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Wednesday, 18 December, 2024
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मोदी सरकार ने गन्ना किसानों की जिंदगी में कितनी मिठास घोली

गन्ना एक्ट में तो ये भी दर्ज है कि 14 दिन में भुगतान न होने पर चीनी मिल को 14 से 16 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करना होगा.

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पिछला लोकसभा चुनाव रहा हो या बस कुछ दिनों में शुरू होने वाला आमचुनाव, गन्ना किसानों को लुभाना सियासी दलों की मजबूरी है. भले ही वोट हासिल करने के बाद वे चीनी मिल मालिकों के एजेंट बनकर काम करें. ऐसा हुआ भी, और हो भी रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लोकसभा चुनावों में गन्ना किसानों को लुभाने के लिए केंद्र सरकार उत्तरप्रदेश की चीनी मिलों को 10 हजार 540 करोड़ रुपए का रियायती कर्ज देने जा रही है.

चीनी मिलें इस कर्ज से गन्ना किसानों का बकाया भुगतान करेंगी. इसके बावजूद किसान गन्ने के भुगतान के लिए आज भी परेशान हैं और मिल मालिक मौज कर रहे हैं. किसान भुगतान के लिए ही नहीं, बल्कि मिल तक गन्ना पहुंचाने के लिए पर्चियों के लिए भी तरस गए, जबकि माफिया उन्हीं पर्चियों के सहारे लूट मचा रहे हैं.

पादर्शिता के नाम पर तकनीक का शोर मचाने की कवायद किसी काम नहीं आई. जीपीएस से खेत में पहुंचकर गन्ने का रकबा नापकर किसानों को पर्चियां मुहैया कराने का दावा किया गया. बहरहाल, पर्ची रकबे के हिसाब से आई ही नहीं या फिर बहुत कम आईं. उत्तरप्रदेश के बरेली जिले में तो एक किसान को गन्ना उपायुक्त ने इस परेशानी के हल के लिए आत्महत्या का सुझाव दे दिया और वह उसी दफ्तर में मरने को उतारू हो गया. हल्ला मचा तो उसे रकबे के अनुसार जिला प्रशासन ने तत्काल पर्ची की व्यवस्था कराई गई. जो ऐसा नहीं कर पाए, वे माफिया के हाथ कम दामों पर गन्ना बेचने को मजबूर हो गए या फिर चीनी मिलों से पेमेंट की आस में दिन गुजार रहे हैं. खर्च और मिलने वाली रकम की गुणा भाग की जाए तो शायद छोटे किसान के हाथ शायद पीएम किसान योजना के जरिए मिला दो हजार रुपये ही आएगा.

किसानों के हिस्से में सेंध, बस वोट पाना लक्ष्य

चीनी मिलों की संख्या और चीनी उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र नंबर वन है, लेकिन गन्ना उत्पादन उत्तरप्रदेश में ज्यादा होता है, इस वजह से यहां किसानों की भागीदारी ज्यादा है. पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 40 लाख किसान परिवार गन्ने की खेती करते हैं. किसान परिवार प्रदेश की करीब 30 लोकसभा सीटों पर निर्णायक और अहम भूमिका निभाते हैं. जाहिर है, वोट बैंक गन्ना किसानों का भरपूर है. उनकी उम्मीदों को वोट के लिए एक तरह से ‘इमोशनल ब्लैकमेल’ किया जाता रहा है. जबकि चीनी उत्पादन क्षमता में कर्नाटक और तमिलनाडु भी उत्तरप्रदेश से आगे हैं.

वर्ष 2011-12 में उत्तरप्रदेश में 124 चीनी मिलें थीं, गन्ना उत्पादन 1335.72 लाख मीट्रिक टन था और चीनी उत्पादन 69.74 लाख मीट्रिक टन हुआ. वहीं महाराष्ट्र की 170 चीनी मिलों ने 824.72 लाख मीट्रिक टन गन्ना से 89.77 लाख मीट्रिक टन चीनी, कर्नाटक ने 58 चीनी मिलों के जरिए 388.08 लाख मीट्रिक टन गन्ने में से 38.72 लाख मीट्रिक टन चीनी और तमिलनाडु ने 43 चीनी मिलों की बदौलत 393.67 लाख मीट्रिक टन गन्ने से 23.79 लाख मीट्रिक टन चीनी उत्पादन हासिल किया. आंकड़ों से ये भी जाहिर होता है कि उत्तरप्रदेश में गन्ना उत्पादन तो ठीक हुआ लेकिन उसकी बर्बादी ज्यादा हुई, गन्ने से चीनी बनाने की मात्रा काफी कम रही. अब यूपी में चीनी मिलों की संख्या भी घटकर 119 रह गई है और गन्ने का रकबा बढ़ गया है. इसके बावजूद ऐसा नहीं है कि दूसरे राज्यों के गन्ना किसान खुश हैं. ऐसा होता तो जनवरी में गन्ना किसानों ने महाराष्ट्र के सतारा में हिंसक प्रदर्शन नहीं किया होता. वहां भी करोड़ों रुपये गन्ने का भुगतान बकाया है.


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उत्तरप्रदेश ने दूसरे मामले में बाजी मारी, वह है देसी शराब. यहां चीनी मिलों का हिस्सा 61 डिस्टिलरी से 13.51 लाख किलो लीटर का उत्पादन हुआ. जबकि महाराष्ट्र की 72 डिस्टिलरी से 9.71, कर्नाटक की 36 इकाइयों से 4.46 और तमिलनाडु की 21 इकाइयों से 3.11 लाख किलोलीटर देसी शराब के उत्पादन का माल तैयार हुआ. ये वह उत्पादन है, जिसमें किसानों के हिस्से कुछ नहीं आता.

यूपी में बीते दस सत्रों में गन्ना उत्पादन क्षेत्र के रकबा खास तब्दीली नहीं आई लेकिन चीनी-शीरा उत्पादन में वर्ष 2017-18 में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है. इस वर्ष में 22.99 लाख हेक्टेयर रकबा था, जिसमें 1820.75 लाख टन गन्ने की पैदावार हुई, जिसमें 1111.90 लाख टन गन्ने की पेराई हुई और 120.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ. इसके अलावा 53.72 लाख टन शीरा उत्पादन भी हुआ. हालांकि शीरा उत्पादन में भी किसानों के हाथ कुछ नहीं लगता.

बढ़ते रकबे के साथ सिमटती उम्मीद

ऐसा नहीं है कि गन्ने की फसल के क्षेत्रफल के कुल में कमी आई हो. पौध में 19.57 प्रतिशत, पेड़ी में 23.93 प्रतिशत और गन्ने का क्षेत्रफल 21.53 फीसद पिछले साल के मुकाबले बढ़ गया. उत्तरप्रदेश में पिछले सत्र 2017-18 में गन्ने की पौध का क्षेत्रफल 12 लाख 64 हजार 263 हेक्टेयर, पेड़ी 10 लाख 34 हजार 781 हेक्टेयर और गन्ना 22 लाख 99 हजार 44 हेक्टेयर में था.

मौजूदा सत्र 2018-19 में पौध 15 लाख 11 हजार 690 हेक्टेयर, पेड़ी 12 लाख 82 हजार 355 हेक्टेयर और गन्ना 27 लाख 94 हजार 45 हेक्टेयर में बोया गया. कुछ जिलों में भारी गिरावट भी हुई है. इनमें अलीगढ़ में रकबा 25 प्रतिशत से ज्यादा, कानपुर में 40 प्रतिशत से ज्यादा, मथुरा में 15 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्रफल गन्ने की फसल का रकबा घट गया. देवरिया और बलरामपुर में भी कुछ क्षेत्रफल कम हो गया.

गन्ना किसानों की फिक्र या फरेब

गन्ना उत्पादन में उत्तरप्रदेश के 45 जिलों के किसान इसके बावजूद उपज का पैसा न मिलने से हमेशा थके-मांदे-परेशान हाल ही रहे. वहीं राजनीतिक दल उनको ठगने में लगे रहे, वोट की खातिर. वक्त बदला, लेकिन सरकार का रवैया जस का तस ही रहा. गन्ना उत्पादन में नंबर वन जिले में शुमार लखीमपुर में इसीलिए जब भी चुनाव प्रचार को नरेंद्र मोदी पहुंचे तो गन्ना किसानों को केंद्रित लच्छेदार भाषण दिया, उनकी तकलीफ को वोट में बदलने की कोशिश की.

लोकसभा चुनाव 2014 में कहा-‘एक जमाना था कि इस इलाके को चीनी का कटोरा कहा जाता था. भाइयों-बहनों, लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था-जय जवान-जय किसान. गन्ने की खेती करने वाले मेरे भाई बताओ कि क्या कहीं जय किसान नजर आता है? कहीं किसान के जय की संभावना दिखती है क्या? इन्होंने कभी किसान का जय किया है क्या? अरे गन्ना किसान को पैसे तक नहीं दे पाते. वो जय जवान-जय किसान का नारा कैसे बोल सकते? इनका तो नारा है मर जवान-मर किसान. युद्ध में जितने जवान मरे हैं, उससे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है….’


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फिर भाषण देने का वक्त आया विधानसभा चुनाव 2017 में. तब कहा-‘सबसे बड़ा जिला. चीनी का कटोरा कहा जाने वाला ये मेरा लखीमपुर. हमारे किसानों का पसीना मीठा हो जाता है, स्वीट हो जाता है. ऐसे गन्ने की ताकत है यहां. भाइयों-बहनों, गन्ना किसानों का बकाया चुकता करने में अखिलेश आपको कौन रोकता है. गन्ने की खेती करने वाला हर किसान बोलता है कि आपने उसके हक को छीना है. क्या यही आपका काम बोलता है!

भाइयों-बहनों, मैं उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी को बहुत हृदय से बधाई देना चाहता हूं कि इस चुनाव में उसने अपने संकल्पपत्र में आपको वादा किया है कि भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद 14 दिन में, दो सप्ताह में गन्ना किसानों का बकाया चुकता कर दिया जाएगा. राजनीति का आधार किसान बनना चाहिए. किसानों की आय यूपी में सबसे पहले दोगुनी होगी और राजनीति का आधार जाति नहीं गांव, किसान और जवान होगा. हम 30 जनवरी तक गन्ना किसानों का पिछला बकाया और अब 14 दिन का भुगतान कराकर ही रहेंगे.’

सत्ता मिलते ही बदला सुर

उत्तरप्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपाई सुर बदल गया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहने लगे कि किसान इतना गन्ना बोता क्यों है? यह भी कहा कि किसान इतना गन्ना लगा दे रहे हैं कि लोगों को शुगर की बीमारी हो जा रही है. दिल रखने को ये भी कहा कि चीनी मिलों ने अगर 15 अक्टूबर तक बकाए का भुगतान नहीं किया तो मिल मालिकों पर डंडा चलेगा. लेकिन ये डंडा कभी चला नहीं, चीनी मिलों को एक के बाद एक पैकेज देकर उनको शाबाशी देने का सिलसिला चला. वहीं किसान आज भी बकाया भुगतान न होने से रो रहे हैं.

भाजपा ने 14 दिन के अंदर भुगतान का जो वादा किया था. नियम के हिसाब से तो ये पहले से ही तय है. गन्ना एक्ट में तो ये भी दर्ज है कि 14 दिन में भुगतान न होने पर चीनी मिल को 14 से 16 प्रतिशत ब्याज के साथ भुगतान करना होगा. जो हाल है, उसमें ब्याज की बात करना भी बेमानी है. किसानों के साथ तो चीनी मिलें यहां तक मजाक कर चुकी हैं कि भुगतान की जगह चीनी ले लो. अब भला चीनी लेकर किसान क्या करेगा! वापसी के लिए किसान भी गन्ना वापस मांग ले, तो क्या मिलें दे सकती हैं?

चीनी मिल मालिकों पर फिदा

उत्तरप्रदेश के गन्ना विकास व चीनी उद्योग विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी मिलों पर सीजन 2017-18 में 7649.13 करोड़ बकाया बताया गया. जिसमें 172 करोड़ से ज्यादा सहकारी मिलों पर और बाकी 7477 करोड़ से ज्यादा प्राइवेट मिलों पर बताया गया. वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सभा में गन्ना किसानों की पेमेंट सीधे खाते में कराने का ऐलान किया और मिल मालिकों की पैकेज देने की मांग को ठुकरा देने को चुटीले अंदाज में बयां किया.

लेकिन किया क्या? किसानों को राहत देने की जगह एथेनॉल क्षमता बढ़ाने के लिए मोदी सरकार ने चीनी उद्योग के लिए जून 2018 में 8500 करोड़ रुपये का पैकेज दिया. फिर सितम्बर 2018 में 5538 करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया. योगी सरकार ने किसानों का बकाया चुकाने के लिए मिलों को 1010 करोड़ रुपये का पैकेज दिया. बकायेदारी चुकाने को चीनी मिलों को 4000 करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन की मंजूरी देने के साथ ही गन्ना खरीद पर सब्सिडी दे दी.

मिल मालिकों को नीति में ही बेहिसाब छूटे हैं. मशीन खरीद, भूमि खरीद, शीरा पर कमीशन से लेकर सभी जगह. वो भी बिना ब्याज, बिना टैक्स के. सरकार चीनी मिलों पर शिकंजा कसने की जगह आमजन पर एक और बोझ डालने की घोषणा कर चुकी है, वह है शुगर सेस. खाद्यमंत्री रामविलास पासवान ने 24 अप्रैल 2018 को किसानों के 19 हजार करोड़ रुपये बकाया भुगतान निपटाने के लिए गन्ना किसान फंड बनाने और इस उपकर को लगाने पर गंभीरता से विचार होने की बात कही.

घटतौली के साथ ही अवैध खरीद केंद्र

गन्ना किसानों की परेशानी यहीं तक सीमित नहीं है. राज्य की चीनी मिलों ने चालू पेराई सीजन में 10,900 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है, जिसमें भुगतान केवल 5500 करोड़ रुपये का ही हुआ है. पिछले सत्र का बकाया अलग. किसानों को घटतौली का चूना अलग से लग रहा है. गन्ना एवं चीनी आयुक्त द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार चालू पेराई सीजन 2018-19 में 8791 गन्ना खरीद केंद्रों का निरीक्षण किया है, जिसमें 606 खरीद केंद्रों पर अनियमिततायें पाई गई. तमाम अवैध गन्ना खरीद केंद्र भी सक्रिय हैं. चालू पेराई सीजन में अभी तक 7 लाख 18 हजार 935 रुपये का 2308 क्विंटल गन्ना अवैध खरीद केंद्रों पर पकड़ा जा चुका है.

(आशीष सक्सेना स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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