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Friday, 22 November, 2024
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NGT के आदेश के 9 महीने बाद, हरियाणा सरकार गैर-वन क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई को रोकने की नीति पर काम कर रही है

यदि पेड़ काटने की अनुमति दी जाती है तो सरकार वनीकरण के रूप में लगाए गए पेड़ों को सुनिश्चित करने के लिए तंत्र तैयार करेगी. अधिकारी का कहना है कि प्रावधान पहले से मौजूद है और मुद्दे पर काम चल रहा है.

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चंडीगढ़: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा हरियाणा सरकार को गैर-वन भूमि पर पेड़ों की कटाई के नियमन के लिए एक नीति तैयार करने के निर्देश के नौ महीने बाद, खट्टर सरकार इस तरह की व्यवस्था स्थापित करने को लेकर काम करना शुरू कर दिया है.

हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने डेवल्पमेंट की पुष्टि करते हुए दिप्रिंट को बताया.“हरियाणा में, पेड़ तीन अलग-अलग श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं. वन भूमि, जो वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत आती है, शहरी क्षेत्रों और ग्रामीण क्षेत्रों में है.”

वर्तमान में, शहरी निकाय सक्षम प्राधिकारी हैं जो शहरी क्षेत्रों में पेड़ों को काटने की अनुमति देते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राज्य सरकार के विकास और पंचायत विभाग से संपर्क किया जाना चाहिए.

कौशल ने दिप्रिंट को बताया, “एनजीटी के निर्देशों (पिछले जुलाई) के बाद से, हमने संबंधित विभाग के अधिकारियों के साथ दो बैठकें की हैं. पहली ही मुलाकात में हर चीज पर विस्तार से चर्चा हुई.’

पिछले जुलाई में, एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच जो जज आदर्श कुमार गोयल के अंतर्गत आती है उन्होंने कुरुक्षेत्र स्थित पर्यावरण एनजीओ, ग्रीन अर्थ द्वारा एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस तरह की व्यवस्था विकसित करने का निर्देश दिया था. अपने आवेदन में, एनजीओ ने कहा कि कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की कृष्णा वाटिका, ज्योतिसर तीर्थ में 24 स्वदेशी पेड़ों को काटने की योजना थी.

आवेदन में आगे कहा गया है कि ये पेड़ 1970 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नंदा और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल ने लगाए थे.

राज्य सरकार भगवद गीता की जन्मस्थली ज्योतिसर को कुरुक्षेत्र में धार्मिक पर्यटन के प्रमुख स्थल के रूप में विकसित कर रही है.

हरियाणा के मुख्य सचिव कौशल ने कहा कि गैर-वन भूमि पर पेड़ दो कानूनों के तहत कवर किए गए थे – ग्रामीण क्षेत्रों के लिए हरियाणा पंचायती राज अधिनियम 1994, और शहरी क्षेत्रों के लिए हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण अधिनियम 1977.

लेकिन दिप्रिंट ने जिस पर्यावरणविद् से बात की, उनकी राय है कि ये कानून सुरक्षा प्रदान करने के लिए अपर्याप्त हैं. गुरुग्राम की पर्यावरणविद् वैशाली राणा चंद्रा ने कहा, “हरियाणा में 3.63 प्रतिशत वन क्षेत्र है. यह राजस्थान (4.87 प्रतिशत) से भी कम है, जिसे रेगिस्तानी राज्य कहा जाता है. अगर हरियाणा पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए सख्त कानून नहीं बनाया जाता है, तो हम निश्चित रूप से मरुस्थलीकरण की ओर बढ़ेंगे. ”


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एनजीटी के आदेश में क्या कहा गया है

अपने आवेदन में, ग्रीन अर्थ ने कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड और उपायुक्त, दूसरों के बीच, ज्योतिसर तीरथ में पेड़ों की कटाई और पेड़ों की जड़ों को डी-कंक्रीट करने के खिलाफ निर्देश देने के लिए कहा.

एनजीओ के अनुसार, हरियाणा के पर्यटन विभाग और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड को पिछले साल 14 अप्रैल को 24 स्वदेशी पेड़ों को काटना था – उनमें से नौ अर्जुन पेड़, एक बरगद, एक नीम, आठ सिरिस, दो गुलमोहर थे.

अपने जवाब में, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड और हरियाणा पर्यटन विभाग ने तर्क दिया कि तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए पेड़ों को गिराना आवश्यक था. उन्होंने प्रतिपूरक वनीकरण के रूप में “काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या का दस गुना अधिक” लगाने का भी वादा किया.

“प्रतिपूरक वनीकरण” (यानी काटे गए पेड़ों के एवज में लगाए गए पेड़) एक ऐसी नीति है जिसके लिए एक ऐसी एजेंसी की आवश्यकता होती है जो वन भूमि को गैर-वन भूमि के समान क्षेत्र पर वन लगाकर भुगतान करने के लिए गैर-वन उद्देश्यों के लिए मोड़ती है, या जब ऐसी भूमि उपलब्ध नहीं होती है, तो निम्नीकृत वन के दोगुने क्षेत्र पर पौधे लगाए जाते है.

अपने आदेश में, एनजीटी ने कहा कि यह “निर्विवाद है कि किसी भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा पेड़ों को काटने की अनुमति नहीं दी गई है”.

उन्होंने आगे कहा, “प्रतिवादियों के विद्वान वकील ने प्रस्तुत किया कि दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 की तर्ज पर हरियाणा में कोई नियामक तंत्र नहीं है, और इस प्रकार, वन क्षेत्र के बाहर पेड़ों को काटने की अनुमति की आवश्यकता नहीं है.” “तदनुसार, हम हरियाणा के मुख्य सचिव को इस मामले को देखने का निर्देश देते हैं और यदि कोई विनियमन मौजूद नहीं है, तो इसे एक महीने के भीतर निर्धारित किया जाए. संबंधित पेड़ों को काटने से पहले नियामक तंत्र का पालन किया जाना चाहिए.”

रेगिस्तान बनना तय है’

दिप्रिंट से बात करते हुए, कौशल ने कहा कि राज्य सरकार एक तंत्र तैयार करेगी जो “यह सुनिश्चित करेगी कि प्रतिपूरक वनीकरण के तहत लगाए जाने वाले पेड़ विधिवत लगाए गए हैं, अगर कटाई की अनुमति दी जाती है”.

लेकिन, अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने दिप्रिंट को बताया कि हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) के एक अधिकारी के अनुसार – पहले हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HUDA) के रूप में जाना जाने वाला एक निकाय – ऐसा प्रावधान पहले से मौजूद है. ज़ोनिंग योजनाओं में संरक्षित वुडलैंड क्षेत्रों में पेड़ों को काटने के लिए उपयुक्त संपदा अधिकारी की अनुमति आवश्यक है.

अधिकारी ने कहा, “जहां अनुमति दी जाती है, संपत्ति अधिकारी, या ऐसे अन्य अधिकृत अधिकारी, किसी भी साइट के मालिक को पौधे लगाने या फिर से लगाने (पेड़ लगाने) के लिए निर्देश दे सकते हैं.”

लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि नियम मौजूद हैं, उन्हें पूर्ण रूप से लागू करने के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं है.

उन्होंने कहा, “गैर-वन क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए नियम पहले से ही मौजूद हैं, और यह भी आवश्यक है कि बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के लिए पेड़ों को काटने की अनुमति देने वालों को प्रतिपूरक वनीकरण के तहत अधिक पेड़ लगाए जाएं.” अधिकारी ने आगे कहा, “लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कोई पुख्ता तंत्र या ऐसी प्रणाली नहीं है कि एक व्यक्ति को जितने पेड़ लगाने की जरूरत है, वे वास्तव में लगाए गए हैं और वे जीवित भी हैं वह जांच की जा सके.” .

यह पूछे जाने पर कि क्या हरियाणा सरकार दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 या उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1976 की तर्ज पर कानून बनाने पर विचार कर रही है, कौशल ने कहा कि मौजूदा प्रावधान पर्याप्त हैं.

दोनों कानून गैर-वन क्षेत्रों में पेड़ों की रक्षा करने और उल्लंघन के लिए दंड प्रदान करने के लिए हैं, जिसमें जेल की सजा और जुर्माना शामिल है.

लेकिन पर्यावरणविद् चंद्रा के अनुसार, हरियाणा के मौजूदा कानूनों में दम नहीं है और गैर-वन भूमि में पेड़ों की रक्षा के लिए और अधिक किए जाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 के अनुसार, हरियाणा का वृक्षावरण 2019 में 1,425 से घटकर 1,565 वर्ग किमी हो गया है.

राज्य के वन संसाधनों की रक्षा के प्रयास में, हरियाणा ने 2006 में अपनी स्वयं की वन नीति तैयार की, जिसमें उसने “चरणबद्ध तरीके” से 20 प्रतिशत वन आच्छादन प्राप्त करने का लक्ष्य तय करने का निर्णय लिया.

हालांकि, यह 1988 की राष्ट्रीय वन नीति की तुलना में बहुत कम है, जो मैदानी इलाकों के लिए इष्टतम 33 प्रतिशत कवर की सिफारिश करती है.

चंद्रा ने कहा, “हरियाणा की वन नीति पहले से ही राष्ट्रीय नीति की तुलना में बहुत छोटे वृक्षों के आवरण का वादा करती है.” “इसके अलावा, जिस तरह से पेड़ों को काटने की अनुमति दी जा रही है, आने वाले वर्षों में राज्य निश्चित रूप से एक रेगिस्तान बनना तय है.”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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