चिमी यूपी में अपराध का दर सबसे अधिक है.
चूंकि एनसीआरबी ने केवल 2021 के मध्य तक जनसंख्या अनुमानों के आधार पर राज्य-वार डेटा तैयार किया था, दिप्रिंट ने 2011 की जनगणना के जनसंख्या डेटा का उपयोग करके यूपी के लिए जिले-वार अपराध दर की गणना की. जिले-वार बंदूक हिंसा अपराध दर पर पहुंचने के लिए प्रत्येक जिले के शस्त्र अधिनियम के मामलों को 2011 की जनगणना के जनसंख्या आंकड़ों से बांटा गया था.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, कुछ जिलों को छोड़कर, अधिकांश जिलों में प्रति लाख जनसंख्या पर 20 से अधिक की बंदूक हिंसा दर देखी गई.
हालांकि, ऐसे मामले पूर्वी यूपी के पॉकेट्स में भी दर्ज किए गए थे – विशेष रूप से श्रावस्ती (163), गोंडा (53), संत कबीर नगर (88), भदोही (70), प्रतापगढ़ (43) और गाजीपुर (33).
पूर्वी और मध्य यूपी के शेष अधिकांश जिलों में प्रति लाख जनसंख्या पर 20 से कम मामले दर्ज किए गए.
गिरोह की रंजिश, अपहरण और अपहरण
जब “गैंगवार” की बात आती है और उसमें होने वाली हत्याओं की बात आती है जिसमें भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है.
2021 में, राज्य ने हत्याओं के 42 मामलों की सूचना दी, जहां मकसद “गैंगवार” के रूप में दर्ज किया गया था, जो कि उस वर्ष भारत में दर्ज किए गए ऐसे मामलों (65) की कुल संख्या का लगभग दो-तिहाई है.
2017 में, उत्तर प्रदेश ने लगभग 27 ऐसी हत्याओं की सूचना दी थी – उस वर्ष (74) भारत में दर्ज सभी “गैंग वार” हत्याओं के एक तिहाई से थोड़ा अधिक है.
एनसीआरबी की रिपोर्ट में “गैंगवार” एक अपेक्षाकृत नई विशेषता है, यही वजह है कि 2017 से पहले प्रकाशित इसकी रिपोर्ट में इसके आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
अपहरण और अपहरण के मामले यूपी में 2018 में चरम पर था जब इसने अपहरण की अपनी सबसे उच्चतम संख्या दर्ज की. उस वर्ष बीच में आबादी के हिसाब से, इस उपशीर्षक के तहत अपराध दर 10 थी – जिसका अर्थ है कि प्रत्येक 1 लाख लोगों में कम से कम 10 ऐसे मामले अपहरण के दर्ज किए जाते हैं.
2018 से यूपी में यह दर नीचे की ओर गई है और 2021 तक 6.3 पर पहुंच गई थी. राज्य में अपहरण और अपहरण की अपराध दर भी 2019 के बाद से राष्ट्रीय औसत से कम रही है.
हिंसक अपराध
हथियारों और संबंधित मामलों की रिपोर्टिंग में वृद्धि के बावजूद, यूपी में बलात्कार से लेकर डकैती और हत्या तक सभी हिंसक अपराधों की दर भारत की तुलना में कम रही है.
2016 में राज्य में हिंसक अपराध चरम पर थे, जब प्रति 1 लाख जनसंख्या पर लगभग 30 ऐसे अपराध दर्ज किए गए, जो उस वर्ष 33 के राष्ट्रीय औसत से नीचे थे.
तब से अपराध दर धीरे-धीरे कम हुई है, उसी वर्ष राष्ट्रीय औसत 30.2 के मुकाबले 2021 में 22.7 तक पहुंच गई.
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
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