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Thursday, 21 November, 2024
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‘सनातन धर्म’ को बचाने के लिए गहलोत सरकार दे रही वेद विद्यालयों में भविष्य के पंडितों को ट्रेनिंग

राजस्थान में कांग्रेस सरकार राज्य सहायता प्राप्त वेद विद्यालयों के नेटवर्क को विकसित करने की योजना बना रही है, जहां छात्र वैदिक शिक्षा लेंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि यह चुनावी राज्य में व्यापक रणनीति का हिस्सा है.

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जयपुर: पीतांबरा पीठ में यह एक शांत सुबह है, चारों तरफ गायत्री मंत्र का जप करने वाले युवाओं की आवाज़ें गूंज रही हैं. एक चौकस गुरु ताल बिगड़ने पर उसमें सुधार करते हैं. शहर के बाहरी इलाके में स्थित, यह धार्मिक केंद्र राजस्थान के 26 सरकारी सहायता प्राप्त वेद विद्यालयों में से एक है जो कल के हिंदू पुजारी तैयार करने के लिए समर्पित मुफ्त आवासीय स्कूल है.

छात्रों और शिक्षकों का कहना है कि यहां 10 से 17 साल उम्र तक के लड़के प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और सनातन धर्म के भविष्य के “संरक्षक” बनने के लिए 5 साल के दौरान कठोर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं.

वैदिक ज्ञान की अपनी खोज के अलावा, लड़कों को एक विशिष्ट स्कूल में भी जाना पड़ता है. इन सभी को फिट करने के लिए, उनके शेड्यूल के हर मिनट को सुबह 4:30 बजे से रात 10 बजे सोने के समय तक बारीकी से तैयार किया जाता है.

राज्य के सीकर जिले से आने वाले 17-वर्षीय पीताबंरा के छात्र गोविंद मिश्रा कहते हैं, “हमें टीवी देखने और फोन का इस्तेमाल करने का बहुत समय मिलेगा, लेकिन यह कड़ी मेहनत करने और वेद माता की ठीक से सेवा करने का समय है.”

उन्होंने कहा, “मेरे पिता एक पंडित हैं. मेरे दादा पंडित हैं. मैं उनसे प्रेरित हूं. मुझे लगता है कि हमारी पीढ़ी के लोगों को सनातन धर्म में दिलचस्पी लेनी चाहिए.”

A student at a Ved Vidyalaya
गोविंद शर्मा, पीतांबरा पीठ में अपने पांचवें वर्ष में हैं. वे अपने पिता और दादा की तरह पंडित बनने की उम्मीद कर रहे हैं | फोटो: इशाद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

यह एक ऐसा कारण है जिसके लिए अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार देर से ही सही लेकिन भरपूर समर्थन दे रही है.

2023-24 के राज्य के बजट को कल्याणकारी उपायों के लिए बहुत प्रचारित किया गया था, लेकिन इसने हिंदू धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों के लिए पाई का एक महत्वपूर्ण टुकड़ा भी आरक्षित किया.

इस बजट में एक प्रस्ताव उन 13 जिलों में वेद विद्यालय खोलने का था जहां ये स्कूल अभी मौजूद नहीं हैं.

उक्त कारण “वैदिक संस्कृति” का “प्रोत्साहन और संरक्षण” था. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा 26 में से आठ स्कूल 2018 के बाद खोले गए, जब गहलोत सरकार सत्ता में आई थी.

राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य कांग्रेस विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मुकाबला करने के लिए एक ठोस “हिंदुत्व के कदम” अपना रही है.

राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशीकर कहते हैं, “यह (हिंदुत्व कदम) राजस्थान कांग्रेस में नया नहीं है, लेकिन इस बार यह बहुत आगे जा रहा है. यह भाजपा के इस दावे का मुकाबला करेगा कि कांग्रेस हिंदू समर्थक नहीं है. राजस्थान समाज में यह कुछ ऐसा है जिसकी सराहना की जाएगी.”

दिप्रिंट ने जयपुर के बाहरी इलाके में दो वेद विद्यालयों पीतांबरा पीठ में श्री गुरु कृपा वेद विद्यापीठ और प्रसिद्ध श्री खोले हनुमान जी मंदिर में नरवर आश्रम सेवा समिति वेद विद्यालय का यह समझने के लिए दौरा किया कि ये स्कूल कैसे काम करते हैं, छात्रों का जीवन और इसके पीछे क्या राजनीतिक संदेश है.

Narvar Ashram Seva Samity Ved Vidyalaya
जयपुर के नरवर आश्रम सेवा समिति वेद विद्यालय के छात्र | फोटो: इशाद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

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थका देने वाला शेड्यूल, ‘बड़ा पंडित’ बनने के सपने

अनुशासन एक वेद विद्यालय में जीवन का आधार है, जहां छात्र वैदिक शिक्षा के साथ नियमित शैक्षणिक शिक्षा भी ग्रहण करते हैं.

लड़के सुबह 4:30 बजे उठते हैं और गायत्री मंत्र के जप के लिए 6 बजे तक तैयार हो जाते हैं. जप स्कूलों के मंदिरों में होता है. इसके बाद सुबह 6:30 बजे नाश्ता परोसा जाता है.

आधे घंटे बाद, छात्र स्कूल जाते हैं, जहां वे गणित, अंग्रेज़ी और हिंदी जैसे विशिष्ट विषयों का अध्ययन करते हैं.

दोपहर 1:30 बजे, वे दोपहर के भोजन के लिए आश्रम लौटते हैं, जिसमें आमतौर पर उपमा, दलिया और हलवा जैसी चीज़ें शामिल होती हैं.

डेढ़ घंटे के आराम के बाद उनका वैदिक प्रशिक्षण शुरू होता है. दो घंटे के लिए शाम 4 बजे से 6 बजे तक, बच्चों को शुक्ल यजुर्वेद के ग्रंथ, मंत्र, विभिन्न अनुष्ठानों के लिए अभ्यास और ज्योतिष जैसे अन्य कौशल सिखाए जाते हैं.

इसके बाद एक घंटे का खेल का पीरियड होता है, जिसके बाद शाम को गायत्री मंत्र का पुन: पाठ किया जाता है. रात 8 बजे रात का खाना परोसा जाता है, जिसके बाद लाइट जाने से पहले स्कूल का होमवर्क पूरा करने का समय होता है.

Residential quarters of students at the Narvar Ashram Seva Samity Ved Vidyalaya
नरवर आश्रम सेवा समिति वेद विद्यालय में छात्रों के आवासीय क्वार्टर | फोटो : इशाद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

यह एक बच्चे के लिए बहुत कुछ है, लेकिन कई छात्रों का कहना है कि उनका उद्देश्य उन्हें इसमें जुटाए रखता है.

दिप्रिंट के पीतांबरा पीठ के दौरे के दौरान लाल और पीली वर्दी पहने छात्र गायत्री मंत्र का जाप करते नज़र आए, जबकि युवा लड़खड़ाते हैं, लेकिन पुराने छात्र पूरी तरह से नियंत्रित हैं.

Students at Sri Guru Kripa Ved Vidyapeeth at the Pitambara Peeth
जयपुर के पीतांबरा पीठ स्थित श्री गुरु कृपा वेद विद्यापीठ में छात्र अपने गुरु के सानिध्य में गायत्री मंत्र का जाप करते हैं | फोटो: इशाद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

अधिकांश छात्र निम्न-आय पृष्ठभूमि से आते हैं. उनमें से एक 14 साल का अंकुश शर्मा है, जो एक साल से आश्रम में है. उसके पिता टैक्सी ड्राइवर हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें घर की याद आती है, अंकुश शर्मीली मुस्कान के साथ हां कहते हैं.

वे कहते हैं, “मुझे अपने माता-पिता की याद आती है लेकिन धीरे-धीरे हम मैनेज करना सीखते हैं. वरिष्ठ छात्र हमारी मदद करते हैं.”

नरवर में, 12-वर्षीय अंकित पटेरिया, जिसके पिता रिक्शा चलाते हैं, वो भी अपने घर को याद करते हैं.

संस्थान की वर्दी सफेद धोती और कुर्ता पहने पटेरिया कहते हैं, “जब मैंने घर छोड़ा तो मैं रोया, लेकिन अगर मुझे पढ़ाई करनी है, तो मुझे यह करने की ज़रूरत है. हमारे गुरुजी ने मुझे समझाया कि मुझे एडजस्ट कर लेना चाहिए. उन्होंने मुझे वरिष्ठ छात्रों से सीखने और मार्गदर्शन लेने को कहा.”

पटेरिया ने बताया कि यहां आने के एक साल बाद वो अब सेटल हो गया है.

उन्होंने कहा, “हमारा शेड्यूल बहुत थका देने वाला है लेकिन हम इसे करते हैं. मुझे वेदों के बारे में पढ़ना अच्छा लगता है. मैं एक बड़ा पंडित बनना चाहता हूं और यदि संभव हो तो एक संस्कृत शिक्षक भी.”

उसका स्कूल का साथी 17-वर्षीय तुषार शर्मा भी ऐसी ही महत्वाकांक्षा रखता है. वेद स्कूल में अपने पांचवें और अंतिम वर्ष में, उन्होंने वैदिक कर्मकांड प्रथाओं, कंठस्थ मंत्रों का ज्ञान प्राप्त किया और विभिन्न प्रकार की पूजा करना सीखा.

Religious books at a Ved Vidyalaya
वेद विद्यालय के छात्र धार्मिक पुस्तकों और कुछ प्रसाधनों को छोड़कर बहुत कम सामान रखते हैं | फोटो : इशाद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

वे कहते हैं, “मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं पंडिताई करूं और मैंने उनकी इच्छाओं का सम्मान किया. मैं कॉलेज में संस्कृत पढ़ना चाहता हूं. उम्मीद है कि तब मैं धर्म गुरु या संस्कृत शिक्षक बनूंगा.”

अन्य छात्र कॉलेज छोड़ने और पूरी तरह से पंडित बनने पर ध्यान केंद्रित करने को तैयार हैं.

भवानी शंकर गौतम जैसे बच्चे जो पीतांबरा में अपने पांचवें वर्ष में हैं कहते हैं, “मुझे अपने धर्म और अपने सनातन धर्म में अधिक रुचि है. मेरे चाचा पंडित हुआ करते थे. उनकी मृत्यु के बाद, मेरा परिवार चाहता था कि मैं यह पद संभालूं. मेरे पिता ने मुझे यहां भेजा है. मुझे यह जीवन जीना पसंद है.”


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वेद विद्यालय कैसे काम करते हैं

2006-07 के वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाले भाजपा शासन के दौरान पहली बार घोषित किए गए वेद विद्यालय पारंपरिक वैदिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किए गए थे.

प्रत्येक संस्थान एक धार्मिक ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है जो संस्कृत अकादमी से मान्यता प्राप्त है और राजस्थान सरकार के कला और संस्कृति विभाग के अंतर्गत आता है.

वेद विद्यालय पांच साल के आवासीय पाठ्यक्रम की पेशकश करते हैं और छात्र नियमित स्कूल में पांचवीं कक्षा पास करने के बाद ही यहां दाखिला ले सकते हैं.

प्रवेश 5 वर्षों की अवधि में अधिकतम 50 छात्रों या प्रति वर्ष 10 छात्रों तक सीमित है.

Khole Ke Hanuman Mandir, which houses the Narvar Ashram Seva Samity Ved Vidyalaya
खोले के हनुमान मंदिर, जिसमें नरवर आश्रम सेवा समिति वेद विद्यालय है | फोटो: इशद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

संस्कृत अकादमी के सूत्रों के अनुसार, ब्राह्मण लड़कों को वरीयता दी जाती है, लेकिन गैर-ब्राह्मणों को भी नामांकन की अनुमति है.

अकादमी के एक पदाधिकारी ने कहा, “जब वे नामांकन करते हैं, तो उन सभी का जनेऊ (पवित्र धागा) समारोह किया जाता है. उसके बाद वे द्विज (दो बार पैदा हुए) बन जाते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “यह ज़रूरी नहीं है कि सभी महंत या पुजारी ब्राह्मण हों. उदाहरण के लिए, विश्वामित्र एक क्षत्रिय थे. लेकिन वेदों का छात्र होने के लिए समारोह करना अनिवार्य है.”

स्कूल पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर काम करते हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक संगठन बुनियादी ढांचे और सुविधाओं का ध्यान रखते हैं. दूसरी ओर, राज्य सरकार प्रत्येक छात्र को 500 रुपये प्रति माह, शिक्षकों को 8,000 रुपये का मासिक वेतन और प्रत्येक स्कूल को 800 रुपये का मासिक विविध भत्ता भी प्रदान करती है.

नरवर के एक शिक्षक पवन कुमार शर्मा ने कहा, “यहां अपने समय के दौरान, छात्र शुक्ल यजुर्वेद की मध्यंदिना शाखा सीखते हैं. इसमें 40 अध्याय और लगभग 2,000 मंत्र हैं. इसके साथ ही, उन्हें यज्ञ, ज्योतिष और अन्य चीजों को करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.”

वे आगे कहते हैं, छात्रों को अनिवार्य रूप से नियमित स्कूलों में नामांकित किया जाता है ताकि उनके पास आधुनिक कौशल भी हो.

शर्मा कहते हैं, “आज समाज में अच्छे पंडितों की कमी है. हम भविष्य के पंडित तैयार कर रहे हैं. उनके लिए धर्म गुरु बनना करियर में एक विकल्प है. वह संस्कृत के शिक्षक भी बन सकते हैं. ये वो बच्चे हैं जो भविष्य में इन सम्मानित पदों पर आसीन होंगे.”

वेद विद्यालयों में बच्चों से उनके पांच साल तक कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. इस दौरान ट्रस्ट उनकी नियमित स्कूली शिक्षा का खर्चा भी उठाता है.


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‘सनातन परंपरा को बचाना’

राजस्थान संस्कृत अकादमी के संगठनात्मक सचिव हृदयेश चतुर्वेदी के अनुसार, वेद विद्यालयों का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति की रक्षा करना और सनातन धर्म का संरक्षण करना है.

उन्होंने कहा, “आज राज्य भर के वेद विद्यालयों में लगभग 650 छात्र हैं. वेदों की गुरु-शिष्य परंपरा को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है. इस उद्देश्य के लिए अकादमी ने एक योजना बनाई जिससे नई पीढ़ी को वेदों की ओर ले जाया जा सके.”

वे कहते हैं, “हमारी एक परंपरा है जो हजारों साल पुरानी है – सनातन परंपरा- और इसे केवल वेदों को बचाकर ही बचाया जा सकता है. वेद भारतीय संस्कृति के डीएनए हैं. अगर हम डीएनए को नहीं बचा सकते हैं तो हम अपनी संस्कृति को भी नहीं बचा पाएंगे.”

चतुर्वेदी का दावा है कि 1800 के दशक के दौरान ब्रिटिश सांसद लॉर्ड मैकाले पश्चिमी शैली की शिक्षा शुरू करने से पहले, भारत में पारंपरिक गुरुकुल में कार्यात्मक थे.

वे कहते हैं, “ब्रिटिश शासन के कारण देश को अंग्रेज़ी, आधुनिक शिक्षा प्रणाली को स्वीकार करना पड़ा, लेकिन इसे बदलने की ज़रूरत है.”

चतुर्वेदी ने कहा, “अब हम अंग्रेज़ी शिक्षा को एक स्टेटस सिंबल के रूप में देखते हैं. हमें लगता है कि अगर हमारे बच्चे अंग्रेज़ी नहीं सीखेंगे तो वे पीछे रह जाएंगे. इसी वजह से राजस्थान संस्कृत अकादमी ने राज्य में वेद आश्रम खोलना शुरू किया. हमने धार्मिक और आध्यात्मिक संगठनों से हमारी मदद करने को कहा और उन्हें प्रेरित किया. हमारे समाज को इन संगठनों से प्रेरित होना चाहिए.”

A poster in the student dorm at Pitambara Peerh
वेद विद्यालयों में दीवार की सजावट धार्मिक पोस्टरों तक सीमित है, जैसे यह | फोटो : इशाद्रिता लाहिरी | दिप्रिंट

नरवर आश्रम सेवा समिति के एक महामंत्री (मंदिर प्रमुख) ब्रज मोहन शर्मा का कहना है कि वे इस परियोजना में शामिल हैं क्योंकि “नई पीढ़ी भटक गई है”.

शर्मा ने कहा, “भारत में विदेशी एजेंसियां काम कर रही हैं. आपने धर्मांतरण के उदाहरण देखे होंगे. ईसाई और अल्पसंख्यक संख्या में बढ़ना चाहते हैं लेकिन बहुसंख्यक बनना चाहते हैं. इसलिए वे नई पीढ़ी को गलत दिशा में ले जा रहे हैं. हमें अपने बच्चों को वो शिक्षा देनी चाहिए जो उन्हें उस संस्कृति और धर्म का ध्यान रखने दे, जिसमें वे पैदा हुए हैं.”

उन्होंने कहा, “अगर ये बच्चे काबिल हो गए तो मुझे पता है कि ब्राह्मण और पंडित विदेश भी जा सकते हैं और सफल हो सकते हैं. यही संदेश मोदीजी भी देने की कोशिश कर रहे हैं.”

‘कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग आजमा रही है’

राज्य के वेद विद्यालयों के नेटवर्क के विस्तार के प्रस्ताव के अलावा गहलोत सरकार के 2023-24 के बजट में “संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने” की योजना भी पेश की गई थी. सरकार ने 16 संस्कृत महाविद्यालयों (कॉलेजों) की स्थापना की घोषणा की, जिसका उद्देश्य अंततः राज्य के प्रत्येक जिले में एक ऐसा संस्थान बनाने की है.

संस्कृत अकादमी के अधिकारियों के अनुसार, 2023-24 के बजट में घोषित 13 वैदिक विद्यालयों की स्थापना के लिए 85 लाख रुपये आवंटित किए गए थे. दूसरी ओर, संस्कृत महाविद्यालय, संस्कृत शिक्षा विभाग के अधीन हैं, जिसका वैदिक शिक्षा के लिए अधिक बजट है.

इसके अलावा तीन महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों – जयपुर में गोविंद देवजी मंदिर, अजमेर में पुष्कर और डूंगरपुर जिले के बेणेश्वर धाम के लिए 100-100 करोड़ रुपये के विकास पैकेज की भी घोषणा की गई.

विशेष रूप से पिछले अक्टूबर में गहलोत ने राजस्थान के राजसमंद में दुनिया की “सबसे ऊंची” शिव प्रतिमा का उद्घाटन किया. 369 फुट ऊंची प्रतिमा के अनावरण के मौके पर योग गुरु रामदेव के साथ-साथ भाजपा के नेता भी मौजूद थे. कार्यक्रम के दौरान, गहलोत ने दावा किया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी “शिव भक्त” रहे हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि एक साथ हुए ये घटनाक्रम एक व्यापक रणनीति की ओर इशारा करते हैं, जिसे कांग्रेस ने हिंदू धर्म के “ठेकेदार” के रूप में भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए अपनाया है. यह दो अन्य राज्यों- छत्तीसगढ़ जहां कांग्रेस सत्ता में है और मध्य प्रदेश जहां वर्तमान में भाजपा का शासन है, में विशेष रूप से स्पष्ट है जहां वर्ष के अंत में मतदान होने हैं.

छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने राम और गाय को अपने दो मुख्य तख्तों के रूप में अपनाया है, मध्य प्रदेश कांग्रेस ने इस महीने की शुरुआत में अपने राज्य मुख्यालय में एक पुजारी प्रकोष्ठ (पुजारी सेल) की स्थापना की और यहां तक कि एक धर्म संवाद (धार्मिक सम्मेलन) भी आयोजित किया.

दिप्रिंट से बात करते हुए, राजस्थान कांग्रेस के नेता अपनी रणनीति की प्रभावकारिता पर बंटे हुए प्रतीत होते हैं, जिसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से भाजपा की हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण रणनीति का मुकाबला करना है. जबकि कुछ वरिष्ठ नेताओं का तर्क है कि भाजपा ने हिंदू समुदाय की सेवा करने के कांग्रेस के पिछले रिकॉर्ड को व्यवस्थित रूप से मिटा दिया है. दूसरों का तर्क है कि भाजपा की वैचारिक पकड़ कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण सेंध लगाने के लिए बहुत मजबूत है.

इस बहस के बीच, गहलोत सरकार ने सोशल इंजीनियरिंग में हाथ आजमाते हुए विकास और जन कल्याण को प्राथमिकता देते हुए “शासन-केंद्रित” दृष्टिकोण अपनाया है.

राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशिकर ने कहा कि यह रणनीति केवल उन जगहों पर जोर पकड़ सकती है जहां कांग्रेस के पास आवश्यक ऑन-ग्राउंड संगठन है और राजस्थान में गहलोत गुट के पास है.

उन्होंने कहा, “हिंदू आबादी (राजस्थान में) लगभग दो दलों के बीच विभाजित है. कांग्रेस केवल यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा कर रही है कि भाजपा अपनी हिंदू पहचान के साथ खिलवाड़ करके लाभ न कमाए.”

राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक मनीष गोधा भी 2018 में सत्ता में आने के बाद गहलोत सरकार द्वारा स्थापित किए गए विभिन्न “बोर्डों” की ओर इशारा करते हैं. इनमें ब्राह्मणों के कल्याण के लिए स्थापित विप्र कल्याण बोर्ड भी शामिल है.

उन्होंने कहा, “हमने पिछली कांग्रेस सरकार में इसे कम देखा. यह निश्चित रूप से इस शासन में अधिक है.”

उन्होंने आगे कहा, “सरकार के पास देवस्थानों के लिए एक विभाग है, जो राज्य सहायता प्राप्त मंदिरों से संबंधित है. इस विशिष्ट विभाग ने इस सरकार के कार्यकाल के दौरान बहुत सारे कार्यक्रम आयोजित किए हैं.”

गोधा के मुताबिक, कांग्रेस इस नैरेटिव को बदलने की कोशिश कर रही है कि वे हिंदुओं के बारे में बीजेपी जितनी “गंभीर” नहीं है.

गोधा ने कहा, “कांग्रेस निश्चित रूप से सोशल इंजीनियरिंग की ओर देख रही है. हिंदू दबाव के अलावा उन्होंने हाल ही में सिखों के लिए एक बोर्ड भी बनाया है. इससे पहले, पिछड़ी जातियों के लिए एक था. पिछले चार या पांच महीनों में कम से कम चार ऐसे बोर्ड बनाए गए हैं.”

‘हमें सरकार से जो मिलता है वे काफी नहीं है’

भले ही गहलोत सरकार अपने हिंदू निर्वाचन क्षेत्रों में अपील करने की कोशिश कर रही है, चाहे इसे “पर्याप्त” माना जाए या नहीं, इस पर बहस की जा रही है.

उदाहरण के लिए, वेद विद्यालयों में सरकारी धन के आवंटन को लेकर कुछ असंतोष है.

कार्यक्रम को लागू करने वाली संस्कृत अकादमी जहां सरकार का हिस्सा है, वहीं इसके अधिकारियों का कहना है कि वेद विद्यालयों का बजट बढ़ाया जाना चाहिए.

चतुर्वेदी कहते हैं, “हमें सरकार से जो मिलता है वो पर्याप्त नहीं है. हम संस्कृत अकादमी में सरकार को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि शिक्षकों के वेतन में वृद्धि होनी चाहिए. उन्हें गरिमापूर्ण अस्तित्व के लिए कम से कम न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करने की आवश्यकता है.”

इसके अलावा चतुर्वेदी कहते हैं निजी धार्मिक संगठनों को सरकार की तुलना में परियोजना की लागत का अधिक हिस्सा नहीं देना चाहिए.

इस बीच, शिक्षकों का दावा है कि बढ़ती लागत के साथ उनका वेतन नहीं रखा गया है.

शिक्षक पवन शर्मा कहते हैं, “हम जानते हैं कि बाज़ार की कीमतें क्या हैं. हमें कम से कम इतना तो मिलना ही चाहिए जितना हमें अपना घर चलाने के लिए चाहिए.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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