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Wednesday, 20 November, 2024
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4,300 भारतीय मुस्लिम महिलाएं बिना पुरुषों के अकेले जाएंगी हज, मेरे लिए क्या हैं इसके मायने

इस्लाम में महिलाओं को अपने धर्म की इबादत करने के समान अवसर मिले हैं और अब, वे एक साथ एक स्तर पर अपने धार्मिक दायित्वों को पूरा कर सकती हैं.

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इस साल की हज यात्रा भारत के लिए ऐतिहासिक होने वाली है. बिना महरम या पुरुष रिश्तेदार के यात्रा करने के लिए 4,300 से अधिक महिलाओं ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया है. यह स्वतंत्र रूप से हज करने वालीं भारतीय मुस्लिम महिलाओं का सबसे बड़ा ग्रुप होगा. हालांकि, यह धार्मिक आयोजनों में महिलाओं की भागीदारी के प्रति सोच में बदलाव का संकेत देता है और इसने मुस्लिम धार्मिक नीतियों में सुधारों पर बहस का रास्ता भी निकाला है.

कईं वर्षों से सऊदी के कानून में हज और उमराह पर जाने के लिए महिलाएं, पुरुष रिश्तेदारों (जैसे पति और पिता) के साथ जाया करती थीं. हालांकि, सऊदी अरब ने अक्टूबर 2022 में इस कानून को हटा लिया, जिससे 45 वर्ष से अधिक उम्र की मुस्लिम महिलाओं को अकेले यात्रा करने की अनुमति मिल गई. इस पहल को इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया.

हजः धार्मिक दायित्व से बढ़कर

एक पसमांदा मुसलमान होने के नाते जिसके माता-पिता 1990 के दशक में हज पर गए हों, मुझे पता है कि ये मौका कितना खास है. लोग सालों तक इंतज़ार करते हैं और ‘लकी ड्रॉ’ की आस लगाते हैं. करीबी पुरुष रिश्तेदार नहीं होने से महिलाएं निराश हो जाती हैं क्योंकि उन्हें दूर रहने वाले लोगों के रहम पर निर्भर रहना पड़ता था. एक मुस्लिम होने के नाते, मुझे सिखाया गया है कि हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और उन लोगों के लिए ज़रूरी है जो इसे करने में शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं.

इसमें पवित्र शहर मक्का जाना और पैगंबर अब्राहम और उनके परिवार की विरासत का सम्मान करते हुए इबादत में शरीक होना शामिल है. यह चिंतन, आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर की कृपा पाने का अवसर देता है. हज एक ऐसा अनुभव है जो विभिन्न पृष्ठभूमि के मुसलमानों को इबादत करने की सामूहिक अभिव्यक्ति में एक साथ लाता है और उनके बीच साझा मूल्यों और मानवता पर जोर देता है.

मैंने ऐसे मुसलमानों को भी देखा है, जो वित्तीय दबावों में होने के बावजूद हज पर जाने के लिए बहुत साल तक बचत करते हैं. कुछ मामलों में, जब बच्चे लंबे संघर्ष के बाद सफल करियर हासिल करते हैं तो वे अपने माता-पिता को हज कराने का अवसर प्रदान कर उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं. इस तरह हज का महत्व पैगंबर मुहम्मद के जन्मस्थान पर जाने के लोगों के फैसले के प्रति उनकी भावनाएं और धार्मिक दायित्वों से बढ़कर है.

इस्लाम में महिलाओं को अपने धर्म की इबादत करने के समान अवसर मिले हैं और अब, वे एक साथ एक स्तर पर अपने धार्मिक दायित्वों को पूरा कर सकती हैं. यह पहल दर्शाती है कि अल्लाह के सामने सभी इंसान बराबर हैं.


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सुधार में समस्याएं

कई विद्वानों ने इस फैसले के राह में आने वाली चुनौतियों की पड़ताल की है. शरिया (इस्लामिक कानून) के अनुसार, हदीस (पैगंबर मुहम्मद के कथनों और कार्यों का लिखित रिकॉर्ड) और उनकी विभिन्न व्याख्याओं के अनुसार, बिना साथी (पुरुष) वाली महिलाएं मक्का की यात्रा नहीं कर सकती हैं. कुछ विद्वान हदीस की सख्त व्याख्याओं को मुख्य कारण मानते हैं क्योंकि महिलाएं धार्मिक दायित्वों को अकेले पूरा नहीं कर सकतीं, जबकि अन्य विद्वान अलग-अलग स्पष्टीकरण देते हैं.

अल-फुरु में इब्न-मुफ्लिह (हनबली कानून में एक प्रमुख प्राधिकरण) के एक बयान के अनुसार, एक महिला महरम के बिना हज कर सकती है यदि वो सुरक्षित है. यह एक ऐसा नियम है जो ‘नेक काम’ के लिए की गई सभी प्रकार की यात्राओं पर लागू होता है.

इस बीच, अन्य विद्वानों ने महिला हाजियों के कारण का बचाव करते हुए हदीस का हवाला दिया. एक अन्य हदीस में, पैगंबर ने अद्य इब्न-हातिम को कहा था कि एक दिन वो एक महिला को अल-हीरा से मक्का तक अपने पति के बिना हावड़ा (हाथी या ऊंट की सवारी) में यात्रा करते हुए और केवल अल्लाह से डरते हुए देखेंगे.

मुस्लिम महिलाओं की यात्रा के आसपास बहस

अकेले हज यात्रा करने वाली महिलाओं के लिए अधिकांश धार्मिक बहसें उनकी सुरक्षा के बारे में चिंताओं पर आधारित थीं, खासकर जब यात्रा अधिक खतरनाक हुआ करती थी. जिन विद्वानों ने महिलाओं को बिना महरम के यात्रा करने से मना किया था, उन्होंने ऐसा उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके सम्मान की रक्षा के लिए किया, लेकिन वर्तमान समय में यात्रा बहुत भिन्न है. आज, हम शिप और हवाई जहाजों से यात्रा करते हैं, जो आमतौर पर कई यात्रियों को ले जाते हैं, इस तरह के डर को खुद-ब-खुद रूप से समाप्त हो जाता है.

महरम के बिना महिलाओं की हज यात्रा के बारे में बहसें इस्लामिक दुनिया में सुधार के बारे में व्यापक बातचीत का सिर्फ एक पहलू है. महिलाओं के अधिकारों और समाज में उनके इलाज के मुद्दे पर कई वर्षों से मुस्लिम समुदायों में बहस और चर्चा होती रही है. कुछ मामलों में, दमनकारी प्रथाओं, जैसे कि जबरन हिजाब पहनना और इन प्रथाओं का पालन नहीं करने वाली महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में सुधार और अधिक समानता के लिए आह्वान किया है. 2018 में, सऊदी अरब ने महिलाओं के लिए ड्राइविंग प्रतिबंध भी हटा लिया था.

इस प्रकार, धर्म के एक कट्टरपंथी दृष्टिकोण का मुकाबला करने और उदार और सहनशील रूप को बढ़ावा देने के लिए सऊदी अरब के प्रयास निश्चित रूप से स्वागत योग्य हैं. इस्लाम के सबसे प्रभावशाली देशों में से एक और पैगंबर के जन्मस्थान के रूप में, इन मुद्दों पर सऊदी अरब का रुख अन्य मुस्लिम राष्ट्रों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है.

4,300 भारतीय महिलाओं को पुरुष अभिभावक के बिना मक्का की यात्रा करने की अनुमति देने का फैसला सकारात्मक नीतिगत परिवर्तनों की शक्ति और महिला सशक्तिकरण पर उनके प्रभाव का एक वसीयतनामा है. कई मुस्लिम विद्वान और कार्यकर्ता दमनकारी प्रथाओं को चुनौती देने और महिलाओं के लिए अधिक समावेशी और न्यायसंगत समाज को बढ़ावा देने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

आमना बेगम अंसारी एक स्तंभकार और टीवी समाचार पैनलिस्ट हैं. वे ‘इंडिया दिस वीक बाय आमना एंड खालिद’ नाम से एक वीकली यूट्यूब शो चलाती हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Amana_Ansari है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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