नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने रविवार को वित्त वर्ष 2023-24 के लिए ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत मजदूरी दरों में वृद्धि को अधिसूचित किया है, जो कि एक अप्रैल से लागू होगी. मजदूरी में सात रुपये से लेकर 26 रुपये तक की वृद्धि की गई है.
दरों में वृद्धि की अधिसूचना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005 की धारा 6 (1) के तहत जारी की गई, जिसमें कहा गया है कि केंद्र अधिसूचना द्वारा अपने लाभार्थियों के लिए मजदूरी दर निर्धारित कर सकता है.
इसके तहत हरियाणा में सबसे अधिक मजदूरी 357 रुपये प्रति दिन और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे कम 221 रुपये होगी.
पिछले वर्ष की दरों की तुलना में राजस्थान में मजदूरी में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई है. जो कि अब 231 रुपये के मुकाबले 255 रुपये प्रति दिन हो गई.
वहीं, बिहार और झारखंड में पिछले साल मनरेगा मजदूर के लिए दैनिक मजदूरी 210 रुपये थी. अब इसे संशोधित कर 228 रुपये कर दिया गया है. सबसे कम प्रतिशत वृद्धि दर्ज करने वाले राज्यों में कर्नाटक, गोवा, मेघालय और मणिपुर शामिल हैं.
‘पुरानी नीति पर लौटे सरकार’
वहीं, दूसरी देशभर से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) मजदूर ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ के बैनर तले पिछले 33 दिनों से मजदूरों की मांगों के साथ देश की राजधानी जंतर-मंतर पर बैठे हैं.
प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को अपनी तीन मांगों को लेकर हाथों में थाली और डंडे बजाते हुए केंद्र सरकार के खिलाफ ‘‘हमारी थाली खाली है, ऑनलाइन हाज़िरी बंद करो’’ के नारे लगाए.
दरअसल, सरकार ने हाल ही में तीन फैसले लिए हैं, जिनमें मनरेगा बजट में एक तिहाई की कटौती, नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (एनएमएमएस) यानी मोबाइल एप के जरिए हाज़िरी और आधार-आधारित पेमेंट सिस्टम को अनिवार्य बना दिया है.
एक इंटरव्यू में अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने कहा कि केंद्र सरकार मनरेगा पर ‘त्रिशूल’ से वार कर रही है, जिस तरह त्रिशूल के तीन नोक होते हैं, उसी तरह ये सरकार इसे तीन तरह से खतरे में डाल रही है.
13 फरवरी से दिल्ली में डेरा डाले प्रदर्शनकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार ने मनरेगा के बजट में 33 प्रतिशत की कटौती की है.
केंद्र ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए मनरेगा का बजट 60 हज़ार करोड़ रुपये रखा है जो कि 2022-23 में 73 हज़ार करोड़ रुपये था.
मनरेगा मजदूर इन तीनों फैसलों को निरस्त कर पुरानी प्रणाली पर लौटने, न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने और नीतियों को मजबूत बनाने की मांग कर रहे हैं.
पुरानी प्रणाली के तहत बैंक में डायरेक्ट पेमेंट और मस्टर रोल के जरिए हाज़िरी का प्रावधान था, यानी मजदूर खुद अपनी उपस्थिति देख सकते थे.
मंगलवार को प्रदर्शनकारियों का हौसला बढ़ाने आई पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राष्ट्रीय महासचिव कविता श्रीवास्तव ने दिप्रिंट से कहा, ‘‘सरकार ने पहले बजट कम किया और अब न्यूनतम मजदूरी बढ़ा दी. सरकार अपने ही नियम खुद ही तोड़ रही है.’’
मुद्दों को सुलझाने के लिए मजदूरों ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधिकारियों से 5 बार मुलाकात की कोशिश की लेकिन उन्हें सिर्फ एक बार ही सफलता मिल पाई.
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सह-समन्यवयक मुकेश ने कहा कि राज्य सरकारों को नीतियों को बेहतर बनाने पर जोर देना चाहिए.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘‘देश भर से मनरेगा मजदूरों के समूह हफ्ते या 10 दिन के अंतराल पर जंतर-मंतर आएंगे. बता दें कि मनरेगा मजदूरों का धरना 100 दिन यानी 3 जून तक जारी रहने वाला है.’’
सोमवार तक प्रदर्शन की मेज़बानी उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के हाथ में थी, जो कि मंगलवार से राजस्थान के हाथ में आएगी.
फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के कार्यकर्ता धरना स्थल पर डेरा डाले हुए हैं और आने वाले दिनों में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हिमाचल और गुजरात के मनरेगा मजदूर समूह भी वहां पहुंचने वाले हैं.
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कहां फंसा है पेंच
मनरेगा योजना एक प्रमुख कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के लिए एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों रोजगार की गारंटी दी जाती है.
इस साल एक जनवरी से केंद्र सरकार ने एनएमएसएस प्रणाली लागू की थी, जिसे मजदूर वापिस लेने की मांग कर रहे हैं. डिजिटल रूप से मजदूरों की हाज़िरी की व्यवस्था को केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए ज़रूरी बताया है, लेकिन मजदूरों का कहना है नेटवर्क के अभाव में डिजिटल हाज़िरी संभव नहीं हो सकती.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर के संगतिन किसान मजदूर संगठन की सदस्य ऋचा सिंह ने कहा, ‘‘सरकार मनरेगा को मार देना चाहती है. जब गांव में नेटवर्क नहीं पहुंचा है तो डिजिटल हाज़िरी कहां से लग पाएगी.’’
उन्होंने कहा, ‘‘मनरेगा के कानून में नियम है कि एक मजदूर मस्टर रोल में अपनी हाज़िरी देख सकता है, लेकिन इस नियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं. अगर 95 प्रतिशत लोगों की हाज़िरी लग गई और पांच प्रतिशत की नहीं लग पाई, तो उन 95 के पैसे भी रोक दिए जाते हैं.’’
मजदूरों का कहना है कि सरकारी फैसलों से उनका काम प्रभावित हुआ है, जिससे उनके लिए काम ढूंढना मुश्किल हो गया है. धरने पर बैठे मजदूरों ने लगभग एक स्वर में कहा, ‘‘काम मिल भी जाता है तो हाज़िरी लगवाने और आधार को बैंक खाते से लिंक नहीं होने से मजदूरी मिलना मुश्किल हो जाती है. इसलिए सरकार पुरानी प्रणाली पर लौट जाए तो हमें आसानी होगी.’’
प्रदर्शनकारियों ने अपने हक की मांग के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी पत्र लिखा, जिसे आयोग ने नोटिफाई कर लिया है. इसके अलावा प्रदर्शनकारियों ने केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से भी मिलने की असफल कोशिश की.
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