नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के एक प्रोफेसर और सरकार की भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) के सदस्य सचिव इतिहास के क्षेत्र में काम कर रहे एक आरएसएस समर्थित संगठन से भी जुड़े हुए हैं.
वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर उच्च शिक्षा से जुड़े मामलों पर एक ऑनलाइन पत्रिका में लिखते हैं. यह पत्रिका शिक्षा जगत में ‘राष्ट्रवादियों’ के नजरिए के साथ ‘वामपंथी उदारवादियों के पक्ष में दिखावटी नियंत्रित झुकाव’ को संतुलित करना चाहती है.
इसके अलावा इसमें केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक.
ये सब वो बाहरी विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने 2023-24 के लिए एनसीईआरटी की कक्षा 6 से 12 तक की इतिहास और पोलिटकल साइंस की किताबों से जुड़े विवादास्पद बदलावों को करने में योगदान दिया है.
हालांकि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के आंतरिक विशेषज्ञों की इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के पीछे एक बड़ी हिस्सेदारी थी.
एनसीईआरटी के इतिहास और पोलिटकल साइंस की किताबों में किए बदलावों को लेकर शुरू हुआ विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. 5 अप्रैल को पहली बार सामने आने के बाद से हर दिन हटाए गए नए हिस्सों को ढूंढ कर लाने की कवायद चल रही है.
जहां, इतिहास की किताबों से हटाए गए प्रमुख हिस्सों में मुगलों, महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे के अंश थे.
वहीं पोलिटकल साइंस की किताबों से आपातकाल और शीत युद्ध के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया है.
इस विवाद के केंद्र में तथ्य यह है कि तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया के तहत किए गए बदलावों को ऑनलाइन बुकलेट के जरिए सार्वजनिक तौर पर सबके सामने रख दिया गया है. लेकिन हटाए गए कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जिनका इस बुकलेट में कोई जिक्र नहीं है. कहा जा रहा है कि ये किताबों में मौजूद हिस्सों को हटाने का चोरी-छुपे किया गया प्रयास है.
एनसीईआरटी ने चूक को संभवत नोटिस न कर पाने की वजह से हुई गलती बताया. लेकिन हटाए गए इन हिस्सों को फिर से वापस लाने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि वे विशेषज्ञों की सिफारिशों पर आधारित थे. साथ ही यह भी कहा है कि पाठ्यपुस्तकें वैसे भी 2024 में आने वाले नेशनल करिकुलम के हिसाब से बदलने की ओर अग्रसर हैं.
पहले लिए गए एक इंटरव्यू में एनसीईआरटी ने समिति के सदस्यों और उनके चयन से जुड़े किसी भी सवाल का जवाब देने से इंकार कर दिया था.
इस संबंध में स्कूल एजुकेशन सचिव संजय कुमार और एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी को भी ईमेल किया गया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
एनसीईआरटी ने कहा है कि किताबों में किए गए बदलाव पूरी तरह से एक ‘विशेषज्ञ पैनल’ की सिफारिशों के आधार पर किए गए हैं. लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने सुझाव दिए जरूर थे, लेकिन उन्हें मानने और न मानने का आखिरी फैसला परिषद का था.
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विशेषज्ञों में से एक के मुताबिक, बदलावों की सिफारिश करने वाला कोई ‘पैनल’ नहीं था, बल्कि विभिन्न विषयों पर सुझाव देने वाले विशेषज्ञों का एक ग्रुप था.
इन ग्रुप्स में ज्यादातर एक या दो कॉलेज प्रोफेसर थे, जबकि बाकी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर थे.
इस टीम में जेएनयू के ऐतिहासिक अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर उमेश अशोक कदम भी शामिल थे. वह आईसीएचआर के सदस्य सचिव और आरएसएस समर्थित अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के सदस्य भी हैं. उन्होंने इतिहास के पाठ्यक्रम को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया में अपना योगदान दिया था.
दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘एनसीईआरटी ने हमसे ऐसी सामग्री को सूचीबद्ध करने के लिए सलाह मश्विरा किया था जो दोहराव वाली है या जो अलग-अलग कक्षाओं की पाठ्यपुस्तकों में बार-बार पढ़ाई जा रही है. हमें बताया गया था कि इस सिलेबस को क्यूआर कोड (पूरे सिलेबस तक पहुंचने के लिए) में शामिल किया जाएगा. हमें बस इतना ही करने के लिए कहा गया था और बस यहीं तक हमारा काम था.’
पाठ्यपुस्तकों से मुगल इतिहास (जिसका जिक्र बुकलेट्स में है) को हटाने के बारे में उन्होंने कहा कि इतिहास में सभी का अलग-अलग योगदान है और उन्हें उसी तरह से कवर किया जाना चाहिए.
इतिहास के पाठ्यक्रम को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया में शामिल एक अन्य नाम अर्चना वर्मा का भी है. वह डीयू के हिंदू कॉलेज में इतिहास विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर हैं. उन्होंने दिप्रिंट से पुष्टि की कि वह इस प्रक्रिया का हिस्सा थीं. लेकिन इसके आगे कुछ भी कहने से उन्होंने इनकार कर दिया.
अन्य बाहरी विशेषज्ञों में केंद्रीय विद्यालयों के इतिहास के दो शिक्षक और दिल्ली पब्लिक स्कूल में इतिहास विभाग के प्रमुख शामिल थे.
इस प्रक्रिया में एनसीईआरटी के विशेषज्ञों में प्रोफेसर और सामाजिक विज्ञान में शिक्षा विभाग के प्रमुख गौरी श्रीवास्तव एवं विभाग के अन्य लोग शामिल थे.
इतिहास ग्रुप में शामिल एक अन्य सदस्य ने अपना नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि उन्हें सलाह-मशविरा के लिए दो बार बुलाया गया था. लेकिन औपचारिक रूप से इस ग्रुप को कभी भी ‘विशेषज्ञ समिति’ नहीं कहा गया. उनका काम परिषद को बार-बार दोहराए जाने वाले हिस्सों की पहचान करना और उसकी एक लिस्ट बनाकर एनसीईआरटी को सौंपने में मदद करना था.
उन्होंने कहा, ‘हमारे सुझाव देने के बाद उन्होंने क्या किया, यह हमें नहीं पता. उन्होंने जिन कुछ हिस्सों को हटाया है और फिर जिन्हें किताबों में रखा है, वह उनका विशेषाधिकार है. हमारे सुझावों से उसका कोई लेना-देना नहीं है.’ वह आगे कहते हैं, ‘हमें यह नहीं बताया गया कि वे किताबों से किन हिस्सों को हटाने जा रहे हैं.’
राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ
राजनीति विज्ञान को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया में शामिल लोगों में मनीषा पांडे भी शामिल थीं. वह डीयू के हिंदू कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. पांडे ‘परिसर दृष्टि’ के लिए लिखती हैं. यह एक वेबसाइट है जो खुद को ‘वामपंथी उदारवादियों (शिक्षा जगत में) के पक्ष में इस दिखावटी नियंत्रित झुकाव को संतुलित करने का एक ईमानदार प्रयास’ के रूप में दर्शाती है, जिसे इन विचारकों के उनके सदियों पुराने विचारों, रणनीतियों, समय और पैसे से तैयार किया गया है.
इसके अलावा राजनीति विज्ञान की एक और शिक्षिका इसमें शामिल हैं, जिन्होंने ‘इनवायरमेंटल पॉलिसीस एंड इश्यू इन साउथ एशिया: कंपैरेटिव स्टडीज ऑफ इंडिया नेपाल एंड बांग्लादेश’ विषय में अपनी पीएचडी पूरी की है.
जब दिप्रिंट ने उनसे फोन पर संपर्क किया तो पांडे ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
अन्य विशेषज्ञों में शामिल एक नाम एम.वी.एस.वी. प्रसाद का भी है. वह एनसीईआरटी के कर्रिकुलम स्टडीज विभाग में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं. वह अंतरराष्ट्रीय अध्ययन, भारत की विदेश नीति और दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में क्षेत्रीय सहयोग के विशेषज्ञ हैं. एनसीईआरटी के सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग के एक प्रोफेसर शंकर शरण भी इस प्रक्रिया में शामिल थे. स्कूल के शिक्षकों के साथ एनसीईआरटी के दो अन्य विशेषज्ञों को भी इसमें शामिल किया गया था.
रिपोर्ट में एनसीईआरटी के जिन फैकल्टी सदस्यों का जिक्र किया गया है, उन सभी से दिप्रिंट ने उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए ईमेल के जरिए संपर्क किया था. उनका जवाब आने पर इस लेख को अपडेट किया जाएगा.
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(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य / संपादन: आशा शाह )
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