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Friday, 22 November, 2024
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IGL की दिल्ली सरकार की गौशालाओं को सौर पैनल और बायोगैस संयंत्रों के साथ अपग्रेड करने की योजना

आईजीएल ने एक प्राइवेट एनर्जी कंपनी के साथ मिलकर पैसों की कमी से जूझ रही दिल्ली सरकार की गौशालाओं को बिजली और राजस्व उत्पन्न करने में मदद करने के लिए एक योजना शुरू की है.

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नई दिल्ली: राज्य के स्वामित्व वाली इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (IGL) दिल्ली सरकार की चार सरकारी गौशालाओं के लिए राजस्व उत्पन्न करने में मदद करने के लिए सौर पैनल, वर्षा जल संचयन और बायोगैस संयंत्र जैसी कुछ सिफारिशें लेकर आया है.

इन गौशालाओं को गंभीर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है, खास तौर से कोविड महामारी के बाद से इनके हालात काफी खराब हो चले हैं. आईजीएल ऐसी गौशालाओं के लिए एक योजना लागू करने जा रहा है. उनका दावा है कि यह योजना शहर के गौ आश्रयों को 25 लाख रुपये सालाना कमाई करने में मदद कर सकती है.

आईजीएल दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने के लिए केंद्रीय स्वामित्व वाली गेल, भारत पेट्रोलियम और दिल्ली सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम है.

दिल्ली की एक प्राइवेट एनर्जी कंपनी’ सबप्राइम एनर्जी सॉल्यूशंस’ के सहयोग से दिल्ली गौशालाओं के लिए तैयार की गई इस योजना का उद्देश्य दो सरकारी गौशालाओं- उत्तर पश्चिमी दिल्ली के बवाना में श्री कृष्ण गौशाला और दक्षिण पश्चिम दिल्ली के नजफगढ़ में डाबर हरे कृष्ण गौशाला- में 3-5 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता वाले सौर पैनल स्थापित करना है.

दिल्ली में सरकार द्वारा संचालित कुल चार गौशालाएं हैं, अन्य दो हरेवली और रेवला खानपुर में हैं.

दिप्रिंट ने जिस प्रस्ताव के बारे में जानकारी ली है, उसकी परिकल्पना 2020-21 में की गई थी. डाबर हरे कृष्ण में एक यह योजना जून 2022 में शुरू हुई थी. यहां लगभग 500 किलोवाट बिजली उत्पन्न करने की संयुक्त क्षमता वाले सौर पैनल पहले ही स्थापित किए जा चुके हैं और फिलहाल काफी अच्छे से काम कर रहे हैं.

परियोजना से जुड़े लोगों ने कहा कि बवाना गौशाला के लिए ठीक इसी तरह की योजना पर काम चल रहा है. लेकिन वह इससे बड़ी योजना होगी.

3-5 मेगावाट के एकीकृत सौर और बायोगैस संयंत्र की अनुमानित लागत लगभग 12 करोड़ रुपये है.

सनप्राइम एनर्जी सॉल्यूशंस के प्रबंध निदेशक एस के सैनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने नजफगढ़ में एक पायलट पूरा कर लिया है. इन परियोजनाओं के लिए (दिल्ली) सरकार की अनुमति की जरूरत होती है क्योंकि उनके पास गौशालाओं का लाइसेंस है. हम बवाना में दूसरी गौशाला पर काम शुरू करने की अनुमति मिलने के इंतजार में हैं.’

सैनी ने कहा, ‘एक बार सफल होने के बाद परियोजना का विस्तार दो अन्य राज्य-संचालित गौशालाओं- हरेवली में गोपाल गौसदन और रेवला खानपुर में मानव गौसदन – में किया जाएगा.’

दिप्रिंट ने पिछले साल खबर दी थी कि सरकार द्वारा संचालित चार गौशालाएं दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के बीच चल रही खींचतान के बीच फंस गई है. एमसीडी की बागडोर उस समय भारतीय जनता पार्टी के हाथों में थी. फिलहाल पिछले दिसंबर में हुए निकाय चुनाव जीतने के बाद एमसीडी आप के नियंत्रण में है.

दिल्ली की गौशालाओं को प्रति पशु 40 रुपये की मासिक सहायता मिलती है. इसमें से दिल्ली सरकार 20 रुपये का योगदान देती है जबकि एमसीडी को बाकी का भुगतान करना होता है.

रखरखाव की लागत बहुत अधिक है. एक गौशाला के एक कर्मचारी ने इसे 103 रुपये प्रति पशु बताया है और कहा कि गौ आश्रय दान पर निर्भर हैं और अपनी दैनिक लागतों को पूरा करने के लिए उन्होंने कर्ज भी लिया हुआ है.

दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग के निदेशक राकेश सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि आईजीएल का प्रस्ताव एक ‘सकारात्मक योजना’ है और इसलिए उन्होंने इसे पहले लागू करने की अनुमति दी थी.

उन्होंने बताया, ‘यह अच्छी बात है कि इन गौ आश्रयों की छतों को इस्तेमाल में लाया जाएगा और इस प्रक्रिया में अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न होगा. दूसरा, गाय का गोबर जो एक अपशिष्ट है… अब परियोजना में बायोगैस या बायो-सीएनजी के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा. इससे न सिर्फ गौशालाओं को कमाई होगी बल्कि आंतरिक रूप से भी उसे फायदा पहुंचाएगा.’


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प्रोजेक्ट किस बारे में है

सैनी ने दिप्रिंट को बताया कि उनकी कंपनी ने गौशालाओं की ‘दयनीय’ स्थिति देखते हुए इस प्रस्ताव के साथ आईजीएल से संपर्क किया था.

सैनी ने कहा, ‘इन आश्रयों की दयनीय स्थिति को देखने के बाद इस योजना का विचार आया था. क्योंकि गौशालाओं को पर्याप्त फंड नहीं मिलता है. उनमें से ज्यादातर दान पर चलते हैं. कोविड के बाद दान में भी काफी कमी आई है.’ उनकी कंपनी पिछले तीन सालों से भारत में ऊर्जा प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रही है.

सैनी ने कहा कि मौजूदा प्रस्ताव में आईजीएल पूरी परियोजना को वित्तपोषित करेगी और बदले में अपनी खुद की बिजली की लागत में 50 फीसदी की कमी लाएगी. प्रस्ताव के तहत, आईजीएल 25 साल के लिए आश्रयों से कम लागत वाली बिजली खरीदेगा.

सैनी ने कहा कि प्रस्तावित योजना से मवेशियों के गोबर के निपटान और मौसम की मार से जानवरों को बचाने के लिए छत बनाकर गौशालाओं के बुनियादी ढांचे में सुधार करने में मदद मिलने की भी उम्मीद है.

जून 2022 में, दिल्ली के पर्यावरण, विकास और सामान्य प्रशासन मंत्री गोपाल राय ने डाबर हरे कृष्ण गौशाला में 500 किलोवाट की क्षमता वाले सौर संयंत्र का उद्घाटन कर इस योजना को शुरू किया था.

राय ने उद्घाटन के दौरान कहा था कि इस पायलट परियोजना के लिए 5 करोड़ रुपये की लागत आई थी. इसका उद्देश्य परीक्षण के तौर पर ‘पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए सस्टेनेबल प्रक्टिस को आगे बढ़ाना’ और इन जगहों को आत्मनिर्भर बनाना और शेड क लिए छत के लगभग 50,000 वर्ग फुट को कवर करना है.

कृष्णन डाबर में हरे कृष्ण गौशाला के अध्यक्ष यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘संयंत्रों को आईजीएल ने स्थापित किया है. और एक पावर सिस्टम भी लगाया जा रहा है. इससे पैदा होने वाली बिजली का इस्तेमाल न सिर्फ आश्रयों को बिजली देने के लिए किया जाएगा, बल्कि इसे बीएसईएस को भी बेचा जाएगा और बदले में हमें पैसे मिलेंगे.’

परियोजना के प्रस्ताव के अनुसार, सौर संयंत्र की क्षमता अंततः 3-5 मेगावाट तक बढ़ाई जाएगी.

दो गौशालाओं के प्रस्ताव में 30-50 टन बायोगैस उत्पन्न करने में मदद करने के लिए एक बायोगैस संयंत्र स्थापित करने की भी कल्पना की गई है.

इस प्रस्ताव में सौर पैनलों के साथ जुड़ी वर्षा जल संचयन प्रणाली का भी प्रस्ताव रखा है. प्रस्ताव में पैनलों के बीच बने ड्रेनेज नेटवर्क से बारिश के पानी को इकट्ठा करने और उसे अंडरग्राउंड स्टोरेज टैंक तक ले जाने की कल्पना की गई है.

प्रस्ताव में कहा गया है कि यह जल संचयन प्रणाली न सिर्फ आश्रय में रहने वाले मवेशियों की साफ-सफाई करने के लिए पानी की जरूरत को पूरा करने में मदद करेगी, बल्कि इससे पानी के वाष्पीकरण में लगभग 20 प्रतिशत की कमी आएगी.

श्री कृष्ण गौशाला में परियोजना के तहत इसी तरह के संयंत्र स्थापित किए जाएंगे, जिससे 25 सालों तक प्रति मेगावाट बिजली से 10 लाख रुपये और बायोगैस संयंत्रों से सालाना 15 लाख रुपये का अनुमानित आय प्राप्त हो सकेगी.

सैनी ने कहा कि इस अवधि के अंत में, संचालन के लिए संयंत्रों को आईजीएल से गौशालाओं में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.

सैनी ने कहा, ‘आईजीआई बोर्ड ने सैद्धांतिक रूप में योजना की पुष्टि की है और इसकी व्यवहार्यता का आकलन भी किया गया है. हमने दूसरे संयंत्र की अनुमति के लिए उपराज्यपाल (वी.के. सक्सेना) को लिखा है.’

श्री कृष्ण गौशाला के प्रबंधक विजयेंद्र ध्यानी ने दिप्रिंट को बताया कि 2018 में गौशाला ने खुद से 100 किलोवाट का एक छोटा सोलर प्लांट स्थापित किया था. उन्होंने कहा कि संयंत्र, जिसके लिए गाय आश्रय ने अपने पैसे लगाए थे, अभी भी काम कर रहा है, लेकिन एक महीने में 10,000 यूनिट बिजली की मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है.

ध्यानी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास पहले से ही एक सौर संयंत्र है जो सफलतापूर्वक चल रहा है. इसलिए हम आईजीएल के प्रस्ताव में रुचि रखते हैं और उनके साथ बातचीत कर रहे हैं.’

आईजीएल को इससे क्या फायदा होगा

आईजीएल के प्रस्ताव में कहा गया है कि यह परियोजना दिल्ली सरकार को दिल्ली सौर नीति 2016 को साकार करने में मदद करेगी. हालांकि इस नीति को अब दिल्ली सौर नीति 2022 के मसौदे से बदल दिया गया है, लेकिन पुरानी नीति की तरह, यह मसौदा भी कल्पना करता है कि राष्ट्रीय राजधानी 2025-26 तक सौर ऊर्जा के माध्यम से अपनी वार्षिक बिजली की मांग का 25 प्रतिशत पूरा करेगी.

2016 की नीति के मुताबिक निजी बिजली वितरण कंपनियों को दिल्ली के भीतर अपने सौर नवीकरणीय खरीद दायित्व (आरपीओ) के कम से कम 75 प्रतिशत को पूरा करने और सरकारी भवनों के लिए पांच साल के भीतर छत पर सौर पैनल लगाने की आवश्यकता है.

उदाहरण के लिए, एक रिन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन (आरपीओ) सभी बिजली वितरण लाइसेंसधारियों को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से अपनी जरूरतों की न्यूनतम निर्दिष्ट मात्रा में खरीद या उत्पादन करने को अनिवार्य करता है.

आईजीएल के प्रस्ताव के अनुसार, सोलर पैनल ग्रुप/वर्चुअल नेट मीटरिंग रेगुलेशंस के दायरे में आएंगे. यह उन उपभोक्ताओं के लिए एक व्यवस्था है, जिनके पास सोलर पैनल के लिए छत नहीं है और वे सोलर नेट-मीटरिंग सुविधा तक पहुंच चाहते हैं.

प्रस्ताव के मुताबिक, इस परियोजना से पैदा होने वाली बिजली को एक बिजली वितरण कंपनी द्वारा उपभोक्ता तक पहुंचाया जाएगा. यहां ये काम आईजीएल के जिम्मे है. प्रस्ताव में कहा गया है कि इसके चलते आईजीएल को काफी बचत होगी और ये अपनी पूंजी निवेश लागत को कवर करने में मदद कर सकता है.

सैनी ने कहा, ‘आईजीएल के लिए गौशालाओं में संयंत्र स्थापित करने की योजना मददगार साबित होगा, क्योंकि सबसे पहले तो इनके पास काफी जगह है, दूसरा, फायदा ये है कि यह (आईजीएल) 25 साल के लिए इन पशु आश्रयों से 50 पैसे प्रति यूनिट की दर से 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा खरीदेगा. आर्थिक रूप से यह व्यवहार्य होगा.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: आशा शाह )

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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