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Saturday, 23 November, 2024
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भारत को ‘नो वॉर नो पीस’ से ‘लिमिटेड वॉर’ की तरफ बढ़ना होगा, क्या CDS तैयार हैं

डीएमए की जिम्मेदारियों से मुक्त सीडीएस सीजेसीएससी के रूप में सलाहकार वाली या ऑपरेशन वाली भूमिकाएं बेहतर तरीके से निभा सकेंगे और तब अलग से किसी को सीजेसीएससी बनाने की जरूरत नहीं होगी.

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कोई भी सैन्य संगठन पूरी सहजता और कार्यकुशलता से काम करे यह चेन ऑफ कमांड में शामिल कमांडरों के बीच अच्छे संबंध पर निर्भर करता है. यह संबंध प्रायः अनिश्चितता, अस्पष्टता, खतरों और आशंकाओं से बने माहौल से निर्धारित होता है. इसमें जब असैनिक तथा सैन्य संबंधों का संस्थागत तथा पेशेवर पहलू जुड़ जाता है तब सेना की प्रभावशीलता बढ़ जाती है. दिसंबर 2019 में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) के गठन का सीधा लक्ष्य सैन्य प्रभावशीलता को बढ़ाना था. थिएटर कमांड के गठन का आदेश इस तथ्य के मद्देनजर दिया गया था कि मौजूदा ढांचे को बदलने की जरूरत हो ताकि तीनों सेनाओं की एकजुटता मजबूत हो और सिविल-मिलिटरी संबंधों में सुधार हो.

जो ढांचा तैयार किया गया है उसके तहत उन जरूरतों को पूरा किया जाना है जिनसे सिस्टम से की जाने वाली उन मांगों को पूरा किया जा सके जो युद्ध के दौरान उभरती हैं. सिस्टम इतना सक्षम हो जाए कि वह ‘नो वॉर नो पीस’ (एनडब्लूएनपी) की स्थिति से सीमित युद्ध की स्थिति में आ सके, जो विविध रूपों में हो और विविध सघनता वाली हो. इसी संदर्भ में, सीडीएस की, जिसे व्यापक भूमिका सौंपी गई है, क्षमता की जांच के लिए इस सवाल की जांच की जा सकती है कि जब भारत युद्ध लड़ रहा हो तब क्या सीडीएस अपनी भूमिकाओं को प्रभावी ढंग से पूरा कर सकता है?

CDS पर बोझ?

सबसे ऊंचे स्तर का युद्ध उसे माना जा सकता है, जो लंबा चले और जिस पर परमाणु युद्ध का साया मंडरा रहा हो. भूमिकाओं के नये बंटवारे के मुताबिक सीडीएस को ये जिम्मेदारियां निभानी हैं— चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी (सीओएससी) की अध्यक्षता, तीनों सेनाओं से जुड़े सभी मामलों में रक्षामंत्री के प्रधान सलाहकार की ज़िम्मेदारी, परमाणु कमांड अथॉरिटी के लिए सैन्य सलाहकार की ज़िम्मेदारी, ‘डीएमए’ की अध्यक्षता. लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के दौरान सीडीएस से ये सभी भूमिकाएं प्रभावशाली रूप से निभाने की अपेक्षा बहुत बड़ी साबित हो सकती है.

सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी के जिस नोट के तहत सीडीएस और डीएमए के गठन की मंजूरी दी गई थी उसके बारे में जानने वाले कुछ लोगों से पता चलता है कि इस नोट में यह भी कहा गया है कि सेना के ऑपरेशनों में सीडीएस की कोई भूमिका नहीं होगी. लेकिन इस पर सवाल उठाया जा सकता है. आखिर उन्हें ‘सीओएससी’ के स्थायी अध्यक्ष की भूमिका निभानी है, जिसे ज्वाइंट कमांडर्स स्टाफ कमिटी (जेसीएससी) नाम दिया जाना है क्योंकि यह थिएटर कमांड में सर्वोच्च सैन्य तंत्र होगा और इसमें सीडीएस को स्थायी अध्यक्ष के रूप में और तीनों सेनाओं के अध्यक्षों तथा थिएटर कमांडरों को शामिल किया जाना है.

सर्वोच्च स्तर पर, जेसीएससी को सैन्य रणनीति तैयार करने के अलावा संयुक्त सैन्य नियोजन एवं क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी भी निभानी है जिसमें ऑपरेशन संबंधी निर्देश जारी करने के साथ-साथ थिएटरों के बीच संसाधन के आवंटन तथा निगरानी का काम भी करना है. इसके अलावा, उसे थिएटर कमांडरों द्वारा लागू की जा रही ऑपरेशन संबंधी योजनाओं में जरूरी फेरबदल करने की भूमिका भी निभानी है. सर्वोच्च सैन्य नेता के रूप में सीजेसीएससी को राजनीतिक नेतृत्व द्वारा तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ऑपरेशनों का निर्देशन भी करना होता है. इसलिए, सीडीएस बाकी तीन पदों पर होते हुए ऑपरेशन संबंधी कोई भूमिका भले न निभाएं मगर जब सीजेसीएससी होते हुए वे इस भूमिका से बच नहीं सकते. यह भूमिका अप्रत्यक्ष रूप में होगी क्योंकि वे प्रत्यक्ष कमांड में नहीं होंगे, और उसी भूमिका में होंगे जिस भूमिका में वे तीनों सेनाओं के चीफ के रूप में होंगे. इस मसले की विस्तृत जांच के लिए यहां देखें


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थिएटर कमांड सिस्टम में तीनों सेनाध्यक्ष की ऑपरेशन संबंधी जिम्मेदारियां नहीं होंगी बल्कि वे मुख्यतः नियोजन, प्रशिक्षण, मानव संसाधन, प्रशासन, और अपनी-अपनी सेना के लिए हथियारों आदि के अधिग्रहण के लिए जिम्मेदार होंगे. उन्हें सेना की जरूरत के हिसाब से बनी व्यवस्थाओं के जरिए काम करना होगा. वे रक्षा मंत्री से सीधे संबंध बना सकेंगे.

किसी युद्ध या ‘नो वॉर नो पीस’ वाले मामले में सीडीएस रक्षा मंत्री और परमाणु कमांड ऑथरिटी के सलाहकार की भूमिका निभानी होगी, डीएमए का सचिव बनना होगा और सर्वोच्च सैन्य तंत्र जेसीएससी का नेतृत्व करना होगा. सलाह, रणनीति निर्माण और ऑपरेशन संबंधी भूमिकाओं का तकाजा यह होगा कि उन्हें राजनीतिक तथा सैन्य नेतृत्व से निरंतर संपर्क बनाए रखना होगा. व्यावहारिक दृष्टि से ये भूमिकाएं किसी व्यक्ति के लिए बहुत बोझिल हो सकती हैं क्योंकि इनमें कई जटिल जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं और इसके लिए सीडीएस को एक ही समय कई स्थानों पर रहना पड़ेगा. स्पष्ट है कि सीसीएस ने सीडीएस के लिए जो निर्देश जारी किए हैं कि वे ऑपरेशन से संबंधित भूमिका नहीं निभाएंगे वे तभी अमल में आ सकते हैं जब वे सीजेसीएससी नहीं बनते. यानी सीजेसीएससी किसी और को बनाना पड़ेगा.

वर्तमान सीओएससी का गठन चार सितारा वाले तीनों सेनाध्यक्षों से होगा और उसकी अध्यक्षता सबसे सीनियर सेनाध्यक्ष करेंगे. नयी व्यवस्था के अंदर चूंकि थिएटर कमांडरों को सीजेसीएससी का हिस्सा बनना पड़ेगा, इसलिए उन्हें भी चार सितारा वाले रैंक के बराबर का होना होगा. सभी डिप्टी थिएटर कमांडर और कई कंपोनेंट कमांडर भी तीन सितारा वाले जनरलों के साथ काम कर सकते हैं, जो कोर/फ्लीट/ओपरेशनल ग्रुप/कम्पोनेंट कमांडर हो सकते हैं.

इनके अलावा इंटिग्रेटेड कमांड भी हो सकते हैं, जो इंटिग्रेटेड लॉजिस्टिक्स कमांड की तरह जेसीएससी के निर्देश के तहत काम करेंगे. इसके साथ ही अलग-अलग सेना के हिसाब से कमांड होंगे जो ट्रेनिंग और लॉजिस्टिक्स संबंधी काम करेंगे. इनमें से कई कमांड का नेतृत्व तीन सितारा वाले सी-इन-सी करेंगे.

DMA की भूमिका

सैन्य संरचना तैयार करते समय इस सिद्धांत का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि युद्ध के समय के लिए क्या तैयारियां की जानी चाहिए और किस तरह की कार्रवाई की जानी चाहिए. सैन्य उपक्रम की कार्यकुशलता और प्रभावशीलता कमांड की कड़ी के सभी स्तरों को उनकी क्षमता के मुताबिक ऐसी भूमिकाएं सौंपने पर निर्भर है, जो युद्ध या ‘नो वार नो पीस’ की स्थिति में पूरी की जा सकती हैं. इसके अलावा, डीएमए के सचिव की भूमिका में सीडीएस का होना चार सितारा वाले रैंक से नीचे आने जैसा है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि तीन सितारा वाले सेवारत या सेवानिवृत्त सी-इन-सी को डीएमए का सचिव बनाना बेहतर होगा. डीएमए की जिम्मेदारियों से मुक्त सीडीएस सीजेसीएससी के रूप में सलाहकार वाली या ऑपरेशन वाली भूमिकाएं बेहतर तरीके से निभा सकेंगे और तब अलग से किसी को सीजेसीएससी बनाने की जरूरत नहीं होगी. यह बदलाव रक्षा मंत्रालय ही कर सकता है.
थिएटर कमांडरों को भी सेनाध्यक्ष के बराबर बनाने से चार सितारा वाले अधिकारियों की संख्या बढ़ने का कई लोग विरोध कर सकते हैं. लेकिन पीएमओ अगर लंबे समय से प्रतीक्षित थिएटर कमांड सिस्टम के विरोध को खारिज कर सकता है, तो कोई वजह नहीं कि वह संयुक्त प्रयासों का आधार तैयार करने के लिए इन मिलिटरी रैंकों के महत्व को नहीं समझेगा.

राजनीतिक नेतृत्व ने प्रशंसनीय रक्षा सुधारों को तीन साल पहले ही मंजूरी दे दी थी और फिर सीडीएस की असमय मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति में देर हुई. थिएटर कमांड का गठन तीन साल से योजना के स्तर पर ही अटका है बेशक यह एक जटिल काम है जिसके लिए कई अड़चनों को दूर करना होगा.

उम्मीद है कि थिएटर कमांडों के मामले में, राजनीतिक नेतृत्व बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों को पहचानेगा और अपनी इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करते हुए उस काम को पूरा करवाएगा जो उसने रक्षा मंत्रालय को सौंप रखा है. इसमें देर हुई या यह अनमने ढंग से किया गया तो इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला संस्थान में सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक; राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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