नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के पांच मिराज 2000 लड़ाकू जेट विमानों ने पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में 26 फरवरी को आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के ठिकानों पर बम गिराया था. दिप्रिंट को मिली नई जानकारी में यह बात सामने आई है.
तीन में से दो मुख्य टारगेट जिसमे जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) का मुख्य ट्रेनिंग कैंप भी शामिल था, उस पर भी बम से हमला किया गया था. यह जानकारी न केवल भारत के अपने सैटेलाइट से मिली फोटो से पता चलता है बल्कि पड़ोसी देशों से मिली सेटेलाइट की फोटो भी इस बात की गवाह हैं.
यह भी पढ़ें: पाक का दावा उसने दो भारतीय वायुसेना विमान को गिराया, एक पायलट हिरासत में
तीसरी पिक्चर में यह पता चला हैं कि एक गेस्ट हाउस जिसमें संदिग्ध प्रशिक्षकों और जेएम प्रमुख मसूद अजहर के बहनोई युसुफ अजहर उर्फ उस्ताद गौरी के होने का संदेह था. गौरी का गेस्ट हाउस पहाड़ी पर घने पेड़ों से घिरा हुआ था.
शीर्ष रक्षा सूत्रों ने बताया कि जिस दिन एयर स्ट्राइक को अंजाम दिया गया उस दिन मौसम खराब था जिसकी वजह से हमें साफ तस्वीरें नहीं मिल पाईं. लेकिन भारत ने कई अच्छी क्वालिटी के चित्र प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की है. इसके साथ ही हमले के बाद छत की मरम्मत की फोटो भी हमारे पास मौजूद है.
अनिश्चित्ता
14 फरवरी को हुए पुलवामा हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के मारे जाने के ठीक एक हफ्ते बाद भारत ने पाकिस्तानी जैश-ए-मोहम्मद के कैंप पर की गई एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाया गया, और यह पूछा गया कि इस स्ट्राइक का कितना प्रभाव पड़ा.
भारत सरकार के पास मौजूद सैटेलाइट तस्वीरें दिप्रिंट द्वारा देखने के बाद ये स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इज़रायली स्पाइस 2000 बम( जिनमें से प्रत्येक का वजन 900 किलो था) 95 किलोग्राम के विस्फोटक के साथ दो निशानों पर गिराए गए थे.
इन तस्वीरों में टारगेट की गई दो बिल्डिंग्स की छत पर छोटे-छोटे गढ्ढे दिखाई दे रहे हैं, जहां से बम छत को फाड़ता हुआ घुसा होगा. इन बमों का मकसद भूतल में स्थित भारी किलेबंदी किए गए कमांड और कंट्रोल सेंटर को ध्वस्त करना था.
सरकार के वरिष्ठ रक्षा सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, ‘स्पाइस 2000 का मतलब जमीन के अंदर चल रहे केंद्र और दुश्मन के नियंत्रण केंद्रों को बाहर निकालना है.’
रक्षा सूत्र के मुताबिक, ‘इन सेंटर्स का ऊपरी हिस्सा भारी कंक्रीट से बनाया गया है ताकि पारंपरिक बमों से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके.’
यह भी पढ़ें:आईएएफ ने पीओके के तीन आतंकी लांच पैड किया ध्वस्त, 21 मिनट तक चला हमला
इज़रायली बम के काम करने के तरीके के बारे में बताते हुए सूत्र ने बताया कि इसका वजन और गति इस तरह संचालिक किया जाता है कि ये कंक्रीट व ठोस इमारतों में घुसकर अपने स्टील कवच के नुकीले टुकड़ों को फैला सके. प्रत्येक बम में विस्फोटक की मात्रा 95 किलोग्राम होती है, जो कि बम के कुल वजन का दसवां हिस्सा है.
विस्फोटक की मुख्य गति का इस्तेमाल 900 किलोग्राम के स्टील कवच को तोड़ने में किया जाता है. ये स्टील कवच छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर बम के किसी टुकड़े (शार्पनल) का काम करता है.
निशाने
हमले की जगह पर छह ठिकाने थे – वहां एक बड़ी मस्जिद भी थी, लेकिन भारतीय वायु सेना ने सिर्फ तीन ही ठिकानों पर हमला करने का ध्येय रखा था. वहां दो मंज़िला इमारत थी, जिसमें सबसे ज्यादा काडर था, और जहां ट्रेनिंग पा रहे आत्मघाती हमलावर शामिल थे, वह मु्ख्य निशाने पर था. सूत्रों का कहना है कि उस ठिकाने पर तीन बम गिराए गए थे.
तीन स्पाईस 2000 बम जिनसे इस इमारत को निशाना बनाया गया, वह टाइमर्स से लैस थे. इनको उस इमारत में इस्तेमाल की गई सामग्री और उसके स्ट्रक्चर के हिसाब से तय किया गया. इससे हुआ ये कि वो बम तभी फूटते जबतक वो उस इमारत के ज़मीनी तल तक नहीं पहुंच जाता.
जो दूसरी इमारतें थी वो एक गेस्ट हाउस था और एक मंज़िली इमारत जिसमें माना जाता है कि नए रंगरूट रह रहे थे.
विदेश सचिव विजय गोखले ने 26 फरवरी की भारतीय वायु सेना के स्ट्राइक के बाद कहा था कि उसने, ‘जैश के बड़ी संख्या में आतंकियों, प्रशिक्षक, सीनियर कमांडर और जिहादियों के समूह जिनको फिदायीन हमले के लिए तैयार किया गया था, निशाना बनाया गया था.’ पर हमले में कितने लोग मारे गए उसकी संख्या नहीं बताई गई थी.
सूत्रों का कहना है कि तकनीकी मदद और मानवीय इंटैलिजेंस की सहायता से सूचना मिली थी कि उन इमारतों में 300 आतंकी होने की संभावना थी.
पुलवामा हमले के बाद, जैश ए मोहम्मद ने सीमा से अपने रंगरूटों को हटा कर वापस इन कैंपों में भेजा था क्योंकि उसको डर था कि भारत 2016 सर्जिकल स्ट्राइक जैसा हमला कर सकता है. तब भारतीय सेना के विशेष फोर्स ने सीमा नियंत्रण रेखा को पार किया था और आतंकी लॉन्च पैड नेस्तनाबूत किए गए थे.
पाकिस्तानी सेना ने बालाकोट क्षेत्र पर जहां कि ये कैंप मौजूद थे, मीडिया के लिए खोल दिया था. उन्होंने मीडिया के लिए उस जगह के ट्रिप तैयार किये जहां घना जंगल था. उनका दावा था कि बम उस घने जंगल में गिरे थे. संदेह था कि वो जगह बम बनाने की प्रशिक्षण केंद्र था.
पर जैश का वो कैंप जो मदरसे के अंदर छुप कर चलाया जाता था, वहां तक पत्रकारों को नहीं ले जाया गया..
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)