नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भारत में ‘अल्पसंख्यकों’ की परिभाषा की समीक्षा का आह्वान किया है, और उसकी दलील है कि कुछ राज्यों में ‘बदलती जनसांख्यिकी’ और ‘घटती’ हिंदू आबादी के मद्देनजर ऐसा करना जरूरी हो गया है.
आरएसएस ने अपने हिंदी मुखपत्र पांचजन्य की नवीनतम कवर स्टोरी में भारत में अल्पसंख्यक की अवधारणा और समानता के अधिकार और एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांत पर इसके प्रभाव को लेकर सवाल उठाया.
दक्षिणपंथी स्तंभकारों ने नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की तरफ से स्कूली पाठ्यपुस्तकों में हाल ही में किए गए बदलावों को सही बताया. साथ ही पंजाब में अलगाववादी आंदोलन के बढ़ते ‘खतरे’, अरुणाचल प्रदेश में चीन द्वारा गांवों के नाम बदलने के अलावा इस पर भी बात की कि डॉलर की जगह रुपये को ‘कैसे’ वैश्विक मुद्रा बनाया जा सकता है.
आरएसएस ने कहा, हिंदू ‘अल्पसंख्यक’ होते जा रहे
क्या अल्पसंख्यक की अवधारणा समानता के अधिकार और धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांत में आड़े आ रही है? यही वो सवाल है जिस पर इस पर आरएसएस के मुखपत्र पाञ्चजन्य की कवर स्टोरी केंद्रित रही.
एक लेख में आरएसएस ने चिंता जताई कि असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं.
बतौर संदर्भ, 2011 में अंतिम आधिकारिक जनगणना से पता चला कि भारत की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा हिंदुओं का है.
पत्रिका के कवर पर उठाया गया सवाल है, ‘अल्पसंख्यक किसे कहा जाएगा?’ ‘बहुसंख्यकों के अलावा सभी को या फिर प्रभावी संख्या की कमी के कारण उपेक्षित वर्ग को? इसकी परिभाषा क्या है, मानक क्या हैं? केंद्रीय सूची में अल्पसंख्यक और राज्य सूची में बहुसंख्यक होने पर सुविधाओं का क्या होगा.’
लेखों की एक पूरी सीरीज में पाञ्चजन्य ने उन जिलों के उदाहरणों का हवाला दिया जहां हिंदू कथित रूप से धार्मिक अल्पसंख्यक बन रहे हैं.
एक रिपोर्ट में दावा किया गया है, ‘मुस्लिम अब असम में सबसे बड़ा समुदाय है. मुस्लिम जनसंख्या विस्फोट ने राज्य के कम से कम नौ जिलों की जनसांख्यिकी बदल दी है और हिंदू वहां अल्पसंख्यक हो गए हैं. चार दशकों में राज्य में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत बढ़कर 34.22 प्रतिशत हो गई, जबकि हिंदू आबादी 11 प्रतिशत घटकर 61.46 प्रतिशत रही गई है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि कैसे 34.22 प्रतिशत आबादी के साथ मुसलमान सबसे बड़ा समुदाय बन गया है.
एक अन्य लेख में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल के आठ जिलों में हिंदू आबादी ‘तीन प्रतिशत तक कम हो गई है.’ इसमें दावा किया गया कि जम्मू में भी हिंदुओं की संख्या घटकर 28.44 प्रतिशत रह गई है, और बिहार, केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश की जनसांख्यिकी भी ‘तेजी से बदल रही है.’
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मुगल इतिहास हटाकर एनसीईआरटी ने ‘सही’ किया
दैनिक जागरण में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता हृदय नारायण दीक्षित का ओपिनियन पीस उस विवाद पर केंद्रित था जो एनसीईआरटी की तरफ से पाठ्यक्रम को ‘तर्कसंगत’ बनाने के नाम पर अपनी कुछ पाठ्यपुस्तकों से मुगलों के इतिहास संबंधी कुछ सामग्री हटाने के बाद शुरू हुआ था.
उत्तर प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ने अपने लेख में पूछा, मुगल साम्राज्य का महिमामंडन करने का क्या मतलब है जब इसका केंद्रीय विचार ‘धार्मिक वर्चस्व और हिंदुओं के अपमान का गाथा’ है.
दीक्षित ने गांधी की हत्या में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन की भागीदारी और बाद में आरएसएस पर प्रतिबंध के संदर्भों को हटाने के एनसीईआरटी के फैसले का भी समर्थन किया.
उन्होंने अपने लेख में कहा, ‘बच्चे भारत का भविष्य हैं. उन्हें विकृत इतिहास पढ़ाना खतरनाक है. इतिहास के पाठों की रचना सावधानी से करनी चाहिए. इस लिहाज से एनसीईआरटी का फैसला अहम है. आखिर विश्व राजनीति में अमेरिकी प्रभुत्व के बारे में बच्चों को पढ़ाने का क्या मतलब है, जबकि यह सिर्फ एक विचार है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘कथित हिंदू चरमपंथियों का गांधी से नफरत करना भी एक कल्पना है और इसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है. ऐसी बातों को हटाना बिल्कुल सही है.’ गौरतलब है कि महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को हिंदू महासभा के सदस्य नाथूराम गोडसे ने की थी.
खालिस्तान पर क्या बोला विहिप
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने अपनी पाक्षिक पत्रिका हिंदू विश्व के एक संपादकीय में ‘पंजाब में बढ़ती अस्थिरता’ के लिए आम आदमी पार्टी (आप) को दोषी ठहराया. संपादकीय में कहा गया है कि खालिस्तान एक बार फिर राज्य में सिर उठा रहा है.
संपादकीय में लिखा गया, ‘तमाम पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को आशंका थी कि आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद पंजाब में खालिस्तानी आतंकवाद बढ़ सकता है और यह आज सच साबित हो रहा है. मौजूदा मुख्यमंत्री जब संसद सदस्य थे, तभी इस पर बातें होती थी कि वह खालिस्तान के प्रति एक नरम रुख करते हैं.’
संपादकीय में दावा किया गया है कि दिल्ली में किसान आंदोलन को खालिस्तानियों का समर्थन और भागीदारी और आप का ‘सहयोग’ पहले ही सामने आ चुका है.
वीएचपी ने यह भी कहा, ‘दिल्ली के मुख्यमंत्री पर भी खालिस्तान के समर्थन का आरोप लगा है.’ रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘सिद्धू मूसे वाला, शिवसेना नेता सुधीर सूरी, दीप सिद्धू और अजनाला की घटना—यह सब उसी तरह का घटनाक्रम है जैसे 80 के दशक में इसी तरह की हत्याओं और हिंसक घटनाओं के बाद पंजाब में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ था.’
चीन के हथकंडों पर क्या बोले राम माधव
आरएसएस के विचारक और पूर्व भाजपा नेता राम माधव ने कहा कि चीन की तरफ से अरुणाचल प्रदेश में गांवों का फिर से नामकरण करना एक मनगढ़ंत नक्शे के आधार पर भ्रामक दावे किए जाने की ही अगली कड़ी है.
2 अप्रैल को, बीजिंग ने घोषणा की कि वह अरुणाचल प्रदेश के 11 गांवों के नामों का ‘मानकीकरण’ करेगा. इस सूची के साथ दिए एक मानचित्र में इन स्थानों को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताया गया था.
राम माधव ने द इंडियन एक्सप्रेस में अपने एक ओपिनियन पीस में तर्क दिया कि पूरा इतिहास देख लीजिए चीन का कभी भी अरुणाचल प्रदेश के साथ कोई महत्वपूर्ण संपर्क नहीं रहा है.
माधव ने अपने लेख में लिखा है, ‘ज्ञात इतिहास में कभी भी अरुणाचल प्रदेश का चीन के साथ कोई गहरा संपर्क नहीं रहा है. वहां कभी किसी भी तरह की कोई चीनी मौजूदगी नहीं थी, न ही दोनों तरफ के लोगों के बीच कोई औपचारिक रिश्ता था. ल्हासा से तिब्बती लोग सिक्किम होते हुए कोलकाता जाते थे और समुद्री मार्ग से चीन जाते थे. अधिक से अधिक, तवांग के मोना तिब्बती भाषा बोलते थे. लेकिन सड़क से कुछ मील नीचे, बोमडिला के शेरडुकपेन्स एक अलग बोली बोलते थे और पूर्व की तरफ बसी सैकड़ों अन्य जनजातियां ऐसी बोली बोलती थीं जो असमिया के करीब है.
उन्होंने कहा कि अगर हालिया इतिहास की बात करें तो चीनी सेना पहली बार 1910-12 में किंग राजवंश के शासनकाल के अंतिम वर्षों के दौरान अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं के करीब आई जब इसने खाम में प्रवेश किया, जो बाद में वालोंग क्षेत्र में पूर्वी लद्दाख में खम्पाओं द्वारा विद्रोह को कुचलने के लिए एक अभियान के तहत मैकमोहन रेखा बन गई.
माधव ने लिखा, ‘चीनियों ने अक्टूबर 1962 में जब अरुणाचल प्रदेश पर धावा बोला तो उन्होंने स्थानीय लोगों के प्रति कुछ ज्यादा ही सौहार्दपूर्ण रुख अपनाया और उन्हें अपने साथ नस्लीय संबंधों के बारे में समझाने की काफी कोशिश की. चीनी सेना को स्पष्ट निर्देश थे कि स्थानीय लोगों को किसी भी तरह परेशान न करें. स्थानीय लोगों को न तो कुली बनने पर बाध्य किया गया और न ही उन पर किसी अन्य तरह से सहायता के लिए कोई दबाव डाला गया.’
तत्कालीन नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) का जिक्र करते हुए माधव ने लिखा, ‘जब एयरड्रॉप की गई भारतीय खाद्य आपूर्ति चीनी सैनिकों के हाथों में आ जाती तो वे उसे अपनी सरकार की तरफ से ‘उपहार’ बताकर स्थानीय लोगों के बीच बांटते थे. 49 दिनों तक इलाके में कब्जा जमाए रखने के दौरान तमाम तरह के हथकंडों के बावजूद चीनी सैनिक नेफा के लोगों के दिलों को नहीं जीत पाए.’
माधव ने कहा, लेकिन भारत को इस कार्टोग्राफिक धोखे के प्रति सतर्क रहना चाहिए. साथ ही जोड़ा कि 1962 में इसी तरह के धोखे से चीन ने भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था.
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कश्मीरी पंडितों पर आरएसएस प्रमुख की राय
आरएसएस के सरसंघचालक (प्रमुख) मोहन भागवत ने नवरेह या कश्मीरी हिंदू नववर्ष के अवसर पर आयोजित एक वर्चुअल प्रोग्राम में कहा कि कश्मीरी पंडित जल्द ही ‘अपनी शर्तों पर’ घाटी लौटेंगे,
आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने भागवत को यह कहते उद्धृत किया, ‘हम सुन रहे हैं कि वे अगले साल वापस लौटने वाले हैं. उन्हें कट्टरवाद के कारण आठ बार कश्मीर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है. लेकिन, इस बार वे अपनी शर्तों पर लौटेंगे. वे उचित सुरक्षा और आजीविका के साधनों साथ हिंदू और भारत भक्त के रूप में लौटेंगे. यदि कोई भी उन्हें फिर बाहर निकालने के बारे में सोचेगा या ऐसी कोई योजना बनाएगा तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.’
भागवत, जो कथित तौर पर 2022 की फिल्म द कश्मीर फाइल्स की प्रशंसा भी कर चुके हैं, का कहना है कि यह उनकी गणना के आधार पर ‘दिया गया एक बयान है न कि कोई भविष्यवाणी’ है.
ऑर्गनाइजर के मुताबिक, आरएसएस सरसंघचालक ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाना एक स्वागत योग्य कदम था.
उन्होंने कहा, ‘जहां पर हमारा घर-बार था, वहां पर हमारा घर-बार फिर से होगा. ये जो अपना संकल्प है उसकी पूर्ति के लिए अब बहुत दिन बाकी नहीं हैं.’
एमसीडी एकीकरण कानून
दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम, 2022 पर एक संपादकीय में, पाञ्चजन्य ने कथित तौर पर दिल्ली नगर निगम की मौजूदा समस्याओं के लिए आम आदमी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया. इसमें कहा गया कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) आप के नियंत्रण में आने से पहले कभी भी दिल्ली ने ऐसी समस्याओं का अनुभव नहीं किया था.
आप ने पिछले साल दिसंबर में हुए चुनावों में भाजपा से एमसीडी की सत्ता छीन ली थी.
संपादकीय में कहा गया, 2022 में संसद में पारित दिल्ली नगर निगम (संशोधन) अधिनियम का उद्देश्य ‘अराजकता की राजनीति’ खत्म करना था. इस विधेयक के जरिये तत्कालीन नगर निगमों को फिर से मिलाकर एक कर दिया गया था.
संपादकीय मे लिखा गया, ‘तीनों निगमों की समस्याओं के लिए दिल्ली सरकार जिम्मेदार रही है. आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने के बाद ही दिल्ली को शायद पहली बार ऐसी समस्या का सामना करना पड़ा है. यहां तक कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों यानी निगम के सबसे जरूरतमंद वर्ग का वेतन भी रोक दिया गया था. इन लोगों ने वेतन न मिलने के कारण जब हड़ताल कर दी तो सड़कें गंदगी से एकदम पट गईं. यह देश की राजधानी के लिए शर्मनाक बात थी. आम आदमी पार्टी इसे बढ़ा रही थी और भाजपा पर आरोप लगाकर बच रही थी.’
आप को अराजकतावादी बताते हुए इसमें गया कि पार्टी को दिल्ली में कानून बनाने की प्रक्रिया में भागीदार बनने का कोई अधिकार नहीं है.
संपादकीय में लिखा गया, ‘अगर आप दुनिया के बड़े देशों को देखेंगे तो पाएंगे कि राजधानी में कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद के पास है. इसमें किसी तरह के दखल की इजाजत नहीं दी जा सकती. खास तौर पर उनको जो खुद को अराजकवादी कहते हैं. दिल्ली ने उनकी मिसाल को बहुत करीब से देखा है. उन्हें राजधानी के लिए कानून बनाने की आजादी बिल्कुल नहीं दी जा सकती है.
एसजेएम ने कहा, ‘डॉलर पर हावी होगा रुपया’
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने दैनिक जागरण के लिए लिखे एक लेख में कहा कि भारत अब विदेशों के साथ रुपये में कारोबार कर रहा है, यह डॉलर की तुलना में रुपये को शक्तिशाली बनाने की दिशा में एक कदम है.
उन्होंने कहा कि डॉलर दुनिया की सबसे ज्यादा पसंदीदा रिजर्व करेंसी है लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध ‘डि-डॉलराइजेशन’ का एक कारण बन रहा है.
उन्होंने अपने लेख में लिखा, ‘पहला कारण फरवरी 2022 से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध है. अमेरिका और यूरोपीय देशों का कहना है कि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है, इसलिए दुनिया के सभी देशों को मॉस्को से संबंध तोड़ लेने चाहिए. अमेरिका ने न केवल रूस पर कई प्रतिबंध ही लगाए हैं बल्कि उसे वैश्विक भुगतान प्रणाली ‘स्विफ्ट’ से भी बाहर कर दिया है. माना जाता है कि पेमेंट सिस्टम में अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबदबे की वजह से रूस को डॉलर में पेमेंट नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने लिखा, अब जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर के उपयोग में ‘गिरावट’ शुरू हो गई है, भारत ने इस पर अपनी निर्भरता घटाना शुरू कर दिया है.
उन्होंने लिखा, ‘रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा भुगतान प्रणाली को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बाद भारत ने रूसी तेल आयात के लिए रुपये में भुगतान करने की ओर बढ़ना शुरू किया. पिछले साल जुलाई में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आयात और निर्यात के लिए रुपये में किए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय भुगतान निपटान की अनुमति दी थी. इसे भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनाने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है.
उन्होंने बताया कि भारत ने दिसंबर में रूस के साथ अपना भुगतान निपटाना शुरू किया.
उन्होंने अपने लेख में कहा, ‘भारत सरकार के प्रयासों का ही नतीजा है कि इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, जर्मनी, मलेशिया, इजराइल, रूस और संयुक्त अरब अमीरात सहित 19 देशों के बैंकों को ‘विशेष वोस्ट्रो रुपया खाता’ खोलकर रुपये में भुगतान करने की अनुमति दी गई है.’
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य / संपादन: आशा शाह )
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