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Thursday, 19 December, 2024
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बॉलीवुड जैसी शादी नहीं- HP के गांवों ने स्थानीय परंपराएं बनाए रखने के लिए मेहंदी, सेहरा पर लगाई पाबंदी

किन्नौर जिले के एक आदिवासी गांव सुमरा की पंचायत ने पिछले महीने शादी की उन रस्मों पर रोक लगाने का एक प्रस्ताव पारित किया जो ‘उसकी संस्कृति के खिलाफ’ हैं. आसपास के अन्य गांव भी इसी तरह के कदम उठा सकते हैं.

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शिमला: चमकदार लहंगे से लेकर पैसों के लिए दूल्हे के जूते चुराने तक, उत्तर भारत में अधिकांश शादियां पंजाबी संस्कृति और बॉलीवुड से प्रेरित नजर आती हैं. लेकिन हिमाचल प्रदेश के आदिवासी बहुल किन्नौर जिले—जो तिब्बत और स्पीति घाटी की सीमा से सटा है—के एक गांव में ऐसा कुछ भी नहीं चलता.

सुमरा की ग्राम पंचायत की तरफ से 10 मार्च को पारित प्रस्ताव में कहा गया है, ‘हम मेहंदी की रस्में, जूता छिपाई, केक काटे जाने और दूल्हे के सेहरा बांधने जैसे नए चलन देख रहे हैं, जो हमारी संस्कृति के खिलाफ हैं. अब इस तिथि के बाद इन रस्मों को प्रतिबंधित किया जाता है.’ सुमरा गांव के अधिकांश निवासी मूल रूप से किन्नौरी जनजाति के हैं.

दस्तावेज हिंदी में लिखा गया है और इसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है. इसमें बताया गया है कि प्रस्ताव ‘सर्वसम्मति से’ पारित किया गया है.

सुमरा किन्नौर जिले की चट्टानी हंगरंग घाटी में स्थित है, जो तिब्बत की सीमा से सटी है. क्षेत्र के अधिकांश निवासी किन्नौरी जैसी स्थानीय जनजातियों से आते हैं, जिनकी संस्कृति हिंदू, बौद्ध और स्वदेशी मान्यताओं और प्रथाओं का एक अनूठा मिश्रण है.

सुमरा ग्राम पंचायत के उपाध्यक्ष छेरिंग (वह अपने उपनाम का इस्तेमाल नहीं करते) ने दिप्रिंट को फोन पर बताया कि गांव में लगभग 80 घर हैं और लगभग 300 की आबादी है.

छेरिंग ने बताया कि किन्नौरी शादियों में बाहरी रस्म-रिवाजों के शामिल होने के खिलाफ स्थानीय स्तर पर कुछ समय से आवाजें उठती रही है. उन्होंने कहा कि क्षेत्र के अन्य गांव भी जल्द ही अपने स्तर पर ‘पाबंदियां’ लगा सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस घाटी में हम सभी एकजुट हैं. हंगरंग रिनचेन बुद्धिस्ट कल्चरल हेरिटेज फाउंडेशन नामक एक संघ है, जो हमारी संस्कृति और परंपराओं से संबंधित सभी निर्णय लेता है.’

स्थानीय निवासियों ने बताया कि फरवरी में फाउंडेशन ने आगामी बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर उत्सव के संबंध में चर्चा के लिए ग्राम प्रतिनिधियों की एक बैठक बुलाई थी. इसी दौरान शादियों के बारे में भी चर्चा होने लगी.

सुमरा ग्राम पंचायत की प्रधान सरोज देवी ने कहा, ‘चर्चा के दौरान, कुछ लोगों ने किन्नौरी शादियों में आधुनिक रीति-रिवाजों के चलन की ओर इशारा किया. इस पर बैठक में उपस्थित सभी लोगों ने परस्पर सहमति के साथ अपनी आदिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए कुछ कदम उठाने का फैसला किया.’

उनके मुताबिक, अन्य ग्राम पंचायतों के नेता भी 5 मई को होने वाली ‘बुद्ध पूर्णिमा से पहले ऐसा प्रस्ताव पारित करने’ के लिए तैयार हो गए.’

हिमाचल प्रदेश के आदिवासी विकास और राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी—जो किन्नौर से विधायक हैं—ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने प्रस्ताव का ‘स्वागत’ किया है और इसे पंचायत की तरफ से पारित किए जाने का मतलब है कि सुमरा में अधिकांश लोगों ने इसका समर्थन किया है.

मंत्री ने कहा, ‘हमारी किन्नौरी संस्कृति में कई अच्छी बातें हैं, और इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए. हमें कहीं और से कुछ अपनाने या किसी की नकल करने की कोई जरूरत नहीं है. हमारी संस्कृति की रक्षा के लिए शुरू किए गए किसी भी कदम का स्वागत है.’

हालांकि, प्रस्ताव स्थानीय परंपराओं के धीरे-धीरे खत्म होने को लेकर बढ़ती चिंताओं को जाहिर करता है, राज्य के पंचायती राज विभाग के एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि शादी की रस्मों पर इस तरह के ‘प्रतिबंध’ को कोई कानूनी मान्यता हासिल नहीं है.


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सात फेरों और पंजाबी गानों के लिए कोई जगह नहीं

किन्नौरी शादियों को लेकर किसी तरह की बाध्यताएं नहीं है, जिसमें परंपरागत रूप से बहुत सारी शराब, और नाच-गाना शामिल होना है.

लेकिन डीजे बीट्स और अपरिचित रीति-रिवाजों के चलन ने तमाम स्थानीय लोगों की चिंता बढ़ा दी है जो इन्हें अपनी जीवनशैली के लिए एक ‘खतरा’ मानते हैं.

सुमरा पंचायत के छेरिंग ने कहा कि ‘पंजाबी संगीत’, ‘मेहंदी की रस्म’ और सात फेरे जैसे रिवाज स्थानीय शादियों में भी नजर आने लगे हैं और यह क्षेत्र की संस्कृति से एकदम अलग हैं.

A traditionally attired bride in Kinnaur

उन्होंने बताया कि परंपरागत रूप से किन्नौरी महिलाएं लोक गीत गाती हैं और मेहमान बौद्ध लामाओं की उपस्थिति में जोड़े को आशीर्वाद देते हैं. विवाह समारोह में अंगूरी नामक अंगूर की शराब भी खासी अहम होती है. उन्होंने कहा कि बारात आने पर इसे वर पक्ष के सामने पेश किया जाता है, और दंपति के विदा होने के समय उनके परिवार के सबसे बड़े सदस्य, यानी मजोमी के समक्ष भी इसे पेश किया जाता है.

स्थानीय पोशाक और एसेसरीज में बदलाव भी स्थानीय परंपरावादियों को थोड़ा अखरता है, जिस वजह से ही सुमरा में पारित प्रस्ताव में सेहरा या पगड़ी बांधने जैसी चीजों को प्रतिबंधित किया गया है.

इस क्षेत्र में दूल्हा एक परंपरागत पोशाक थेपांग पहनता है, जो एक गोल सफेद या ग्रे ऊनी टोपी होती जिसमें उसकी पसंद के हिसाब से एक बड़ा हरा, पीला या लाल बैंड होता है. शहरी उत्तर भारत में आम चलन वाली अचकन या बंदगला के बजाये, वह एक गर्म शर्ट पहनता है जिसे चमन कुर्ता कहा जाता है. और इसके साथ पजामा और एक लंबा ऊनी कोट या चुब्बा पहना जाता है.

दूसरी ओर, दुल्हन को सोने-चांदी के गहनों से सजाया जाता है, उसके गले में फूलों की माला के बजाय सूखे मेवे की माला डाली जाती है.

उसके परिधान में आम तौर पर एक हरे रंग की लंबी बाजू का ब्लाउज, हाथ से बुनी ऊनी साड़ी—जिसे धोरी कहते हैं—और चमकीले पारंपरिक पैटर्न वाली एक रंगीन शॉल शामिल होती है.

‘कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं’

हंगरंग घाटी के एक अन्य गांव नाको में पंचायत के उपप्रधान प्रेम नेगी समेत क्षेत्र में तमाम लोगों के लिए पारंपरिक रीति-रिवाजों की रक्षा करना बेहद महत्वपूर्ण है.

उन्होंने कहा, ‘हम सब बुद्ध पूर्णिमा पर इकट्ठा होंगे और इस (शादी संबंधी इस प्रस्ताव) पर चर्चा करेंगे. यदि सभी पंचायतें प्रस्ताव पारित करती हैं, जिसकी बहुत संभावना है, तो हंगरंग घाटी इसका अक्षरशः पालन करेगी.’

उन्होंने कहा, ‘इन दिनों शादी समारोहों में तमाम नई रस्में जुड़ गई हैं. हमारी एक समृद्ध संस्कृति है और हम को इसका पालन करना पसंद भी है, लेकिन कभी-कभी कुछ लोग दूसरी संस्कृतियों से प्रभावित हो जाते हैं. हम इसे गलत नहीं कह सकते लेकिन हमारे सारे प्रयास अपनी संस्कृति की रक्षा से जुड़े हैं.’

लेकिन क्या होगा अगर कोई स्थानीय दूल्हा या दुल्हन अपने विवाह समारोह के दौरान केक काटना या सेहरा बांधना चाहता हो? आखिरकार, इस प्रस्ताव में किसी भी रस्म को ‘प्रतिबंधित’ करने को लेकर कोई कानूनी बाध्यता नहीं है.

हंगरंग वैली (नाको) के एक अन्य निवासी चंदर नेगी ने कहा कि प्रस्ताव का मतलब लोगों को दंडित करना नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘इस सबके पीछे इरादा किसी को दंडित करना नहीं है बल्कि उन्हें पश्चिमी और गैर-आदिवासी प्रथाओं से बचने के लिए प्रोत्साहित करना है. यहां तक कि स्थानीय युवा भी इस प्रस्ताव के पक्ष में हैं.’

राज्य के पंचायती राज विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ये प्रस्ताव क्षेत्र का ‘आंतरिक मामला’ है.

उन्होंने कहा, ‘कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को शादी की रस्में अपनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. यह संकल्प स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए जागरूकता अभियान का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह किसी पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है.’

‘भावनाएं समझने की जरूरत’

समाजशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. रणवीर सिंह ने इस बात को रेखांकित किया कि किन्नौर के लोगों के अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से कितना गहरा लगाव है.

उन्होंने कहा, ‘पिछले कुछ सालों में, कुछ आधुनिक रीति-रिवाजों ने इस क्षेत्र को काफी प्रभावित किया है, लेकिन यह देखना दिलचस्प है कि युवा अभी भी अपनी संस्कृति का पालन करते हैं. इस प्रस्ताव को वैधता के संदर्भ में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसके पीछे की भावना को समझने की जरूरत है.’

आदिवासी महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की वकालत के लिए ख्यात किन्नौर की सामाजिक कार्यकर्ता रतन मंजरी ने भी स्वीकारा कि प्रस्ताव की कानूनी वैधता सवालों के घेरे में है, लेकिन इस पर जोर दिया कि मुख्य मुद्दा स्थानीय संस्कृति के संरक्षण का है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे पास घनिष्ठ रिश्तों में बंधा एक समाज है और हमारे संस्कारों को महत्वपूर्ण सामाजिक प्रतिष्ठा हासिल है. हालांकि, हमने हालिया वर्षों में कुछ रीति-रिवाज निभाए जाने में कमी देखी है. ये सब हमारी संस्कृति की रक्षा से जुड़ा है. इसे कम करके नहीं आंका जाना चाहिए.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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