नई दिल्ली : एक संसदीय पैनल ने हवाई किराए की कीमतों में उछाल पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि घरेलू एयरलाइंस, यात्रियों को गुमराह करके अधिक भुगतान करने के लिए ‘मजबूर’ कर रही हैं. पैनल ने किरायों को युक्तिसंगत बनाने और एयरलाइंस की वेबसाइटों पर ‘सही जानकारी’ प्रकाशित करने के संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए कहा है.
पिछले हफ्ते संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट ‘नागरिक उड्डयन मंत्रालय की 2023-24 के लिए अनुदान की मांग’ में विभाग से संबंधित परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने आम आदमी के लिए हवाई किराए की सामर्थ्य के मुद्दे को उठाया और अधिकतम किराए पर लगी रोक को हटाने के कारणों के बारे में पूछताछ की.
केंद्र सरकार ने पिछले साल अगस्त में घरेलू हवाई किराए की कैप हटा दी थी, जो 2 साल से अधिक समय से लागू थी. सरकार के इस फैसले के बाद से एयरलाइन कंपनियों को अपना मिनिमम और मैक्सिमम किराया तय करने का अधिकार मिल गया था. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसा करने से सरकार या एयरपोर्ट ऑपरेटर्स के लिए कोई अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न नहीं हो रहा है. इससे सिर्फ एयरलाइन ऑपरेटर्स को लाभ होता है. लेकिन यात्री घाटे में रहते हैं क्योंकि उन्हें बढ़ी हुई कीमतों का भुगतान करना पड़ता है.’
इसके अलावा, वाईएसआरसीपी के सांसद वी. विजयसाई रेड्डी की अध्यक्षता वाले पैनल ने घरेलू एयरलाइनों द्वारा ‘प्रीडेटरी प्राइसिंग’ यानी अपने लाभ के लिए शोषण करने वाले वाले मूल्य निर्धारण तरकीब का सहारा लेने पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने यह भी आरोप लगाया गया कि कंपनियां एक ही घरेलू मार्ग के लिए अलग-अलग किराया वसूल कर रही हैं, खासतौर पर ‘पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख सहित पहाड़ी क्षेत्रों’ में.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘एक विशेष एयरलाइन अपने हवाई किराए इतने निचले स्तर पर बेच सकती है कि अन्य प्रतियोगी प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते और बाजार से बाहर निकलने के लिए मजबूर हो जाते हैं. एक कंपनी जो ऐसा करती है, उसे शुरुआती नुकसान होगा, लेकिन अंततः प्रतिस्पर्धा को बाजार से बाहर करके और इसकी कीमतों को फिर से बढ़ाकर इसका लाभ लिया जाता है.’
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रिपोर्ट के अनुसार, पैनल ने निजी एयरलाइंस की वेबसाइटों पर उड़ान में बची सीटों की संख्या और टिकटों की कीमतों के बारे में प्रकाशित ‘गलत जानकारी’ पर भी ध्यान दिया.
पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा. ‘गलत सूचनाओं के स्तर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आखिरी टिकट बिकने के बाद भी वेबसाइट पर उतनी ही सीटें दिखती हैं, जितनी टिकटों की बिक्री से पहले बताई गई थीं. यह इंगित करता है कि एयरलाइन ऑपरेटर जनता को गुमराह कर रहे हैं और यात्रियों को अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.’
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए पैनल ने सिफारिश की है कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय किराए को युक्तिसंगत बनाने और एयरलाइंस की वेबसाइटों पर सही जानकारी प्रकाशित करने के संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं.
‘व्यवसायीकरण की आड़ में लूटा’
यह स्वीकार करते हुए कि 1994 में वायु निगम अधिनियम, 1953 के रद्द करने के बाद से हवाई किराए बाजार संचालित हैं, पैनल ने दावा किया कि हवाई किराया तय करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘समिति … स्वीकार करती है कि निजी एयरलाइन ऑपरेटरों को हवाई किराए तय करने के लिए स्वतंत्र हाथ दिया जाना चाहिए क्योंकि वहां प्रतिस्पर्धा काफी ज्यादा है. यह भी नोट किया गया है कि विमान नियम, 1937 में एक प्रावधान है, जिसमें अन्य बातों के अलावा ‘उचित लाभ और आम तौर पर प्रचलित टैरिफ’ पर विचार करने के बाद हवाई किराए को तय करने का प्रावधान है.
पैनल ने आगे कहा कि हवाई किराए में वृद्धि के दौरान, घरेलू एयरलाइन टिकटों की कीमतें ‘उचित लाभ और आम तौर पर प्रचलित टैरिफ’ की स्वीकार्य या न्यायोचित सीमा से अधिक होती हैं.
इसमें कहा गया है कि एक तरफ तो सरकार आम आदमी के लिए हवाई परिवहन को सस्ता बनाने की योजना बना रही है, लेकिन दूसरी तरफ विमानों को लाने की क्षमता का उसके अनुरूप विस्तार नहीं किया जा रहा है. ऐसी स्थिति की वजह से ज्यादा मांग होने पर एयरलाइन टिकटों की कमी होती है और कंपनियां कीमतों में वृद्धि करती हैं.
पैनल ने यह भी सिफारिश की कि ऊपरी और निचली कीमतों की कैपिंग ‘लुभावने मूल्य निर्धारण’ या कीमतों में अचानक वृद्धि’ को रोकने के लिए मंत्रालय के पास एक सिस्टम होना चाहिए.
समिति ने कहा कि यह उनकी सख्त राय है कि निजी एयरलाइनों के वाणिज्यिक हित और यात्रियों के हित के बीच एक सही संतुलन बनाए रखना होगा ‘ताकि व्यवसायीकरण की आड़ में उनका पलायन न हो’.
उसने सुझाव दिया कि अगर निजी एयरलाइंस किराए के संबंध में सही जानकारी प्रकाशित नहीं करती हैं, तो इसके लिए उन पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए.
‘समिति ने कहा कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय की यात्रा करने वाली जनता और देश के लिए बड़े पैमाने पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था की आड़ में एयरलाइंस कंपनियों द्वारा अपने लाभ के लिए शोषण करने वाले मूल्य निर्धारण (प्रिडेटरी प्राइसिंग) तंत्र को नहीं अपनाया जाए. समिति सिफारिश करती है कि मंत्रालय को हवाई किराए के लिए एक मूल्य निर्धारण तंत्र तैयार करना चाहिए ताकि यात्रियों से अत्यधिक किराया नहीं वसूला जाए.
पैनल ने यह भी सिफारिश की कि नियामक नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) को टैरिफ को विनियमित करने का अधिकार दिया जा सकता है.
(अनुवाद- संघप्रिया मौर्या | संपादन- इन्द्रजीत)
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